कल्याणकारी जीवों के चित्र लगाएं बाधाओं को दूर भगाएं

कल्याणकारी जीवों के चित्र लगाएं बाधाओं को दूर भगाएं  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 4249 | सितम्बर 2006

भारतीय धर्म एवं संस्कृति में अनादि काल से ही वन्य जीव संरक्षण की समृद्ध परम्परा रही है। ऋषि-मुनियों के आश्रमों में अन्य प्राणी स्वच्छंद विचरण करते रहे हैं। वे ऋषि-मुनि वन्य जीवों का पोषण भी अपने परिजनों के रूप में करते थे। अनेक शिकारी राजाओं को दंडित करने के किस्से ऋषि-मुनियों की गाथाओं में मिलते हैं। भारतीय संस्कृति में प्रकृति दुर्गा स्वरूपिणी है। वन्य जीवों के सरंक्षण को साकार रूप देने के लिए उन्हें धार्मिक चरित्रों, देवी-देवताओं के प्रतीक के रूप में अथवा देवी-देवताओं का सहचर माना जाता है। शायद वन्य जीवों के संरक्षण को ध्यान में रखकर ही हाथी को गणेश का, सिंह, वराह, मछली और कच्छप आदि को भगवान विष्णु का, वानर को हनुमान जी का, मयूर को कार्तिकेय का, बाघ मां दुर्गा का, वृष, सांप आदि को भगवान शिव का प्रतीक माना गया है ताकि लोग इन जीवों को कोई हानि न पहुंचाएं। ये सभी प्राणी हमारे जीवन को सुखी और समृद्ध बना सकते हैं। इनकी सेवा-पूजा से विभिन्न प्रकार के कष्टों, असाध्य शारीरिक रोगों, ग्रहों के अनिष्टकर फलों तथा मकान के वास्तु दोषों से मुक्ति मिला सकती है। इनमें से कुछ वन्य प्राणियों का उल्लेख यहां प्रस्तुत है जो ग्रह शांति एवं वास्तु दोष निवारण में सहायक हो सकते हैं।

गाय: भारतीय संस्कृति एवं धर्म शास्त्रों में गौ अत्यधिक पूजनीय है एवं जननी का स्थान रखती हैं। 33 करोड़ देवी देवताओं व सभी तीर्थों का वास बतलाया गया है। द्वापर युग में यदुवंशी श्री कृष्ण रूपी नारायण तो स्वयं इसके सेवक-पालक के रूप में विश्वविख्यात हुए हैं। देश के विभिन्न प्रांतों में हिंदू धर्मावलम्बियों द्वारा इसकी पूजा अर्चना की जाती है। इसमें मुख्यतया देव गुरु का वास माना जाता है। ग्रहों में गुरु का स्थान सर्वोच्च है और सभी उसकी पूजा करते हैं। कोई भी क्रूर ग्रह गुरु को शत्रु नहीं मानता। लग्न कुंडली में यदि गुरु तृतीय, षष्ठम, अष्टम या द्वादश भाव में अथवा वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर इत्यादि नीच एवं शत्रु राशियों में हो और व्यक्ति गौ सेवा करे गुरु की कुपित दृष्टि से बच सकता है। मिथुन या कन्या राशि में बृहस्पति होने पर व्यक्ति गुरुवार 5, 9 या 12 किलो कटी हुई हरी घास (चारा) गुड़ की डली के साथ बाहर कहीं भ्रमण कर रही किसी गाय को खिलाए तो दोष का शमन होता है। गाय पालना अत्यंत शुभ है। गाय की सेवा से सभी प्रकार के वास्तु दोषों से मुक्ति मिलती है। गाय के गोबर से निवास के ईशान्य अथवा पूजा स्थान को लीपने से भाग्य वृद्धि होती है। पूजा स्थान अथवा बैठक के कमरे के ईशान कोण में चांदी की गाय और उसका बछड़ा रखना भाग्यवृद्धिकारक होता है।

मत्स्य (मछली एवं कछुए): मछली एवं कछुए नारायण श्री हरि विष्णु के अवतार के प्रतीक स्वरूप हैं। समुद्र मंथन से अमृत, ऐरावत, सफेद हाथी एवं विभिन्न रत्नों सहित लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई थी। नारायण रूपी कछुए एवं मछली को भोजन, अन्न इत्यादि खाद्य पदार्थ खिलाने से क्रूर ग्रह राहु-केतु शांत होकर शुभ फलों की प्राप्ति कराते हैं। राहु की महादशा प्रारंभ होने पर व्यक्ति का तुला दान (गेहूं का आटा गूंध) कर मछली और कछुओं को खिलाएं तो राहु महादशा के क्रूर फलों का शमन हो जाता है। (नोट: तुला दान में व्यक्ति का तुला (तराजू) के एक पलड़े में बैठाकर एवं दूसरे पलड़े (भाग्) में आटा रखें, जब आटा रखा हुआ पलड़ा उस व्यक्ति के वजन से थोड़ा ज्यादा झुके तो फिर उस आटे का वजन कर दुकानदार को उसका मूल्य दें। ऐसा कदापि नहीं करें कि उस व्यक्ति जिसका तुला दान होता है उसका वजन ज्ञात होने पर उसके बराबर का आटा खरीद लें।) निवास की बैठक अथवा पूजा घर के उत्तर एवं वायव्य कोण में किसी धातु या क्रिस्टल के कछुए का प्रतीक रखने पर व्यक्ति धन-धान्य से समृद्ध बनता है। ध्यान रहे कछुए का मुख घर के अंदर की ओर होना चाहिए न कि बाहर की ओर। निवास के वायव्य कोण में अथवा पूजा स्थान में कांच अथवा शीशे के किसी पात्र में गंगा जल भर कर उसमें 2, 7, चांदी की 2, 7 या 12 मछलियां, मुक्ता सच्चा मोती डालकर रखें तो व्यक्ति को धन समृद्धि की प्राप्ति होगी। विशेषकर जिन व्यक्तियों की जन्म लग्न में चंद्रमा वृश्चिक (नीच राशि) में स्थित हो उनके लिए तो यह प्रयोग आश्चर्यजनक लाभ देता है।

चींटी: धर्म शास्त्रों के अनुसार चींटी को नारायण श्री हरि विष्णु का प्रतीक माना जाता है। सतयुग में नारायण भक्त प्रहलाद के पिता द्वारा उसकी नारायण भक्ति की परीक्षा लेने और उसे मारने हेतु विभिन्न प्रकारों से उसे सताया गया था उसे अग्नि से तप्त लौह स्तंभ का आलिंगन करने के लिए कहा गया। बालक ने अपने आराध्य श्री विष्णु को चींटी के रूप में तप्त लौह स्तंभ पर घूमते देखा तो उसने भी खुशी-खुशी उस लौह स्तंभ का आलिंगन कर लिया। आलिंगन करते ही वह तप्त लौह स्तंभ भी शीतल जल के समान हो गया। चींटी रूपी श्री नारायण को भोजन कराने से राहु एवं शनि के कोपों का शमन होता है। इसके लिए राहु, केतु एवं शनि की महादशाओं, अंतर्दशाओं, प्रत्यंतर दशाओं के काल में कसार (शुद्ध घी से भुना आटा जिसमें शक्कर मिश्रित हो) बनाकर जंगल में चींटियों के बिलों पर डालें अथवा कसार को सूखे गोले में भर शनिवार की प्रातः जंगल में पीपल, बरगद, पिलखन अथवा शमी वृक्ष की जड़ में दबाएं। यह प्रयोग विशेषकर ग्रीष्म अथवा वर्षा ऋतु में करें निश्चित रूप से क्रूर ग्रहों की क्रूर शक्तियों का शमन होगा।

कबूतर: धर्म शास्त्रों के अनुसार यह पक्षी देव गुरु बृहस्पति का प्रतीक माना गया है। यह शांति दूत का प्रतीक पक्षी है। देव स्थान अथवा अरण्य में कबूतर को मुक्त करने से ग्रह बृहस्पति शुभ फल देता है। जिन व्यक्तियों की लग्न कुंडली में गुरु चंद्रमा से युक्त हो गजकेसरी योग होने पर भी फल की प्राप्ति नहीं हो अथवा कर्क राशि में हो या जिनका भाग्येश चंद्रमा या बृहस्पति हो उन्हें कबूतरों को चावल मिश्रित बाजरा देने से समाज में उच्च स्थान प्राप्त होता है। वायव्य कोण में चांदी अथवा पोर्सलीन से निर्मित कबूतर का जोड़ा रखने से दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है।

कुत्ता: धर्म शास्त्रों के अनुसार रुद्रावतार श्री बटुक भैरव का वाहन अथवा गण और धर्मराज (यम) एवं शनि (दोनों ही सूर्य पुत्र) का प्रतीक माना जाता है। यह पितृ शांति श्राद्ध कर्म में दी जाने वाली भूत बलि का भक्षण करने वाला मुख्य जीव है। यह विभिन्न प्रकार की परालौकिक शक्तियों का संज्ञक एवं सूचक जीव भी है। यह विभिन्न प्रकार की आने वाली विपत्तियों की पूर्व सूचना देता है। इसे भोजन कराने से अपमृत्यु जैसा कष्ट भी टल जाता है।

कौआ: धर्मशास्त्रों के अनुसार यह पक्षी देवताओं के राजा इंद्र के पुत्र जयंत का रूप एवं यम और शनि का प्रतीक माना जाता है। कौआ एक विलक्षण, प्रतिभाशाली एवं परा शक्तियों का सूचक होता है। इसके द्वारा बोले जाने वाले विभिन्न प्रकार के शब्द का विभिन्न दैविक आपदाओं सहित शुभ सूचनाओं का संकेत देते हैं। तंत्र शास्त्र वर्णित ‘कौटा तंत्र’ में तो इसकी विभिन्न प्रतिभाओं का विशद वर्णन किया गया है। इसे प्रातःकाल अन्न इत्यादि देने से क्रूर ग्रहों शनि, राहु, मंगल की क्रूर युतियों एवं फलों का शमन होता है।

तोता: धर्म एवं ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार यह पक्षी शुक्र एवं बुध ग्रह का द्योतक माना गया है। जन्म लग्न में भाग्येश बुध अथवा शुक्र होने पर अथवा उनके नीचस्थ होने पर व्यक्ति का भाग्य अस्त हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को चाहिए कि वह बहेलिए से पिंजरा सहित 3, 6 या 7, तोतों को खरीदकर बुध अथवा शुक्र के दिन प्रातः काल उन्हें अरण्य में मुक्त कर दे और पिंजरे को भली भांति तोड़ मरोड़ कर किसी अज्ञात स्थान में डाल दे अथवा जमीन दबा दे। यह प्रयोग शुक्ल पक्ष में 3, 6, अथवा 7 बार करना चाहिए। निश्चित रूप से ग्रह अनुकूल होंगे। ध्यान रहे इस पक्षी को कदापि कैद न करें अथवा घर में न पालें अन्यथा आपकी कोई संतति बन्ध्या अथवा नपुंसकता को प्राप्त होगी।

वानर: यह रुद्रावतार हनुमान जी का प्रतीक एवं मानव का पूर्वज प्राणी है। हनुमान, सुग्रीव, अंगद इत्यादि वानर रूपी देवों नें मानव रूपी नारायण की सहायता की थी। वास्तु शास्त्र में वानर बल, बुद्धि व चातुर्य का प्रतीक माना जाता है। बंदर की लोहे की प्रतिमा (काले हनुमान) दक्षिण-पश्चिम कोण में रखने से यह घर पर आई विपत्तियों को नष्ट करती है। जिन लोगों की लग्न कुंडली में शनि शत्रु क्षेत्री हो या मेष, कर्क अथवा सिंह राशि में हो और शनि की महादशा अथवा साढ़ेसाती होने के कारण जीवन अत्यधिक हो उन्हें शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को शुद्ध घी (गौ घृत) अथवा चमेली के तेल में नारंगी सिंदूर मिला कर किसी पीपल के वृक्ष के नीचे स्थापित हनुमान जी की प्रतिमा को श्रद्धाभाव से लेप करना चाहिए। फिर लाल रंग के वस्त्र से बना लंगोटा हनुमान जी को बांधें इसके बाद सोने के वर्क (जैसा मिष्ठान पर चिपकाते हैं), को सोने के मुकुट की भावना कर लेप लगी हनुमान जी की प्रतिमा के मस्तक पर चिपकाएं और दोनों पैरा पर चांदी का एक-एक वर्क (चांदी की खड़ाऊं मानकर) चिपकाएं। फिर गुड़ और बेसन के बने 5, 7 या 11 लड्डुओं का भोग लगाएं। निश्चित रूप से शनि के क्रूर प्रभाव का शमन होगा। इस प्रयोग के लिए किसी मंत्र की आवश्यकता नहीं है।

गज (हाथी): हाथी पार्वती के प्रिय पुत्र विघ्न विनाशक श्री गणेश का प्रतीक एवं लक्ष्मी (ऋद्धि-सिद्धि) का द्योतक माना जाता है। समुद्र मंथन के समय विभिन्न रत्नों सहित ऐरावत (सफेद हाथी) की उत्पत्ति हुई थी। सफेद हाथी अत्यधिक शुभ एवं अहिंसा और शांति के दूत भगवान बुध का प्रिय प्रतीक माना जाता है। थाइलैंड में तो सफेद हाथी केवल राज परिवार की सम्पत्ति होता है। इसे अन्य व्यक्तियों को रखने का अधिकार नहीं है। राजभवनों में प्राचीन भारतीय वास्तु शास्त्र के अनुसार हाथी बांधने का स्थान पश्चिम-दक्षिण अर्थात नैर्ऋत्य कोण में बनाया जाता है। स्तनपायी प्राणियों में हाथी सबसे भारी एवं बुद्धिमान (मनुष्य को छोड़कर) प्राणी है। जो व्यक्ति राहु से पीड़ित और जिसकी कुंडली में कालसर्प, यम अथवा पाश योग हो और राहु सिंह अथवा कर्क राशि में हो वह अपने बैठक के कमरे अथवा निवास के नैर्ऋत्य कोण में लकड़ी अथवा धातु का हाथी स्थापित करे अथवा दीवार पर हाथी का फोटो लगाए। ऐसा करने से राहु के क्रूर फलों का शमन होता है। उत्तर दिशा में स्फटिक अथवा सफेद पत्थर से बनी हाथी की प्रतिमा रखने पर सुख समृद्धि एवं धन लक्ष्मी की वृद्धि होती है। सिंह लग्न के किसी व्यक्ति के जन्म लग्न मंे चंद्रमा से चैथे स्थान पर गुरु स्थित हो अथवा गजकेसरी योग फलित नहीं हो रहा हो, तो उसे गुरु अथवा चंद्रमा की महादशा के अंतर्गत प्रत्येक चार माह पर एक बार हाथी की सवारी अवश्य करनी चाहिए। यह प्रक्रिया चार बार करें तो गजकेसरी योग फलीभूत होगा। गजकेसरी का भावार्थ समझ लें गज अर्थात हाथी और केसरी अर्थात सिंह तात्पर्य यह कि गजकेसरी योग के फलीभूत होने पर व्यक्ति हाथी पर बैठे सिंह के समान समाज में प्रतिष्ठत होता है।

वराह (सूअर): यह जीव नारायण श्री हरि विष्णु का प्रतीक है। भगवान ने इसके रूप में भी एक अवतार लिया था। पौराणिक हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार वराह रूपी नारायण ने पृथ्वी को पाताल (नर्क) से निकाला था। नारायण का यह रूप मनुष्य की विपत्तियों से रक्षा करता है। यदि किसी परिवार में कोई शिशु मसान (रिकेट्स रोग, जिसमें बच्चा बिल्कुल कंकाल की भांति हो जाता है) रोग से पीड़ित हो अथवा परिवार में मसान रोग की परंपरा चली आ रही हो और उन पर कोई औषधि काम न करती हो तो इस दशा में धातु से निर्मित सूअर की प्रतिमा, जिसके मुख से दो दांत आगे निकले हुए हों, बच्चों के सोने के कमरे में दक्षिण दिशा अथवा नैर्ऋत्य कोण में रख देना चाहिए। औषधि निश्चित रूप से फायदा करेगी व बच्चा रोगमुक्त होगा।

गिद्ध: पौराणिक काल से ही यह पक्षी मनुष्य जाति का परम मित्र है। लंकेश रावण द्वारा अपहृत माता सीता की रक्षा हेतु इनके पूर्वज गिद्धराज जटायु ने रावण से लड़ते हुए अपने प्राणों की बलि दे दी थी। यह एक पौराणिक सत्य है। वहीं दूसरी ओर यह पक्षी पर्यावरण का सबसे बड़ा मित्र। यह अपमार्जक (सड़ी गली मृत अवशेषों को खाकर सफाई करने वाला) के रूप में मनुष्य की प्रदूषण से रक्षा करता है। इस पक्षी की मूर्ति अथवा चित्र निवास के पश्चिम या नैर्ऋत्य दिशा में लगाने से गृह स्वामी अथवा निवास पर आने वाली विपत्तियों का शमन होता है। चीनी वास्तु शास्त्र फेंग शुई में इसे फीनिक्स और ही चियांग कहा जाता है।

मेढक: पौराणिक धर्म शास्त्रों के अनुसार यह प्राणी देवताओं के राजा इंद्र, वरुण (जल) एवं शुक्र (काम) का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार जिस क्षेत्र में इस प्राणी को मारा अथवा खाया जाता है। उस क्षेत्र में वर्षा की कमी होती है। ऐसी स्थिति में सूखा एवं अकाल पड़ने पर मेढक-मेढकी की शादी कराने से वर्षा होती है। यह प्रथा कई देशों में प्रचलित ै। यह प्राणी सुख समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। घर के भीतर इसके खुले हुए मुख की प्रतिमा रखने पर गया हुआ (जिसके मिलने की उम्मीद न हो) धन वापस आ जाता है और मुख बंद या मुख में सिक्के दबाए हुए मेढक का प्रतीक परिवार में अंदर की ओर मुख करके रखने पर धन की प्राप्ति होती है। मेढक के प्रति ऐसी मान्यता कई देशों में प्रचलित है। शुक्र दोष से पीड़ित जिस व्यक्ति की लग्न कुंडली में शुक्र शत्रु या नीच राशि मेष, कन्या वृश्चिक या सिंह में स्थित हो एवं जिसके परिणामस्वरूप उससे संबंधित रोग अथवा दोष उत्पन्न हो रहे हों और शादी नहीं हो पा रही हो उसे चाहिए कि वह शुक्ल पक्ष के सोमवार या शुक्रवार को भात (उबला हुआ ठंडा चावल) मेढक के मुख में डालकर उसे नदी अथवा तालाब में छोड़ दे। यह प्रयोग 12 बार करें, निश्चित रूप से लाभ होगा।

बिल्ली और बाघ: बाघ अथवा बिल्ली शक्ति (मां दुर्गा) का प्रतीक है। बाघ विपत्तियों का विनाशक है और प्रकृति के संतुलन को बनाकर रखता है। श्री विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण कर दैत्यों और उनकी शक्तियों का विनाश किया था। भारत के अतिरिक्त कई अन्य देशों में भी इसकी विभिन्न प्रकार से पूजा की जाती है। इसकी अथवा इसकी मौसी (इस कुल के अन्य सदस्य बिल्ली) की हत्या करने पर उसके पाप निवारण एवं पश्चाताप हेतु सोन की बिल्ली दान में देने की बातें भी बुजुर्गों द्वारा बतलाई जाती हैं। बाघ अथवा बिल्ली की प्रतिमा अथवा चित्र निवास के पश्चिम दक्षिण कोण में लगाने से आने वाली विपत्तियों का शमन होता है। गंडमूल (अश्लेषा, विशाखा एवं मूल नक्षत्र) में उत्पन्न हुए बालक के मूल दोष की शांति हेतु बिलाव (नर बिलाव) को दूध पिलाएं। यह क्रिया 27 बार करें।

उल्लू: यह श्री हरि विष्णु की प्रिया लक्ष्मी देवी का प्रतीक एवं अलौकिक शक्तियों का स्वामी निशाचर पक्षी है। यह अप्रत्यक्ष रूप से मानव का मित्र है खाद्यान्नों व फसलों को नष्ट करने वाले जीवों जैसे चूहे, खरगोश इत्यादि को मार कर यह प्राकृतिक संतुलन बनाता है। तंत्रों एवं शास्त्रों में तो इसे अष्ट दिशा भेदक अर्थात आठ दिशाआ का ज्ञाता माना गया है क्योंकि यह अपनी गर्दन चारों ओर 170-180 डिग्री तक घुमा लेता है। तंत्र शास्त्र में एक पृथक ग्रंथ रचा गया है जो ‘उलूक तंत्र’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस पक्षी की प्रतिमा अथवा चित्र उत्तर दिशा में लगाने से सुख समृद्धि आती है। इसे उत्तर दिशा के अधिपति कुबेर का प्रतीक भी माना जाता है।

हंस: यह पक्षी विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती के अतिरिक्त मैत्री, शांति, पारिवारिक समृद्धि का भी प्रतीक माना जाता है। इस पक्षी की चांदी अथवा सफेद स्फटिक अथवा पोर्सलीन से निर्मित दो आकृतियों जिनके गले आपस में मिले हों, अथवा ऐसे दो पक्षियों के चित्र जिनके गले आपस में संयुक्त और जल के समीप हों, घर के वायव्य कोण में लगाने से घर में शांति एवं समृद्धि आती है। जिस वद्यार्थी की बुद्धि मंद अथवा याददाश्त कमजोर हो और पढ़ाई-लिखाई जल्दी भूल जाता हो, उसके अध्ययन स्थान के सामने इसका चित्र अथवा प्रतिमा अवश्य लगाएं, आशातीत लाभ होगा।

मोर: यह पक्षी शिव पुत्र स्वामी कार्तिक (कार्तिकेय, षडानन, मुरुगन स्वामी) का वाहन, श्री कृष्ण का प्रिय जिसका पंख वह अपने मुकुट में लगाते थे एवं वरुण देवता का प्रतीक माना जाता है। यह मानव का प्राकृतिक मित्र भी है जो उसके खेत खलिहानों को नष्ट करने वाले कीट पतंगों को मारकर उसकी रखवाली करता है। शास्त्रों में इसे मेघदूत (वर्षा को लाने वाला पक्षी) भी कहा गया है जिसकी करुणामयी मधुर आवाज सुन इंद्रदेव वर्षा करते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार निवास के पश्चिम एवं अग्निकोण में इसकी मूर्ति अथवा चित्र लगाना शुभ होता है। पति-पत्नी के बीच निरंतर होने वाले कलह एवं झगड़ों को खत्म कर मधुर संबंध बनाता है।

सर्प: यह जीव भारतीय संस्कृति में एक अहम स्थान रखता है। यह स्वयं एक देवता के रूप में पूजनीय एवं यम (काल) का स्वरूप और देवाधिदेव महादेव का प्रिय आभूषण और गण माना जाता है। पूरे विश्व में इस जीव के बारे में विभिन्न प्रकार की किंवदन्तियां प्रचलित हैं और इसकी पूजा अर्चना की जाती है। समुद्र मंथन के समय इस जीव की भूमिका मुख्य थी, जिसमें वासुकि नामक महासप की रस्सी बनाकर दैत्य एवं देवताओं ने समुद्र का मंथन किया था। इसे भूमि का देवता (भूमिया जी) एवं पितृ लोक का संदेशवाहक जीव भी माना जाता है। गृह निर्माण के समय नींव रखने से पूर्व इसकी चांदी अथवा रांगे से निर्मित आकृति भीतर दबाने से भवन निर्माण सुचारु रूप से होता है। गृह में राहु जनित वास्तु दोष का भी शमन होता है। जिन व्यक्तियों की कुंडलियों में पाश, यम अथवा काल सर्प योग पड़ा हो उन्हें चाहिए कि रांगा एवं चांदी धातु से निर्मित दो सर्प (नाग एवं नागिन) यथाविधि नदी में प्रवाहित करें।

घोड़ा: शक्ति का प्रतीक स्तनपायी यह चैपाया पशु आदि काल से देवताओं से लेकर मानव के वाहन के रूप में प्रयुक्त होता आया है। इसकी सामथ्र्य शक्ति के कारण ही विद्युत इत्यादि यांत्रिक उपकरणों की मापक क्षमता को अश्व शक्ति संज्ञा प्रदान की गई है। यह शुक्र का प्रतिनिधि जीव है। निरंतर हानि के कारण गिरते हुए व्यवसाय से निराश लोगों को चाहिए कि इसकी दौड़ती हुई अवस्था की प्रतिमा अथवा चित्र वायव्य दिशा अथवा कोण में लगाएं या रखें। ऐसा करने से व्यक्ति का खोया हुआ साहस एवं शक्ति लौट आती है और वह उन्नति के मार्ग पर इस पशु की भांति दौड़ने लगता है।

गधा: यह जीव धैर्य, सहनशीलता, शक्ति के साथ-साथ सरल स्वभाव का प्रतीक भी माना जाता है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार यह भवगती कालरात्रि का वाहन भी है। जिन व्यक्तियों के शनि, राहु एवं केतु लग्न कुंडली में नीच अथवा शत्रु स्थान में बैठे हों और उनकी महादशा, अंतर्दशा अथवा प्रत्यंतर्दशा चल रही हो उन्हें इन से मिलने वाले कष्टों के निवारण हेतु चोकर (आटे की छानस) मिले हुए भूसे का तुला दान कर इस पशु को खिलाना चाहिए जिन व्यक्तियों पर किसी प्रेत बाधा या किसी तंत्र-मंत्र प्रयोग की आशंका हो उन्हें उसके शमन हेतु यह प्रयोग करना चाहिए। यह अनेक बार का अनुभूत प्रयोग है। यदि मृतवत्सा (जिसके बच्चे होकर शीघ्र मर जाते हों अथवा मरे हुए उत्पन्न होते हों ऐसी स्त्री) का भूसे से तुला दान कर गधे को खिलाया जाए तो वह जीववत्सा होती है। यह प्रयोग कृष्ण पक्ष के प्रथम शनिवार से प्रारंभ कर एक वर्ष में सात बार करें, निश्चित रूप से लाभ होगा।

भैंसा: यह पशु मृत्यु के देवता यमराज का वाहन एवं द्योतक होता है। जिन लोगों की कुंडली में शनि एवं मंगल नीच अथवा शत्रु राशि में स्थित हो और उनकी महादशाएं कष्टदायक चल रही हों अथवा जो बच्चे हस्त, स्वाती या श्रवण नक्षत्र के नेष्ट काल में उत्पन्न एवं रोगग्रस्त हों उन्हें शांति कष्ट से मुक्ति दिलाने के लिए, भीगे हुए देशी चने, जो अंकुरित हों, के साथ पांच प्रकार की मिठाइयां, कमल के फूल सहित भैसें को खिलाएं। यह प्रयोग शनिवार को राहु काल में करें। निश्चित रूप से क्रूर ग्रहों के प्रभाव का शमन होगा और शांति मिलेगी। गंडमूल (अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल एवं रेवती) में उत्पन्न बालक अथवा बालिका का भैंसे के गोबर से तुला दान कर गोबर को किसी गंदे नाले में डालें। यह प्रयोग बालक के जन्म के बाद पड़ने वाले पहले शनिवार से प्रारंभ कर सात शनिवार तक करें, निश्चित रूप से लाभ होगा।

बिच्छू: यह वृश्चिक राशि का प्रतीक जीव है। अष्टपाद एवं कर्कट अर्थात कैंसर जैसे असाध्य रोगों का भी द्योतक माना जाता है जो मनुष्य के लिए मृत्युतुल्य कष्टकारी होते हैं। जिन लोगों की लग्न कुंडली में चंद्र नीच राशि अर्थात वृश्चिक में स्थित हो तो उन्हें उसकी शांति हेतु तांबे से बने बिच्छू को आठ रात्रि अपनी शय्या में रख नौवें दिन उसे किसी निर्जन स्थान में भूमि के अंदर गड्ढा कर उसमें लकड़ी (काठ) के कुछ कोयले एवं नमक डल कर गाड़ देना चाहिए। निश्चित रूप से वृश्चिक के चंद्र के दोष का शमन होगा। ध्यान रहे, गड्ढा जितना गहरा होगा उतना ही अधिक लाभ होगा।



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