कुछ लोग ऐसे भी होते हैं

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं  

आभा बंसल
व्यूस : 2230 | सितम्बर 2011

आज के भौतिक युग में जहां सभी लोग उच्च पद, आर्थिक समृद्धि और अधिक से अधिक पाने को लालायित रहते हैं, वहीं एक वर्ग ऐसा भी है जिसे थोड़े से ही संतोष प्राप्त हो जाता है और वे अपना जीवन अध्यात्म, ईश्वर-चिंतन व सद्गुरुओं के साथ बिताने में ही अपने को धन्य समझते हैं। ईश्वर-साधना में उनको एक विशेष सुख मिलता है।

ऐसे ही एक शख्स से मेरी मुलाकात ब्रह्मकुमारी आश्रम में हुई। रामानंद जी अत्यंत ही शांत, सौम्य व गंभीर व्यक्तित्व के व्यक्ति हैं। वे सहायता के लिए काम करते हैं व सेवा के लिए सदा तत्पर रहते हैं। उनकेे सानिन्ध्य में जब कुछ समय बीता तो उन्हें अपने जीवन के बारे में ज्योतिषीय जानकारी लेने की उत्सुकता हुई और जब उनकी जन्मपत्री देखी तो वाकई एक अनोखी पत्री लगी जो मैं आप सबसे शेयर करना चाहूंगी। रामानंद बचपन से ही काफी सात्विक व संतोषप्रिय व्यक्ति हैं।

बचपन में दसवीं करने के पश्चात ही उन्हें नौकरी की तलाश में इधर से उधर भटकना पड़ा और छोटी उम्र में ही उन्होंने घर छोड़ दिया, शीघ्र ही नौकरी मिल भी गई लेकिन घर से बेघर होकर उन्होंने कभी चिंता नहीं की कि नौकरी छोटी है या बड़ी। जैसी नौकरी मिली, कर ली और जितने दिन काम लगा, उतने दिन ही काम किया और जब मन उचटा तो फौरन ही नौकरी छोड़कर कुछ दिन भगवत भजन में लगाए और फिर दुबारा से नौकरी ढूंढ़ ली।

इसी तरह मनमौजी की जिंदगी जीते हुए रामानंद ने करीब बासठ नौकरियां बदलीं, अलग-अलग कंपनियां, अलग-अलग किस्म का काम। भांति-भांति के लोगों के संपर्क में आए और हर जगह अपने व्यक्तित्व की अलग छाप छोड़ी। विवाह के प्रति कभी ध्यान ही नहीं दिया और न ही विवाह करने की सोची। एक बार घर छोड़ा तो दोबारा घर का सुख भी नहीं।


जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें !


बस, अब तो ब्रह्मकुमारी आश्रम ही उनका घर लगता है जहां आकर उन्हें सबका स्नेह और भारी सुकून मिलता है। किसी जरूरतमंद की मदद करके उन्हें आत्मिक शांति मिलती है, इसीलिए जो भी कमाते हैं उसका अधिकतर भाग दान कर देते हैं, बचत में विश्वास नहीं रखते। उन्होंने यह भी बताया कि वे गुप्त रूप से सहायता करना पंसद करते हैं। उन्हें किसी मंदिर में दान देने में श्रद्धा नहीं है। किसी जरुरत मंद की सहायता करना उन्हें अधिक रुचिकर और सार्थक लगता है। भगवान के पास तो असीम शक्ति है।

वे ही तो हमें इतना सामथ्र्य देते हैं कि हम औरों की सहायता कर सकें तो क्यों न उस सामथ्र्य को उचित दिशा में लगाया जाए। भगवान का दिया पैसा भगवान के मंदिर में अर्पण करने की अपेक्षा उन्हें दरिद्र नारायण स्वरूप दीन दुखियों की सेवा में अर्पण करना अधिक श्रेयस्कर लगता है।

प्रभु पर गहरी आस्था है और यही विश्वास है कि जैसे अब तक इतनी जगह काम करके अपना व औरों का भी पेट भरा है, आगे भी भगवान उन्हें ऐसे ही चलायमान रखेंगे और उन्हें इस काबिल बनायेंगे कि वे सदा परोपकार का कार्य खुशी से करते रहें। आइये, करते हैं रामानंद की पत्री का विश्लेषण- रामानंद की कुंडली में कुटंुबेश बुध, सुखेश मंगल तथा पंचमेश और अष्टमेश गुरु छठे भाव में शनि और केतु के साथ बैठकर बारहवें भाव अर्थात् अलगाववादी भाव में बैठे पृथकतावादी राहू सेे दृष्ट है

अर्थात् राहू, केतु, शनि, मंगल आदि सभी पृथकतावादी ग्रहों की युति व आपसी दृष्टि के कारण रामानंद को बचपन से ही परिवार का पूरा सुख नहीं मिला और न ही विद्या को पूरा कर पाये और बचपन में ही परिवार से पृथक हो गये। कुटुंबेश बुध छठे भाव में वक्री होकर अशुभ फल प्रदान कर रहे हैं जिसके कारण अभी तक अपना घर भी नहीं बसा पाए। सप्तमेश शनि भी छठे भाव में स्थित है और नवांश में नीच राशि में होने के कारण कमजोर स्थिति में है


Get Detailed Kundli Predictions with Brihat Kundli Phal


विवाहकारक शुक्र भी क्रूर ग्रह सूर्य के साथ सप्तम भाव में स्थित होकर विवाह के भाव को खराब कर रहे हैं इसीलिए अभी तक विवाह भी नहीं हुआ। रामानंद की कुंडली में व्ययेश चंद्रमा दशम भाव में अपनी उच्च राशि में बैठे हैं परंतु नवांश में नीच के शनि के साथ चर राशि में बैठकर अशुभ फल प्रदान कर रहे हैं इसीलिए उन्होंने अब तक टिककर लंबे समय तक कहीं काम नहीं किया और बासठ नौकरी बदल चुके हैं।

दूसरी ओर अगर ध्यान दें तो पायेंगे कि पंचमेश गुरु की कर्म भाव व धन भाव पर दृष्टि होने के कारण उन्हें शीघ्र जीविका प्राप्त भी हो जाती है। रामानंद की कुंडली में व्यय भाव में चर राशि का राहू स्थित है। धनेश एवं लाभेश बुध एवं धनकारक ग्रह गुरु छठे भाव में बैठकर व्यय भाव से संबंध बना रहे हैं इसीलिए उन्हें कभी भी अधिक संपŸिा अर्जित करने की चाह नहीं रही और जो कुछ भी कमाया, उसका अधिकतम भाग परोपकार, दान व सतसंग में खर्च कर देते हैं। इनकी कुंडली में एक ही स्थान पर पांच ग्रह होने से ‘प्रव्रज्या’ नामक योग बन रहा है।

जिसके कारण इनके जीवन में हमेशा विरक्ति का भाव है, जिसके कारण यह कभी भी एक स्थान पर मोह करके टिके नहीं रहे। जब इनकी मर्जी आयी, इन्होंने अपना आवास और जीविका बदलने में जरा भी संकोच नहीं किया, साधु-संतों की तरह विचरण करते रहे। अगर ग्रहों का दशा-काल देखे तो लगभग 9 वर्ष की उम्र से इनकी मंगल की दशा का काल प्रारंभ होता है, उसके बाद राहु की दशा चली तथा वर्तमान में 1996 जून से बृहस्पति ग्रह की दशा चल रही है।

तथा उसके बाद भविष्य में शनि, तथा फिर बुध की महादशा रहेगी। अर्थात जो भी दशाएं इनकी पूर्ण हो गई हैं और आगे भविष्य में पूर्ण होगी, उन सभी ग्रहों का संबंध प्रवज्या योग से है। यह योग छठे भाव में बना है। उन सभी ग्रहों की दृष्टि व्यय भाव पर है जिसके कारण आगे भविष्य में भी इनके जीवन में स्थिरता नहीं आयेगी तथा यह इसी तरह अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत करेंगे।


For Immediate Problem Solving and Queries, Talk to Astrologer Now


आध्यात्मिक दृष्टि से भी रामानंद पूर्ण आस्तिक हैं, नित्य-ध्यान, योग व सतसंग आदि में भी इनकी गहन रुचि है क्योंकि नवमेश एवं पंचमेश की युति के कारण पूर्व जन्म से ही आध्यात्मिक विषयों के प्रति इनकी अभिरुचि होने के संकेत मिलते हैं और इसीलिए ब्रह्मकुमारी संस्थान में इनकी गहरी आस्था है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.