हस्त नक्षत्र और योग दर्शन

हस्त नक्षत्र और योग दर्शन  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 5381 | अकतूबर 2006

हस्त नक्षत्र और योग दर्शन श्री मोहन ह स्त रेखा विज्ञान एक अद्भुत विज्ञान है। हाथ के मध्य में सभी तीर्थ, सागर ग्रह, तिथियां, दिशाएं, नक्षत्र, योग आदि के दर्शन किए जाते हैं। इसी हाथ में सभी देवताओं का वास माना गया है। इसी कारण से प्रतिदिन प्रातः काल हस्त दर्शन की बात कही गई है। यहां हाथों में योग व नक्षत्रों के स्थानों की व्याख्या प्रस्तुत है।

हथेली के मध्य में प्रारंभ में अश्विनी नक्षत्र को स्थापित करते हैं। उंगलियों के मूल में भरणी, कृत्तिका व रोहिणी, अंगूठे के नीचे मृगशिरा, आद्र्रा व पुनवर्¬सु, मणिबंध की ओर पुष्य, आश्लेषा व मघा और करभ में पूर्वा फा., उत्तरा फा. व हस्त नक्षत्र को स्थापित करते हैं। इस प्रकार सत्ताईस नक्षत्रों में से तेरह नक्षत्र हथेली में स्थापित रहते हैं।

शेष नक्षत्रों का स्थान कनिष्ठा से प्रारंभ माना जाता है। कनिष्ठा में मूल से चित्रा, स्वाति व विशाखा, अनामिका में अनुराधा, ज्येष्ठा व मूल मध्यमा में, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़ व अभिजित तर्जनी में श्रवण, धनिष्ठा व शतभिषा और अंगूठे में पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद व रेवती नक्षत्र स्थापित रहते हैं। हथेली में उंगलियों की ओर पूर्व दिशा, अंगूठे की ओर दक्षिण, मणिबंध की ओर पश्चिम, ककरभ की ओर उत्तर दिशा स्थापित मानी जाती है।

नक्षत्र द्वारा फल देखने की विधि: आप जिस जातक का हाथ जिस नक्षत्र में देख रहे हों, उस नक्षत्र को हथेली के मध्य में स्थापित करके शेष नक्षत्रों को इसी च्रक्र विधि से स्थापित कर लें। इस प्रकार उपर्युक्त विधि के अनुसार उस दिन के नक्षत्र से आगे के तेरह नक्षत्र हथेली में स्थापित हो जाएंगे। इसी तरह शेष पंद्रह नक्षत्र भी उंगलियों में स्थापित करके नक्षत्र चक्र बना लें। अब जातक का नक्षत्र जिस स्थान पर आए, उस पर्वत या रेखा के अनुसार फल कहने का नियम है। सत्ताईस नक्षत्रों की भांति सत्ताईस योगों की भी स्थापना हथेली में करके शुभाशुभ विचार करें।

हथेली के मध्य में विषकुंभ, पूर्व दिशा में प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, दक्षिण में शोभन, अतिगंड, सु लभा, पश्चिम म े ंधृ ति, शू ल, गंड उत्तर में वृद्धि ध्रुव, व्याघात् इस प्रकार हथेली में तेरह योगों की गणना हो जाती है। शेष चैदह नक्षत्रों को उंगलियों में स्थान दिया जाता है। कनिष्ठा के पहले पर्व में हर्षण, द्वितीय में वज्र, तृतीय में सिद्धि, अनामिका में क्रमशः व्यतिपात, वरीयान, परिघ, मध्यमा में शिव, सिद्धि, साध्य, तर्जनी प्रश्नकर्ता का जिस योग में जन्म हो उस योग को हाथ में मघा में स्थापित करके शेष नक्षत्रों में ठीक उसी क्रम में स्थापित करके फल कहना चाहिए। यदि किसी जातक को योग स्पष्ट न हो, तो जिस दिन हाथ का परीक्षण किया जा रहा हो उस दिन का योग लेना चाहिए। जो योग अशुभ स्थान (उंगलियों का अग्र भाग, हथेली में दक्षिण दिशा के योग, पश्चिम दिशा के योग तथा मध्य का योग) में पड़े वह समय शुभ कार्य हेतु वर्जित माना गया है।

अन्य स्थानों में पड़े योग शुभ माने गए हैं। ये योग ‘‘यथा नाम तथा गुण’’ के अनुसार भी फल देते हैं। जैसे विष्कुंभ-जहर का घड़ा, प्रीति-प्रेम आयुष्मान - लंबी आयु, सौभाग्य अच्छा भाग्य, हर्षण- प्रसन्नता देने वाला, वज्र- बिजली सिद्धि सफल होना, व्यतिपात- उत्पन्न गिरा हुआ। इसी प्रकार अन्य योगों का फल देखना चाहिए। इस प्रकार जिनका आशय शुभ हो और शुभ स्थान में हो, तो फल शुभ कहना चाहिए।

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