ज्योतिष से जानिए कैंसर रोग के योग

ज्योतिष से जानिए कैंसर रोग के योग  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 8477 | जून 2007

कैंसर का नाम सुनते ही रोगी अपने जीवन का शीघ्र अंत मान लेता है जिसके चलते उसके मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक स्तर में निरंतर गिरावट आने लगती है। यदि इस रोग का पता शुरू में नहीं चल पाए, तो यह शरीर में विषवृक्ष की तरह फैलता जाता है। ज्योतिष में कैंसर जैसे भयानक रोग की उत्पŸिा में कौन कौन से ग्रहों का प्रभाव रहता है इसे जाना जा सकता है। ज्योतिष सृष्टि संचरण की घड़ी है एवं व्यक्ति की जन्म कुंडली सोनोग्राफी है जिसके विश्लेषण से कैंसर की संभावना का पता लगाया जा सकता है। समय रहते प्रतिकूल ग्रहों को मंत्र जप एवं अन्य उपायों के द्वारा शांत कर इस रोग से बचा जा सकता है।

कैंसर रोग क्या है?

जीव विज्ञान के अनुसार मानव शरीर के अंगों की रचना कोशिकााअें से होती है। शरीर में कोशिकाओं का बनना तथा टूटना एक स्वाभाविक प्रक्रिया के तहत चलता रहता है। इन कोशिकाओं के निर्माण में जल एवं रक्त का महत्व होता है। एक स्वस्थ मानव शरीर में 70 से 75 प्रतिशत जल की मात्रा रहती है।

किसी कारणवश जल एवं रक्त के प्रवाह में रुकावट आ जाती है, तो उसका प्रभाव कोशिकाओं पर पड़ता है। जिस मात्रा में कोशिकाएं बनती हैं उस मात्रा में टूटती नहीं हैं जिससे वे असामान्य व अनियंत्रित गति से विभाजित होने लगती हैं। साथ ही कोशिकाओं का निर्माण अपने ढंग से करने लगती हैं। कोशिकाओं के बढ़ने की गति गुणात्मक होने के समय में स्थान पर कोशिकाओं का घनत्व बढ़ जाता है तथा शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर कम होने लगता है।

फलतः मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जती है और शरीर अन्य रोगों की चपेट में आ जाता है और जीवन का अंत हो जाता है। ज्योतिष में कैंसर रोग में ग्रहों की भूमिका: मानव शरीर में कैंसर की उत्पŸिा में कोशिकाओं की भूमिका महत्वपूण्र् ा होती है। कोशिकाओं में श्वेत एवं लाल रक्त कण होते हैं।

ज्योतिष में श्वेत रक्त कण का सूचक कर्क राशि का स्वामी चंद्र तथा लाल रक्त कण का सूचक मंगल है। कर्क राशि का अंग्रेजी नाम कैंसर है तथा इसका चिह्न केकड़ा है। केकड़े की प्रकृति होती है कि वह जिस स्थान को अपने पंजों से जकड़ लेता है, उसे अपने साथ लेकर ही छोड़ता है।

इसी प्रकार कोशिकाएं मानव शरीर के जिस अंग को अपना स्थान बना लेती है उसे शरीर से अलग करके ही कोशिकाओं को हटाया जाता है। इसलिए ज्योतिष में कैंसर जैसे भयानक रोग के लिए कर्क राशि के स्वामी चंद्र का विशेष महत्व है। इसी प्रकार रक्त में लाल कण की कमी होने पर प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है। ज्योतिष में मंगल ग्रह जातक के शरीर का बलशाली, साहसी तथा गर्म प्रकृति का सूचक माना गया है।

जन्म कुंडली में कैंसर रोग होने के योग: व्यक्ति की जन्म कुंडली में निम्न ग्रहों के योग होने से कैंसर जैसे भयानक रोग की संभावना रहती है: लग्न का अस्त होना। पापी ग्रहों की दशांतर्दशा। शनि, मंगल, राहु, केतु की युति छठे, आठवें या बारहवें भाव में होना। पापी ग्रहों की दृष्टि चंद्र ग्रह के साथ होकर छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव पर पाप। ग्रहों का दृष्टि संबंध होने पर कैंसर जैसा भयंकर रोग का होना।

लग्न पर पापी ग्रहों की दृष्टि होना अथवा लग्न के स्वामी की छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव स्थिति, छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव के स्वामी की लग्न में स्थिति। चंद्र का पापी ग्रहों के साथ युति अथवा दृष्टि संबंध। जिस भाव पर पापी ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तथा चंद्र दूषित हो रहा हो तो उस भाव के अंग पर कंैसर होता है।

गुरु का पापी ग्रहों के साथ दृष्टि अथवा युति संबंध तथा गुरु का पंचम से दृष्टि संबंध या गुरु की पंचम भाव में स्थिति। चंद्र तथा मंगल का पापी ग्रहों के साथ युति या दृष्टि संबंध। चंद्र ग्रह की त्रिक भाव में स्थिति और उसका पापी ग्रहों के साथ दृष्टि या युति संबंध। छठे भाव का स्वामी पापी ग्रहों क साथ होकर जिस भाव में बैठता है उस भाव के अंग पर कैंसर होता है। छठे, आठवें और बारहवें भाव की राशियों के स्वामियों का परस्पर स्थान बदलना तथा उनका संबंध लग्न भाव के स्वामी से होना। राशि के स्वामी ग्रह का शत्रु नक्षत्र के स्वामी में होना।

राशि के स्वामी ग्रह के नक्षत्र स्वामी का छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव के स्वामी में अथवा मारक स्थान में होना। पापी ग्रहों की युति की निकटता ज्यादा होना। लग्न की निर्बल होकर पापी ग्रहों के साथ छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में स्थिति। यहां ऊपर वर्णित योगों के फलस्वरूप कैंसर से पीड़ित कुछ जातकों की कुंडलियों का विश्लेषण प्रस्तुत है।

कुंडली नं. 1 के जातका को छाती का कैंसर हुआ। जन्म कुंडली के अनुसार उसका लग्न मीन है जिसका स्वामी वक्री होकर अपने से छठे भाव (रोग भाव) में बैठा है। केतु अष्टम भाव में है जो मारक भाव है। मंगल द्वितीय व भाग्येश होकर बारहवें भाव में है। जातका को छाती के कैंसर का पता केतु की महादशा में मंगल की अंतरदशा के दौरान वर्ष 2001 में मार्च से जुलाई के बीच पता चला। चंद्र उŸारा भाद्रपद नक्षत्र में है जिसका स्वामी शनि है और गुरु मघा नक्षत्र में है जिसका स्वामी केतु है। साथ ही मंगल 12वें भाव से गुरु को पूर्ण दृष्टि से देखता है। चंद्र व शनि ने लग्न में बैठकर विषयोग का निर्माण किया है। अतः जातका को कैंसर रोग ज्योतिष योग नंबर 2 से 6 की पुष्टि करता है। इस रोग के कारण जातका का देहांत केतु की महादशा में बुध की अंतर्दशा में शुक्र की प्रत्यंतर्दशा, जो 13 नवंबर 04 से 12 जनवरी 05 तक थी, में दिनांक 12.12.2004 को हो गया। केतु अष्टम में है, शनि व मंगल की दृष्टि तृतीय भाव वृष पर है तथा देहांत के समय भी शुक्र का प्रत्यंतर था जो मारक ाराशि का स्वामी है। इन सारे योगों के कारण जातका का देहांत हुआ।

कुंडली नंबर 2 के जातक को मुह के कैंसर का पता मंगल की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा में शनि की प्रत्यंतर्दशा, जो 3 सितंबर से 4 अप्रैल तक थी, में चली। उसकी कुंडली में लग्न का स्वामी शनि आठव ंे भाव म ंे ह,ै चंद्र स्वग्रही होकर अस्त है और अपनी शत्रु राशि शनि को जो लग्न में पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। मंगल अपनी मेष राशि से षष्ठ होकर भाग्य में चला गया है और गुरु व सूर्य अपनी राशि क्रमशः धनु तथा सिंह से बारहवें हो गए हैं। ज्योतिष से कैंसर रोग की पुष्टि योग नंबर 1,2,3,4,14,15 से होती है। जातक को कैंसर रोग पुनः राहु की महादशा में राहु की अंतर्दशा में चंद्र की प्रत्यंतर्दशा जो जून 06 से नवंबर 06 तक थी, में हुआ तथा आॅपरेशन करना पड़ा। उसके लग्न का स्वामी शनि अष्टम में होने से जातक को बार-बार इस प्रकार मौत के पास ले जाता है।

कुंडली नंबर 3 के जातक को बड़ी आंत के कैंसर का पता गुरु की महादशा में शनि की अंतर्दशा तथा केतु की प्रत्यंतर्दशा में कैंसर चला। जन्म कुंडली के अनुसार गुरु वक्री होकर पंचम भाव में मकर राशि में नीच का है। शनि अपनी राशि मकर से बारहवां होकर धनु राशि में है। शनि भी वक्री है तथा गुरु व शनि में परस्पर राशि परिवर्तन भी है। गुरु व शनि दोनों उŸाराषाढ़ा नक्षत्र में हैं। जिसका स्वामी सूर्य है। लग्न में अष्टम राशि मेष का स्वामी मंगल है जो अपनी राशि से षष्ठम हो गया है। केतु रोग के भाव षष्ठ में है। उक्त ाचंदशांतर में ही जातक का आॅपरेशन भी हुआ। यहां जो योग सं. 1,2,4,7,12 व 13 रोग की पुष्टि करती हंै।

कुंडली नं. 4 के जातक को मुंह के कैंसर का पता बुध की महादशा में शनि की अंतर्दशा में बुध की प्रत्यंतर्दशा जो 4 मार्च से 4 अगस्त तक थी, में चला। जन्म कुंडली के अनुसार द्वितीय भाव म ंे चदं ्र शत्रु राशि बुध में है जिस पर सप्तमेश मंगल, जो मारक भाव में स्वराशि का है, तथा पंचमेश शनि की दृष्टि है। शनि की चंद्र पर पूर्ण दृष्टि होने से विषयोग का निर्माण हुआ है। शनि हस्त नक्षत्र में है, जिसका स्वामी चंद्र है और ये दोनों आपस में शत्रु भी हैं तथा चंद्र भी आद्र्रा नक्षत्र में पापी ग्रह राहु के नक्षत्र में है। लग्न का स्वामी शुक्र भी सूर्य जो स्वगृही व मूल त्रिकोण होने से अस्त है। अतः जातक को यह भयंकर रोग हुआ। इसकी पुष्टि योग सं. 1,3,4,5,6,12,13,17 से होती है।

कुंडली नंबर 5 के जातक को लीवर का कैंसर था। जन्म कुंडली के अनुसार लग्नेश बुध सूर्य से अस्त होकर षष्ठ भाव में है। गुरु नीच का होकर पंचम भाव में है। अष्टम में स्वगृही मंगल के साथ चंद्र की युति है। चंद्र व मंगल दोनों ही रक्त के कारक ग्रह है। साथ ही मंगल की राहु, जो तृतीय भाव में है, पर पूर्ण दृष्टि है। राहु की महादशा में शुक्र के अंतर में कैंसर रोग का पता चला। शुक्र ग्रह भी षष्ठ भाव में सूर्य से अस्त है। अतः जातक को लीवर का कैंसर हुआ। उसका देहांत राहु में मंगल की अंतर्दशा में हो गया। इसकी पुष्टि योग सं. 1,2,5,7,8,17 से होती है।

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