उच्छिष्ट गणपति सिद्धि प्रयोग

उच्छिष्ट गणपति सिद्धि प्रयोग  

व्यूस : 25772 | सितम्बर 2013
विश्वामित्र ने एक स्थान पर लिखा है कि जीवन का पूर्ण सौभाग्य फल उच्छिष्ट गणपति प्रयोग है। महर्षि वशिष्ठ ने उच्छिष्ट गणपति साधना को जीवन की पूर्ण साधना कहा है। मात्र इस प्रयोग से जीवन में वह सब कुछ प्राप्त हो जाता है, जो अभीष्ट लक्ष्य होता है। इच्छाएं, भावनाएं और मनोरथ पूरे होते हैं। यह एक दिन की साधना है और यदि साधक पूर्ण विधि-विधान के साथ इस साधना को करता है, तो, विश्वमित्र संहिता के अनुसार, इससे उसे पांच लाभ हाथांेहाथ प्राप्त होते हं। कई बार देखा गया है कि इधर साधना संपन्न होती है और उधर सफलता की भी प्राप्ति संभव होने लगती है। पांच लाभ निम्न हैं: - समस्त कर्जों की समाप्ति और दरिद्रता का निवारण - निरंतर आर्थिक-व्यापारिक उन्नति - लक्ष्मी प्राप्ति और उसका पूर्ण उपभोग - भगवान गणपति के प्रत्यक्ष दर्शनों की संभावना - प्रबल इच्छा और उसकी पूर्णता का मार्ग प्रशस्त होना यह प्रयोग गणेश जयंती को किया जाता है। यह जयंती भाद्र शुक्ल चतुर्थी को होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि यह प्रयोग किसी भी बुधवार को संपन्न किया जा सकता है। परंतु गणपति सिद्धि दिवस, यानी भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी शीघ्र सफलतादायक हैं। शास्त्रों के अनुसार यह प्रयोग दिन, या रात्रि में, कभी भी संपन्न किया जा सकता है। जीवन में जो इच्छाएं पूर्ण हों, उन इच्छाओं, या अभावों की पूर्ति को ही उच्छिष्ट कहा गया है। साधक निम्न सामग्री को पहले से ही तैयार कर लें, जिसमें जल पात्र, केसर, कुंकुम, चावल, पुष्प, माला, नारियल, दूध, शक्कर (गुड़) से बना खीर, घी का दीपक, अगरबत्ती, मोदक आदि हैं। इनके अलावा उच्छिष्ट गणपति यंत्र और मंूगे की माला की नितांत आवश्यकता होती है। सर्वप्रथम साधक, स्नान कर, पीले वस्त्र पहन कर, पूर्व की ओर मुख कर के बैठ जाए और सामने उच्छिष्ट गणपति सिद्धि यंत्र को एक थाली में, कुंकुम से स्वस्तिक बना कर, स्थापित कर ले और फिर हाथ जोड़ कर भगवान गणपति का ध्यान करें। ध्यान मंत्र: सिंदुर वर्ण संकाश योग पट समन्वितं लम्बोदर महाकायं मुखं करि करोपमं अणिमादि गुणयुक्ते अष्ट बाहुत्रिलोचनं विग्मा विद्यते लिंगे मोक्ष कमाम पूजयेत।। ध्यान करने के बाद जो भी मनोकामना हो, वह, नाम, गोत्र आदि का उच्चारण करते हुए, गणेश जी के चरण में संकल्प वाक्य पढ़ते हुए, रख दें। संकल्प: ओमच्य भाद्र मासि शुक्ले पक्षे चतुर्थोयो तिथौ वत्स गोत्रस्य महेश मोहन शर्मण: धन प्राप्तिः कामः श्री उच्छिष्टगणपति प्रसाद कामश्य Om एक दंताय विद्म्हे वक्र तुण्डाय धीमहि तन्नोविघ्न प्रचोदयात इति मंत्रास्य एक विंशति माला जपं अहं करिष्ये। साधक, अपने अनुसार, रेखा के ऊपर नाम, गोत्र मनोकामना आदि का उच्चारण करें। इसके बाद, भगवान उच्छिष्ट गणपति आठ भुजाओं वाले हैं, ऐसा चिंतन मन में लाते हुए, उनकी आठों भुजाओं को निम्न लिखित प्रकार से प्रणाम करें: Om अं अणिमायै नमः स्वाहा। Om मं महिमायै नमः स्वाहा। Om वे वशितायै नमः स्वाहा। Om गं गरिमायै नमः स्वाहा। Om प्रे प्राप्तये नमः स्वाहा। Om ई ईशितायै नमः स्वाहा। Om के कामावसत्रितायै नमः स्वाहा Om सिं सिद्धयै स्वाहा। इस प्रकार आठों भुजाओं का पूजन कर फिर गणेश वाहन मूषक का निम्न मंत्र से पूजन करें: Om मं मूषिकात्र गणाधिय वाहनाम धर्म शत्राम स्वाहा। इसके बाद, केसर, जल, पुष्प, गुलाल, दीप आदि से, उच्छिष्ट गणपति यंत्र की पूजा करें। यंत्र पूजा करने के बाद योग (नैवेद्य) लगा खीर वहीं बैठे-बैठै कुछ अंश खा कर, बिना आचमन किये, मंत्र का जप 21 माला करें। मुंह झूठा हो, लेकिन हाथ धो लेना चाहिए। खीर के बदले मोदक भी खा सकते हैं, क्योंकि उच्छिष्ट गणपति को मोदक अत्यंत प्रिय है।’ मै ही गणेश हूं, ‘ऐसा ध्यान कर के निम्न मंत्र का जाप करें। Om एक दंताय विदम्हे वक्र तुंडाय धीमहि तन्नो विघ्न प्रचोदयात। इसके बाद पूजा स्थान पर रखे गये नारियल को तोड़ कर उसके अंदर की गिरी भगवान गणपति को समर्पित कर दें। इससे प्रयोग सिद्ध हो जाता है और इससे संबंधित जो लाभ पीछे बताये गये हैं, वे तुरंत फलप्रद होते हैं। अंत में शुद्ध घृत से भगवान गणपति की आरती संपन्न करें और प्रसाद वितरित करें। इस प्रकार से साधक की मनोवांछित कामनाएं निश्चय ही पूर्ण हो जाती हैं और कई बार तो यह प्रयोग संपन्न होते ही साधक को अनुकूल फल प्राप्त हो जाता है।



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