अष्टम भावस्थ शनि-व्यवसाय

अष्टम भावस्थ शनि-व्यवसाय  

एम. के रस्तोगी
व्यूस : 7426 | अप्रैल 2006

जन्म कुंडली के दशम भाव को कर्म भाव कहा गया है और द्वितीय भाव का संबंध आय व संचित धन से होना बताया गया है। धन तथा कर्म का मुख्य कारक बृहस्पति है, शनि भी कर्म तथा नौकरी का कारक है। यदि दशम व द्वितीय भाव तथा उनके स्वामी और बृहस्पति एवं शनि शुभकारक हों तो शुभ कर्म व लाभ की आशा रहती है। एकादश भाव वृद्धि बताता है। अष्टम भावस्थ शनि की दशम तथा द्वितीय दोनों भावों पर पूर्ण दृष्टि होती है, दशम भाव नवम से द्वितीय है, अतः पिता की संपत्ति व आय का द्योतक है। तृतीय भाव से अष्टम भाव होने से भाई बहनों की संपत्ति तथा एकादश भाव से द्वादश होने के कारण बड़े भाई के व्यय तथा हानियां बाताता है


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। द्वितीय भाव दशम भाव से पांचवां होने से व्यवसाय में निवेश व सट्टे के बारे में बताता है और पंचम भाव से दशम होने के कारण संतानों की जीविका एवं व्यवसाय का द्योतक है। अष्टम भाव द्वितीय भाव से सप्तम है अतः साझेदारी आदि का द्योतक है। यह चतुर्थ भाव से पंचम भाव है और लेखन द्वारा भाग्य बताता है, सप्तम भाव से द्वितीय है और दहेज व साझेदारी का ज्ञान देता है। दशम भाव से अष्टम भाव एकादश स्थान पर है जो व्यवसाय में उपलब्धियों का द्योतक है। एकादश भाव का दशम स्थान है अष्टम भाव जो मित्र व बड़े भाई के व्यवसाय के विषय में बताता हंै। इन सब कारकत्वों को ध्यान में रखते हुए अष्टम भावस्थ शनि के वयवसाय पर पड़ने वाले प्रभावों का कुछ कुंडलियों के माध्यम से विश्लेषण यहां प्रस्तुत है।

उदाहरण-1 जातक का लग्न वृष है जिस पर षष्ठ भाव से शुक्र की राशि से मंगल की दृष्टि है जो लग्न का नक्षत्रेश है और वर्गोत्तम है। यह मंगल प्रतियोगिता में श्रेष्ठता दे रहा है। लग्न में बृहस्पति स्थित है जो ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार लाखों पापों का अंत करता है। लग्नेश शुक्र है जो चतुर्थ भाव में सिंह राशि में दिग्बली है। शुक्र केतु के नक्षत्र में है जो षष्ठ भाव में लग्न नक्षत्रेश मंगल के साथ स्थित है। शुक्र की दृष्टि दशम भाव पर है जिस पर अष्टम भाव से नवमेश-दशमेश शनि की तथा षष्ठ भाव से मंगल की दृष्टि है। दशमेश शनि अष्टम भावस्थ होकर दशम, द्वितीय तथा पंचम भावों पर दृष्टि दे रहा है।

शनि का नक्षत्रेश केतु है जो मंगल के साथ षष्ठ भाव में है। द्वितीय भाव दो शुभ ग्रहों बृहस्पति तथा चंद्र के मध्य शुभकत्र्तरी स्थिति में है। द्वितीयेश बुध वक्री, उच्च तथा वर्गोत्तम होकर पंचम भाव में सूर्य के साथ है जो चतुर्थेश है और नवांश में उच्च है तथा शनि के साथ अष्टम भाव में है। बुध पर शनि (नवमेश-दशमेश) तथा बृहस्पति (अष्टमेश-एकादशेश) की दृष्टियां हैं। जातक का जन्म बुध की दशा में हुआ और बुध का नक्षत्रेश मंगल है। जन्म कुंडली में पर्याप्त बल है और मंगल तथा बुध काफी मजबूत हैं और लग्न से बृहस्पति की पंचम तथा नवम भावों पर दृष्टि आत्म, पूर्व पुण्य तथा भाग्य को जोड़ रही है। बुध की स्थिति उसे मधुर कंठ और शुद्ध उच्चारण का गुण दे रही है। दशम भाव पर चतुर्थ भाव से शुक्र की दृष्टि है जो लग्नेश तथा कला का कारक है। अष्टम भाव से शनि की तथा षष्ठ भाव से केतु की दृष्टि है।

लग्न, मंगल, बुध तथा बृहस्पति का नक्षत्रेश मंगल है। शुक्र तथा शनि का नक्षत्रेश केतु है जो मंगल के साथ षष्ठ भाव में शुक्र की तुला राशि में है। इस स्थिति के कारण जातक का कर्म संगीत से जुड़ा है परंतु मंगल के कारण प्रतिद्वंद्विता, परिश्रम, केतु, सूर्य तथा बृहस्पति के कारण प्रसिद्धि तथा शनि के कारण देरी से पूर्ण सफलता प्राप्त होगी। बुध पंचम भाव में सूर्य के साथ है जहां चतुर्थेश सूर्य भी है। बुध उच्च, वर्गोत्तम, द्वितीयेश व पंचमेश है और उस पर शनि तथा बृहस्पति की भी दृष्टि है। अतः पंचम भाव में बहुत से योग इकट्ठे हो गए हैं जिनसे द्वितीय, पंचम, अष्टम, नवम, दशम तथा एकादश भाव जुड़े हैं। इन भावों का योग धन, मधुर वाणी, उत्तराधिकार, कर्म तथा लाभ दे रहा है। जातक को पिता की मत्यु के पश्चात कम उम्र में ही परिवार को संभालने के लिए कर्म करना पड़ा। बुध/शनि की दशा में प्रथम कार्य किया।

बुध द्वितीयेश तथा पंचमेश है और शनि नवमेश तथा दशमेश है जो व्यवसाय को धन की आय से जोड़ता है। इसी दशा में पिता की मृत्यु तथा स्थान परिवर्तन और कार्य में अचानक बदलाव आया परंतु बुध की एकादश भाव पर दृष्टि होने से आर्थिक लाभ भी हुआ। 1947 तक स्थिति सामान्य चलती रही (शनि का प्रभाव), परंतु 1948 से केतु/चंद्र की दशा में फिल्मों में गायन से प्रसिद्धि प्रारंभ हो गई। केतु शुक्र की राशि में षष्ठ भाव में है और दशम भाव पर दृष्टि डाल रहा है। चंद्र तृतीय भाव (परिश्रम) में स्वगृही होकर नवम भाव (भाग्य) पर दृष्टि दे रहा है और नवमांश में एकादशेश है जहां शुक्र बैठा है।

फरवरी 1953 से शुक्र की बीस वर्षीय दशा आरंभ हुई। शुक्र चतुर्थ भाव में दिग्बली होकर दशम भाव (कार्य) पर दृष्टि दे रहा है। इस अवधि में जातक को अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए (1958 शुक्र/चंद्र, 1962 शुक्र/राहु, 1965 शुक्र/बृहस्पति, 1969 शुक्र/बुध)। 1969 में उन्हें पद्मभूषण से भूषित किया गया। उस समय गोचर में शनि एकादश भाव पर तथा बृहस्पति पंचम भाव पर था। 1974 में सूर्य/राहु की दशा में उनका नाम गिनीज बुक में आया, उस समय गोचर में शनि द्वितीय भाव पर तथा बृहस्पति दशम भाव पर था। मंगल की दशा में भी उन्हें बहुत पुरस्कार मिले (1989 में मंगल/मंगल, 1993 में मंगल/बुध, 1994 में मंगल/शुक्र)। इसके पश्चात् राहु की महादशा में पुरस्कारों का मिलना जारी रहा (1996 में राहु/राहु, 1998 राहु/राहु,)। 1999 में राहु/शनि की दशा में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। उस समय शनि का गोचर मेष पर स्थित राहु पर था और बृहस्पति एकादश भाव में था। 2001 में राहु/शनि की दशा में उन्हें भारतरत्न से सम्मानित किया गया।

उस समय लग्न पर बृहस्पति तथा शनि का दोहरा गोचर था। राहु द्वादश भाव में मेष राशि पर है और नक्षत्रेश शुक्र है। दशमांश में राहु लग्न में मंगल के साथ तुला राशि (स्वामी शुक्र) में है। मंगल की महादशा से इनके सुर में आयु का प्रभाव आ गया। मंगल षष्ठ भाव में राहु/केतु अक्ष पर है। उदाहरण-2 जातक का जन्म कन्या लग्न में हुआ। जन्म महादशा राहु की है। लग्न नक्षत्रेश सूर्य है जो पंचम भाव में मकर राशि में है और उस पर अष्टम भावस्थ नीच शनि की दृष्टि है। लग्नेश बुध षष्ठ भाव में शनि की राशि कुंभ में स्थित है। यदि सूर्य लग्न और चंद्र लग्न देखें तो इनपर भी अष्टम भावस्थ शनि की दृष्टि है जो नीच है परंतु बृहस्पति के साथ युति में है। बुध का नक्षत्रेश मंगल है, जो दशम भाव में जल प्रतिनिधि चंद्र के साथ, वक्री होकर, युति में है। दशम भाव पर शनि की दृष्टि है। शनि का नक्षत्रेश शुक्र है जिसका नक्षत्रेश चंद्र है जो दशम भाव में मंगल के साथ स्थित है। दशमेश बुध है जो लग्नेश भी है।

दभाव पर मंगल तथा चंद्र के प्रभाव ने इन्हें नौसैनिक का पद दिया जो 1912-1920 तक रहा। उस समय दशा काल शनि/शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल रहा। षष्ठेश शनि, मंगल, दशमस्थ चंद्र, दशमेश तथा लग्नेश बुध तथा मंगल के प्रभाव ने उन्हें यह कार्य दिया। द्वितीय भाव पर शनि तथा बृहस्पति की दृष्टि है और द्वितीयेश शुक्र सूर्य के साथ पंचम भाव में स्थित है। शुक्र तथा सूर्य चंद्र के नक्षत्र में हैं जो दशम भाव में तृतीयेश व अष्टमेश मंगल के साथ स्थित है। पंचमेश शनि बृहस्पति के साथ अष्टम भाव में होकर दशम, द्वितीय तथा पंचम भाव को देख रहा है। अतः उन्होंने राजनीति, इतिहास तथा कानून की शिक्षा ली और शिक्षा तथा जन्म दशमेश राहु का संबंध कर्म भाव से जुड़ा। राहु तृतीय भाव में है, वर्गोत्तम है, उसका राशीश मंगल दशम भाव में स्थित है और उसका नक्षत्रेश शनि है जो रहस्य तथा अचानक परिवर्तन वाले अष्टम भाव में स्थित है। शनि के बाद बुध की महादशा आई जो लग्नेश तथा दशमेश है।

बृहस्पति की द्वितीय भाव पर दृष्टि के कारण उनके राजनीतिक व्याख्यानों ने जनता को बहुत प्रभावित किया। उन्होंने 1932 में बुध/चंद्र की दशा में पहली बार राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता। बुध दशमेश तथा लग्नेश है और चंद्र एकादशेश होकर दशम भाव में स्थित है। नवांश में बुध भाग्येश होकर एकादश भाव में तथा चंद्र सप्तमेश होकर द्वितीय भाव में है। 1936 में बुध/राहु की दशा में दूसरी बार देश के राष्ट्रपति चुने गए। राहु पुरुषार्थ भाव में वर्गोत्तम है और बुध से दशम भाव में स्थित है। राहु का राशीश मंगल दशम भाव में लग्नेश बुध की राशि में एकादशेश चंद्र से युति में है।

नवांश में राहु एकादश भाव में एकादशेश मंगल, भाग्येश बुध और पराक्रमेश बृहस्पति के साथ युति में है और पंचम भाव से स्वराशीश शुक्र से दृष्ट है। 1940 में बुध/शनि/चंद्र की दशा में तीसरी बार देश के राष्ट्रपति का चुनाव जीते। शनि पंचमेश तथा षष्ठेश हेकर अष्टम भाव में नीच है तथा दशम और पंचम भावों पर दृष्टि डाल रहा है। चंद्र दशम भाव में मंगल के साथ युति में है और मंगल बुध का नक्षत्रेश है। नवांश में शनि अष्टम भावस्थ होकर दशम भाव पर दृष्टि दे रहा है। दशमेश शुक्र स्वराशि में पंचम भाव में स्थित है और एकादश भाव से मंगल, बुध, बृहस्पति तथा राहु से दृष्ट है। 1944 में केतु/चंद्र की दशा में चैथी बार देश के राष्ट्रपति चुने गए। केतु नवम भाव में स्थित है और शुक्र के नक्षत्र में है। नवांश में केतु शुक्र के साथ, शुक्र की राशि में पूर्व पुण्य भाव में स्थित होकर मंगल, बुध, बृहस्पति तथा शनि से दृष्ट है। जातक को उचित समय पर दशमेश की दशा प्राप्त हुई अतः सफलता मिलती गई। उदाहरण-3 जातक का जन्म कुंभ लग्न का है जो राहु/केतु के अक्ष पर है।

जन्म नक्षत्रेश मंगल है और जन्म दशानाथ भी मंगल ही है जो भाग्य भाव में वक्री है। मंगल तृतीयेश व दशमेश है, अतः परिश्रम से भाग्य बनेगा। लग्नेश शनि वक्री होकर अष्टम भाव में षष्ठेश चंद्र के साथ है जिन पर अष्टमेश नीच बुध की द्वितीय भाव से दृष्टि है। शनि का नक्षत्रेश चंद्र है। अष्टम भाव में वक्री शनि की चंद्र से युति, बुध की राशि में नीच बुध से दृष्ट और चंद्र का नक्षत्र में होना यह सारा योग मस्तिष्क की अस्थिरता का द्योतक है, परंतु बुध वर्गोत्तम है। बुध 2/8 अक्ष पर है, अतः वाणी, धन तथा व्यापार-उद्यम में छोटापन रहना चाहिए। दशमेश मंगल नवम भाव में है तथा नवमेश शुक्र तृतीय भाव में उच्च सूर्य और बृहस्पति के साथ युति में है। मंगल-शुक्र में राशि परिवर्तन तथा समसप्तक भाव दृष्टि है अतः परिश्रम करने पर भाग्य साथ देगा है।


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षष्ठेश चंद्र और द्वादशेश शनि अष्टम भाव में स्थित होकर विपरीत राजयोग बना रहे हैं। मंगल, बुध और शनि के प्रभाव ने जातक को अर्किटेक्ट बनाया और शनि/शनि/शनि की दशा में आर्किटेक्ट के रूप में 1990 में नौकरी आरंभ की। शनि की दृष्टि अष्टम भाव से दशम तथा द्वितीय भाव पर है और दशमेश व द्वितीयेश क्रमशः मंगल तथा बृहस्पति हैं। भाग्येश शुक्र, जो मंगल का राशीश है, योगकारक है। नवांश में भी शनि अष्टम भाव में शुक्र की राशि में है और इसकी दृष्टि पंचम भाव पर शनि की राशि में स्थित मंगल पर है। नवांश में शनि योगकारक है। यह सारी ग्रह स्थिति नौकरी में लाभ दर्शा रही है। 1991 में शनि/शनि/बुध की दशा में जातक ने अन्य कार्य, शेयर तथा जमीन-जायदाद का कारोबार, आरंभ किया। बुध पंचमेश तथा अष्टमेश है और धन भाव में बृहस्पति की राशि में स्थित होकर शनि तथा चंद्र से अष्टम भाव से दृष्ट है अतः झुकाव स्पेकुलेटिव कार्यों की ओर हुआ।

मस्तिष्क शनि/शनि/मंगल की दशा में 1992 में परिपक्व हुआ। मंगल तृतीयेश और दशमेश होकर नवम भाव में है अतः कोई बड़ा परिवर्तन होने की संभावना थी। यदि दशम भाव से षष्ठ, अष्ट और द्वादश भावों को देखें तो इनके स्वामियों मंगल और बुध में परस्पर संबंध है। अतः परिवर्तन इंगित होता है। 1993 में शनि/शनि/बृहस्पति की दशा में नौकरी छोड़ दी। शनि की दृष्टि द्वितीय भाव में बुध पर है और द्वितीयेश बृहस्पति (धनकारक) तृतीय भाव में उच्च सूर्य के साथ युति में है। सूर्य और शनि का धन कारक बृहस्पति पर अलगाववादी प्रभाव होने के कारण नौकरी छोड़ी और शेयरों के दलाल के रूप में कार्य किया। 1996 में शनि/केतु की दशा में हानि आरंभ हुई और शनि/शुक्र की दशा में जातक ने अपना सब कुछ गंवा दिया।

केतु स्वयं अपने नक्षत्र में होकर सप्तम भाव में है जो महादशानाथ शनि से द्वादश (व्यय) भाव में स्थित होकर लग्न को देख रहा है। नवांश में केतु शनि के साथ अष्टम भाव में शुक्र की राशि में है और द्वितीय भाव पर दृष्टि डाल रहा है। शुक्र केतु के नक्षत्र में है। शनि और शुक्र एक से प्रभाव में हैं। शनि लग्नेश है तो शुक्र नवमेश है। शनि पर बुध और चंद्र का प्रभाव है तो शुक्र पर सूर्य, बृहस्पति तथा मंगल का। नवांश में शुक्र लग्नेश है तो शनि पंचमेश है। शनि पर मंगल, सूर्य, राहु और केतु का प्रभाव है तो शुक्र पर केतु युक्त शनि का प्रभाव है। शुक्र जन्म कुंडली में योगकारक है तो शनि नवांश कुंडली में योगकारक है। अतः उत्तर कालामृत के अनुसार शनि/शुक्र की दशा में भिक्षुक हो जाना चाहिए। शनि/चंद्र की दशा में जातक की स्थिति में सुधार आया और शनि/मंगल की दशा में पुनः उन्नति होनी आरंभ हो गई। चंद्र षष्ठेश होकर अष्टम भाव में शनि के साथ है, विपरीत राजयोग प्रभाव दे रहा है।

मंगल तृतीयेश तथा दशमेश होकर भाग्य भाव में है और सूर्य, बृहस्पति तथा शुक्र से समसप्तक है। बृहस्पति धनेश तथा धन कारक है और लाभेश है। नवांश में मंगल द्वितीयेश व सप्तमेश है और पंचम भाव में शनि की राशि में स्थित होकर अष्टम भावस्थ शनि से तथा भाग्य भाव से बृहस्पति से दृष्ट है। उदाहरण-4 जातक का जन्म मेष लग्न में शुक्र के नक्षत्र में हुआ। लग्न पर भाग्येश बृहस्पति की दृष्टि है। लग्नेश मंगल अष्टमेश होकर अष्टम भाव में सूर्य व शनि के साथ स्थित है और बृहस्पति के नक्षत्र में है। चंद्र लग्नेश बुध भाग्य भाव में बृहस्पति की राशि और शुक्र के नक्षत्र में है। सूर्य लग्नेश मंगल है। अतः तीनों लग्न बृहस्पति एवं शुक्र दोनों गुरुओं के प्रभाव में हंै, अतः जातक बुद्धि व सदवृत्ति से युक्त है।

दशम भाव पर अष्टम भाव से शनि की दृष्टि है जो स्वयं दशमेश व एकादशेश है और नवमेश बुध के नक्षत्र में है। दशमेश शनि की अष्टम भाव में लग्नेश व अष्टमेश मंगल तथा पंचमेश सूर्य से युति है। दशमेश का बुध के नक्षत्र में होने तथा पंचम, नवम, दशम व एकादश भाव का संबंध होने से व्यापार की संभावना बन रही है। लग्न नक्षत्रेश तथा दशमेश नक्षत्रेश शुक्र है जो दशम भाव में स्थित है अतः कपड़े का व्यापार किया। 1978 में एम.एससी. की शिक्षा छोड़ मंगल/सूर्य की दशा में कपड़े के व्यवसाय में लग गए। मंगल लग्नेश है, सूर्य शुक्र के नक्षत्र में तथा पंचमेश है और दोनों अष्टम भाव में स्थित हंै। अष्टम भाव विरासत देने वाला है। 1982 में राहु/बृहस्पति की दशा में कपड़े पर छपाई का कारखाना शुरू किया। राहु तथा बृहस्पति दोनों सप्तम भाव में शुक्र की राशि में हंै और शुक्र दशम भाव में शनि की राशि में है।

बृहस्पति मंगल के नक्षत्र में है। मंगल, बृहस्पति और शनि के संयुक्त प्रभाव ने कारखाने का शुभारंभ कराया। शनि दशमेश तथा एकादशेश है और मंगल लग्नेश है। इस कार्य में जातक ने बहुत लाभ कमाया। 1991-1992 में राहु/शुक्र की दशा में सिले कपड़ों का निर्यात भी शुरू कर दिया। राहु बृहस्पति के साथ सप्तम भाव में शुक्र की राशि में है और बृहस्पति द्वादशेश है। शुक्र दशम भाव में शनि की राशि में है जो लाभेश भी है। शुक्र का नक्षत्रेश चंद्र है जिसकी द्वादश भाव पर दृष्टि है, अतः विदेश से जुड़ा व्यवसाय किया। नवांश में शुक्र लग्नेश होकर सप्तम भाव में है; राहु शनि के साथ पंचम भाव में युति में है और शनि का नक्षत्रेश बुध द्वादश भाव में स्वराशिस्थ है। 1994 में राहु/सूर्य/शनि दशा में बंटवारा हुआ और धर से अलग हो गए। राहु, सूर्य और शनि तीनों अलगाववादी ग्रह हैं।

राहु सप्तम (व्यापार) भाव में और सूर्य तथा शनि अष्टम भाव में मंगल के साथ हैं। चतुर्थेश चंद्र राहु से द्वादश भाव में है। 2000 में बृहस्पति/शनि/शुक्र की दशा में विदेश से आयात की गई मशीनों से लेस व कढ़ाई की फैक्टरी आरंभ की। बृहस्पति सप्तम भाव में शुक्र की राशि में है और द्वादशेश है। शनि दशमेश व एकादशेश है। शुक्र द्वितीयेश व सप्तमेश होकर दशम भाव में शनि की राशि में है। नवांश में शुक्र लग्नेश है जहां बृहस्पति स्थित है। बृहस्पति का नक्षत्रेश मंगल और शुक्र का नक्षत्रेश चंद्र है, ये विदेशी मशीनों का उपयोग दर्शा रहे हैं। 2002 -2003 में लाभ और हानि दोनों हुए। बृहस्पति/बुध/चंद्र दशा में हानि हुई। चंद्र षष्ठ भाव में है, विदेश से कुछ मशीनों के मिलने में देरी के कारण कार्य कम हो पाया। बृहस्पति/बुध/राहु की दशा में आर्थिक स्थिति थोड़ी खराब रही। राहु सप्तम भाव में बृहस्पति को पीड़ित कर रहा है।

2004 में बृहस्पति/बृहस्पति/केतु की दशा में एक और कारखाना शुरू किया। बृहस्पति सप्तम भाव में शुक्र की राशि में है और नवांश में वर्गोत्तम होकर लग्न में है। केतु लग्न में है और नवांश में एकादश भाव में है। केतु का नक्षत्रेश शुक्र है। इसके अतिरिक्त वर्तमान में शुक्र की प्रत्यंतर दशा है, 2007 तक पुनः कुछ अच्छे लाभ के संकेत हैं । इस कुंडली के अध्ययन से ज्ञात हुआ कि जातक को उचित समय पर लाभकारी दशाएं प्राप्त होती रहीं और वह उन्नति करता चला गया यद्यपि उसे पर्याप्त परिश्रम करना पड़ा। उदाहरण-5 जातक का जन्म कर्क लग्न में शुक्र/सूर्य की दशा में हुआ है। लग्न का नक्षत्रेश बुध है।

लग्न पर जन्म दशमेश शुक्र की दृष्टि है। शुक्र चंद्र के नक्षत्र में है जो शुक्र से द्वादश षष्ठ भाव में है और लग्नेश है। लग्नेश चंद्र पर अष्टमेश शनि की अष्टम भाव से दृष्टि है। चंद्र शुक्र के नक्षत्र में है। चंद्र लग्नेश तथा सूर्य लग्नेश बृहस्पति है जो लाभ भाव में शुक्र की राशि में राहु के साथ है। बृहस्पति मंगल के नक्षत्र में है। दशमेश मंगल है जो पंचमेश भी है तथा भाग्य भाव में मीन राशि में सूर्य तथा बुध के साथ स्थित है। द्वितीय भाव पर अष्टम भावस्थ शनि की दृष्टि है और द्वितीयेश सूर्य भाग्य भाव में बुध और मंगल के साथ स्थित है।

मंगल तथा बुध दोनों शनि के नक्षत्र में हैं। चंद्र/शनि की दशा में जातक को अप्रत्याशित लाभ मिला। चंद्र लग्नेश है और बृहस्पति की राशि में है जो लाभेश है। बृहस्पति की दृष्टि पंचम तथा सप्तम भावों पर है। शनि की प्रत्यंतर दशा में जातक ने 1991 में एम.बी.ए. पास कर शिक्षा से जुड़ी नौकरी प्राप्त की। शनि लग्नेश चंद्र की महादशा में लाभ दे रहा है क्योंकि उसकी दृष्टि धन तथा शिक्षा भाव पर है। मई 1992 में सूर्य की प्रत्यंतर दशा में उच्च नौकरी अच्छे पद के साथ मिली।

सूर्य द्वितीयेश होकर भाग्य भाव में धनकारक बृहस्पति तथा योगकारक दशमेश मंगल के साथ स्थित है। परंतु इस नौकरी के लिए जातक को घर से अलग जाना पड़ा। चतुर्थेश शुक्र शनि की राशि में है जिस पर लाभ भाव से राहु की दृष्टि है। शनि, सूर्य, राहु के सम्मिलित प्रभाव से ऐसा हुआ। 1994 में चंद्र/ बुध/बृहस्पति की दशा में नौकरी में समस्याएं आने लगीं। बुध सूर्य से अस्त है और शनि के नक्षत्र में है जो अष्टम भाव में अष्टमेश है। इस अवधि में नौकरी तो नहीं गई परंतु वेतन नहीं मिला क्योंकि शनि की दृष्टि द्वितीय भाव पर है। चंद्र/केतु की दशा में 1994 के अंत में अन्य स्थान पर अच्छे वेतन से नौकरी मिली। केतु पंचम भाव में शनि से दृष्ट है अतः परिवर्तन हुआ। 1998 में मंगल/राहु/शुक्र की दशा में नौकरी छूट गई और कुछ मास तक कुछ कार्य नहीं रहा। मंगल नवम भाव में सूर्य से अस्त है। राहु की दृष्टि शुक्र पर है।

मंगल/बृहस्पति/शुक्र की दशा में पुनः अच्छा कार्य मिला। बृहस्पति भाग्येश है और शुक्र लाभेश है तथा सप्तम भाव में है। बृहस्पति लाभ भाव शुक्र की राशि में स्थित है। अप्रैल 2000 में मंगल/शनि/चंद्र की दशा में उन्नति हुई और दिल्ली में तबादला हो गया। मंगल योगकारक है, शनि की दृष्टि द्वितीय भाव पर है और चंद्र षष्ठ भाव से द्वादश भाव पर दृष्टि दे रहा है। अतः स्थिति परिवर्तन तथा लाभ वाली है।


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