तीर्थ गुरु पुष्कर का माहात्म्य

तीर्थ गुरु पुष्कर का माहात्म्य  

हेमंत राज कैथ
व्यूस : 8729 | जनवरी 2010

तीर्थ गुरु पुष्कर का माहात्म्य हेमंत कुमार कासट गत पिता ब्रह्मा जी की तपोस्थली तीर्थराज पुष्कर में ऐसी अलौकिक शक्तियां विद्यमान हैं, जहां शुभ समय एवं ग्रह योग में जा कर, सरल उपाय अपना कर, विवाह, पुत्र संतान ज्ञान, यश धन के सुख प्राप्त कर के, अपना जीवन सुखमय बना सकते हैं। बृहस्पति ग्रह को भारतीय ज्योतिष शास्त्रों में प्रबल शुभकारक ग्रह माना गया है और उपर्युक्त कथन निर्विवाद सत्य भी है। तीर्थ गुरु पुष्कर राज पुराणों के अनुसार स्वयं गुरु पद से सुशोभित है।

यही कारण है कि गुरु ग्रह से दोषित एवं प्रभावित व्यक्ति, तीर्थ गुरु पुष्कर एवं जगत् पिता ब्रह्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त कर, गुरु संबंधी दोषों से मुक्ति पा कर, अपना जीवन सुखमय बना सकता है। वर्तमान समय में 30 जुलाई तक गुरु ग्रह अपने उच्च राशि में संचरण कर रहे थे। इसलिए 30 जुलाई के पूर्व शुभ दिन सोम, बुध, गुरु, शुक्र में जा कर अपनी इच्छित मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए जिन्होंने प्रार्थना की, उन्हें शीघ्र ही सुफल मिला। प्राकृतिक दृष्टि से भी यदि पुष्कर को देखेंगे, तो कदम-कदम पर पीपल के वृक्ष नजर आएंगे। गुरु दोष शमन हेतु पीपल की पूजा का विधान ज्योतिषियों द्वारा बताया जाता है। अनेक पीपल के वृक्ष भी गुरु भूमि होने का प्रमाण स्वयं दे रहे हैं।

पौराणिक कथानुसार भी जब ब्रह्मा जी द्वारा अग्निष्ठोम यज्ञ किया जा रहा था, उस समय, सोम रस पान हेतु, सावित्री जी को यज्ञ में बुलवाया। परंतु गृह कार्य में व्यस्त होने से कुछ समय तक वह नहीं आयी। इससे ब्रह्मा जी ने इंद्र देव को आदेश दे कर कहा : किसी कन्या को खोज कर लाओ। इंद्र देव विमान पर बैठ कर शीघ्र ही कन्या को ले आये। ब्रह्मा जी ने, गायत्री देवी के हाथ से सोम रस पान कर, दूसरा विवाह कर लिया। भक्त भी सरल उपायों से तीर्थ गुरु पुष्कर एवं ब्रह्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। इंद्र देव, जो बृहस्पति देव के पूज्य देव हैं, वह उनको आदेश दे कर मनोरथ सिद्ध करेंगे। पुष्कर में क्रिया संपादित करने की विधि इस प्रकार है :

घर से जाते समय ऊनी आसन, केशर की डिबिया, हल्दी की गांठें, हल्दी माला, पीत वस्त्र, बेसन के लड्डू, पीले चावल साथ ले कर जाएं। सूर्य उदय के पूर्व, पुष्कर सरोवर में स्नान कर, पीले वस्त्र धारण करें एवं धूप, दीप, पुष्प से पूजा करें तथा हल्दी, पीले चावल, लड्डू का भोग लगाएं। तत्पश्चात ब्रह्मा जी के मंदिर जाएं।

केशर की डिब्बी से केशर का भोग लगाएं एवं डिब्बी वापस प्राप्त करें। अब उत्तरमुखी हो कर, वहां बैठ कर, मंत्र ''क्क बृ बृहस्पतये नमः'' मंत्र का जप करें तथा फिर घर आ कर उक्त मंत्र लगातार, 43 दिनों तक, 20900 की संखया में, जप कर पूर्ण करें। नित्य एक केशर की पत्ती का पान करें। 7 हल्दी की गांठें अपने पूजा स्थल पर स्थापित करें। पीपल के 7 वृक्ष लगा कर बड़ा करें। इस समय में पूर्ण सात्विक आचरण का पालन करें।


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