वास्तु नियम की गूढता

वास्तु नियम की गूढता  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 4643 | दिसम्बर 2011

वास्तु नियमों की गूढता नीरज शर्मा वास्तु शास्त्र भारत की एक प्राचीन गूढ विद्या है परंतु सामान्य जन की पहुंच से परे रहने के कारण आज भी बहुत व्यक्ति इसे संदेह की दृष्टि से देखते हैं वास्तव में हमारा शरीर जिन पांच तत्वों (अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, अकाश) से मिलकर बना है उन्हीं पांच तत्वों तथा सभी प्राकृतिक ऊर्जाओं का घर में अच्छा संतुलन बनाना तथा प्राकृतिक ऊर्जाओं का अधिक से अधिक लाभ उठाना ही वास्तु शास्त्र का आधार है। विशेष रूप से वास्तु के नियम सूर्य रश्मि, दिशाओं के तत्व पृथ्वी का झुकाव, वास्तु पुरूष की आकृति आदि पर आधारित हैं जो पूर्णतया वैज्ञानिक भी हैं।

पृथ्वी अपनी चुंबकीय व गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण अपनी धुरी पर पूर्वोत्तर की ओर साढ़े 23 डिग्री झुकी हुई है जिससे उत्तर से विशेष चुंबकीय तरंगे आती हैं। वास्तु पुरुष की आकृति पृथ्वी पर इस प्रकार मानी गयी है कि उसका सिर ईशान कोण में नीचे की ओर मुख करके है पैर सिकुड़े हुए पंजे र्नैत्य कोण में है दोनों भुजायें आग्नेय व वायव्य कोण में है।

वास्तु सिद्धांत के मूल सिद्धांत के अनुसार घर या भूखंड का पूर्व, ईशान व उत्तरी क्षेत्र सदैव नीचा, हल्का तथा खाली रखना चाहिए तथा दक्षिण व र्नैत्य कोण ऊंचा भारी व भरा हुआ होना चाहिये। क्योंकि भारतीय संस्कृति सूर्य रश्मियों व दर्शन का बड़ा महत्व है और यह वैज्ञानिक भी है। क्योंकि सूर्य की प्रातः काल की किरणें बहुत ही लाभदायक व शुभ होती है तथा दोपहर की किरणें हानि कारक होती है तो यदि हमारे घर का पूर्वी हिस्सा नीचा व खुला होगा तो सूर्योदय होते ही प्रातःकालीन किरणें घर में प्रवेश करेंगी जो घर में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ायेंगी तथा दक्षिण, पश्चिम व र्नैत्य कोण ऊंचे होंगे तो दोपहर या उसके बाद वाली हानिकारक रश्मियां घर में प्रवेश नहीं कर पायेंगी तथा उत्तर से ही विशेष चुंबकीय तरंगे घर में प्रवेश करती है व शुद्ध वायु, पूर्व, उत्तर से आती हैं

अतः यह स्थान नीचा, खुला होना तर्क संगत है। दूसरे दृष्टिकोण में ईशान कोण में वास्तु पुरुष का सिर पड़ता है तथा र्नैत्य कोण में पंजे क्योंकि मष्तिष्क पर भार कम होना चाहिये व पंजे पूरे शरीर का भार उठाते हैं इसलिये भी ईशान हल्का व र्नैत्य कोण भारी रखा जाता है। ईशान कोण और उत्तर दिशा में ही जलस्रोत बनाया जाता है बोरिंग, कुंआ, हैंडपंप आदि यहीं लगाया जाता है क्योंकि सर्वप्रथम तो ईशानकोण व उत्तर-दिशा को जल तत्व की दिशा होती है तथा जल स्रोत होने से नीचे भी हो जायेगी। इसका एक कारण यह भी है कि सूर्य उदय से ही यहां किरणे पड़ने लगती हैं तथा अधिकतम समय तक रहती हैं। जिससे जल स्वच्छ रहता है।

ईशान कोण में पूजाघर, ध्यान कक्ष, अध्ययन कक्ष बनाया जाता है क्योंकि यहां सूर्य की प्रातःकालीन रश्मियों की अधिकता है यहीं से सकारात्मक चुंबकीय तरंगंे घर मंे प्रवेश करती हैं तथा इस दिशा का स्वामित्व ग्रहों में बृहस्पति को प्राप्त है जो धर्म के कारक ग्रह हैं।

मकान मालिक का शयन कक्ष र्नैत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) में बनाया जाता है क्योंकि एक तो यह स्थायित्व की दिशा, आराम व स्वामित्व की दिशा मानी जाती है अतः यहां गृहस्वामी को स्थायित्व मिलेगा तथा पूरे घर पर उसका स्वामित्व बना रहेगा दूसरी ओर ईशान से सूर्य रश्मियों तथा चुंबकीय तरंगो के रूप में जो ऊर्जा घर में प्रवेश करती है वह अन्य दिशाओं से होती हुई र्नैत्य कोण में समावेशित होती है और गृहस्वामी जो पूरे घर का बोझ उठाता है उसे यहां सारी ऊर्जा प्राप्त होती रहती है।

रसोई आग्नेय कोण में बनाई जाती है क्योंकि यह अग्नि तत्व प्रधान दिशा है तथा रसोई में हमें अग्नि की आवश्यकता होती है और वह ऊर्जा इस दिशा में स्वतः ही अधिक मात्रा में होती है।

मेहमान कक्ष, स्वागत कक्ष या किरायेदार के लिये कमरा वायव्य कोण में बनाया जाता है क्योंकि यह दिशा चलायमानता की कारक है यहां रहने वाला व्यक्ति अस्थिर होता है अतः मेहमान या किरायेदार घर पर हावी न हो तथा गतिशील रहे इसलिये यह दिशा स्वागत कक्ष के लिये चुनी जाती है।

सोते समय वास्तु के अनुसार सिर सदैव दक्षिण में व पैर उत्तर दिशा में होने चाहिये अगर ऐसा किसी कारण वश यह संभव न हो तो यह स्मरण रहे कि इसका विपरीत कभी न करें अर्थात उत्तर दिशा में सिर व दक्षिण में पैर कदापि न करें। क्योंकि जिस प्रकार पृथ्वी की उत्तर दिशा उत्तरी ध्रुव व दक्षिण दिशा दक्षिणी ध्रुव है और पृथ्वी में चुंबकीय शक्ति है वैसे ही हमारे शरीर में सिर हमारा उत्तरी ध्रुव व पैर दक्षिणी ध्रुव है और समान ध्रुव परस्पर विकर्षण उत्पन्न करते है।

अतः यदि हम सिर उत्तर व पैर दक्षिण में करेंगे तो पृथ्वी उत्तरी ध्रुव पर हमारा उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव पर हमारा दक्षिणी ध्रुव होगा और हमारे शरीर में पृथ्वी से विकर्षण उत्पन्न होगा और नींद अच्छी नहीं आयेगी व शारीरिक व्याधियां भी उत्पन्न हो सकती हैं। अतः वास्तु शास्त्र के नियम बहुत गूढ़ व वैज्ञानिक हैं। इन्हें अपनाकर हम प्राकृतिक ऊर्जाओं का अधिकाधिक उपयोग कर सकते हैं।

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