ज्योतिषी बनने के योग

ज्योतिषी बनने के योग  

व्यूस : 18359 | नवेम्बर 2013
प्रश्न: ज्योतिषी बनने के क्या-क्या योग हैं? यदि इनका वर्गीकरण व्यवसाय और शोध के आधार पर किया जाये तो इनका ज्योतिषीय आधार क्या होगा? सफल भविष्यवक्ताओं व ज्योतिषियों की कुंडलियां लग्नबल एवं ग्रहबल प्रधान होती हैं। प्रथमतः लग्न एवं लग्नेश दोनों बलवान होने चाहिए। लग्नबल की परीक्षा अंश बल एवं नवमांश कुंडली से होती है। लग्नेश का बल भी अंशों से ही नापा जाता है। लग्नेश स्वगृही, उच्चस्थ, मूलत्रिकोण राशि में केंद्र या त्रिकोण में होना चाहिए। इसमें द्वितीय भाव, द्वितीयेश (वाणी स्थान) का शक्तिशाली होना आवश्यक है तभी वाणी सफल होगी। वाणी की सफलता के लिए सरस्वती उपासना, गायत्री की साधना अनिवार्य है। लग्नेश के अनुसार ही ज्योतिषी की रूचियां होती हैं, आचरण होता है व्यवहार होता है। जातक तत्व के अनुसार ज्योतिषी होने के योग 1. यदि बुध व शुक्र द्वितीय व तृतीय स्थानों में हों तो मनुष्य श्रेष्ठ ज्योतिषी होता है। किसी भी स्थिति में होने पर अर्थात दोनों साथ हों या एक-एक भाव में एक-एक ग्रह हो तो उक्त फल होता है। 2. धन स्थान का स्वामी बलवान हो व बुध केंद्र या त्रिकोण या एकादश स्थानों में हो तो मनुष्य श्रेष्ठ ज्योतिषी होता है। 3. धन स्थान में बृहस्पति अपनी उच्च राशि का हो तो जातक उत्तम ज्योतिषी होता है। 4. बुद्धि कारक ग्रह बुध या बृहस्पति केंद्र या त्रिकोण स्थानों में स्थित हों तथा वहां पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक भविष्यवक्ता होता है। 5. बृहस्पति अपने नवांश में या मृदु षष्ठयांश में हो तो जातक भूत, वर्तमान व भविष्य को जानने वाला त्रिकालज्ञ होता है। बृहस्पति गोपुरांश में यदि शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो भी जातक त्रिकालज्ञ होता है। ज्योतिषी बनने के कुछ ग्रह योग गहन शोध के उपरांत प्राप्त हुए सूत्रों द्वारा ग्रहण किया गया है। 1. द्वितीय (वाणी के स्थान) भाव में यदि पंचमेश या बुध अथवा बृहस्पति अष्टमेश के साथ युति करें तो मनुष्य गूढ़ विद्या एवं पूर्वजन्मकृत बातों को बताने वाला भविष्यवक्ता होता है। 2. पंचम स्थान में लग्नेश, द्वितीयेश, दशमेश एवं बुध व बृहस्पति की युति हो एवं ये सभी अष्टमेश दृष्ट हों तो मनुष्य ज्योतिषी बनकर धनार्जन करता है। 3. शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि से लेकर कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि तक का चंद्र पूर्ण बलवान होकर सूर्य, बुध व बृहस्पति से संबंध बनाए एवं इन पर दशमेश एव एकादशेश की दृष्टि हो तो भी मनुष्य ज्योतिष के माध्यम से अपना जीवन यापन करता है। 4. अष्टमेश पंचमेश के साथ लग्न में स्थित होकर द्वितीयेश एवं एकादशेश का यदि ग्रहों से दृष्टि या अन्य संबंध हो तो भी मनुष्य ज्योतिष के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। 5. अष्टमेश का यदि चंद्र या शनि से दृष्टि या युति संबंध बनता हो या अष्टमेश व पंचमेश की युति हो तो भी मनुष्य ज्योतिषीय कार्य में रुचि रखता है। 6. बुद्धि व ज्ञानकारक ग्रह बृहस्पति बलवान होकर चंद्र के साथ गजकेसरी योग, लग्न, पंचम अष्टम या नवम भावों में होकर रचना करता हो तो मनुष्य ज्योतिषी व हस्तरेखा विशेषज्ञ होता है। 7.अगर क्षीण चंद्र पर शनि की दृष्टि हो या चंद्र-बुध की युति हो और उस पर शनि की दृष्टि हो या शनि चंद्र बुध की युति हो साथ ही बृहस्पति बुध व शुक्र के साथ किसी भी प्रकार का संबंध बनाता हो तो मनुष्य ज्योतिष शास्त्र में रूचि रखता है। 8. पत्रिका में बुध व बृहस्पति का परस्पर स्थान परिवर्तन हो तो मनुष्य को ज्योतिषिय ज्ञान में रूचि लेने की संभावना निर्मित होती है। इसके साथ ही पंचमेश व नवमेश इन दोना ग्रहों से दृष्टि या युति संबंध रखें तो मनुष्य सफल भविष्यवक्ता होता है। 9. यदि पत्रिका में बुध व बृहस्पति की युति या दृष्टि संबंध होकर अष्टम भाव से संबंध हो जाये तो मनुष्य गूढ़ विद्याओं का ज्योतिषीय ज्ञान रखने वाला हो सकता है। 10. दशम भाव में लग्नेश, पंचमेश, अष्टमेश, नवमेश, बुध व बृहस्पति इत्यादि जितने भी अधिक ग्रह स्थित होंगे मनुष्य उतना ही सफल ज्योतिषी हो सकता है। 11. केतु का बुध एवं बृहस्पति से संबंध भी मनुष्य को अपनी दशा-अंतर्दशा में ज्योतिष के क्षेत्र में ले जाने में सफल होता है क्योंकि केतु भी गूढ़ विद्याओं में पारंगत करने में सहायक होता है। 12. सिंह लग्न की पत्रिका में यदि बुद्धि एवं वाणी के द्वितीय स्थान में बृहस्पति पंचमेश व अष्टमेश होकर बैठे, दशमस्थ केतु की दृष्टि बृहस्पति पर एवं बृहस्पति की नवम दृष्टि गूढ़ विद्या के कारक केतु पर हो तथा बुध लग्नेश के साथ युति कर लोकप्रियता के चतुर्थ स्थान में बैठकर दशम स्थान के केतु पर दृष्टिपात करे तो ऐसा मनुष्य गूढ़ विद्याओं एवं ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान प्राप्त कर जनमानस में ज्योतिष का ज्ञाता जाना जाता है। 13. यदि पत्रिका में तृतीयस्थ वाणी कारक बुध पर विद्या घर के स्वामी मंगल की चतुर्थ दृष्टि हो और यही विद्या घर का स्वामी मंगल बुध की राशि कन्या में हो ( देखें उदाहरण कुंडली क्रमांक 2) या यही मंगल गूढ़ विद्याओं के कारक केतु के साथ द्वादश स्थान में हो, केतु की पंचम दृष्टि अष्टमेश शुक्र के साथ बैठे बृहस्पति की चतुर्थ स्थान पर हो, साथ ही इसी केतु की नवम दृष्टि अष्टम स्थान पर हो और इसी अष्टम स्थान पर बृहस्पति की पंचम दृष्टि एवं नवम दृष्टि केतु-मंगल युति पर हो तो ऐसा मनुष्य अपने मूल कर्म के अतिरिक्त भी ज्योतिषीय ज्ञान अर्जित करने के लिए लालायित रहता है। 14. कन्या लग्न की पत्रिका में पंचमेश शनि व अष्टमेश मंगल लग्न में हो, द्वितीयेश व नवमेश शुक्र स्वराशि का होकर अष्टम स्थान पर दृष्टि रखता हो, बृहस्पति स्वक्षेत्री मीन राशि का केंद्र में होकर लग्न एवं लग्नेश बुध पर दृष्टि रखे एवं केतु मोक्ष के द्वादश स्थान में स्थित होकर गूढ़ विद्या के अष्टम स्थान पर दृष्टि करे तो ऐसा मनुष्य अपने मूल कार्य के अलावा गूढ़ एवं ज्योतिष विद्या में प्रवीणता प्राप्त करता है। 15. लग्नेश एवं बुद्धिकारक बुध, बृहस्पति की मीन राशि दशम स्थान में हो, बृहस्पति ज्ञान कारक ग्रह पंचम भाव में पंचमेश से दृष्ट हो, अष्टमेश-नवमेश शनि लग्न में स्थित होकर गूढ़ विद्याओं के कारक केतु पर दृष्टि रखे तथा वाणी स्थान का स्वामी चंद्र लग्न में हो तो ऐसा मनुष्य ज्योतिष के क्षेत्र में प्रवीणता प्राप्त कर अपने ज्ञान से पुस्तक लेखन में सफल होता है। 16. वृश्चिक लग्न की पत्रिका में ज्ञान कारक बृहस्पति स्वराशि का होकर बुद्धि के स्थान द्वितीय भाव में होकर अष्टम भाव पर दृष्टि रखे, अष्टमेश केतु से दृष्ट होकर पंचम भाव में बृहस्पति की मीन राशि में हो, दशमेश सूर्य लोकप्रियता के चतुर्थ भाव में स्थित होकर दशम भाव को देखे और शनि जनता एवं चतुर्थ भाव का स्वामी होकर मित्रस्थ राशि का होकर सप्तमस्थ होकर भाग्येश चंद्र को लग्न में देखे तो ऐसा मनुष्य अपने ज्योतिष ज्ञान से भविष्यवाणियां कर लोकप्रियता प्राप्त करता है। 17. मकर लग्न की पत्रिका में बुद्धि एवं वाणी स्थान का स्वामी शनि उच्च का होकर दशम स्थान पर हो, पंचमेश बुध लग्न में योगकारक शुक्र के साथ स्थित हो तथा बृहस्पति केतु के साथ बुध की मिथुन राशि में स्थित होकर लग्नेश शनि पर दृष्टि रखे तथा अष्टमेश अष्टम भाव को देखे तो ऐसा मनुष्य तकनीकी योग्यता के साथ ज्योतिषीय ज्ञान का अध्ययन कर इस क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त करता है। 18. धनु लग्न की पत्रिका में पंचमेश मंगल लग्न में और लग्नेश बृहस्पति पराक्रम भाव में स्थित होकर बुध की मिथुन राशि पर पंचम दृष्टि करें, बुध-अष्टमेश चंद्र के साथ युति करे, बुद्धि का स्वामी शनि केतु जैसे गूढ़ विद्याकारक ग्रह के साथ बुध की कन्या राशि में दशम भाव में हो तो ऐसा मनुष्य अपने मूल कार्यों के अतिरिक्त ध्यान योग व गूढ़ विद्याओं को सीखने की लालसा एवं ज्योतिष शास्त्र में प्रवीणता प्राप्त करने में अत्यधिक रूचि रखता है। 19. कुंभ लग्न की पत्रिका में वाणीकारक बृहस्पति कर्म स्थान में स्थित हो, पंचम, अष्टम एवं नवम स्थान के स्वामी बुध एवं शुक्र दशमेश के साथ सप्तम स्थान में युति संबंध बनाकर लग्न को पूर्ण दृष्टि से प्रभावित करे तथा लग्नेश शनि उच्चराशिस्थ चंद्र के साथ युति करे एवं केतु भी बुध की राशि अष्टम स्थान में स्थित होकर गूढ़ विद्याओं हेतु प्रेरित करे तो ऐसा मनुष्य ज्योतिष के क्षेत्र में देश-विदेश में ख्याति अर्जित करता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लग्न, पंचम एवं नवम स्थान में शुभ ग्रह स्थित हों तो मनुष्य सात्विक देवी-देवताओं की उपासना करने वाला एवं सफल भविष्यवक्ता होता है तथा इन स्थानों पर पापग्रहों का समावेश हो तो क्षुद्र देवी-देवताओं जैसे यक्षिणी , भूत-प्रेतादि का उपासक होता है। अगर एक से अधिक पाप ग्रह हों या पापग्रहों की दृष्टि हो तो उपासना विरोधी होता है।



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