हृदय रेखा
हृदय रेखा

हृदय रेखा  

मनोज बंसल
व्यूस : 11040 | अकतूबर 2010

यदि हम इस रेखा को 4 बराबर भागों में विभक्त करें तो पाएंगे कि सातों ग्रहों का इस पर आयुनुसार पूर्ण प्रभाव है। इसके उदग्म स्थान पर जाए तो यह बुध के नीचे और उच्च मंगल के ऊपर से प्रारंभ होती है उससे यह ज्ञात होता है कि बुध और मंगल जो ज्योतिष मतानुसार नैसर्गिक शत्रु संबंध रखते हैं अर्थात एक नकारात्मक तथा एक सकारात्मक ग्रह का प्रभाव लिए हुए साथ चलती है। जिस प्रकार प्रकृति का अपना संतुलन कायम है- पुरुष और स्त्री, उसी प्रकार यह रेखा भी यहां से बुध और मंगल के प्रभाव को लेकर आगे बढ़ती हुई सूर्य और चंद्र के प्रभाव को ग्रहण करती है।

तब उम्र के उस पड़ाव पर इन दोनों ग्रहों का प्रभाव मिलेगा तत्पश्चात जब यह रेखा शनि पर्वत के नीचे से गुजरेगी तो शुक्र का भी प्रभाव साथ होगा एवं रेखा के अंत तक गुरु एवं निम्न मंगल का प्रभाव साथ रहेगा। यदि हम मानव जीवन को वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार 80 वर्ष तक का मानकर चलें और उसे चार भागों में अर्थात 20 वर्ष के चार भागों में विभक्त करें तो पाएंगे की प्रथम 20 वर्ष तक की आयु में जातक पर बुध और मंगल का प्रभाव दिखता है। नटखटता, चंचलता, शरारती, खून में गर्मी स्वभाव में तेजी इत्यादि जो बचपन से किशोरावस्था तक की उम्र में पाई जाती है।

किंतु उम्र के अगले 20 वर्ष अर्थात 20 से 40 वर्ष में यही हृदय रेखा और जातक सूर्य एवं चंद्र के प्रभाव में आ जाते हैं। अर्थात माता-पिता के निर्णय से प्रभावित, मिजाज में तनिक तेजी, कार्य के उत्साहित, घूमना फिरना, भ्रमण, व्यापार तथा कारोबार, नौकरी या कामकाज की चिंता, भविष्य के प्रति उत्साहित एवं चिंतित इत्यादि। उम्र के तीसरे पड़ाव अर्थात 40 से 60 वर्ष की आयु में शनि तथा शुक्र का मिला जुला प्रभाव आता है। अपने किए कर्मों को भोगने की स्थिति, गलत या सही का निर्णय, परिपक्वता, ज्ञान, दूरदर्शिता, औषधि, दुःख, पश्चाताप, भौतिक सुख साधन से पूर्ण इत्यादि।

उम्र के अंतिम पड़ाव 60 से 80 वर्ष अर्थात गुरु और निम्न मंगल का प्रभाव दिखाता है- साधु संतों की शरण, संन्यास, धर्म कर्म के कार्य, परमात्मा की याद, अहं की भावना, कार्य क्षमता में कमी, त्याग और संघर्षपूर्ण देह आदि। किंतु ग्रह के हाथ पर उत्तम अथवा निम्न अवस्था में बैठे होने से इनका प्रभाव कुछ भिन्नता लिए हुए होगा। तत्पश्चात हथेली का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करने के बाद अन्य चिन्हों का तथा शरीर लक्षणों के चिन्हों का भी ध्यानपूर्वक अध्ययन के बाद ही फलकथन किया जाना चाहिए।



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