डेंगू का रामबाण इलाज- गिलोय

डेंगू का रामबाण इलाज- गिलोय  

अविनाश सिंह
व्यूस : 9626 | अकतूबर 2010

गिलोय एक बहुत ही चमत्कारी औषधि है। इसे अमृता, गुर्च या छिन्नरूहा भी कहते हैं क्योंकि यह आत्मा तक को कंपकंपा देने वाले मलेरिया को भी छिन्न-भिन्न कर देती है। त्रिदोषनाशक, तिक्त, कटु और रस युक्त वाली यह अमृता सारे उत्तर भारत में लगभग सभी जगह पाई जाती है। गिलोय बहुवर्षीय लता होती है। इसके पत्ते पान के पत्तों की तरह होते हैं।

गिलोय का वैज्ञानिक नाम है- तिनोस्पोश कार्डी फोलिया। श्रीरामचंद्र द्वारा रावण के संहार उपरांत जब सभी देवता अत्यंत प्रसन्न थे, तब इंद्रदेव ने युद्ध में मारे गये वानरों को पुनर्जीवित करने के लिए अमृत की वर्षा की। जो बंूदे वानरों पर पड़ी वे जीवित हो गये, जो धरती पर पड़ी उनसे ही इस पवित्र और अमृत रूपी गिलोए बेल की उत्पŸिा हुई। यह औषधि ओज वर्धक, रक्तशोधक, शोधनाशक (सूजन कम करता है), हृदयरोग नाशक, लिवर टोनिक और प्रतिरक्षण प्रणाली को प्रबल करने वाली है। हमारे शरीर में ज्यादातर रोग तीन दोषों - वात, पित्त और कफ के असंतुलन से होते हैं। पित्त के असंतुलन से पीलिया, पेट के रोग, ज्वर आदि; कफ के असंतुलन से सीने में जकड़न, श्वास रोग आदि; वात के असंतुलन से गैस, जोड़ों के दर्द, शरीर का टूटना, असमय बुढ़ापा जैसे रोग होते हैं।

वात रोगों के लिए गिलोय का पांच ग्राम चूर्ण घी के साथ लें। पित्त रोगों के लिए गिलोय का चार ग्राम चूर्ण चीनी या गुड़ के साथ लें। कफ रोगों के लिए गिलोय का छः ग्राम चूर्ण शहद के साथ लेने से लाभ होता है। किसी भी प्रकार के रोगाणुओं, जीवाणुओं आदि से पैदा होने वाली बीमारियों जैसे डेंगू, स्वाइन फ्लू, मलेरिया आदि; रक्त के प्रदूषित होने से पुराने बुखार एवं यकृत की कमजोरी के लिए गिलोय रामबाण की तरह काम करती है। पुराने टायफाइड, क्षय रोग, पुरानी खांसी, मधुमेह (शुगर), कुष्ठ रोग तथा पीलिया में इसके प्रयोग से तुंरत लाभ मिलता है। वर्षा के साथ डेंगू का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है। रक्त में संक्रमण होने से पांच छः दिन के अंदर यह बुखार अपना असर दिखाना शुरू करता है।

डेंगू में शरीर के रक्त में तेजी से प्लेटलेट्स का स्तर कम होता है। गिलोय डेंगू से बचाव एवं उपचार के लिए चमत्कारी औषधि है। गिलोय और सात तुलसी के पत्तों का रस पीने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। यह रक्त के प्लेटलेट्स का स्तर भी बढ़ाता है। इसकी कड़वाहट को कम करने के लिए इसे किसी अन्य जूस में मिलाकर पीना चाहिए। इसका प्रयोग डेंगू के इलाज में सफलतापूर्वक किया जा चुका है।


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