वास्तु बदलें भाग्य बदलेगा

वास्तु बदलें भाग्य बदलेगा  

व्यूस : 9867 | दिसम्बर 2009
वास्तु बदलें भाग्य बदलेगा पं. महेश चंद्र भट्ट आज भौतिकतावाद के इस युग में आवास की समस्या एक जटिल समस्या हो गई है। सुखमय जीवन की चाह लिए आम आदमी इस मूल आवश्यकता की पूर्ति हेतु जैसे-तैसे पैसे जोड़ भी लेता है, तो यह जरूरी नहीं कि उसे उसके मनोनुकूल वास्तुसम्मत घर मिल ही जाए। सामथ्र्यवान लोग भी समयाभाव के कारण और अज्ञानतावश वास्तुसम्मत भवन नहीं बना पाते। फिर बन चुके बड़े भवनों को तोड़-फोड़ कर दोषमुक्त कराना कठिन होता है। इसलिए वास्तुशास्त्र में बिना तोड़-फोड़ किए वास्तु में परिवर्तन के उपाय दिए गए हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख उपायों का विवरण यहां प्रस्तुत है। ईशान का कोना हमेशा स्वच्छ व खाली रखना चाहिए। ध्यान रहे, यहां शौचालय किसी भी हालत में नहीं हो। घर में अग्नि का स्थान वास्तुसम्मत दिशा में होना चाहिए। अग्नि का स्थान आग्नेय कोण है, अतः रसोईघर यथासंभव घर के दक्षिण-पूर्व दिशा में बनाना चाहिए। चूल्हा उत्तर-पूर्व दिशा में नहीं होना चाहिए। मुख्य द्वार या खिड़की से चूल्हा दिखाई नहीं देना चाहिए अन्यथा परिवार पर संकट आने की संभावना रहती है। पानी का बर्तन रसोई के उŸार-पूर्व या पूर्व में भरकर रखें। घर में पानी सही स्थान पर और सही दिशा में रखने से परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य अनुकूल रहता है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। पानी का स्थान ईशान कोण है अतः पानी का भण्डारण अथवा भूमिगत टैंक या बोरिंग पूर्व, उत्तर या पूर्वोत्तर दिशा में होनी चाहिए। पानी को ऊपर की टंकी में भेजने वाला पंप भी इसी दिशा में होना चाहिए। दक्षिण-पूर्व, उŸार-पश्चिम अथवा दक्षिण-पश्चिम कोण में कुआं अथवा ट्यूबवेल नहीं होना चाहिए। इसके लिए उŸार-पूर्व कोण का स्थान उपयुक्त होता है। इससे वास्तु का संतुलन बना रहता है। अन्य दिशा में कुआं या ट्यूबवेल हो, तो उसे भरवा दें, और यदि भरवाना संभव न हो, तो उसका उपयोग न करें। नहाने का कमरा पूर्व दिशा में शुभ होता है। ध्यान रखें, घर के किसी नल से पानी नहीं रिसना चाहिए अन्यथा भुखमरी की स्थिति पैदा हो सकती है। ओवर हेड टैंक उŸार और वायव्य कोण के बीच होना चाहिए। टैंक का ऊपरी भाग गोल होना चाहिए। मकान बनाते समय हवा एवं धूप का विशेष ध्यान रखना चाहिए। निर्माण इस तरह होना चाहिए कि हवा और धूप सर्दी और गर्मी में आवश्यकता के अनुरूप प्राप्त होती रहें। सोने के कमरे में, और खासकर विवाहित जोड़े के कमरे में, पूजाघर कदापि न बनाएं। यदि स्थानाभाव के कारण ऐसा करना ही पड़े, तो पूजास्थल को हर तरफ से पर्दे में रखें। पूजा-स्थान सदा साफ-सुथरा रखना चाहिए। इसे उŸार-पूर्व अर्थात ईशान कोण में होना चाहिए। पूजा-घर में कीमती वस्तुएं, धन आदि छिपाकर न रखें। सोते समय सिरहाना दक्षिण-पश्चिम कोण में दक्षिण की तरफ होना चाहिए। इस प्रकार सोने से नींद गहरी व अच्छी आती है। यदि दक्षिण-पश्चिम दिशा में अधिक द्वार या खिड़कियां हों, तो उन्हें बंद करके उनकी संख्या कम कर देनी चाहिए। मुख्य द्वार या खिड़की के सामने सेटेलाइट या डिश एंटीना का होना प्राणिक ऊर्जा को नष्ट करता है, अतः ये चीजें इस स्थान पर न लगाएं। भवन में खिड़कियां अधिक हों, तो गृहस्वामी का स्वभाव चिड़चिड़ा होता है। इसलिए कुछ खिड़कियां हमेशा बंद रखें और सभी खिड़कियों पर पर्दे लगाएं। मुख्य द्वार बाधा रहित होना चाहिए अर्थात् उसके सामने बिजली के खंभे, ट्रांसफार्मर जैसा कोई अवरोध नहीं होना चाहिए। यदि मकान दक्षिणमुखी हो, तो घर के मुख्य द्वार पर चांदी की थोड़ी पट्टी लगाएं, लाभ होगा। पूर्व-उŸार दिशा का भाग यदि ऊंचा हो, तो दक्षिण-पश्चिम भाग में कोई निर्माण कार्य करा लें ताकि उŸार-पूर्व दिशा का भाग नीचा हो जाए। घर की छत पर चारों कोणों में तुलसी के गमले रखें, इससे मकान पर बिजली के गिरने की संभावना कम रहती है। पश्चिम दिशा में बैठकर भोजन करने से संतोष, सुख व शांति मिलती है। अतः भोजन कक्ष पश्चिम में होना चाहिए। यदि यह संभव न हो, तो डाइनिंग टेबल पश्चिम दिशा में लगाएं। अपनी दुकान या दफ्तर में उŸार-पूर्व में कुछ स्थान खाली रखें। दफ्तर या दुकान में पश्चिम व दक्षिण दिशा में अधिक सामान, अलमारी, फर्नीचर, रिकार्ड आदि रखें। स्वयं उŸार-पूर्व की ओर मुंह करके बैठें। अक्सर देखने में आता है कि कार्यालय या घर में कुछ न कुछ अनावश्यक अथवा कम उपयोगी सामान पड़े होते हैं। उन्हें इधर-उधर फेंकना या रखना न केवल भद्दा लगता है, बल्कि हानिप्रद भी होता है। भारी या अनावश्यक सामान को दक्षिण दिशा या र्नैत्य कोण में रखें। यहां किसी देवी-देवता का चित्र न लगाएं। इसे पानी व सीलन से भी बचाएं। अर्थात् स्टोर-रूम को भी साफ व व्यवस्थित रखें। यदि भवन का दक्षिण-पश्चिम भाग नीचा हो, तो दक्षिण-पश्चिम कोण में काफी ऊंचा टी.वी. का एंटीना लगाएं, तत्संबंधी वास्तु दोष दूर हो जाएगा। इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि अलमारियां खिड़की के बाहर से दिखाई न दें। चेक बुक, बैंक और व्यापार के कागजात, नकद, आभूषण आदि अलमारी की तिजोरी में इस प्रकार रखें कि वह दक्षिण या र्नैत्य की ओर न खुले अन्यथा धन की हानि होगी। तिजोरी शयनकक्ष में नहीं रखें। यदि रखनी ही हो, तो दक्षिण भाग में इस तरह रखें कि उसका मुंह उŸार अर्थात कुबेर की दिशा की ओर खुले, धन लाभ होगा। घर में नौ दिन तक भगवान के अखंड कीर्तन कराएं, दोष से मुक्ति मिलेगी। मुख्य द्वार के ऊपर सिंदूर से नौ अंगुल चैड़ा स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। इसके अतिरिक्त यह चिह्न घर के वास्तु दोष से ग्रस्त सभी स्थलों पर बनाएं। रामायण, महाभारत या युद्ध दर्शाते चित्र, राक्षस, चुड़ैल या बिलखते बच्चों का या विभीषिका दर्शाता कोई चित्र या मूर्ति न लगाएं, और यदि पहले से लगा हो, तो उसे यथाशीघ्र हटा दें। अर्जुन को गीता का ज्ञान देते कृष्ण का चित्र भी न लगाएं। अन्यथा परिवार के सदस्यों में वैमनस्यता हो सकती है। बच्चों के कमरे में सफल व्यक्तियों और महापुरुषों के चित्र लगाएं। परिवार के स्वर्गवासी व्यक्यिों के चित्र दक्षिण-पश्चिम में लगाने चाहिए। घर में गिद्ध, उल्लू, सियार, कौए, सूअर, सांप, बाज आदि के चित्र कदापि न लगाएं। घर के पीछे खाली जगह या बगीचा हो और कोई पहाड़, भवन या आबादी नहीं हो, तो यह शुभ नहीं है। वास्तु की दृष्टि में ऐसा भवन असुरक्षित रहता है। घर की उŸार और पूर्व दिशाओं में खिड़कियां, द्वार, जाल और बरामदा आदि बनवाएं और खुली जगह रखें। ध्यान रखें, घर का कोई भाग गोलाकार न हो। ध्यान रखें, पड़ोसी की वाशिंग मशीन, सूखते कपड़े आदि आपके घर की खिड़की से दिखाई न दे। घर मंे चंपा, मनीप्लांट, चंदन, अनार, तुलसी आदि के पौधे लगाएं, वास्तु दोष दूर होंगे। ईशान कोण में पीले रंग के फूल लगाने चाहिए। तुलसी का पौधा वास्तु दोष निवारण के लिए सर्वोŸाम होता है। यह पौधा रामनवमी के दिन आंगन में चबूतरा बनाकर लगाना चाहिए। अध्ययन कक्ष के ईशान कोण में बच्चों के लिए पीने का पानी रखें। यहां अपने इष्टदेव की तस्वीर लगाएं। अध्ययन कक्ष की दीवार पर बड़े दर्पण न लगाएं। अधिक तस्वीरें भी न लगाएं, किंतु भगवान गणेश और मां सरस्वती की तस्वीर अवश्य लगाएं। यदि घर की किसी कन्या का विवाह नहीं हो रहा हो, या उसमें कोई विघ्न-बाधा आ रही हो, तो उसे घर के वायव्य कोण वाले कमरे में सुलाएं। मेहमान घर से जाने का नाम नहीं ले रहे हों, तो उन्हें वायव्य कोण के कमरे में ठहराएं। कर्ज ज्यादा हो, तो भूमि का ढलान ईशान कोण की ओर कर दें। यदि ढलान पहले से ही हो, तो र्नैत्य कोण को थोड़ा ऊंचा कर दें, कर्ज की समस्या सुलझ जाएगी। घर का ईशान कोण दूषित हो, तो परिवार में अनेक समस्याएं आती हंै। इस दोष से मुक्ति हेतु एक घड़ा बरसात के पानी से भरकर उसे मिट्टी के बर्तन से ढक कर ईशान कोण में दबा दें। द्वार खोलते ही सीढ़ियों का दिखाई देना अशुभ होता है। यदि आपके घर की सीढ़ियां इस स्थिति में हों, तो उनके मध्य एक पर्दा लगा दें। यदि शयनकक्ष या पलंग में कांच लगवाया हो, तो रात को सोते समय उस पर पर्दा डालें। पलंग को दीवार से सटाकर न रखें। सोते समय सिर दक्षिण की तरफ रखें और पैर प्रवेश द्वार की ओर न रखें। दीवारों का रंग गहरा हो, तो गृहस्वामी तथा परिवार के अन्य सदस्यों का स्वभाव उग्र होता है और क्रोध पर उनका नियंत्रण नहीं होता। इसलिए अपने घर की दीवारों का रंग अपनी राशि के अनुकूल किंतु हल्का रखें। यदि घर के आग्नेय कोण में वास्तु दोष हो, तो वहां अग्नि का सामान रखें। साथ ही वहां लाल रंग का बल्ब हर पल जलाए रखें। घर के पश्चिमी भाग में दोष होने पर उस भाग में शनि यंत्र की प्राणप्रतिष्ठा कराकर स्थापित करें। साथ ही द्वार पर काले घोड़े की नाल लगाएं। भूखंड वही खरीदें जिसका ढलान पूर्व, उत्तर या ईशान में हो। घर में बिजली के सामान, टी.वी., फ्रीज, म्यूजिक सिस्टम, घड़ियां आदि चालू अवस्था में होने चाहिए। इनका बंद होना परिवार की उन्नति के अवरुद्ध होने का सूचक है। यदि आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता या आप स्वयं को फुर्तीला महसूस नहीं करते, तो भोजन करते समय प्लेट या थाली दक्षिण-पूर्व दिशा अर्थात आग्नेय कोण की तरफ रखें और सूर्य की तरफ मुंह करके भोजन करें। टेलीफोन सदा दक्षिण-पूर्व में रखें। इस दिशा में टेलीफोन रखने पर वह जल्दी खराब नहीं होता। धन संबंधी कागजात जैसे चेक बुक, पास बुक, एटीएम कार्ड आदि घर के उत्तरी भाग में रखें। इसके साथ ही श्रीयंत्र या कुबेर यंत्र भी रखें, धन वृद्धि के स्रोत बनेंगे। घर के मुख्य द्वार के सामने देवी-देवताओं के मंदिर नहीं होने चाहिए, न ही घर के पीछे मंदिर की छाया पड़नी चाहिए। मुख्यद्वार की चैड़ाई ऊंचाई की आधी होनी चाहिए। घर का मुख्यद्वार और पिछला द्वार एक सीध में कदापि नहीं होने चाहिए। मुख्यद्वार सदा साफ सुथरा रखें। पीपल, बड़ या बहेड़े की लकड़ी का फर्नीचर घर में न रखें, क्योंकि ये पेड़ प्रेत बाधा और अशांति के कारक होते हैं।



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