कालसर्प योग से जुडी शंकाएं एवं कष्टों का निवारण

कालसर्प योग से जुडी शंकाएं एवं कष्टों का निवारण  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 12215 | जून 2007

काल सर्प योग से जुड़ी शंकाएं एवं कष्टों का निवारण काल सर्प योग अपने आप में एक ऐसा योग है, जो पितृ दोष से संबंधित होता है। अतः जिस कुंडली में काल सर्प योग होगा, उसके जातक के जीवन से पितृ दोष कहीं न कहीं अवश्य जुड़ा होगा।

इस योग के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में, हर स्तर पर, संघर्ष और तनाव बने रहते हैं, बाधाएं आती रहती हैं। जन्म कुंडली में जिस भाव से काल सर्प योग की सृष्टि होगी, उस भाव से संबंधित कठिनाइयों एवं संघर्षों की भी बहुतायत होगी। अतः काल सर्प योग जन्य परेशानियों के निदान के लिए मनोयोग से प्रयत्न करना चाहिए।

प्रश्न: काल सर्प योग कैसे बनता है?

उत्तर: राहु और केतु के मध्य यदि अन्य सभी 7 ग्रह आ जाएं, तो काल सर्प योग होता है। यदि राहु सभी ग्रहों को ग्रसे तो उदित और यदि केतु ग्रसे तो अनुदित काल सर्प योग बनता है। यदि सातों ग्रहों में से कोई भी एक बाहर निकल जाए, तो यह योग आंशिक कहलाता है।

प्रश्न: इसका फल क्या है?

उत्तर: जिस जातक की कुंडली में काल सर्प योग होता है, उसे सफलता प्राप्त करने के लिए बार-बार प्रयत्न करने पड़ते हैं। कई बार सफलता सामने रहते हुए भी प्राप्त नहीं हो पाती। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि जिस जातक की कुंडली में यह योग हो, वह ऊपर नहीं उठ सकता। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनके जातकों ने सर्वोच्च पद प्राप्त किया और प्रतिष्ठित व्यक्ति बने, जैसे स्व. जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी आदि।

प्रश्न: क्या काल सर्प दोष के फल हर जातक को अलग-अलग रूप में मिलते हैं?

उत्तर: राहु जिस भाव में स्थित होता है, उसी के अनुरूप मुख्यतः 12 प्रकार के काल सर्प योग बताए गए हैं। जातक को फल भी उसी के अनुसार भिन्न-भिन्न मिलते हैं। किसी को इस योग के कारण पारिवारिक कलह का सामना करना पड़ता है, तो किसी को व्यवसाय में स्थिरता, या अवनति का, किसी को हानि का, तो किसी को रोग का।

प्रश्न: परिवार में यह योग एक को हो, तो क्या सबको होता है?

उत्तर: ऐसा आवश्यक नहीं है कि परिवार में काल सर्प योग पिता की कुंडली में हो, तो संतान को भी होगा। लेकिन अक्सर ऐसा देखने में आता है कि एक परिवार के कई सदस्यों को यह दोष एक साथ होता है। आगे संतान को यह योग न हो, इसके लिए काल सर्प योग जन्य दोष की शांति अवश्य करा लेनी चाहिए।

प्रश्न: काल सर्प योग जन्य दोष क्या हमेशा रहता है, या किसी विशेष अवधि तक?

उत्तर: ज्योतिष में दोष 2 प्रकार के होते हैं - कुछ दोष कुछ अवधि के लिए, किसी गोचर या दशा के कारण और कुछ जन्म कुंडली में दोष के कारण। दूसरे दोष का असर पूरी उम्र सहना पड़ता है। काल सर्प दोष भी इसी प्रकार का एक दोष है, जो जातक को जिंदगी भर कुछ न कुछ कष्ट देता रहता है। लेकिन फिर भी जब-जब राहु की दशा या अंतर्दशा आती है, या राहु एवं केतु के ऊपर कोई ग्रह गोचर करता है, तब-तब इसका प्रभाव अधिक हो जाता है।

प्रश्न: काल सर्प योग पूर्व में कब-कब बना और भविष्य में कब-कब बनेगा?

उत्तर: काल सर्प दोष कभी-कभी ही, कुछ वर्षों के अंतराल पर, बनता है- 10 वर्षों में 2 या 3 बार। उसमें भी कभी-कभी ही यह योग, उदित रूप में, पूर्ण रूप से बनता है। पूर्व में यह योग 8 जुलाई 2002 से 25 नवंबर 2002 तक घटित हुआ था। वर्ष 2005 में जुलाई-अगस्त में यह योग पुनः घटित हुआ। आगे केवल 2008 में 19 अगस्त से 31 दिसम्बर तक आरै फिर 2012 म ंे कवे ल अनुि दत रूप में घटित होगा।

प्रश्न: काल सर्प दोष पहले कभी सुनने में नहीं आया। तो क्या यह अभी शुरू हुआ है?

उत्तर: पत्री में अनेक योग विद्यमान होते हैं, जिनकी चर्चा विशेष रूप से नहीं हो पाती है। इसका अर्थ यह नहीं कि वे दोष या योग पहले नहीं थे। प्राचीन शास्त्रों में इस योग का उल्लेख विभिन्न रूपों में आया है। लेकिन कभी किसी योग की चर्चा, किसी काल विशेष में अधिक होने के कारण, सभी ज्योतिर्विदों एवं जनसाधारण तक पहुंच जाती है। ऐसा ही काल सर्प योग के साथ हुआ है। आजकल यह योग, अंतरिक्ष में बनने के कारण, अधिक चर्चित है।

प्रश्न: काल सर्प दोष निवारण के उपाय क्या हैं?

उत्तर: काल सर्प दोष निवारण के उपाय इस प्रकार हैं: भगवान शिव की आराधना एवं रुद्राभिषेक करें। शिव लिंग पर सोने या चांदी का सर्प विधिपूर्वक, चढ़ाएं। अपने वजन के बराबर अन्न दान करें। काल सर्प योग यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा कर प्रतिदिन उसका पूजन और दर्शन करें। महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख जप कराएं। बटुक भैरव मंत्र का सवा लाख जप करें।

भिखारी को राहु की वस्तुओं जैसे काले तिल, राई, काले क प ड ़ े आदि का दान दें। महामंत्र ‘¬ नमः शिवाय’ का जप करें। चांदी, सोना या अष्ट धातु निर्मित काल सर्प अंगूठी धारण करें। नाग पंचमी, महाशिव रात्रि आदि को व्रत रखें। काल सर्प यंत्र गले में धारण करें। शिव के प्रतीक एकमुखी रुद्राक्ष सहित रुद्राक्ष की माला धारण करें। उपर्युक्त सभी उपाय यदि किसी ज्योतिर्लिंग पर किए जाएं, तो उनकी महत्ता बढ़ जाती है। त्र्यंबकेश्वर में इसका विशेष उपाय किया जाता है।

उपाय कब करें: काल सर्प दोष शांति के उपाय महा शिवरात्रि, नाग पंचमी, श्रावण मास में सोमवार, या सोमवारी अमावस्या को किए जाएं, तो उत्तम है।

प्रश्न: क्या एक बार उपाय करने से काल सर्प दोष सदा के लिए दूर हो जाता है?

उत्तर: ज्योतिष में किसी भी दोष को दूर करने के लिए किए गए उपायों का असर अधिकतम एक वर्ष तक ही रहता है। अतः काल सर्प दोष निवारण के उपायों को प्रतिवर्ष या वर्ष में 2 बार अवश्य करने चाहिए। यदि दोष अधिक प्रबल हो, तो कुछ सरल उपाय प्रति माह या प्रति सप्ताह करने चाहिए।

प्रश्न: भारत में मुख्य रूप से काल सर्प दोष की शांति किन-किन स्थानों पर होती है?

उत्तर: काल सर्प दोष की शांति निम्नलिखित स्थलों पर की जाती है। काल हस्ती शिव मंदिर, तिरुपति ः दक्षिण भारत के विश्व प्रसिद्ध तिरुपति से लगभग पचास किलोमीटर पर काल हस्ती शिव मंदिर में काल सर्प योग की शांति का उपाय विधि-विधान से किया जाता है। वहां लगभग एक घंटे की पूजा-अर्चना के साथ मंदिर के प्रांगण में ही पुरोहित वैदिक रीति से शांति कराते हैं। मंदिर प्रवेश के साथ ही इस पूजा के फल, कुछ दक्षिणा देने से, प्राप्त हो जाते हैं। तदुपरांत पूजा-अर्चना कराई जाती है।

त्रियुगोनारायण, केदारनाथ: केदारनाथ जी जाते समय त्रियुगो नारायण के मंदिर के प्रांगण में चांदी, तांबे एवं स्वर्ण के नाग के जोड़े छोड़ने से काल सर्प दोष की शांति हो जाती है। त्रयंबकेश्वर: नासिक के पास त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग पर भी अभिषेक और पूजा-अर्चना करा कर नाग-नागिन के जोड़े छोड़ने से काल सर्प योग की शांति हो जाती है। संगम: इलाहाबाद में संगम पर भी, काल सर्प की शांति हेतु, नाग-नागिन की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा करा कर, उनका पूजन कर के दूध के साथ संगम में प्रवाहित करना चाहिए। तीर्थराज प्रयाग में काल सर्प योग की शांति के लिए संगम में तर्पण व श्राद्ध भी कर लेना चाहिए।

प्रश्न: कौन-कौन से देवों की पूजा की जाए? उत्तर: उक्त दोष से मुक्ति हेतु उपायों के अतिरिक्त निम्नलिखित देवों की पूजा भी करनी चाहिए। भगवान शिव: वैसे तो काल सर्प योग की शांति भिन्न-भिन्न इष्ट देवों की कृपा से हो जाती है, परंतु इस दोष की शंाति का मुख्य संबंध आशुतोष भगवान शिव से है। क्योंकि सर्प भगवान शिव के गले का हार है, अतः शिवजी के सम्मुख यत्न से, काल सर्प योग की शांति का विधान करना चाहिए।

सर्वप्रथम पारद शिवलिंग का निर्माण कराएं। यह शिवलिंग कम से कम पांच सौ ग्राम का होना चाहिए। यदि परिवार में एकाधिक व्यक्तियों पर काल सर्प योग का प्रभाव हो, तो सवा किलो या ढाई किलो पारद का शिव लिंग बनवा कर, प्राण प्रतिष्ठा करा कर, विधिवत् रुद्राभिषेक करना चाहिए। रुद्राभिषेक के साथ ही चांदी के अष्ट नागों का पूजन करना चाहिए।

इसी क्रम में कलश स्थापन और वरुण का आवाहन कर कलश पर ही स्वर्ण और रजत के सांप स्थापित कर के, उनका पंचोपचार पूजन कर निम्नलिखित वैदिक मंत्र का जप करना या ब्राह्मण द्वारा कराना चाहिए: ¬ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु। ये अंतरिक्षे ये दिवितेभ्यः सर्पेभ्यो नमः स्वाहा।। जप कम से कम 31000 हो। वैसे कलि युग में सवा लाख जप का ही विधान है। जप के बाद दशांश होम कर के यज्ञ की पूर्णाहुति कर देनी चाहिए।

उसके बाद उस सर्प को श्रद्धा सहित यमुना, संगम या समुद्र में प्रवाहित कर देना चाहिए। इससे निश्चय ही काल सर्प योग जन्य दोष की शांति हो जाती है। ध्यान रहे काल सर्प से संबंधित सभी पूजन चंदन से करें; रोली, कुंकुम या सिंदूर से नहीं। जिन लोगों के जीवन में काल सर्प योग है, उन्हें प्रत्येक वर्ष श्रावण मास में रुद्राभिषेक अवश्य करना चाहिए और शिवजी पर नाग-नागिन का चांदी का एक जोड़ा चढ़ा देना चाहिए।

नित्य महामृत्युंजय मंत्र का एक माला जप भी करते रहने से काल सर्प दोष का प्रभाव क्षीण हो जाता है। हनुमत पूजन: श्री हनुमान जी की कृपा से भी काल सर्प योग जन्य दोष की शांति होती है। श्री राम-लक्ष्मण जब नागपाश से बंधे, तो श्री हनुमान जी ने ही उन्हें मुक्त कराया। अतः नित्य प्रति श्री हनुमान चालीसा और मंगलवार व शनिवार को श्री रामचरित मानस के सुंदर कांड का पाठ कर लेने से शांति प्राप्त होती है।

जो लोग हनुमान भक्त हैं, वे मंगलवार व शनिवार को श्री हनुमान जी को सिंदूर तथा चमेली के तेल से चोला चढ़ा कर भोग लगाएं एवं यथाशक्ति ‘‘¬ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुंग फट्’’ मंत्र का जप करें। निश्चय ही काल सर्प योग की शांति होगी। भगवान कृष्ण: घर के मंदिर में मोरपंखी मुकुट पहने श्री कृष्ण भगवान की मूर्ति, चाहे बालरूप की ही हो, स्थापित कर पूजन करें।

श्री कृष्ण परब्रह्म परमात्मा हैं। उनका नित्यार्चन तथा यथाशक्ति ‘‘¬ नमो वासुदेवाय‘‘ मंत्र का जप करने से काल सर्प योग की शांति हो जाती है। स्मरणीय है कि भगवान श्री कृष्ण ने कालीदह पर कालिया नाग के फण पर त्रिलोकों का भार ले कर नृत्य किया तथा उसे वरदान दे कर रमणकदीप को भेज दिया। श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध के षोडश अध्याय के 108 पाठ कराने से नाग दोष की शांति होती है।

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