ज्योतिष द्वारा शिक्षा व व्यवसाय चयन

ज्योतिष द्वारा शिक्षा व व्यवसाय चयन  

दयानंद शास्त्री
व्यूस : 10699 | अप्रैल 2010

प्रायः हम देखते हैं कि जिन व्यवसाय/पदों को प्राप्त करके भी हम छोड़ देते हैं या किसी अन्य व्यवसाय से जुड़ जाते हैं अथवा अनेक व्यवसाय एक साथ करने लग जाते हैं। इसका मुख्य कारण जातक की कुंडली में ग्रहों की स्थिति होती है। प्राचीन काल में षिक्षा का मुख्य उद्देष्य ज्ञान प्राप्ति होता था। विद्यार्थी किसी योग्य विद्वान के निर्देषन में विभिन्न प्रकार की षिक्षा ग्रहण करते थे। इसके अतिरिक्त उसे शस्त्र संचालन एवं विभिन्न कलाओं का प्रषिक्षण भी दिया जाता था। किंतु वर्तमान समय मंे यह सभी प्रषिक्षण लगभग गौण हो गये। षिक्षा की महत्ता बढ़ने व प्रतिस्पर्धात्मक युग में सजग रहते हुए बालक के बोलने व समझने लगते ही माता-पिता षिक्षा के बारे में चिंतित हो जाते हैं। कौन सा विषय पढ़ंे जिससे भविष्य सुखमय हो। कैरियर निर्माण हेतु:


जानिए आपकी कुंडली पर ग्रहों के गोचर की स्तिथि और उनका प्रभाव, अभी फ्यूचर पॉइंट के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यो से परामर्श करें।


- सर्वप्रथम जातक के बचपन से ही उसकी कुंडली विषय की पढ़ाई व कैरियर चयन में सहायक होती है।

- जातक की कुंडली से तय करना चाहिए कि वह नौकरी करेगा या व्यवसाय।

- जातक की 20 से 40 वर्ष की उम्र के बीच की ग्रह दषा का सूक्ष्म अध्ययन कर यह देखना चाहिए कि दषा किस प्रकार के कार्य क्षेत्र का संकेत दे रही है।

- आगामी गोचर या दषा कार्य क्षेत्र में तरक्की का संकेत दे रहा है या नहीं ? इसका भी विश्लेषण कर लेना चाहिए। षिक्षा में महत्वाकांक्षा: जन्म कुण्डली का नवम भाव धर्म त्रिकोण स्थान हैं जिसके स्वामी देव गुरु बृहस्पति हैं, यह भाव षिक्षा में महत्वाकांक्षा व उच्च षिक्षा तथा उच्च षिक्षा किस स्तर की होगी को दर्षाते हैं। यदि इसका संबंध पंचम भाव से हो जाए तो अच्छी षिक्षा तय करते हैं। षिक्षा का स्तर: जन्म कुंडली का पंचम भाव बुद्धि, ज्ञान, कल्पना, अतिन्द्रिय ज्ञान, रचनात्मक कार्य, यादाष्त व पूर्व जन्म के संचित कर्म को दर्षाता है। यह षिक्षा के संकाय का स्तर तय करता है। षिक्षा किस प्रकार होगी: जन्म कुंडली का चतुर्थ भाव मन का भाव है। यह इस बात का निर्धारण करता है कि आपकी मानसिक योग्यता किस प्रकार की षिक्षा में होगी। जब भी चतुर्थ भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में गया हो या नीच राषि, अस्त राषि, शत्रु राषि में बैठा हो व कारक ग्रह (चंद्रमा) पीड़ित हो तो षिक्षा में मन नहीं लगता है।

षिक्षा का उपयोग: जन्म कुुंडली का द्वितीय भाव वाणी, धन संचय, व्यक्ति की मानसिक स्थिति को व्यक्त करता है तथा यह दर्षाता है कि जो षिक्षा आपने ग्रहण की है वह आपके लिए उपयोगी है या नहीं। यदि इस भाव पर पाप ग्रह का प्रभाव हो तो व्यक्ति षिक्षा का उपयोग नहीं करता है। जातक को बचपन से किस विषय की पढाई करवानी चाहिए इस हेतु हम मुलतः निम्न चार पाठ्यक्रम (विषय) ले सकते हैं - गणित, जीव विज्ञान, कला और वाणिज्य। गणित: गणित के कारक ग्रह बुध का संबंध यदि जातक के लग्न, लग्नेष या लग्न नक्षत्र से होता है तो वह गणित में सफल होता है। यदि लग्न, लग्नेष या बुध बली एवं शुभ दृष्ट हो, तो उसके गणित में पारंगत होने की संभावना बढ़ जाती है। शनि एवं मंगल किसी भी प्रकार से संबंध बनाए तो जातक मषीनरी कार्य में दक्ष होता है। इसके अतिरिक्त मंगल और राहु की युति, दषमस्थ बुध एवं सूर्य पर बली मंगली की दृष्टि, बली शनि एवं राहु का संबंध, चंद्र व बुध का संबंध, दषमस्थ राहु एवं षष्ठस्थ यूरेनस आदि योग तकनीकी षिक्षा के कारक होते हैं। जीवविज्ञान: सूर्य का जल राषिस्थ होना, छठे एवं दषम भाव/भावेष के बीच संबंध, सूर्य एवं मंगल का संबंध आदि चिकित्सा क्षेत्र में पढ़ाई के कारक होते हैं। लग्न/लग्नेष एवं दषम/दषमेष का संबंध अष्विनी, मघा या मूल नक्षत्र से हो तो चिकित्सा क्षेत्र में सफलता मिलती है। कला: पंचम/पंचमेष एवं कारक गुरु का पीड़ित होना कला के क्षेत्र में पढाई का कारक होता है। इन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पढ़ाई पूरी करवाने में सक्षम होती है।

पापी ग्रहों की दृष्टि-युति संबंध कला के क्षेत्र में पढ़ाई में अवरोध उत्पन्न करता है। लग्न व दषम का शनि व राहु से संबंध राजनीतिक क्षेत्र में सफलता देता है। 10 वें भाव का संबंध सूर्य, मंगल, गुरु या शुक्र से हो तो जातक जज बनता है। वाणिज्य: लग्न/लग्नेष का संबंध बुध के साथ-साथ गुरु से भी हो तो जातक वाणिज्य की पढ़ाई सफलतापूर्वक करता है।

अच्छी शैक्षणिक योग्यता के महत्वपूर्ण योग:

- द्वितीयेष या बृहस्पति केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो।

- पंचम भाव में बुध की स्थिति अथवा दृष्टि या बृहस्पति और शुक्र की युति हो।

- पंचमेष की पंचम भाव में बृहस्पति या शुक्र के साथ युति हो।

- बृहस्पति, शुक्र और बुध में से कोई केंद्र या त्रिकोण में हो। शैक्षणिक योग्यता का अभाव या न्यूनता:

- पंचम भाव में शनि की स्थिति और उसकी लग्नेष पर दृष्टि हो।

- पंचम भाव पर अषुभ ग्रहों की दृष्टि या अषुभ ग्रहों की स्थिति हो।

- पंचमेष नीच राषि में हो और अषुभ ग्रहों से दृष्ट हो। ग्रहों से संबंधित शिक्षा का विवरण सूर्य: चिकित्सा, शरीर विज्ञान, प्राणीषास्त्र, नेत्र-चिकित्सा, राजभाषा, प्रषासन, राजनीति, जीव विज्ञान। चंद्र: नर्सिंग, नाविक षिक्षा, वनस्पति विज्ञान, जंतु विज्ञान (जूलोजी), होटल प्रबंधन, काव्य, पत्रकारिता, पर्यटन, डेयरी विज्ञान।

मंगल: भूविज्ञान, फौजदारी, कानून, इतिहास, पुलिस संबंधी प्रषिक्षण, ओवरसीज़ प्रषिक्षण, सर्वे अभियांत्रिकी, वायुयान षिक्षा, शल्य चिकित्सा, विज्ञान, ड्राइविंग, टेलरिंग या अन्य तकनीकी षिक्षा, खेल कूद संबंधी प्रषिक्षण, सैनिक षिक्षा, दंत चिकित्सा। गुरु: बीजगणित, द्वितीय भाषा, आरोग्य षास्त्र, विविध, अर्थषास्त्र, दर्षन, मनोविज्ञान, धार्मिक या आध्यात्मिक षिक्षा। बुध: गणित, ज्योतिष, व्याकरण, शासन की विभागीय परीक्षाएं, पदार्थ विज्ञान, मानसषास्त्र, हस्तरेखा , शब्दषास्त्र (भाषा विज्ञान), टाइपिंग, तत्व ज्ञान, पुस्तकालय विज्ञान, लेखा, वाणिज्य, षिक्षक प्रषिक्षण। शुक्र: ललितकला (संगीत, नृत्य, अभिनय, चित्रकला आदि), फिल्म, टी.वी., वेषभूषा, फैषन डिजायनिंग, काव्य साहित्य एवं अन्य विविध कलाएं।

शनि: भूगर्भषास्त्र, सर्वेक्षण, अभियांत्रिकी, औद्योगिकी, यांत्रिकी, भवन निर्माण, मुद्रण कला (प्रिंटिंग)। राहु: तर्कषास्त्र, हिप्नोटिज्म, मेस्मेरिज्म, करतब के खेल (जादू, सर्कस आदि), भूत-प्रेत संबंधी ज्ञान, विष चिकित्सा, एन्टी बायोटिक्स, इलेक्ट्रोनिक्स। केतु: गुप्त विद्याएं, मंत्र-तंत्र संबंधी ज्ञान। वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति के कारण व्यवसायों एवं शैक्षणिक विषयों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है। अतः ज्योतिष सिद्धांतों के आधार पर ग्रहों के पारस्परिक संबंधों को ध्यान में रखते हुए विचार किया जा सकता है।

इंजीनियरिंग षिक्षा के कुछ योग

- जन्म, नवांष या चंद्र लग्न से मंगल चतुर्थ स्थान में हो या चतुर्थेष मंगल की राषि में स्थित हो।

- मंगल की चर्तुथ भाव या चतुर्थेष पर दृष्टि हो अथवा चतुर्थेष के साथ युति हो।

- मंगल और बुध का पारस्परिक परिवर्तन योग हो अर्थात मंगल बुध की राषि में हो व बुध मंगल की राषि में हो। चिकित्सक षिक्षा के कुछ योग - जैमिनि सूत्र के अनुसार चिकित्सा से संबंधित कार्यों में बुध और शुक्र का विषेष महत्व हैं। ’’षुक्रन्दौ शुक्रदृष्टो रसवादी (1/2/86)’’ यदि कारकांष में चंद्र हो और उस पर शुक्र की दृष्टि हो तो रसायनषास्त्र को जानने वाला होता है। बुध दृष्टे भिषक ’’ (1/2/87) यदि कारकांष में चंद्र हो और उस पर बुध की दृष्टि हो तो वैद्य होता है।

- जातक परिजात (अ.15/44) के अनुसार यदि लग्न या चंद्र से दषम स्थान का स्वामी सूर्य के नवांष में हो तो जातक औषधि या दवा से धन कमाता है। (अ.15/58) के अनुसार यदि चंद्र से दषम में शुक्र-शनि हो तो वैद्य होता है।

- वृहज्जातक (अ.10/2) के अनुसार लग्न, चंद्र और सूर्य से दषम स्थान का स्वामी जिस नवांष में हो उसका स्वामी सूर्य हो तो जातक को औषधि से धन प्राप्ति होती है। उत्तर कालामृत (अ. 5 लो. 6 व 18) से भी इसकी पुष्टि होती है।

- फलदीपिका (5/2) के अनुसार सूर्य औषधि या औषधि संबंधी कार्यों से आजीविका का सूचक है। यदि दषम भाव में हो तो जातक लक्ष्मीवान, बुद्धिमान और यषस्वी होता है (8/4) ज्योतिष के आधुनिक ग्रंथों में अधिकांष ने चिकित्सा को सूर्य के अधिकार क्षेत्र में माना है और अन्य ग्रहों के योग से चिकित्सा, षिक्षा अथवा व्यवसाय के ग्रह योग इस प्रकार बतलाए हैं - सूर्य $ गुरु = फिजीषियन सूर्य $ बुध = परामर्ष देने वाला फिजीषियन सूर्य $ मंगल = फिजीषियन सूर्य $ शुक्र $ गुरु = मेटेर्निटी सूर्य $ शुक्र $ मंगल $ शनि = वेनेरल सूर्य $ शनि = हड्डी/दांत सम्बन्धी सूर्य $ शुक्र $ बुध = कान, नाक, गला सूर्य $ शुक्र $ राहु $ यूरेनस = एक्सरे सूर्य $ युरेनस = शोध चिकित्सा सूर्य $ चंद्र $ बुध = उदर चिकित्सा, पाचन तंत्र सूर्य $ चंद्र $ गुरु = हर्निया , एपेण्डिक्स सूर्य $ शनि (चतुर्थ कारक) = टी. बी., अस्थमा सूर्य $ शनि (पंचम कारक) = फिजीषियन न्यायाधीष के कुछ योग - यदि जन्मकुंडली के किसी भाव में बुध-गुरु अथवा राहु-बुध की युति हो।

- यदि गुरु, शुक्र एवं धनेष तीनों अपने मूल त्रिकोण अथवा उच्च राषि में केंद्रस्थ अथवा त्रिकोणस्थ हो तथा सूर्य मंगल द्वारा दृष्ट हो तो जातक न्यायषास्त्र का ज्ञाता होता है।

- यदि गुरु पंचमेष अथवा स्वराषि का हो और शनि व बुध द्वारा दृष्ट हो।

- यदि लग्न, द्वितीय, तृतीय, नवम्, एकादष अथवा केंद्र में वृष्चिक अथवा मकर राषि का शनि हो अथवा नवम भाव पर गुरु-चंद्र की परस्पर दृष्टि हो।

- यदि शनि से सप्तम में गुरु हो।

- यदि सूर्य आत्मकारक ग्रह के साथ राषि अथवा नवमांष में हो।

- यदि सप्तमेष नवम भाव में हो तथा नवमेष सप्तम भाव में हो।

- यदि तृतीयेष, षष्ठेष, गुरु तथा दषम भाव - ये चारों बलवान हो। षिक्षक के कुछ योग: - यदि चंद्र लग्न एवं जन्म लग्न से पंचमेष बुध, गुरु तथा शुक्र के साथ लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम अथवा दषम भाव में स्थित हो।

- यदि चतुर्थेष चतुर्थ भाव में हो अथवा चतुर्थ भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो अथवा चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह स्थित हो।

- यदि पंचमेष स्वगृही, मित्रगृही, उच्च राषिस्थ अथवा बली होकर चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम अथवा दषम भाव में स्थित हो और दषमेष का एकादषेष से संबंध हो।


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- यदि पंचम भाव में सूर्य-मंगल की युति हो अथवा राहु, शनि, शुक्र में से कोई ग्रह पंचम भाव में बैठा हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि भी हो तो जातक अंग्रेजी भाषा का विद्वान अथवा अध्यापक होता है।

- यदि पंचमेष बुध, शुक्र से युक्त अथवा दृष्ट हो अथवा पंचमेष जिस भाव में हो उस भाव के स्वामी पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो अथवा उसके दोनों ओर शुभ ग्रह बैठे हो।

- यदि बुध पंचम भाव में अपनी स्वराषि अथवा उच्च राषि में स्थित हो।

- यदि द्वितीय भाव में गुरु या उच्चस्थ सूर्य, बुध अथवा शनि हो तो जातक विद्वान एवं सुवक्ता होता है।

- यदि बृहस्पति ग्रह चंद्र, बुध अथवा शुक्र के साथ शुभ स्थान में स्थित होकर पंचम एवं दषम भाव से संबंधित हो।

- सूर्य, चंद्र और लग्न मिथुन, कन्या या धन राषि में हो व नवम तथा पंचम भाव शुभ व बली ग्रहों से युक्त हो।

- ज्योतिष शास्त्रीय ग्रंथों में सरस्वती योग शारदा योग, कलानिधि योग, चामर योग, भास्कर योग, मत्स्य योग आदि विषिष्ट योगों का उल्लेख है। अगर जातक की कुंडली में इनमंे से कोई योग हो तो वह विद्वान, अनेक शास्त्रों का ज्ञाता, यषस्वी एवं धनी होता है। निम्नलिखित ग्रह योगों वाले जातक को व्यापार या उद्योग सफलता अथवा धन प्राप्ति होती है - अगर एकादषेष द्वितीय भाव में द्वितीयेष के साथ हो या द्वितीयेष एकादष भाव में एकादषेष के साथ स्थित हो या द्वितीयेष और एकादषेष का पारस्परिक परिवर्तन योग या एक पर दूसरे की शुभ दृष्टि हो।

- उपरोक्त प्रकार से दषमेष और एकादषेष या सप्तमेष और एकादषेष या सप्तमेष और दषमेष या द्वितीयेष और सप्तमेष का संबंध हो।

- यदि बुध सप्तम अथवा दषम भाव में उच्च अथवा स्वराषि में स्थित हो।

- यदि चतुर्थेष मंगल के साथ हो या दोनों एक-दूसरे को देखते हो।

- बुध सप्तम भाव में हो और सप्तमेष द्वितीय भाव में हो या द्वितीयेष बुध के साथ सप्तम भाव में या सप्तमेष बुध के साथ द्वितीय भाव में हो।

- यदि बुध और शुक्र की द्वितीय या सप्तम भाव में युति हो।

- द्वितीयेष पर बुध की पूर्ण दृष्टि हो।

- यदि द्वितीय, सप्तम, दषम और एकादष भाव के स्वामियों का पारस्परिक शुभ संबंध हो और वे बुध और बृहस्पति से प्रभावित हो।

इसके अलावा प्राचीन ज्योतिष गं्रथों में अनेक धनदायक विषिष्ट योगों का उल्लेख है। जैसे गजकेषरी योग, संपत्ति योग, महाभाग्य योग, पुष्कल श्रीयोग, श्रीमुख योग, धन सुख योग, धनाध्यक्ष योग, वसुमति योग आदि। व्यापार या उद्योग करने वाले जातक की कुंडली में इनमें से कोई योग हो तो वे जातक को धनी बनाते हैं और व्यापार में सफलता के सूचक सिद्ध होते हैं। यदि जातक की कुंडली में नीच भंग राजयोग, विपरीत राजयोग, अधियोग अथवा अन्य कोई राजयोग हो तो वह जातक को धनी बनाने में सहायक होता है। जन्म नक्षत्र से करें व्यवसाय का निर्धारण

(1) अष्विनी: अष्व से संबंधित कार्य व्यवसाय, सेना में कार्य करने वाले चिकित्सक, सेवक, यात्रा संबंधित आयोजक, लघु उद्योग, तकनीकि विषेषज्ञ, भवन निर्माण करने वाले, कारीगर, सलाहकार, कमीषन पर कार्य करने वाले, पुलिस, अग्नि संबंधित कार्यों से आजीविका।

(2) भरणी - प्रसुति विषेषज्ञ, देह व्यापार, नर्सिंग होम, जल्लाद, पुलिस, कस्टम, रक्त परीक्षक, फोटोग्राफी, अग्नि षमन, केंद्र, अस्त्र-षस्त्र, क्रय-विक्रय, कोर्ट कचहरी में कार्य करने वाले, बागानों में कार्य।

(3) कृत्तिका - अग्नि संबंधित कार्य, सुनार, लुहार, रेस्टोरेंट, ढाबा, आभूषण, क्रय-विक्रय करने वाले, षल्य चिकित्सक, तेज धारदार हथियार के निर्माता एवं विक्रेता, ब्यूटी पार्लर, काॅस्मेटिक्स, सर्जरी, होटल, खनन कार्य, यज्ञादि कार्य, सेना में उच्च पद, पुलिस अधिकारी एवं ईंधन के व्यापार से आजीविका।

(4) रोहिणी - सौंदर्य विषेषज्ञ, ब्यूटी पार्लर, जलीय वस्तुओं से संबंधित कार्य, फिल्म उद्योग, नृत्य एवं संगीत, भजन गायक, राज्याधिकारी, गुप्तरोग विषेषज्ञ, पर्यटन व्यवसाय से संबद्ध, फैषन संबंघी साजो सामान के निर्माता एवं विक्रेता, कठोर परिश्रमी, रत्न विक्रेता व सलाहकार, कम्पयुटर कर्मी, मोबाइल कंपनियों में कार्यरत, जल सेना, दूध, दही, घी के व्यापार से संबद्ध, बैंक कर्मचारी या सौंदर्य प्रतियोगिताओं के आयोजन से आजीविका।

(5) मृगषिरा - संगीतकार, गायक, संदेषवाहक, रत्नों का व्यवसाय करने वाले, डिजाइनर, इत्र, खुष्बू संबंधित सामग्रियों के विक्रेता, षराब विक्रेता, वास्तुषास्त्री, कारीगर, फल फूल बेचने वाले, ज्योतिषी, भौतिक विज्ञानी, समालोचक, विज्ञापन का कार्य।

(6) आद्र्रा - तंत्र मंत्र विषेषज्ञ, वषीकरण कर्ता, गणितज्ञ, कूटनीतिज्ञ, कंप्यूटर, लेखा जोखा कार्य, मनोरोग विषेषज्ञ, कठोर वाणी से कार्य साधक, अनैतिक कार्य, नषीली वस्तुओं का व्यापार, राजनीति, जीव अनुसंधान, गुप्तचर विभाग, चिकित्सक, ध्वनि विषेषज्ञ, संधि कराने वाले, शल्य चिकित्सा करने वाले, जूस विक्रेता, ड्राईक्लीनर्स आदि कार्यों से आजीविका।

(7) पुनर्वसु - वकील, जज, दस्तकार, व्यापारी, धार्मिक एवं आध्यात्मिक पुस्तकों का क्रय-विक्रय, लेखन, प्रकाषन, ज्योतिष कार्य, कर्मकांड, पूजा पाठ, अध्ययन, अध्यापन, मनोवैज्ञानिक, काॅलेज एवं विष्वविद्यालय में अध्यापन कार्य, प्रवचन, गीता भागवत कथाकार, समाचारपत्र, दूरसंचार, पत्रकारिता, मंदिर एवं धार्मिक संस्थान में कार्य।

(8) पुष्य - प्रषासनिक एवं राजनीतिक क्षेत्र से आजीविका पाने वाला, दूध एवं डेयरी व्यवसाय, भूगर्भीय तरल पदार्थ, डीजल पेट्रोल के विक्रेता, खाद्य एवं पेय पदार्थों के विक्रेता, बच्चों का लालन पालन करने वाले, पूजा पाठ, धर्म षिक्षक, साधु, रोजगार परामर्ष, मैरिज ब्यूरो, मछुआरे एवं गोताखोरी।

(9) आष्लेषा - तंत्र मंत्र, ज्योतिष का कार्य, लेखन, मनोवैज्ञानिक, व्यापार, षेयर मार्केट, फार्मासिस्ट, फोटो व्यवसायी, सपेरा, ठग, औषधीय पौधों की खेती करने वाला, धातु व्यवसायी, मोती विक्रेता, योग प्रषिक्षक, हास्य व्यंग्यकार, कार्टूनिस्ट या प्रकाषक का कार्य।

(10) मघा - शल्य चिकित्सक, यु़द्ध सामग्री विक्रयकत्र्ता, प्रोपर्टी का कार्य करने वाला, उच्च प्रषासनिक अधिकारी, मांस का व्यवसाय करने वाले, जादूगर, ज्योतिषी, अग्निषमन विभाग में रिसर्च स्काॅलर, कोयला विक्रेता, षिकारी, प्रसूति विषेषज्ञ, प्रबंधन कार्य एवं पुलिस अधिकारी।

(11) पूर्वाफाल्गुनी - गीतकार, संगीतकार, चित्रकार, रत्न आभूषण विक्रेता, साज सज्जा, डेकोरेषन कार्य करने वाले, वकील, अग्नि संबंधित कार्य, षहद, मुरब्बा बेचने वाले, प्राकृतिक चिकित्सक, माॅडलिंग फोटोग्राफी, सरकारी विभाग, आयकर अधिकारी, मनोरंजन कार्य।

(12) उत्तराफाल्गुनी - पूजा पाठ, यज्ञ कार्य, लेेखन, प्रकाषन, भाषण कार्य, ज्योतिष संबंधी लेखन, प्रकाषक, वास्तुषास्त्री, कर्मकांडी, भवन निर्माता, धन संबंधी आदान प्रदान, सूदखोरी, मनोरंजन, हास्य व्यंग्य कलाकार, वृक्षारोपण अभियान में कार्यरत, प्रबंधन कार्य, कम्प्युटर कार्य, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में कार्यरत, वैवाहिक संस्था के संचालक, न्यायाधीष, चार्टर्ड अकाउटेंट, नेतृत्व का कार्य।

(13) हस्त - वास्तुषास्त्री, धन का देन, चावल, सूखे मेवों का क्रय विक्रय, षिल्पकार, वेदपाठी, चित्रकारिता, लघु उद्योग, षेयर बाजार, कम्प्युटर अकाउन्टेंट, टाइप कार्य, ज्योतिष, सामुद्रिक शास्त्रवेत्ता, फूलों का उत्पादन करने वाले, हास्य व्यंग्य कलाकार, दूर संचार विभाग में कार्य करने वाले, दस्तकार, मुद्रक, प्रकाषक एवं वितरक का कार्य, लिपिक, आंतरिक सजावट का कार्य।

(14) चित्रा - मरम्मत का कार्य, कारीगरी, रत्न क्रय विक्रय, विषेषज्ञ, गणितज्ञ, अकाउटेंट का कार्य करने वाले, इलेक्ट्रिक वस्तुओं का निर्माण एवं विक्रय करने वाले, वस्त्र निर्माण, षल्य चिकित्सक, इत्र विक्रेता, सजावटी सामान का विक्रय, इंजीनियर, साॅफ्टवेयर विक्रेता, मनोरंजन करने वाले, कलात्मक वस्तुओं के विक्रय।

(15) स्वाति - वात रोग विषेषज्ञ, हवाई यात्रा प्रबंधक, यात्रा संबंधी कार्य, अंतरिक्ष वैज्ञानिक, पषु पक्षियांे का व्यवसाय, पषुओं की चतुराई एवं कलाबाजी व मनोरंजन करने वाले, सर्कस कलाकार, कृषि कार्य, तपस्वी, वस्तुओं का भंडारण, धन को छल कपट से प्राप्त करने के कार्य, अंतरिक्ष यान संबंधी रख रखाव।

(16) विषाखा - फल फूलों का क्रय विक्रय, लेखक, वस्त्र आभूषण का व्यवसाय, मध्यस्थता करना, नृत्य संगीत, राजनीति, सेना में कार्यषील, धर्म षिक्षक, सौंदर्य संबंधी कला का प्रषिक्षण देने वाले, खोजपरक कार्य, अध्यापन कार्य, श्रृंगार संबंधी कार्य, लेखन एवं वस्त्र उद्योग।

(17) अनुराधा - पाप कार्यों से आजीविका यथा चोरी, डकैती, अनैतिक कार्य, वास्तु शास्त्री, अंक शास्त्री, पत्थर पर नक्काषी, मैकेनिकल इंजीनियर, खनन संबंधित कार्य, भूगर्भ शास्त्री, भूत प्रेत विद्या, विदेषी व्यापार एवं लुहारी का कार्य।

(18) ज्येष्ठा - दूरदर्षन में प्रचारक, जूडो कराटे, नक्काषी, तर्कषक्ति के कार्य, खेल विभाग में कर्मचारी के रूप में, वस्त्राभूषण, सैनिक, पुलिस विभाग, भाषणबाजी, मध्यस्थ का कार्य।

(19) मूल - लेखन कार्य, संस्था प्रधान के रूप में, ज्योतिष संबंधी कार्य, कर्मकाण्ड, वैदिक विद्याओं के प्रचारक, गुप्तचर विभाग, सेना में धर्म षिक्षक, औषधि निर्माता, वनस्पति शास्त्र में उच्च उपाधि प्राप्त कर, इसके विकास में योगदान का अनुसंधान, ब्याज के कार्य, जड़ी बूटियों का व्यापार, नृत्यकला, फल फूलों का व्यापार, कृषि विभाग में कार्य।

(20) पूर्वाषाढ़ा - वषीकरण आदि कार्य करने वाले धर्म अध्यात्मिक ज्योतिष, पूजा पाठ का कार्य करने वाले, काव्य रचना, चित्रकार, व्यंग्यकार, पुल निर्माण, नाविक, जलीय पदार्थों का क्रय विक्रय, सुगंधित फूलों का व्यापार, टेंट हाउस, धन निवेषक, वस्त्र निर्माण, सौंदर्य विषेषज्ञ, मनोरंजन से संबंधित प्रषिक्षण, मैजिक फाउण्टेन वाले, नौसेना में कार्य, अभिनेत्रियों के वस्त्र आभूषण संबंधी, नौसेना में कार्य करने वाले, फिल्म निर्माण से संबंधित लेखन कार्य।

(21) उत्तराषाढा - कर्मकांड, ज्योतिष, उच्च शैक्षणिक अधिकारी, पुजारी, वानस्पतिक पदार्थों का क्रय विक्रय करने वाले, लकड़ी के सामान का निर्माण एवं विक्रय करने वाले, प्रषासनिक सेवा अधिकारी, खेल कूद से संबंधित कार्य, वाहन क्रय विक्रय, ड्राईवर, घुड़सवारी, घोड़ागाड़ी, हाथी पालन।

(22) श्रवण - सलाहकार, दवाई विक्रेता, अध्यापन, कथाकार, ठगी, रीडर, प्रधानाध्यापक, वेदषास्त्रों का अध्ययन, अध्यापन, धार्मिक कार्य, पेट्रोलियम पदार्थों का विक्रय, मनोरोग विषेषज्ञ, वषीकरण, अंतरिक्ष अनुसंधान, क्लब, भाषा सिखाने वाले, प्रषिक्षण, महाविद्यालय में कार्य।

(23) घनिष्ठा - मैकेनिकल इंजीनियर, भौतिक विज्ञान विभाग, कम्प्यूटर हार्डवेयर कार्य, वाद्य यंत्र निर्माता, सेक्सोलाॅजिस्ट, केष सज्जा, वाहन क्रय विक्रय, दवाईयां, अग्निषमन विभाग, ठगी, चोरी, लोगों की सेवा, सैनिक, फैषन सामग्री निर्माण कार्य, बिजली विभाग में कार्य करने वाले, इलेक्ट्रिक सामग्री क्रय विक्रय।

(24) शतभिषा - वायुयान चालक, अंतरिक्ष की सैर कराने वाले, अंतरिक्ष अनुसंधानरत, खगोल, ज्योतिष, फलित ज्योतिष, चिकित्सा, युरोलाॅजिस्ट, तकनीकी कार्य करने वाले, मादक पदार्थों का क्रय विक्रय करने वाले, जलीय जीव जंतुओं एवं पदार्थों का व्यवसाय करने वाले एवं शकुन शास्त्री।

(25) पूर्वाभाद्रपद - आलौकिक विद्याएं, ज्योतिष, मार्षल आर्ट, नीच कार्य, लोहा उद्योग, वस्त्र उद्योग, चर्म व्यापार, अध्यापन, हिप्नोटिज्म, मैस्मेरिज्म, कथाकार, मौसम की भविष्यवाणी करना एवं पषुपालन।


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(26) उत्तराभाद्रपद - धर्म गुरु, आघ्यात्मिक केंद्र, ज्योतिष, तंत्र मंत्र यंत्र, अघ्यापन, कर्मकाण्डी, याज्ञिक, सन्यासी, पाखंडी, पंचमेवा विक्रय, वास्तुशास्त्री, मार्षल आर्ट, ड्राईवर, लेखन, तकनीकी षिक्षक, प्राणायाम एवं योग गुरु।

(27) रेवती - हास्य, व्यंग्य, ज्योतिष, पुरोहित, आध्यात्मिक, यज्ञादि कार्य, फलित द्वारा भविष्य कथन, लेखक, प्रकाषक, पत्रकार, वकील, न्यायाधीष, सलाहकार, मनोरंजन, अध्यापन कार्य, वस्त्रोद्योग, रत्न विक्रय, नौकाचालन, मछूआरे, लेखा कार्य।



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