सिर दर्द

सिर दर्द  

अविनाश सिंह
व्यूस : 4552 | अप्रैल 2015

Prevention is better than cure अर्थात उपचार से बेहतर है सुरक्षा। मनुष्य को रोग का पूर्वाभास हो जाता है क्योंकि रोग आने से पहले मानव शरीर में कुछ ऐसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं जिनसे उसे आभास हो जाता है कि रोग उसके द्वार पर दस्तक दे रहा है। ऐसा ही एक रोग है ‘सिर दर्द’ जो रोगों के आने का सूचक है। सिर दर्द एक ऐसा विकार है जो लगभग सभी में कम या अधिक मात्रा में होता है जिसकी ओर हम अक्सर ध्यान नहीं देते। मस्तिष्क की जानलेवा बीमारियों का आगमन सिर दर्द से ही होता है। सिर दर्द के कई कारण होते हैं।जैसे

बुखार; बुखार चाहे जैसा भी हो वह सिर दर्द का कारण बनता है। दृष्टि के कमजोर हो जाने से, दांतों के विकार, सिर की मांसपेशियों में जकड़न आ जाने से, सिर में लगी चोट, कान के भीतर संक्रमण, मस्तिष्क के भीतर संक्रमण, सिर के भीतर की गांठ या रसौली की शुरूआत भी सिर दर्द से ही होती है। इसी तरह आधा सीसी का दर्द सिर से उठता है।

मानसिक रोग जैसे चिंता, भय इत्यादि, हारमोन का असंतुलन, उच्च रक्तचाप, गर्दन की हड्डियों का घिसाव, जबड़े और सिर की हड्डियों के जोड़ का विकार भी सिर दर्द के कारण हो सकते हैं।

ज्योतिषीय दृष्टि में सिर दर्द: ज्योतिषीय दृष्टि में प्रथम भाव जन्मकुंडली में मस्तिष्क, अर्थात् सिर का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रथम भाव अर्थात् लग्न, लग्नेश यदि जन्मकुंडली में पीड़ित हों तो जातक को मस्तिष्क संबंधित रोग होते हैं। सूर्य प्रथम भाव का कारक ग्रह है इसलिए सूर्य का पीड़ित होना भी सिर संबंधित रोग की उत्पत्ति का कारण बनता है।


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विभिन्न लग्नों में सिर दर्द:

मेष लग्न: लग्न बुध से युक्त या दृष्ट हो, सूर्य राहु या केतु से दृष्ट या युक्त हो। लग्नेश मंगल षष्ठ भाव, अष्टम भाव में शनि से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को सिर दर्द संबंधित रोग हो सकता है।

वृष लग्न: लग्नेश शुक्र अस्त होकर तृतीय, षष्ठ या अष्टम भाव में हो और राहु-केतु से युक्त हो या दृष्ट हो तो जातक सिर दर्द से पीड़ित होता है।

मिथुन लग्न: लग्नेश बुध मंगल से युक्त हो या अष्टम दृष्टि में हो और अस्त न हो, गुरु पंचम या षष्ठ भाव में हो तो जातक सिर दर्द से परेशान होता है।

कर्क लग्न: लग्नेश चंद्र पंचम भाव में हो, बुध से युक्त हो, लग्न में राहु या केतु हो, शनि चतुर्थ भाव या सप्तम भाव में हो तो जातक को सिर संबंधित रोग हो सकता है।

सिंह लग्न: लग्नेश सूर्य राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, गुरु षष्ठ या अष्टम भाव में हो, लग्न शनि से दृष्ट या युक्त हो तो सिर दर्द संबंधित रोग हो सकता है।

कन्या लग्न: लग्नेश बुध अस्त होकर लग्न, षष्ठ या अष्टम भाव में हो, मंगल लग्न पर दृष्टि देता हो। गुरु राहु-केतु से युक्त होकर पंचम या नवम भाव में हो तो सिर दर्द रोग होता है।

तुला लग्न: लग्न में गुरु राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, शुक्र सूर्य से अस्त होकर पंचम, षष्ठ, अष्टम और नवम भाव में हो तो जातक को सिर दर्द संबंधित रोग होता है

वृश्चिक लग्न: लग्नेश अस्त होकर अष्टम भाव, द्वादश भाव में हो, बुध राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, शनि लग्न, चतुर्थ, सप्तम भाव में हो तो जातक को सिर दर्द होता है।

धनु लग्न: लग्नेश गुरु षष्ठ भाव, अष्टम भाव में हो, लग्न में शुक्र राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो। सूर्य शनि से युक्त होकर लग्न में दृष्टि दे तो सिर दर्द जैसा रोग हो सकता है।

मकर लग्न: सूर्य-शनि एक दूसरे पर दृष्टि दे, गुरु राहु-केतु से युक्त या दृष्ट होकर लग्न पर दृष्टि दे, तो जातक को सिर दर्द जैसा रोग होता है।

कुंभ: गुरु राहु-केतु से युक्त होकर पंचम या नवम भाव में हो, शनि षष्ठ भाव मे, चंद्र लग्न में मंगल से दृष्ट या युक्त हो तो जातक को सिर दर्द हो सकता है।

मीन लग्न: लग्न में शनि, सूर्य तृतीय भाव, सप्तम भाव या दशम भाव में हो। शुक्र राहु केतु से युक्त होकर, पंचम भाव, नवम भाव में हो तो जातक को सिर दर्द होता है।

रोग संबंधित ग्रह की दशा-अंतर्दशा और विपरीत गोचर के काल में होता है। इसके उपरांत रोग से राहत मिल जाती है। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण आयुर्वेद सिद्धांत अनुसार रोग की उत्पत्ति तीन विकारों के अनुपात पर निर्भर करती है अर्थात् वात, पित्त, कफ। यदि शरीर में पित्त और वात बिगड़ जाएं तो सिर दर्द होता है। वात-पित्त का बढ़ना या कम होना इसका मुख्य कारण है। पित्त बढ़ जाने से शरीर में अग्नि तत्व की मात्रा बढ़ जाती है


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जिससे रक्त चाप बढ़ता है और सिर दर्द होने लगता है। अगर पित्त कम हो जाए तो अग्नि तत्व कम हो जाता है और वात-कफ अनुपाती तौर पर बढ़ जाते हैं जिससे सिर के अंदर की मांसपेशियों में जकड़न हो जाती है और छींकें आती हैं, नज़ला जुकाम होकर सिर दर्द होने लगता है। सिर दर्द होने पर मरहम लगाकर, सिर दबाकर, कसकर पट्टी बांधकर और घरेलू नुस्खों के प्रयोग से दर्द नाशक दवाओं के उपयोग से सिर दर्द का उपचार करना ठीक है। साधारण सिर दर्द होगा तो इन उपायों से ठीक हो जाएगा। लेकिन यदि दर्द बार-बार हो तो यह चिंताजनक है।

हो सकता है कि यह किसी बड़ी बीमारी के आने का सूचक हो इसलिए अतिरिक्त सावधानियां करनी चाहिए।

सिर दर्द के घरेलू उपचार

- प्रातः काल खाली पेट एक मीठा सेब, नमक लगाकर, खाने से साधारण सिर दर्द दूर हो जाता है।

- प्रातः काल थोड़ा व्यायाम करें, हरी घास पर नंगे पांव चलने से बार-बार होने वाला सिर दर्द दूर हो जाता है।

- सरसों का तेल नाक में लगाकर सूंघने से सिर दर्द में आराम होता है।

- गाय के देसी घी की दो-चार बूंदंे नाक में डालने से सिर दर्द में लाभ होता है।

- देसी घी में केसर डालकर सूंघने से भी लाभ होता है।

- सूखा आंवला और धनिया दोनों को पीसकर रात को पानी में भीगो दें और सुबह मसल कर छान लें। छने पानी में चीनी मिलाकर पीने से सिर दर्द में लाभ होता है।

- रात को सोते समय सिर और पेट के तलवों में देसी घी या बादाम का तेल से मालिश करें। सरसों का तेल भी प्रयोग किया जा सकता है।

- ब्राह्मी और बादाम के तेल को मिलाकर सिर से मालिश करने से सिर दर्द में लाभ होता है।

- कलमी शोरा और काली मिर्च समान मात्रा में लेकर पीस लें और फिर गरम पानी से एक चम्मच खाने से सिर दर्द में लाभ होता है।

- बादाम की पांच गिरी को पानी में भिगो दें। प्रातः छिलकर पीस लें और फिर रात को गाय के दूध में उबालें। चार काली मिर्च भी पीस कर साथ ही उबालें और एक चम्मच घी और बूरा डालकर दो सप्ताह तक पीने से सिर दर्द में लाभ होता है और स्मरण शक्ति बढ़ती है।

- हरड़ के छिलके को पीसकर थोड़ा नमक मिलाकर रात को गर्म पानी के साथ फांकने से सिर दर्द में लाभ देता है।

- तुलसी के पत्तों की चाय बनाकर पीने से सिर दर्द से राहत मिलती है।

- मुलहठी, मोती इलायची और सौंफ को पीस लें तथा दो तुलसी के पत्ते पानी में उबाल कर थोड़ा दूध तथा चीनी मिलाकर पीने से सिर दर्द में आराम होता है।



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