दक्षिण-पश्चिम का दोष प्रगति में बाधक

दक्षिण-पश्चिम का दोष प्रगति में बाधक  

प्रमोद कुमार सिन्हा
व्यूस : 18377 | जुलाई 2013

चुम्बकीय कंपास के अनुसार 202 डिग्री से लेकर 247 डिग्री के मध्य के क्षेत्र को नैर्ऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) दिशा कहते हैं। दक्षिण-पश्चिम का क्षेत्र पृथ्वी तत्व के लिए निर्धारित है। यह सभी तत्वों से स्थिर है। यह दिशा सभी प्रकार की विषमताओं एवं संघर्षों से जूझने की क्षमता प्रदान करती है। साथ् ही स्थायित्व, सही निर्णय एवं किसी भी निर्णय को मजबूती से दिलवाने में मदद करता है।

यह दिशा आयु, अकस्मात दुर्घटना, बाहरी जननेन्द्रियाँ, बायां पैर, कुल्हा, किडनी,पैर की बीमारियाँ, स्नायु रोग आदि का प्रतिनिधित्व करती है। यदि घर के र्नैत्य में खाली जगह, गड्ढा, भूतल, जल की व्यवस्था या काँटेदार वृक्ष हो तो गृह स्वामी बीमार होता है, उसकी आयु क्षीण होती है, शत्रु पीड़ा पहुँचाते हैं तथा संपन्नता दूर रहती है। गृह स्वामी जीवित लाश बन कर रह जाता है। भाग्य सो जाता है। अकाल मृत्यु, दुर्घटना, पोलियो तथा कैंसर जैसी बीमारियों का सामना करना पड़ता है तथा जीवन में फटहाली तथा गरीबी छा जाती है। इन सारे तथ्यों की सच्चाई वास्तु निरीक्षण के द्वारा जानने का प्रयास किया गया जो निम्नांकित हैं - यह दोषपूर्ण भवन का विश्लेषण हैः-

(1) निम्नांकित भूखंड के दक्षिण, पश्चिम में काफी खाली जगह होना, साथ ही दक्षिण-पश्चिम कटा हुआ होना इस घर के लिए दुर्भाग्यशाली साबित हुआ। इस भवन में निवास करने वाले किसी भी व्यक्ति की आयु 60 से ऊपर नहीं जा पाई। इस भवन के पूर्व में सीढ़ी एवं उसके बगल का शौचालय भी इस घर मं निवास करने वाले के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से अच्छा साबित नहीं हुआ। दक्षिण-पश्चिम में स्नानागार भी वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत था। इसमें रसोईघर भी दक्षिण-पश्चिम में बनी हुई थी। हालांकि बोरिंग पूर्वी ईशान की ओर था जो रहने वाले के लिए शुभ फलप्रद था। इस भवन के उत्तर की दिशा की ओर सड़क पर इमली का पेड़ होना भी गृह में निवास करने वालों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक था।

(2) निम्नांकित भूखंड के दक्षिण-पश्चिम से लेकर दक्षिण पूर्व में बेसमेंट है तथा दक्षिण-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व तक की ऊपरी सतह नीची है। दक्षिण-पश्चिम का क्षेत्र थोड़ा बढ़ा हुआ है। दक्षिण-पश्चिम में भूतल तथा घर के मध्य स्थान में सीढ़ी है। इसमें वास करने वाले की स्थिति हमेशा अस्त-व्यस्त सी बनी रहती है। मुसीबतें अपने-आप आकर्षित होती रहती हैं। परेशानियों से हमेशा घिरे रहते हैं। अस्थिरता बनी रहती है। छल-कपट, प्रपंच एवं फरेब में वृद्धि देखने को मिलती है। घर के लोग अनैतिक एवं अमर्यादित कार्यों में अत्यधिक संलग्न हैं। साथ ही स्वास्थ्य में कमी बनी रहती है।


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(3) निम्नांकित भूखंड का दक्षिण-पश्चिम कटा हुआ है। साथ ही दक्षिण-पश्चिम का क्षेत्र दबा हुआ है। दक्षिण-पश्चिम में ट्यूबवेल स्थित है। ये सारी स्थितियां उन्हें निरंतर परेशान बनाये हुए हैं। उनके पिता को अपराधियों ने असमय काफी कम उम्र में गोली से मार दिया । पिता की मृत्यु के 3-4 साल के उपरान्त इन्हें अपना भवन बेचकर बाहर चले जाना पड़ा। दक्षिण-पश्चिम का दोषपूर्ण क्षेत्र स्थायित्व एवं आयु में कमी करने में मददगार बना।

(4) निम्नांकित भूखंड का दक्षिण-पश्चिम कटा हुआ है। साथ ही भवन का भी दक्षिण-पश्चिम कटा हुआ है। इसमें वास करने वाले शारीरिक रूप से काफी बीमार रहते हैं। पति-पत्नी दोनों का स्वास्थ्य काफी खराब रहता है। चलने-फिरने से भी लाचार बने हुए हैं।

(5) घर में प्रवेश करने के उपरांत ही भूस्वामी विभिन्न प्रकार की परेशानियों से घिर गये । पत्नी की मृत्यु हो गई एवं संतान सुख से वंचित होने लगे । लड़के एवं लड़कियाँ दोनों संतान का उम्र काफी होने के बावजूद अभी तक शादी नहीं हो सकी । सबकुछ होने के बावजूद भी खुशियों की निरंतर कमी बनी हुई है। दक्षिण-पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम भवन का कटा हुआ है। साथ ही दक्षिण-पश्चिम में सेप्टिक टैंक वास्तुदोष दे रहा है। इनके घर में अमरूद के बहुत बडे़-बड़े पेड़ हैं तथा भवन का प्रवेश द्वार र्नैत्य दिशा से है। ये सारी स्थितियां वास्तु सिद्धान्त के विपरीत हैं।

(6) भवन के मुख्य प्रवेश द्वार दक्षिणी र्नैत्य से बना हुआ था और उसी जगह पर सेप्टिक टैंक था । आग्नेय दिशा में बहुत बड़ा अंडर ग्राउंड कमरा गाय रखने के लिए बनाया गया था तथा पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया गया था । इस भवन का उत्तर एवं पूर्व पूर्णतः बंद था । पश्चिम में 4 फीट की गली एवं दक्षिण में 12 फीट का रोड था । इस गृह में प्रवेश करने के 1 साल के अंदर 3 व्यक्तियों की मृत्यु हुई ।

दोषपूर्ण फैक्ट्री का वास्तु विश्लेषण:-

(7) फैक्ट्री के भूखंड का आकार अनियमित है जिसका ईशान्य तथा उत्तर का क्षेत्र कटा हुआ है। साथ ही दक्षिण-पश्चिम का क्षेत्र बढ़ा हुआ है तथा भूखंड के बढ़े हुए दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में बड़ा सा तालाब बनाया गया है। उत्तर की ओर बड़ी-बड़ी इमारतें बनी हुई हैं तथा फैक्ट्री भूखंड के ब्रह्म स्थान पर स्थित है। फलस्वरूप फैक्ट्री प्रारंभिक काल से ही घाटा देता रहा है। नित्य नयी-नयी परेशानियों का सामना करना पड़ा, आर्थिक रूप से स्थिति जर्जर बनी रही। फैक्ट्री कब बंद हो जाएगा इसके बारे में कहना मुश्किल सा हो गया है। सरकारी विभागों से भी सम्बंध खराब हो जाता है। फैक्ट्री के मालिक दिवालियापन की स्थिति में जा पहुँचे हैं। पार्टनरों के बीच में भी तकरार होने लगी। दक्षिण-पश्चिम अर्थात् र्नैत्य दिशा का दोषपूर्ण होना कहीं न कहीं खुशहाली, समृद्धि, यश-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, स्थायित्व एवं आयु में कमी दे रहा है। घर में दुखों का पहाड़ टूटता हुआ दिखाई दे रहा है एवं जिन्दगी जीने का मजा खत्म होता प्रतीत हो रहा है। भाग्य सो जाता है, आपदाएँ, संकट, महादरिद्री, कर्ज और ब्याज के बोझ से इसमें निवास करने वाले लोग दब जाते हैं।


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