बगलामुखी का रहस्य एवं परिचय

बगलामुखी का रहस्य एवं परिचय  

व्यूस : 31002 | मार्च 2008
बगलामुखी का रहस्य एवं परिचय विजय कुमार शर्मा दस महाविद्याओं में देवी बगलामुखी को प्रथम स्थान प्राप्त है। महाकाल शिवजी के दरबार की यह प्रसिद्ध नृत्यांगना हंै। यही एक मात्र देवी हंै जिनके मुकुट पर अर्धचंद्र और लालट में तीसरा नेत्र है। यही कारण है कि महाकाल शिवजी की यह अति प्रिय हैं। यह शक्तिरूपा विष्णु के तेज से युक्त होने के कारण वैष्णवी हैं। मंगलवार युक्त चतुर्दशी की अर्द्धरात्रि में इन महाशक्ति का अवतार हुआ। इनकी आराधना से दैवी प्रकोप और शत्रु से रक्षा तथा शांति, सुख समृद्धि राज्यकृपा की प्राप्ति होती है। भोग और मोक्ष देनों देने वाली इन महाशक्ति देवी की उपासना से प्रत्येक दुर्लभ वस्तु प्राप्त की जा सकती है। इन्हें ब्रह्मास्त्र विद्या के अतिरिक्त पीतांबरा, त्रिनेत्री, खड्गधारिणी, श्री विद्या, देवी श्री त्रिपुर सुंदरी, विश्वेश्वरी, मातंगी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। पुरातन काल से ही देवी बगलामुखी को अति श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। राम-रावण युद्ध में जब रावण के बड़े-बड़े योद्धा राक्षस मारे जा चुके थे, तब रावण के पुत्र मेघनाद ने स्वयं रणभूमि में जाने का फैसला किया। रणभूमि में जाने से पहले उसने शत्रु के शमन के लिए और अपने पिता दशानन रावण की जीत सुनिश्चित करने के लिए इस शक्तिस्वरूपा देवी माता श्री बगलामुखी का आवाहन और अनुष्ठान निर्जन एकांत स्थान में शुरू किया इस अनुष्ठान की निर्विघ्न समाप्ति के लिए सभी प्रमुख दानवों को तैनात कर दिया गया था। उन्हें आदेश था कि जो इस यज्ञ को हानि पहुंचाने की चेष्टा करे, उसका वध कर दिया जाए। इसके साथ ही मेघनाद ने पूरे आत्मविश्वास, उत्साह और पूरी श्रद्धा के साथ अनुष्ठान आरंभ कर दिया। परंतु विष्णु अवतार श्री रामचंद्र जी को इसका आभास हो गया कि अगर माता बगलामुखी इस यज्ञ के बाद जागृत हो उठीं तो वह काली का रूप धारण करके वानर सेना का विनाश कर दंेगी और उनके साथ चलने वाली योगिनियां उनके योद्धाओं का खून पी जाएंगी। इस शंका के चलते उन्होंने अपने परम भक्त हनुमान, बाली पुत्र अंगद आदि को उसका यज्ञ भंग कर देने की आज्ञा दी। श्री राम की आज्ञा का पालन करते हुए दोनों योद्धा अपने प्रमुख वानर यूथपालों को लेकर उस गुप्त जगह पर छद्म वेश धारण करके पहुंच गए और महा पराक्रमी इंद्रजीत का यज्ञ अनुष्ठान पूरा होने से पहले ही भंग कर दिया। अगर मेघनाद का वह यज्ञ पूरा हो जाता तो श्री राम का लंका पर विजय पाना कठिन हो जाता। तात्पर्य यह कि शक्तिस्वरूपा देवी बगलामुखी साधक के सभी शत्रुओं का पूरी तरह से शमन कर देती हैं। माता बगलामुखी का मुख बगले जैसा और शेष संपूर्ण शरीर स्त्रियों जैसा है। महाशक्ति देवी श्री बगलामुखी का प्राचीन मंदिर गांव बनखंडी, जिला कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश में स्थित है। वनखंडी से मंदिर की दूरी मात्र एक किलोमीटर है। देश-विदेश से सैकड़ों लोग अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए यहां आते हैं। बगलामुखी देवी का माहात्म्य बगलामुखी की पूजा में सारी सामग्री पीली ही होनी चाहिए। साधक को पीले वस्त्र ही धारण करने चाहिए। जपमाला भी हल्दी की गांठों की होनी चाहिए। जप पीत आसन पर बैठकर ही करना चाहिए और नित्य पीत पुष्पों से ही देवी का पूजन करना चाहिए। इस तरह अयुत जप के बाद हल्दी व केसर से रंजित साकल्य से दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण तथा तद्दशांश मार्जन करें और केसरिया या वेसनी मोदक आदि पदार्थ से मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोजन कराएं। यह अनुष्ठान करने से अशुभ प्रभाव का शमन, शत्रु पर विजय, दैवी प्रकोपों से मुक्ति, धन की प्राप्ति, दारिद्र्य और ऋण से मुक्ति मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण आदि अनेक कार्यों की सिद्धि होती है। माता का जप करते समय श्रद्धा, विश्वास, आत्मसंयम व ब्रह्मचर्य का पूरी तरह से पालन करना चाहिए। सभी प्रकार की पीत पूजन सामग्री लेकर रात्रि में कहीं जंगल में जाकर पीली पताका को शुद्ध भूमि में गाड़ दें और उसका पूजन करके उसके आगे अष्टोत्तरशत संख्या में ‘‘¬ ींीं बगलामुख्यै नमः’’ मंत्र का जप करें। जप के अंत में 108 बार ‘‘¬ बगलामुख्यै नमः’’ इस मंत्र को जपते हुए पताका के आगे दंड की तरह भूमि पर लेट कर भगवती को प्रणाम करें। इस तरह प्रतिदिन रात्रि के समय एक मास तक करते रहंे। अंत में जपसंख्या का दशांश हवन करें, सब कार्यों में सिद्धि प्राप्त होगी। यह हमेशा याद रखना माता बगलामुखी की महिमा का जितना भी गुणगान किया जाए, कम है। बगलामुखी की उपासना विधि एवं सामग्रियों का महत्व बगलामुखी की उपासना पीले रंग की चीजों व हल्दी की माला से करनी चाहिए। बगलामुखी की उपासना के प्रारंभ में लघु या महान कार्य को देखकर उसके अनुसार अयुत या लक्ष जप करना चाहिए। बड़े कार्य की सिद्धि के लिए एक लक्ष जप करना चाहिए तथा जो कार्य सुसाध्य हो, उसके लिए दस हजार जप करना उचित है। जप के अंत में सरसों से दशांश हवन करने पर सबको वश में किया जा सकता है। धन प्राप्ति के लिए कच्चे तिल और दूध के मिश्रण से हवन करना चाहिए। अशोक और करवीर के हवन से पुत्र की प्राप्ति होती है। सेमर के फलों के हवन से शत्रु पर विजय मिलती है। गुग्गुल और घी से हवन करने पर राजवश्यता होती है। गुग्गुल और तिलों के मिश्रण हवन करने से कैदी छूट जाता है। उपासना में स्थान का भी अति विशिष्ट महत्व होता है। स्थान निर्जन और शुद्ध हो अथवा घर हो, पर्वत प्रदेश हो या घोर जंगल हो, या सिद्ध शैलमय (पाषाण का) घर हो अथवा दो महानदियों का संगम हो। रात्रि का समय हो। नित्य तंत्र का आदेश है कि भूमि पर, शक्ति पीठ पर, महापीठ पर, शिव मंदिर या आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर जपादि करना चाहिए। शारदा तंत्र का कहना है कि उपासना के लिए पर्वत की चोटी, नदी का तट या संगम, तीर्थ, गुफा, बेल वृक्ष की छाया, देव मंदिर या समुद्र का तट उपयुक्त है। सामान्य नदियों पर साधना वर्जित है। मुंडमाला तंत्र के अनुसार श्मशान में एक लिंग महादेव के समीप चैराहे पर, सघन वन में, जल के मध्य गले तक गहरे जल में, युद्ध या योनि स्थल पर या देवालय में जपादि करने से साधना सफल होती है। अन्नदा कल्प के अनुसार गुरु के पास, गाय के पास, गौशाला में, पर्वत पर शिवलिंग (प्राण-प्रतिष्ठित) के समीप, माता की प्रतिमा के पास, नवयौवना सौंदर्यवती के पास, बिल्व वृक्ष के नीचे की गई उपासना सफल होती है। समयासार तंत्र का कथन है कि खाट पर, चैराहे पर, केले, बेल, बरगद के वन में या वृक्ष के नीचे, शिवालय में गुफा में पर्वत की चोटी या सिद्ध पीठ पर जप करने से सफलता मिलती है। 1. निज निवास पर किया गया जप सामान्य लाभ देता है। 2. गौशाला में किया गया जप सौ गुणा लाभ देता है। 3. वन में किया गया जप हजार गुणा लाभ देता है। 4. पर्वत पर किया गया जप दस हजार गुणा लाभ देता है। 5. नदी तट या संगम पर किया गया जप लाख गुणा लाभ देता है। 6. देवालय में, जहां देवता की प्राण-प्रतिष्ठा विधिवत हुई हो, जप करने से करोड़ गुणा लाभ मिलता है। 7. प्राण प्रतिष्ठित शिवलिंग, एक लिंग के पास जप करने से अनंत गुणा लाभ प्राप्त होता है। 8. जगदंबा के पास या शक्ति पीठ पर बैठकर जप करने से अनंत गुणा लाभ मिलता है। देवी का जप चंद्र स्वर में ही करना चाहिए। माता श्री बगलामुखी की उपासना के लिए ज्यादा से ज्यादा पुरश्चरण करना चाहिए। जितना जप आज किया है उतना कल करना चाहिए। भाव यह है कि प्रतिदिन एक समान जप करना चाहिए कम या अधिक नहीं। सवा लाख पुरश्चरण करने के बाद मंत्र सिद्ध हो जाता है। पुरश्चरण के बाद माता बगलामुखी के मूल मंत्र का जप करना चाहिए। ¬ ींीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचंमुखं पदं स्तम्भय जिह्नां कीलय बु(िं विनाशय ींीं ¬ स्वाहा।। इस मंत्र के किस नक्षत्र में कितने जप से क्या लाभ होता है इसका विशद विवरण इस प्रकार है। अश्विनी नक्षत्र में एक हजार जप करने से सिद्धि होती है। भरणी नक्षत्र में दो हजार जप करने से लाभ होता है। कृत्तिका में दो हजार जप करने से मंत्र जागृत होता है। रोहिणी नक्षत्र में सौ अथवा एक हजार जप करने से कामना पूरी होती है। मृगशिरा नक्षत्र में पांच हजार जप से बुद्धि तीव्र होती है। आद्र्रा नक्षत्र में छः हजार जप करने से कार्य सिद्ध होता है। पुनर्वसु नक्षत्र में हजार जप से देवत्व मिलता है। पुष्य में सात हजार जप से मंत्र सिद्ध होता है। आश्लेषा में छः हजार जप से कामना पूरी होती है। मघा में दस हजार जप से अधिकार प्राप्त होता है। पूर्वा (तीनों) में ग्यारह हजार जप से धन लाभ होता है। उत्तरा (तीनों) में बारह हजार जपने से कामना पूरी होती है। हस्त में तेरह हजार जप करने से तेज बढ़ता है। चित्रा में दो हजार जप करने से सफलता मिलती है। विशाखा नक्षत्र में चार हजार जप करने से सौम्यता आती है। अनुराधा नक्षत्र में पूरा समय जप करने से परिवार का सुख प्राप्त होता है। ज्येष्ठा में दो हजार जप करने से मंत्र सिद्ध होता है। मूला नक्षत्र में पांच हजार जप से साधना सफल होती है। श्रवण नक्षत्र में दो हजार जप करने से साधक यशस्वी होता है। धनिष्ठा में दो हजार जप करने से कार्य सिद्ध होता है। शतभिषा नक्षत्र में दो हजार जप से पाप से मुक्ति मिलती है। रेवती में चार हजार जप करने से अधिकार बढ़ता है। स्वाति नक्षत्र में आठ हजार जप करने से उच्चाटन, स्तंभवन, वशीकरण आदि कार्य सिद्ध होते हैं। माता श्री बगलामुखी की उपासना करते समय सर्वप्रथम शरीर और आत्मा पूरी तरह शुद्ध होने चाहिए। मन में किसी भी तरह का विकार नहीं होना चाहिए। पीली धोती और पीला ही आसन होना चाहिए। नवग्रह आदि का पूजन करने के बाद कलश स्थापना, देव पूजन आदि सब प्रकार के पूजन करने के बाद देवी की प्रतिमा का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात देवी के अंगों का व परिवार आदि का पूजन करना चाहिए। अथांग परिवारादि पूजनम् इस पूजन के लिए सर्वप्रथम धरती पर आटे या रेत का चैकोर टीला बनाकर माता श्री बगलामुखी के यंत्र का निर्माण करना चाहिए। फिर पूजा निम्नलिखित विधि से करनी चाहिए। अथ विनियोग मंत्र, अथ ऋष्यादि न्यासः, अथ करन्यासः, अथ हृदयादिन्यासः, अथ श्री यंत्र पूजा। यह पूरी श्रद्धा, भक्ति, और आत्मविश्वास के साथ ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए करनी चाहिए। इसके बाद भगवती का शापोत्कीलन करना चाहिए। शापोत्कीलन के बाद कवच का पाठ करके विधिपूर्वक मंत्र का पाठ करना चाहिए जो कि 36 अक्षरों का है। कीलित हैं सब मंत्र, तंत्र, है सत्य इसे ही जानो। पर कठिन जग में कुछ नहीं, तुम अपनी भक्ति को पहचानो। कलयुग में समस्त देवी देवता कीलित या श्रापित हैं। मंत्र को श्राप मुक्त करना या उसे कीलन से मुक्त करना ही शापोत्कीलन कहलाता है। प्रायः सभी देवी-देवताओं के मंत्रों के अलग-अलग कीलन होते हैं। अतः बगलामुखी का शापोत्कीलन प्रस्तुत है। ¬ हूं हूं क्लीं क्लीं क्लीं ऐं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्री ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं बगला शापमुत्कीलयोत्कीलय स्वाहा। मंत्र को शाप से मुक्त करने के बाद विनियोग, अथ ऋष्यादि न्यास, अथ षडंग न्यास, अथ व्यापक न्यास, अथ ध्यान आदि करने चाहिए। फिर कवच का पाठ करना चाहिए। बगलामुखी के मूल मंत्र का जप करने से पहले कवच का पाठ करना बहुत जरूरी होता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.