दीपावली पूजन सामग्री व लघु फ्यूचर पंचांग

दीपावली पूजन सामग्री व लघु फ्यूचर पंचांग  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 4108 | नवेम्बर 2010

दीपावली के शुभ अवसर पर फ्यूचर समाचार के सभी पाठकों को मुफ्त उपहार के रूप में गोमती चक्र जोड़ा, लघु नारियल, कौडियां, कमलगट्टे के बीज आदि के साथ ही लघु फ्यूचर पंचांग दिये जा रहे हैं। जिसमें दीपावली पूजन मुहूर्त, विधि, आरती संग्रह आदि का भी समावेश किया गया है। उपर्युक्त पूजन सामग्री को दीपावली की रात्रि पूजन के समय उपयोग करके लाभ प्राप्त कर सकते हैं। माता लक्ष्मी और गणेश की उपासना से मन में शांति तथा घर में समृद्धि बनी रहती है। माता लक्ष्मी जी को कमल का फूल और उसके बीज अति प्रिय हैं।

कमलगट्टे के बीज: दीपावली के दिन कमल के बीज को शुद्ध करके माता लक्ष्मी के चरणों में अर्पित करें। इससे माता शीघ्र प्रसन्न होती हैं और साधक को धन-संपदा देती हैं।

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लघु नारियल: लघु नारियल अत्यंत दुर्लभ है। यह शुभ काम में या दीपावली पूजन के लिए अति शुभ माना गया है। इसके नित्य पूजन से जातक की भौतिक तथा आर्थिक उन्नति होती है। लघु नारियल को अपने घर के पूजा स्थान अथवा व्यवसाय स्थल में सिंदूर से रंग कर या सिंदूर लगा कर लाल कपड़े में लपेटकर स्थापित करना चाहिए।

कौड़ी: इसे अपने घर में या दुकान के गल्ले में रखें, लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी।

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गोमती चक्र: ये दुर्लभ गोमती चक्र प्राकृतिक होते हैं और समुद्री तट पर मिलते हैं। यह चक्र भगवान विष्णु का प्रतीक है। दीपावली के दिन इसकी प्राण-प्रतिष्ठा करके देव प्रतिमा की भांति सभी सामग्री के साथ इसे गंगा जल तथा कच्चे दूध से शुद्ध करके तांबे की प्लेट में स्थापित करें और नित्य यथाशक्ति धूप-दीप से पूजा करें, लाभ मिलेगा। लघु फ्यूचर पंचांग संवत् 2066-67 के फ्यूचर पंचांग की मांग को देखते हुए फ्यूचर समाचार की ओर से संवत 2068 का लघु फ्यूचर पंचांग पाठकों को मुफ्त दिया जा रहा है। यह पंचांग जनवरी 2011 से अप्रैल 2012 तक का बनाया गया है।

इसमें तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण एवं उपयोगी जानकारी दी गयी हैं जिनमें से मुख्य हैं- विभिन्न देशों की राजधानियों के अक्षांश-रेखांश, मानक समय संस्कार, भारत के विभिन्न स्थानों के अक्षांश, रेखांश वर्ष भर के ग्रहस्पष्ट, राहु काल, लग्न समाप्ति काल साथ ही सन् 1901 से 2052 तक के लिए साम्पातिक काल गणना, अयनांश संस्कार व साम्पातिक काल के आधार पर 100 अक्षांश के अंतर पर लग्न सारणी, दशम भाव सारणी आदि। इन सारणियों के आधार पर सन् 1901 से 2052 तक कुंडलियों की लग्न गणना बहुत ही आसानी से अधिकतम शुद्धि के साथ कर सकते हैं।

इसके अतिरिक्त इस पंचांग की महत्वपूर्ण विशेषता है कि इसमें दीपावली व होली के पूजन समय को देश की राजधानियों के आधार पर दिया गया है। दीपावली पर किये जाने वाले श्रीसूक्त, लक्ष्मी स्तोत्र, लक्ष्मी सूक्त, कनकधारा स्तोत्र, पुरुष सूक्त पाठ पूर्ण शुद्धि के साथ प्रकाशित किये गये हैं, साथ ही देवी देवताओं की आरतियां भी संकलित की गयी है। इस प्रकार यह पंचांग तात्कालिक रूप में दीपावली पूजन हेतु व पंचांग देखने के लिए एक संग्रहणीय व उपयोगी पुस्तिका है।

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