वर-वधू का मिलान

वर-वधू का मिलान  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 9746 | फ़रवरी 2012

वर-वधू का मिलान प्रश्न: वर-वधू के गुण व मंगलीक मिलान के अतिरिक्त कैसे निश्चित करें कि दोनों में मिलान उŸाम है। आयु, संतान, स्वास्थ्य, धन व संबंध आदि पर विचार कैसे करें? वर-वधू का उŸाम मिलान: वर-वधू के बीच गुण-मिलान विवाह संस्कार के लिए किया जाता है।

अच्छा विवाह दाम्पत्य जीवन में सुख के अलावा जीवन के सारे सुख देता है। वर-वधू के बीच जीवन के सारे सुख प्राप्त करने के लिए निम्न तरह से मिलान किया जा सकता है-

गुण-मिलान मांगलिक स्थिति मिलान कुंडली मिलान हस्तरेखा मिलान अंकशास्त्र मिलान पति-पत्नी को जीवन के सारे सुख मुख्यतः कुंडली मिलान के अनुसार ही मिलते हैं क्योंकि कुंडली से ही जीवन के सारे सुख जैसे- वैवाहिक जीवन, संतान, स्वास्थ्य, आयु, धन, पारिवारिक आदि देखे जाते हैं।

हस्तरेखा शास्त्र द्वारा मिलान भी कुंडली स्थित ग्रहों की स्थिति के अनुसार ही होता है क्योंकि कुंडली में जैसी ग्रहों की स्थिति होती है, ठीक वैसी ही पति-पत्नी की मानसिकता व सोच होती है और वैसी ही हाथ में रेखाओं की स्थिति होती है और उसके अनुसार ही व्यक्ति कर्म करता है और सुख-दुख भोगता है।

इसमें भी पूर्वजन्मों में किये गये कर्मों का नियम लगता है और उसके अनुसार भी व्यक्ति सुख-दुःख भोगता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि कुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति के अनुसार ही व्यक्ति कर्म करता है और उसके अनुसार ही हाथ में रेखाओं की स्थिति बनती-बिगड़ती रहती है, लेकिन सभी के मूल में 9 ग्रह 12 राशियां और 27 नक्षत्र ही हैं।

इसलिए सबसे सर्वश्रेष्ठ मिलान कुंडली मिलान होता है। इससे यदि जीवन के सारे सुख मिल जायें तो बाकी के मिलान-गुण, मांगलिक व हस्तरेखा का महत्व तो रहता है लेकिन कम रहता है।

उदाहरण के तौर पर, कई बार ऐसा देखने में आता है कि व्यक्ति के 36 में से अधिकतम गुण 28 या इससे ज्यादा या कई बार 36 गुण मिलते हैं और मांगलिक दोष भी नहीं है तथा कुंडली मिलान की है तो भी दाम्पत्य जीवन खराब रहता है और कई बार यह भी देखने में आया है कि व्यक्ति की जन्मपत्री अच्छी मिली और गुण न्यूनतम 5, 10 या 15 ही मिलते हैं एवं मांगलिक दोष भी है तो दाम्पत्य जीवन अच्छा बीतता है।

इन दोनों ही स्थिति को निम्न उदाहरण से सिद्ध भी किया गया है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि व्यक्ति के नाड़ी दोष एवं राशि दोष हैं और कुंडली मिलान अच्छा होता है तब भी संतान सुख मिल जाता है क्योंकि नाड़ी दोष में सामान्य यह माना जाता है कि काम सुख के अभाव के कारण संतान सुख न मिलना होता है। क्योंकि कुंडली मिलान से इनका संतान भाव बली होता है। अतः सबसे ज्यादा महŸाा कुंडली मिलान की ही है। उदाहरण:

1. गुण: अधिकतम 35 तथा कुंडली मिलान सही नहीं। अतः दाम्पत्य जीवन खराब। उपरोक्त में 35 गुण मिलने के बाद भी वर-वधू के दाम्पत्य जीवन में तनाव बना रहता है क्योंकि लड़के का सप्तमेश शनि मित्र राशि में है, लेकिन इस पर शत्रु ग्रहों सूर्य, गुरु का प्रभाव अशुभ है, कारक शुक्र भी शत्रु राशिगत अशुभ है, इसके अलावा सप्तम विवाह भाव पर राहु, केतु का पाप प्रभाव अशुभ है। लड़की की कुंडली में सप्तमेश चंद्र, राहु-केतु से ग्रहण दोष में पीड़ित है। सप्तम भाव में शत्रुराशिगत बुध स्थित है। विवाह, काम, सप्तम भाव कारक शुक्र नीच राशि म ंे है तथा स्त्री के लिए गुरु भी शत्रुराशिगत अशुभ है। उपरोक्त कारण से 35 गुण मिलने के बाद भी दाम्पत्य जीवन सुखद नहीं है। अतः गुण मिलान की अपेक्षा कुंडली मिलान इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है। उदाहरण

2. गुण: मध्यम 18 तथा कुंडली मिलान श्रेष्ठ। अतः दाम्पत्य जीवन अच्छा। जीवन के सारे सुख मिले। दोनों के मध्य राशि दोष तथा नाड़ी दोष आया था। नाड़ी दोष के कारण संतान सुख का अभाव होता है। लेकिन दोनों के संतान एवं विवाह कारक तथा धन, परिवार कारक ‘बृहस्पति’ पंचम त्रिकोण भाव में शुभ स्थित है। लड़के के बृहस्पति स्वगृही है तथा लड़की के समराशि में गुरु स्थित है। दोनों को संतान सुख प्राप्त हुआ। लड़की के लग्नेश शुक्र ने विवाह कारक बृहस्पति से पंचम भाव में युति की तथा लड़के के विवाह कारक शुक्र तथा लग्नेश सूर्य में भाव परिवर्तन होकर शुक्र लग्न में स्थित होकर विवाह भाव को शुभ दृष्टि से देख रहा है। अतः दाम्पत्य जीवन आदि सारे सुख प्राप्त हैं।

3. विभिन्न बिंदुओं पर विचार: कुंडली मिलान (उŸाम) के द्वारा निम्न बिंदुओं के अंतर्गत विवेचन करना अच्छा परिणाम देता है- स्वास्थ्य: सामान्यतः स्वास्थ्य का विचार प्रथम लग्न भाव, षष्ठ रोग भाव तथा इनके स्वामियों से किया जाता है। इसके अलावा मन, मस्तिष्क के कारक ग्रह चंद्र पर भी विचार करना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त इन सभी पर पाप (अशुभ) एवं (पुण्य) ग्रहों के प्रभाव पर भी विचार करना अति आवश्यक है। वर-वधू के लिए यह आवश्यक है कि दोनों का स्वास्थ्य आजीवन अच्छा रहे। इसके लिए उपरोक्त ग्रह स्थितियां होनी चाहिए। लग्न, भाव बली होना चाहिए इनमें कोई अशुभ (नीच/शत्रुराशि) के ग्रह स्थित नहीं होने चाहिए तथा इसका स्वामी भी बली होकर अच्छे भाव में स्थित हो, इस पर पाप ग्रहों का अशुभ प्रभाव नहीं होना चाहिए। उपरोक्त सारी स्थितियां दोनों की कुंडली में मौजूद होनी चाहिए ताकि दोनों स्वस्थ रहकर खुशियां, सुख भोगें। स्वास्थ्य बाधक रहना खराब दाम्पत्य जीवन की पहली निशानी है। आयु: इस संसार में जीवन के सारे सुख तभी भोग सकते हैं, जब वर-वधू की आयु पूर्ण हो। यदि दोनों या एक जल्दी मृत्यु को प्राप्त हो जायें तो भी दाम्पत्य जीवन अधूरा रह जाता है। अतः ऐसा न हो, इसके लिए यह आवश्यक है कि दोनों का अष्टम भाव बली हो अर्थात् अष्टम भाव में कोई अशुभ, पाप ग्रह (शत्रु/ नीच राशि) स्थित न हो, अष्टमेश बलवान होकर शुभ भाव में स्थित हो, कारक शनि भी अच्छी स्थिति में हो। इसके साथ ही लग्नेश का विचार भी महत्वपूर्ण हैं। यह भी बली होकर शुभ भाव में स्थित हों। इसके अलावा इन सभी पर पाप ग्रहों का अशुभ प्रभाव नहीं होना चाहिए। आयु में भी चंद्र की बलवान स्थिति होना अतिआवश्यक है तथा साथ ही अमावस्या का चंद्र, चंद्र कालसर्प योग से प्रभावित, राहु-केतु से पीड़ित नहीं होना चाहिए। वर-वधू दोनों को ही आयु का पूर्ण सुख मिले जिससे जीवन प्रसन्नता से व्यतीत हो। दाम्पत्य (वैवाहिक) जीवन: स्वास्थ्य एवं आयु के पश्चात् वर-वधू के बीच उŸाम मिलान का सबसे महत्वपूर्ण एवं अतिआवश्यक बिंदु ‘‘दाम्पत्य जीवन’’ है। यह दोनों के जीवन का आधार है, इस पर दाम्पत्य जीवन की इमारत खड़ी है। इसके लिए यह आवश्यक है कि दोनों के सप्तम भाव अति बली हांे, अर्थात् पाप प्रभाव से मुक्त हों। सप्तम भाव काम एवं विवाह से जुड़े सभी पहलुओं का होता है। अतः इस भाव में कोई भी पाप एवं अशुभ ग्रह (नीच, शत्रुराशि, अस्त) नहीं होना चाहिए। सप्तमेश एवं काम कारक शुक्र भी बली होकर शुभ भाव में स्थित हो। सप्तम भाव में यदि युति हो तो केवल सौम्य/शुभ ग्रहों की युति हो। जैसे- चंद्र$गुरु की कर्क राशि में, चंद्र$शुक्र की वृष राशि में आदि। सप्तम भाव में ऐसी युतियां होने से दाम्पत्य जीवन आजीवन मधुर रहता है। इसके अलावा, पुरुषों तथा स्त्रियों के लिए विवाह कारक ग्रह क्रमशः शुक्र एवं गुरु भी बलवान होकर शुभ भावों में स्थित हो। इसके अतिरिक्त दोनांे का लग्नेश, राशीश, चंद्र भी शुभ/बली होना चाहिए। उपरोक्त सभी स्थितियां होने के बाद उपरोक्त सभी पर पाप एवं अशुभ ग्रहों के प्रभाव भी वर-वधू दोनों की कुंडलियों में नहीं होने चाहिए ताकि दाम्पत्य जीवन मधुर बना रहे। क्लेश, तनाव, तलाक आदि नकारात्मक स्थितियां उत्पन्न न हों। कुंडली मिलान का यही रहस्य है। संतान: विवाह के बाद यदि पति-पत्नी को संतान का सुख नहीं मिले, तो यह सुख नगण्य हो जाता है। समाज, स्त्री पर अनावश्यक शब्दों जैसे- बांझ, कुल्टा आदि का आरोप लगाता है। स्त्री के चरित्र पर भी संदेह किया जाता है आदि। जिससे भी दाम्पत्य जीवन में सुख का अभाव हो जाता है। अतः संतान सुख के लिए कुंडली का पांचवां भाव, स्वामी, कारक गुरु आदि बली होकर शुभ स्थित में होने चाहिए। इन पर केवल शुभ प्रभाव होने चाहिए। पाप, अशुभ आदि नकारात्मक प्रभावों से कुंडली मुक्त होनी चाहिए जिससे संतान सुख प्राप्त कर पति-पत्नी इज्जत से सुखपूर्वक जीवन यापन कर सकें। धन: यदि पति-पत्नी के पास उपरोक्त सभी बातें हों और धन का अभाव हो, तो भी दाम्पत्य जीवन नरक तुल्य होता है। क्योंकि धन के अभाव में संसार का कोई भी सुख नहीं मिल पाता है। पति-पत्नी दोनों या कोई एक नौकरी/व्यवसाय से जुड़े होने चाहिए ताकि धन से जीवन अच्छा व्यतीत हो सके। इसके लिए कुंडली का 11वां एवं 2 भाव बली होना चाहिए। इनके स्वामी, कारक बृहस्पति मजबूत स्थित में होने चाहिए। कुंडली पाप प्रभाव से पूर्णतया मुक्त होनी चाहिए। राहु-केतु का कुंडली मिलान पर प्रभाव: सौर मण्डल के 7 ग्रह, 12 राशियों का प्रतिनिधित्व करते हैं अर्थात् कुंडली के 12 भावों में जो भी राशि आयेगी, उनके स्वामी ये 7 ग्रह ही होते हैं। ये 7 ग्रह जब छाया ग्रहों राहु, केतु के प्रभाव में (युति या दृष्टि द्वारा) आते हैं तो उनसे अग्रलिखित अशुभ योग बनते हैं- सूर्य एवं चंद्र से ग्रहण योग या पितृदोष, मंगल से अंगारक, बुध से जड़, बृहस्पति से चांडाल शुक्र से अशोत्वक, शनि से नंदी नामक अशुभ योग बनते हैं। इसके अलावा कालसर्प योग भी उपरोक्त 7 ग्रहों के एक तरफ अर्थात् धुरी पर आने से बनता है। ये सभी योग कुंडली में इतने खराब होते हैं कि संपूर्ण कुंडली को दूषित बना देते हैं। ये योग जब कुंडली में विभिन्न भावों जैसे- 2, 5, 6, 7, 8 में बनते हैं तो उनसे संबंधित सुखों क्रमशः जैसे- परिवार, धन, संतान, आय, स्वास्थ्य, दाम्पत्य जीवन, आयु आदि में कमी कर देते हैं। जिससे अंतिम प्रभाव पति-पत्नी के दाम्पत्य जीवन पर पड़ता है। उदाहरण:

कुंडली-3: कुंडली-3 के सप्तम भाव पर राहु, केतु का प्रभाव अशुभ है, फलतः दाम्पत्य जीवन खराब रहता है। अतः अच्छे दाम्पत्य जीवन के लिए राहु-केतु का अशुभ प्रभाव उपरोक्त भावों पर न्यूनतम या अन्य भावों पर होना चाहिए। इसके अलावा राहु-केतु के प्रभाव में उपरोक्त भावों के स्वामी भी नहीं आने चाहिए। यदि उपरोक्त अशुभ प्रभाव हों, तो भी अन्य शुभ प्रभाव होने चाहिए जिससे उपरोक्त अशुभ प्रभाव में कमी होकर जीवन के सारे सुख मिलें। इसे एक निम्न कुंडली द्वारा समझ सकते हैं।

उपरोक्त जोड़ में गुण के केवल 15.5 ही मिल रहे हैं, जो कि आवश्यकता से कम हैं। लड़की मांगलिक है, लेकिन लड़का मंगल दोष से मुक्त है। यहां वर-वधू के गुण-मिलान एवं मांगलिक स्थिति में दोष उत्पन्न हो रहा है, अतः नियमानुसार इनके कारण दाम्पत्य जीवन खराब होना चाहिए। परंतु ऐसा नहीं है। कुंडली द्वारा मिलान को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। लड़के का सप्तमेश शनि शत्रुराशिगत नवम भाव में राहु, केतु से पीड़ित (नंदी योग) बना रहा है, जो कि अशुभ है लेकिन साथ ही विवाह कारक शुक्र, बुध के साथ मित्रराशि में सप्तम विवाह भाव में शुभ है।

बृहस्पति मित्र राशिगत परिवार भाव में शुभ स्थित है। फलतः वैवाहिक जीवन अच्छा है। लड़की के सप्तमेश शनि 12वें भाव में मित्रराशिगत बुध के साथ शुभ स्थित है लेकिन पंचम संतान भाव पर राहु, केतु का प्रभाव अशुभ है शत्रुराशिगत अशुभ इस सबके बावजूद भी दोनों के 2 संतान का योग प्राप्त है। क्योंकि दोनों का लग्न एक ही ‘कर्क’ है। साथ ही दोनों ही सरकारी नौकरी में होने से धन की कोई कमी नहीं है। दोनों की राशियां एवं लग्न एक ही होने से में ही गहरी मित्रता भी है। लड़के का पंचमेश मंगल त्रिकोण भाव में शुभ है। अतः कुंडली मिलान के उपरोक्त कारणों से दाम्पत्य जीवन के सारे सुख मिल रहे हैं।

4. हस्तरेखा द्वारा मिलान: हस्त शास्त्र द्वारा मिलान निम्न पांच बातों पर निर्भर करता है-

1. संवाद

2. बाह्य व्यक्तित्व

3. आत्मिक मिलन

4. यौन मेलापक

5. समानुभूति भाव।

इसके अलावा जीवन में सुख-समृद्धि के पक्ष, विपरीत परिस्थितियों में धैर्य, परस्पर प्रेम भाव आदि का भी विचार किया जाता है। हस्तरेखा द्वारा मिलान के नियम:

मिलान में अंगूठे का महत्व: इसके मुख्य बिंदु निम्न हैं- अंगूठे का निचला अथवा तीसरा पोर, जीवन रेखा द्वारा जिसे विशेष आकार दिया जाता है। शुक्र पर्वत को उत्कृष्ट बनाने में विशष्े ा भूि मका निभाता है। इस शुक्र पर्वत का पूर्णरूप से उभरा होना गृहस्थ जीवन के सफल होने का सूचक है, अतः इस पर विशेष रूप से ध्यान देना अति आवश्यक है। सुदृढ़ अंगूठे से संतुलित जीवन का अनुमान लगाया जाता है। अंगूठा सीधा, सुडौल तथा लंबा हो और उसके पोरों की लंबाई भी बराबर हो (यह अनुपात 2ः3 का हो तो सर्वश्रेष्ठ रहता है) तो व्यक्ति बुद्धिमान होता है और अपनी बात या अपने निर्णय पर अडिग रहता है।

वह समय के महत्व को समझता है, अतः उसका सदैव सदुपयोग करता है। सामाजिक बंधन ऐसे व्यक्ति के विचारों को प्रभावित नहीं करते हैं। वह अपने काम के प्रति पूरा ईमानदार होता है तथा स्वयं अपने जीवन को सफल बनाता है। यदि कन्या का अंगूठा सुंदर हो और साथ ही लचीला भी हो, तो यह अपने आपको नई परिस्थितियों में ढाल लेने में सक्षम होती हैं।

वह अपनी वाकपटुता से दूसरों का मन जीत लेती है। यदि अंगूठा छोटा और उसका पहला पोर मोटा या मांसल हो, तो वह जिद्दी तथा गंदे स्वभाव का होता है, अतः ऐसे व्यक्ति से सावधान रहना चाहिए। यदि विवाह रेखा गहरी हो व लालिमा लिये हो और मस्तिष्क रेखा पर शनि पर्वत के नीचे यदि काला धब्बा (बिंदु) हो तो यह स्थिति जीवन साथी के लिए प्राणघातक होती है।

यदि जीवन रेखा का उद्गम दो स्थान से हो और फिर वह एक होकर चले तो पति-पत्नी के बीच यह अलगाव के संकेत देता है। यदि बायें हाथ में विवाह रेखा, हृदय रेखा को काटती हुई झुककर शुक्र पर्वत पर पहुंचती हो तो तलाक होने की संभावना रहती है। यदि यह स्थिति दोनों ही हाथों में हो तो तलाक निश्चित रूप से होता है।

यदि विवाह रेखा से एक शाखा नीचे की तरफ आकर सूर्य रेखा को काटती हो, तो जीवन साथी को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यदि विवाह रेखा से एक शाखा निकलकर ऊपर की ओर सूर्य पर्वत पर जाती हो, तो यह शुभ रहती है। इस प्रकार हस्त शास्त्र से मिलानकर वैवाहिक जीवन को सुखमय बना सकते हैं। अंक शास्त्र ज्योतिष के द्वारा मेलापक: वर-वधू के चयन में अंकशास्त्र की भूमिका:

अंक ज्योतिष के अनुसार भी अंक 1 से 9 में ही तीनों काल समाये हुये हैं अर्थात् भूत, वर्तमान एवं भविष्य का रहस्य छुपा हुआ है तथा आकाश में उपस्थित नौ ग्रहों के बीच संसार का सारा रहस्य छिपा है। मनुष्य के स्वभाव, व्यवहार अर्थात् प्रकृति को यही 9 ग्रह एवं 9 अंक नियंत्रित करते हैं। अंक और उसका मान: अंक शास्त्री कीरो ने अंक शास्त्र में अंग्रेजी के वर्ण के हर अक्षर का मान, उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत के आधार पर दिया, जो निम्न है- अंक ज्योतिष में जन्मतिथि से मूलांक तथा जन्मतिथि, माह व वर्ष से भाग्यांक निकाला जा सकता है।

नाम के अक्षरों को जोड़कर नामांक निकाला जाता है। अंक ज्योतिष में प्रत्येक अंक पर उसके स्वामी ग्रह का पूर्ण अधिकार रहता है, जिससे वह नियंत्रित रहता है। इसे निम्न दर्शाया गया है- जिस प्रकार ज्योतिष में ग्रहों के मित्र-शत्रु होते हैं, उसी प्रकार से अंक ज्योतिष में भी अंकों के मित्र-शत्रु ज्योतिष की भांति होते हैं-

समूह-1: सूर्य, चंद्र, मंगल, गुरु। समूह-2: बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतु समूह-1 के सभी ग्रह आपस में मित्रवत् व्यवहार रखते हैं, उसी तरह समूह-2 के भी सभी ग्रह आपस में मित्रवत् व्यवहार करते हैं। समूह-1 का सूर्य,

समूह-2 के बुध से मित्रवत व्यवहार रखता है। इसके अलावा इन दोनों समूहों के आपस में अर्थात् समूह-1 के 2 से तथा समूह-2 के 1 से ग्रहों का व्यवहार शत्रुवत रहता है। इसका विलोम अंकांे का भी मित्रवत-शत्रुवत व्यवहार रहता है। इसे अंकों की तरह निम्न प्रकार समझ सकते हैं- समूह-1: सूर्य 1, चंद्र 2, मंगल 9, गुरु 3। समूह-2: बुध 5, शुक्र 6, शनि 8, राहु 4, केतु 7।

उपरोक्त की भांति समूह-1 और समूह-2 के सभी अंक आपस में मित्र हैं। इसके अलावा 1 व 5 आपस में मित्र हैं, इसे छोड़कर समूह-1 के सभी अंक 2 से आपस में शत्रुता रखते हैं। अतः उपरोक्त के आधार पर वैवाहिक जीवन की विषम परिस्थिति जैसे- क्लेश, तनाव, तलाक, अलगाव आदि से बचने के लिए अंक शास्त्र की मदद से विवाह पूर्व ही दाम्पत्य जीवन का आंकलन कर लाभ उठा सकते हैं। जिस प्रकार ज्योतिष में गुण, मंगल स्थिति एवं कुंडली मिलान की जाती है। ठीक इसी प्रकार अंकशास्त्र में मूलांक/नामांक व भाग्यांक का विचार किया जाता है। उपरोक्त दोनों सारणी एवं दोनों समूहों की सहायता से निम्न उदाहरणों की पुष्टि करेंगे।

1. लैला - स्।प्स्। = 3$1$1$3$1 = 9 मजनू- ड।श्र।छन्= 4$1$1$1 $5$6=18=9 इन दोनों का नामांक समान हैं। अतः इनके (जोड़ी) बारे में इतिहास गवाह है।

2. हीर - भ्म्म्त्=5$5$5$5$2=22=4 रांझा- त्।छश्रभ्। = 2$1$5$1$ 5$1=15=6 इन दोनों मूलांक में मित्रता है। इस जोड़ी के बारे में भी इतिहास गवाह है।

3. रोमियो- त्व्डप्ल्व्= 2$7$4$1 $1$7=22=4 जुलियट- श्रन्स्प्ल्।ज्=1$6$3$1$1 $1$4=17=8 इन दोनों के मूलांक में भी मित्रता है तथा इनके बारे में भी इतिहास जानता है।

उपरोक्त तीनों जोड़ियां प्रेम के इतिहास में प्रसिद्ध हैं। उपरोक्त अंकशास्त्र के अनुसार वर-वधू के जन्म नाम से हैं। जन्म तारीख से मेलापक: वर-वधू का जन्म 1 से 31 तारीख के बीच कभी भी हो सकता है।

इसे निम्न सारणी-3 में दर्शाया गया है। उपरोक्त नियमों के आधार पर जन्मतिथि से मूलांक/नामांक या भाग्यांक ज्ञात कर अपने जीवन साथी से तुलना कर सही मिलान कर सकते हैं कि किस के साथ अच्छी बनेगी या नहीं बनेगी। उपरोक्त के अलावा, अंक ज्योतिष में ‘कीरो’ के साथ-साथ में ‘सेफेरियल’ तथा ‘पाइथोगोरस’ भी प्रसिद्धि प्राप्त हंै।



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