विवाह सुख बाधा

विवाह सुख बाधा  

रोकेश सोनी
व्यूस : 4777 | अप्रैल 2016

ैवाहिक सुख अर्थात् पति-पत्नी के सुख के ज्योतिषीय विचार हेतु प्रचलित पराशर ज्योतिष में सामान्यतया जन्मलग्न, चन्द्रलग्न या सूर्यलग्न में से बली लग्न से सप्तम भाव-भावेश एवं कारक शुक्र की स्थिति का विचार किया जाता है। उक्त की स्थिति-युति एवं बलाबल के आधार पर ही कोई निष्कर्ष लिया जाता है। विवाह इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसके सुखद वैवाहिक जीवन के लिये अच्छे से अच्छे जीवन साथी के चयन के लिये प्रयास किये जाते हैं।

पत्नी परिवार का वह सदस्य है जो माता-पिता-भाई और बहन की तरह प्राकृतिक रूप से हमसे जुड़ी हुई नहीं होती है बल्कि हमारे स्वयं अथवा अभिभावकों के द्वारा चुनी जाती है। चयन की प्रक्रिया जाति, धर्म, सामाजिक-परम्पराओं, व्यक्तिगत पसंद आदि अनेक बातों पर निर्भर करती है किन्तु सबके मूल में यह भावना होती है

कि दोनों के बीच एक ऐसा भावनात्मक संबंध रहे जो दोनों के जीवन को सार्थक और सुखी बनाये तथा आगे वंश वृद्धि भी करे। मानव जाति का सौभाग्य है कि अनेक सामाजिक परिवर्तनों के बावजूद आज भी यह संबंध, कहीं कम तो कहीं ज्यादा सफल हो जाता है।

लेकिन यह भी देखने में आता है कि कभी-कभी यह संबंध उंजतपउवदपंस कपेबवतक का ऐसा रूप ले लेता है कि बात मुकदमेबाजी-कोर्ट कचहरी से भी आगे बढ़कर सौदेबाजी, षड्यंत्र रचना, आत्महत्या और हत्या तक पहुँच जाती है। कहा जा सकता है कि यह सब पति-पत्नी या उनके परिवारजनों की विकृत सोच का परिणाम होता है।

ल्ेकिन आज जबकि पत्नी का चुनाव क्लासीफाइड विज्ञापन या इन्टरनेट के द्वारा होता है तब दोनों पक्षों की पारिवारिक पृष्ठभूमि-संस्कार आदि की जानकारी की विश्वसनीयता की कोई गारंटी नहीं रह जाती है। ज्योतिषियों के पास विवाह संबंधी समस्याओं को लेकर आने वाले लोगों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है।

उनके प्रश्नों के आध् ाार पर यह कहा जा सकता है कि समस्यायें प्रायः चार प्रकार की होती हैं:

1. विवाह विलम्ब से होना या बिल्कुल ही न होना,

2. वैवाहिक जीवन में तनाव एवं गृह-क्लेश,

3. विवाह.विच्छेद अथवा

4. हिंसा, किसी भी सीमा तक गृह-क्लेश, सम्बंध विच्छेद, हिंसा आदि की घटनायें पहले भी होती थीं


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परंतु उनका प्रतिशत बहुत कम था। ऐसी घटनायें न हों, इसके लिये ज्योतिष मनीषियों ने कुछ व्यवस्थायें भी दीं। वैदिक ज्योतिष में पत्नी के चयन के कुछ तथ्य बताये गये हैं जिनसे अच्छे संबंधों की गारंटी का दावा किया जाता है। इसे उन्होंने गुण मिलान का नाम दिया। दक्षिण भारत में गुण मिलान के 10 और उत्तर भारत में 8 तथ्य तय किये गये जो व्यक्ति के वैवाहिक जीवन से जुड़ी संभावित बातों यथा आचार-विचार, परस्पर प्रेम, संतान, जीवन के सुख.भोग आदि बातों से संबंधित हैं।

ऐसा देखने में आ रहा है कि परम्परागत मिलान के तय 36 अंकों में से 32-34 अंकों तक प्राप्त होने पर भी विवाह असफल हो रहे हैं। अतः कहा जा सकता है कि वर्तमान में मिलान का परम्परागत तरीका सफल नहीं है। विवाह या वैवाहिक सुख की दृष्टि से ऋषियों ने कुछ कारक या कमजमतउपदंदजे परिभाषित किये हैं और उनके मूल्यांकन के परिमाप भी। ये अपनी शुभाशुभ स्थिति के अनुसार ही विवाहसुख या कष्ट का संकेत देते हैं। वैवाहिक तनाव या विच्छेद के केसों में दो बातें बराबर देखने में आती हैं।

पहली यह कि किसी एक या दोनों के विवाह सुख का योग ही नहीं है अथवा स्पष्ट ही गृह-क्लेश के योग हैं। विवाह के पश्चात पति-पत्नी के मध्य परस्पर विचार न मिलने, सास का अपनी बहू से या बहू का अपनी सास से सामंजस्य न होने पर कलह आदि बातों से आरम्भ होने वाला मतभेद धीरे-धीरे पुलिस-मुकदमाबाजी तक पहँुचने लगता है। पति-पत्नी में परस्पर मारपीट, हत्या या आत्महत्या या इतर वैवाहिक संबंध् ाों या चरित्रहीनता के आरोप अथवा अन्य मानसिक परेशानियों के कारण भी वैवाहिक जीवन नरक समान हो जाता है।

कुछ केस ऐसे भी हैं जिनमें विवाह के अगले दिन ही विच्छेद का वातावरण आरम्भ हो गया। ऐसे केसेज में विवाह करने से पहले अच्छी तरह सोच-विचार कर लेना चाहिये-बेहतर है कि विवाह ही न किया जाय। दूसरी यह कि पति या पत्नी दोनों में से किसी एक अथवा दोनों की ही जन्मपत्रिका में मानसिक तनाव, कुंठा या मनोरोग के योग उपस्थित हैं। इन योगों की पहचान करने में ज्योतिष की बड़ी भारी भूमिका पायी गयी है।

यदि जन्मपत्रिका में उक्त योग पाये जाते हैं तो समय रहते उनकी चिकित्सा यानि कि मनोचिकित्सक से चिकित्सा करवा लेना चाहिये। ज्योतिषी के पास लोग संबंधों में कटुता आ जाने के उपरांत इस आशा से आते हैं कि कोई टोने-टोटके, झाड़-फूंक आदि करवाने से समस्या का समाधान हो जायेगा। यह समझना चाहिये कि ज्योतिष एक कपंहदवेजपब कपेबपचसपदम है

जीमतंचमनजपब नहीं। बचपन से ही इनकी पहचान करके चिकित्सकीय और ज्योतिषीय उपचारादि किये जा सकते हैं। पराशर मुनि ने भी कहा है कि जन्मकुंडली और अनुवांशिकी से उत्पन्न दोषों का निवारण उचित परिवेश, जिसमें उपयुक्त चिकित्सा भी सम्मिलित है, से हो सकता है। अच्छी शिक्षा, कांउसलिंग एवं मंत्र-मणि-औषधि इसमें सहायक हो सकते हैं।

विवाह एवं वैवाहिक जीवन के सुख अवरोध वाली अनेक कुंडलियों के अध्ययन के पश्चात इस बात का निष्कर्ष देखने में आया है कि इन कुंडलियों में भाव-भावेश एवं कारक तो निर्बल, पाप प्रभाव में एवं मलिन हंै ही परंतु कुछ विशेष ग्रहयोग भी इन कुंडलियों में उपस्थित हैं, जो वैवाहिक जीवन के सुखों का नाश कर रहे हैं। वैसे भी ऐसा देखने में बराबर आ रहा है कि जन्मपत्रिका में उपस्थित योग विशेष अपना फल अवष्य प्रदान करते हैं।


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कुछ योग में से एकाधिक योग भी यदि जन्मपत्रिका में मिलते हैं तो ऐसे जातकों को अपने वैवाहिक जीवन और वैवाहिक सुखों के प्रति सावधान हो जाना चाहिये। इन जातकों को आपसी सामंजस्य, एक-दूसरे की छोटी-मोटी कमजोरियों को अनदेखा करना या उनके समाधान का प्रयास करना ही उचित हो सकता है। इसके साथ ही वैवाहिक जीवन के सुखों को नष्ट करने वाली कुछ उदाहरण कुंडलियों में भी इन योगों को जांचने का प्रयास किया है।

वैवाहिक सुख हंता योगः

1. सप्तमेश का त्रिक भाव में या त्रिकेशों से संबंध होना विशेषकर द्वादश भाव में होना

2. सप्तमेश पंचम में हो अथवा पंचमेश सप्तम में हो या दोनों का परस्पर स्थान परिवर्तन होना

3. द्वितीय या सप्तम भाव में वक्री ग्रहों का होना अथवा इन भावेशों का स्वयं वक्री होना

4. शनि-मंगल का परस्पर समसप्तम या युति संबंध होना अथवा द्विद्र्वादश होना

5. शनि का सूर्य अथवा चन्द्रमा अथवा शुक्र से किसी भी प्रकार दृष्टि-युति संबंध होना

6. शुक्र अथवा सप्तमेश से केतु का संबंध होना या इनसे त्रिकोण में केतु का होना अवलोकनार्थ कुछ उदाहरण कुंड़लियां इस प्रकार हैं...

Ex. 1 रू धनु लग्न में जन्मी जातिका की पत्रिका में उक्त योगों में से निम्न योग उपस्थित हैं:

योग नं. 1. सप्तमेश बुध त्रिक भाव में द्वादश में स्थित है।

योग नं. 2. सप्तमेश वक्री है।

योग नं 3. शनि-मंगल द्विद्वार्दश हैं।

योग नं. 5. शनि का शुक्र से दृष्टि संबंध हैं।

 जातिका का विवाह 02-11-2006 को हुआ। विवाह के पहले दिन से ही जातिका का सामंजस्य अपने पति एवं ससुराल वालों से नहीं हुआ। चूंकि जातिका अत्यन्त संपन्न एवं राजनीतिक पहॅंुच वाले परिवार से थी अतः दोनों पक्षों की आपसी रजामंदी से 17-12-2006 को तलाक हो गया।

Ex. 2 रू मीन लग्न में जन्मे जातक उक्त जातिका उदाहरण नं. 1 के पूर्व पति हैं। इनकी पत्रिका में उक्त योगों में से निम्न योग उपस्थित हैं:

योग नं. 1-सप्तमेश बुध त्रिक भाव में द्वादश में स्थित है।

योग नं. 2.- सप्तमेश वक्री है तथा सप्तम में वक्री शनि स्थित हैं। द्वितीयेश मंगल स्वयं भी वक्री हैं।

योग नं 3-शनि-मंगल द्विद्वार्दश हैं।

योग नं. 5-शनि का चन्द्रमा से दृष्टि संबंध है।

योग नं. 6- सप्तमेश बुध से केतु का युत् िसंबंध है।


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निष्कर्ष:- जातक की कुंडली में उक्त समस्त योग उपस्थित होकर उसके वैवाहिक जीवन के सुखों के नाश की ओर संकेत कर रहे हैं। जातक का विवाह 02-11-2006 को हुआ और 17-12-2006 को तलाक हो गया।

Ex. 3 रू वृश्चिक लग्न में जन्मी जातिका की पत्रिका में उक्त योगों में से निम्न योग उपस्थित हैं:

योग नं. 2.- द्वितीयेश बृहस्पति वक्री है। द्वितीय में नैसर्गिक वक्री केतु स्थित है।

योग नं 3-शनि-मंगल समसप्तक हैं।

योग नं. 5- शनि का सूर्य से दृष्टि संबंध है। निष्कर्ष:- जातिका की कुंडली में उक्त योग उपस्थित होकर उसके वैवाहिक जीवन के सुखों के नाश की ओर संकेत कर रहे हैं। जातिक का विवाह 23-05-2005 को हुआ और विवाह के कुछ दिन बाद से ही सास और पति से मतभेद आरम्भ हो गये। पति शराब पीकर मारपीट करता था और पति तथा ससुराल वाले चरित्रहीनता का आरोप लगाते थे। जातिका तलाक ले चुकी है।

Ex. 4 रू सिंह लग्न में जन्मी इस जातिका की कुंडली में वैवाहिक सुखावरोध के उपस्थित योग इस प्रकार हैं..

योग नं.1. सप्तमेश शनि त्रिक भाव द्वादश में स्थित है।

योग नं.3. द्वितीय भाव में नैसर्गिक वक्री राहु स्थित है।

योग नं. 5. शनि का सूर्य से युति एवं चन्द्रमा से दृष्टि संबंध तथा परस्पर राशि परिवर्तन हो रहा है।

योग नं. 6. केतु का दृष्टि संबंध सप्तमेश शनि से बन रहा है। निष्कर्षः- जातिका का विवाह 19-02-1999 को हुआ परंतु जन्मपत्रिका में उपस्थित वैवाहिक सुखावरोध के योगों के कारण जातिका का वैवाहिक जीवन कलह-कटुतापूर्ण है। जातिका का तलाक तो नहीं हुआ है परंतु वह अपने पति से अलग रहती है। 

Ex..5 रू धनु लग्न में जन्मी इस जातिका की कुंड़ली में वैवाहिक जीवन के सुखावरोध के योग इस प्रकार हैं:

योग नं. 3. और 6. सप्तम भाव में नैसर्गिक वक्री ग्रह केतु स्थित हैं।

योग नं. 5. शनि का दृष्टि संबंध चन्द्रमा एवं सूर्य दोनों से बन रहा है।

निष्कर्षः- जातिका लेक्चरार है और विवाह के तुरंत बाद से ही पति द्वारा शक करने को लेकर वैवाहिक कटुता आरम्भ हो गयी। शक-कलह की अंतिम परिणति तलाक के रूप में हुयी।

EX. 6 रू मीन लग्न में जन्मी जातिका की जन्मपत्रिका में निम्न योग उपस्थित हैं.. यो

नं. 1. सप्तमेश बुध त्रिक भाव द्वादश में स्थित है,

योग नं. 4. शनि का वक्री अवस्था में चन्द्रमा एवं सूर्य से संबंध है। साथ ही वक्री होने से शनि-मंगल का परस्पर संबंध भी बन रहा है।

योग नं. 6. सप्तमेश बुध से केतु का युति संबंध है।

निष्कर्षः- जातिका का बहुत प्रयास के उपरांत भी विवाह नहीं हुआ और वर्तमान में जातिका अविवाहित है।

EXa.7 रू धनु लग्न में जन्मे जातक की जन्मपत्रिका में वैवाहिक कटुता योगों में से निम्न योग उपस्थित हैं..

योग नं. 2. सप्तमेश बुध पंचम भाव में स्थित है।

योग नं. 3. सप्तमेश बुध वक्री है, द्वितीयेश शनि वक्री है।

योग नं. 5. शनि का दृष्टि संबंध सूर्य से है। शनि वक्री अवस्था में है अतः पिछली राशि से संबंध मानने पर शनि का संबंध चन्द्रमा एवं शुक्र से भी बन रहा है।

योग नं. 6. शुक्र एवं सप्तम तथा सप्तमेश बुध से केतु का संबंध बन रहा है।

निष्कर्ष: जातक की जन्म पत्रिका में वैवाहिक जीवन के सुखों को बाधित करने वाले दर्शाये गये योगों में से 5 योग उपस्थित हैं जो विवाह सुख बाधा का स्पष्ट संकेत हैं। 25-04-2007 को जातक ने प्रेम विवाह किया। इसके बाद जातक की पत्नी ने अपने परिजनों के कहने पर बहला फुसलाकर विवाह करने का आरोप लगाया। जातक जेल में बंद रहा और दिसम्बर 2009 में तलाक हुआ।



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