चंद्र-शनि युति अर्थात् विषयोग

चंद्र-शनि युति अर्थात् विषयोग  

एम. के रस्तोगी
व्यूस : 36395 | जुलाई 2008

इस धरती पर जन्म लेने वाले हर प्राणी के लिए उसका जन्म-क्षण बहुत महत्वपूर्ण होता है, ऐसी ज्योतिष ज्ञान की मान्यता है। इस क्षण को आधार मानकर ज्योतिष गणना द्वारा उसके सम्पूर्ण जीवन का लेखा-जोखा जन्मकुंडली से तैयार किया जा सकता है। इस बनाई गई कुंडली से इस जातक के जीवन में होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। जन्म कुंडली के बारह भावों में नौ ग्रह स्थित होकर शुभ तथा अशुभ योगों की रचना करते हैं। भारतीय ज्योतिष की मान्यतानुसार योगों की रचना कुछ आधारों पर की गई है जिनमें से एक है ग्रहों का परस्पर संबंध। इन संबंधों में से एक है ग्रहों की परस्पर युति अर्थात् एक ही भाव में दो या अधिक ग्रहों का एक साथ होना। किसी भी कुंडली का शुभत्व या अशुभत्व उस कुंडली के भिन्न-भिन्न भावों तथा राशियों में स्थित ग्रहों तथा उनसे बनने वाले योगों के मिश्रित फल से जाना जा सकता है।

जब योग भंग होते हैं तो उनका फल भी प्रभावहीन हो जाता है। इस प्रबंध में शनि तथा चंद्र की भिन्न-भिन्न भावों में, भिन्न-भिन्न राशियों में युति के फलों का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। चंद्र का एक नाम अमृत है और शनि का एक कारकत्व विष है। अतः चंद्र-शनि की युति अमृत-विष का योग बनाती है। चंद्रमा मन है और शनि विष अर्थात् अशुभ कर्ता। इन दोनों की युति का जातक के जीवन पर कैसा प्रभाव होगा, यह आकलन महत्वपूर्ण है। पुरातन ज्योतिष साहित्य में सभी प्रबुद्ध दैवज्ञों ने इस अमृत-विष युति के फल को अशुभ ही कहा है। इसके कुछ उदाहरण हैं- जातकभरणम्- दुराचारी, परजात, धनहीन; चमत्कार निंदक, धनहीन; बृहद्जातक व फलदीपिका - दूसरे पतिवाली स्त्री का पुत्र आदि। उपरोक्त फलों की पुष्टि के लिए चालीस जन्मपत्रिकाओं का अध्ययन किया गया। चंद्र-शनि युति किस भाव में है और किस राशि में, कौन से अन्य ग्रहों का इस युति पर क्या प्रभाव है- इन सब बातों को ध्यान में रखकर जन्म कुंडलियों का विश्लेषण किया गया, परंतु उपर्युक्त फलों और चंद्र-शनि युति में कोई सामंजस्य नहीं मिल पाया।


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अतः इस अध्ययन की आवश्यकता की अनुभूति हुई। यह सत्य है और सर्वमान्य है कि शनि पापग्रह व अशुभ ग्रह है, परंतु ऐसा भी माना गया है कि शनि अंत में शुभफल देने वाला ही होता है। चंद्र की शुभता-अशुभता उसके पूर्ण और क्षीण होने से मानी गई है। चंद्र मन है और शनि विष, तो इनकी युति को मन की विचित्रता को व्यक्त करना चाहिए। हमारे मत से सनकीपन का संबंध इस युति से होना चाहिए। किस प्रकार की मंथन मन की होगी, यह इस युति के भाव विशेष में स्थिति, उस भाव की राशि, इस युति पर अन्य ग्रहों की दृष्टि, अन्य योगों की उपस्थिति आदि पर निर्भर करेगी।

प्रत्येक भाव में इस युति का इस प्रकार होगा -

1. स्त्री जातक के लग्न में चंद्र व शनि की युति है और कुंभ राशि है। लग्न पर सप्तम भाव से बुध, षष्ठ भाव से मंगल तथा पंचम भाव से राहु की दृष्टि है। यह महिला पूर्ण शिक्षित है। पी॰एच॰डी॰ में व्यवधान हुआ, अतः नहीं कर सकी। शायद पंचम भाव में राहु के कारण ऐसा हुआ, अन्यथा केंद्र में चतुर्थ भाव में बृहस्पति, सप्तम में बुध और लग्न में चंद्र बुद्धिमता दर्शाते हैं। महिला का विवाह संपन्न एवं संस्कार युक्त परिवार में अधिक अवस्था में हुआ। सप्तम भाव पाप मध्य में है और इस पर शनि की दृष्टि है। महिला विवाह के कुछ समय उपरांत ही घर से अलग हो गई। महिला दो पुत्रों की माता है। जीवन में बहुत कुछ ठीक ही मिला है, परंतुु सदैव असंतुष्ट रहती है। स्वयं को बहुत योग्य समझती है और चाहती है कि सभी कार्य उसके मतानुसार हों। पति को कुछ नहीं समझती, बच्चों को बहुत डांटती व मारती है। धन की कमी नहीं है, व्यवसाय भी ठीक चल रहा है, परिवार भी है, परंतु उसके स्वभाव की कमी के कारण सारा परिवार दुःखी है। स्वभाव का यह वैषम्य मन की, अंतःकरण की विचित्रता के कारण है। बुद्धिमŸाा के कारण अहं की अधिकता है और चंद्र-शनि युति पर दुष्प्रभावों के कारण ही सनक जैसी स्थिति है।

2. जातक का लग्न वृष है जिस पर भाग्य भाव से शनि राशि स्थित केतु की दृष्टि है और मंगल तथा बृहस्पति का केंद्रीय प्रभाव है। इस कारण इन्हें पर्याप्त जमीन जायदाद व धन सब संबंधों से प्राप्त हुआ है। लग्नेश शुक्र तृतीय भाव में चंद्र की कर्क राशि में है और सूर्य और बुध से युत है जो क्रमशः चतुर्थ और द्वितीय तथा पंचम भाव के स्वामी हैं। अतः पूर्व जन्म के कर्मों का लाभ इन्हें धन-संपŸिा के रूप में प्राप्त हुआ है। इनकी शिक्षा साधारण है, क्योंकि पंचमेश बुध तथा बृहस्पति (अष्टमेश) दोनों पीड़ित हैं तथा बृहस्पति पंचम से द्वादश भाव में है। इनके दो पुत्र हैं और दोनोें ही अयोग्य तथा धन को व्यर्थ व्यय करने वाले हैं। पंचम भाव पर केतु की दृष्टि है शनि की मकर राशि से। पंचमेश बुध तृतीय भाव में कर्क राशि में सूर्य तथा राहु से पीड़ित है। पंचम भाव तथा पंचमेश शनि (मकर) तथा चंद्र (कर्क) के प्रभाव में हैं। शनि चंद्र की युति में हैं। शनि की चंद्र की युति द्वितीय भाव में बुध की मिथुन राशि में हैं, अर्थात् युति बुध के प्रभाव में है और धनभाव में है। संतान कारक तथा धनकारक बृहस्पति पंचम से द्वादश भाव-चतुर्थ भाव में मंगल (द्वादशेश) से पीड़ित है। अतः संतान धन बर्बाद करेगी। चंद्र-शनि की युति द्वितीय भाव में जो वाणी का भी कारक है। चंद्र क्षीण है और शनि से युत है तो मन दुर्बल है, अतः वाणी भी दुर्बल है। ये सज्जन दूसरों के द्वारा अपने विचारों को अभिव्यक्त करते हैं। संतान के कारण मन पीड़ित है।


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3. यह महिला तुला लग्न में जन्मी है जिस पर पंचम भाव से शनि राशि मकर स्थित केतु की दृष्टि है। वक्री बृहस्पति का केंद्रीय प्रभाव भी है। लग्नेश शुक्र राहु-केतु अक्षर पर सूर्य की राशि सिंह में स्थित है। शुक्र की दूसरी राशि वृष-अष्टम भाव में है, अतः शुक्र कम बली है, परंतु लग्नेश होकर सप्तमेश मंगल द्वादश भाव में सूर्य (लाभेश) तथा बुध (भाग्येश व द्वादशेश) के साथ द्वादश भाव में स्थित है। ग्रहों और भावों के दो संबंध महिला का विदेश में धन संपŸिा संग्रह बता रहा है। महिला अमेरिका में बसे एक समृद्ध भारतीय परिवार की वधू है और एक पुत्र तथा एक पुत्री की माता है। चंद्र-शनि की तृतीय भाव पर द्वादश भाव से धनेश मंगल की तथा लाभ भाव से राहु की दृष्टि है। इस संबंध ने महिला को प्रबल तर्क शक्ति दी है और यही उसकी सबक भी बन गई है। वह सब कार्यों को व्यवस्थित रूप से करना चाहती है और दूसरों से भी ऐसा करने की आशा करती है। इनकी कुंडली में विशेषता है वक्री शनि तथा वक्री बृहस्पति का स्थान परिवर्तन योग।

4. इस जातक का लग्न कंुभ है जिस पर उच्च चंद्र, शनि सूर्य, बुध व शुक्र का केंद्रीय प्रभाव है और पंचम भाव से उच्चाभिलाषी परंतु वक्री बृहस्पति की दृष्टि है। अतः लग्न बली है। लग्नेश शनि वक्री होकर चंद्र से युत होकर केंद्र में चतुर्थ भाव में स्थित है और इस पर दशम भाव से सप्तमेश सूर्य, नवमेश व चतुर्थेश शुक्र तथा अष्टमेश व पंचमेश बुध की दृष्टि है। यह बालक जन्म से ही बहुत कमजोर दृष्टि वाला था, परंतु दो वर्ष की आयु में इसके नेत्रों की शल्य-चिकित्सा की गई। इसके बाद इसकी दृष्टि में बहुत सुधार हुआ। जातक के षष्ठ भाव पर मंगल तथा शनि (व) की दृष्टि है और षष्ठेश चंद्र चतुर्थ भाव में शनि के साथ है। चंद्र और सूर्य नेत्रकारक हैं। सूर्य दशम भाव में शनि से दृष्ट है तथा अष्टमेश बुध के साथ युत है। कालपुरुष के नेत्र वृष राशि व मीन राशि द्वारा व्यक्त होते हैं। वृष राशि में शनि स्थित है और मीन राशि का स्वामी बृहस्पति अष्टमेश बुध की राशि में राहु से युत है कंुडली के तृतीय भाव में मीन राशि है और द्वादश भाव में मंगल शनि की राशि में है। अतः नेत्रों को व्यक्त करने वाले सभी कारक शनि से प्रभावित हैं, परंतु साथ में शुभत्व भी है। चंद्र उच्च है, सूर्य पर दृष्टि है, चंद्र पूर्णिमा का है। अतः शल्य-चिकित्सा के पश्चात् दृष्टि में बहुत सुधार होने के पश्चात् पढ़ने की इच्छा सनक के रूप में जागृत हुई। कोई भी कागज या वस्तु देखते ही कह उठता है मैं इसे पढ़ रहा हूं। पढ़ सके या न पढ़ सके-पुस्तकों को खोलकर उनके पन्ने पलटता है। चतुर्थ भाव विद्या का कारक है, शायद यही उसकी इस सनक का कारण है।


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5. इस जातक का जन्म धनु लग्न में हुआ है। लग्न पर नवम भाव से सिंह राशि स्थित केतु की दृष्टि है। लग्न में वक्री बुध (सप्तमेश, दशमेश) व शुक्र (षष्ठेश व एकादशेश) स्थित हैं। लग्नेश बृहस्पति तुला राशि में एकादश भाव में स्थित है जिस पर पंचम भाव से मेष राशि स्थित चंद्र तथा शनि की दृष्टि है सप्तम भाव पाप दृष्टि मध्य (सूर्य, मंगल) में स्थित है। इस जातक का विवाह अभी तक नहीं हो पाया है। बृहस्पति-शुक्र का परिवर्तन योग है। जातक की शिक्षा पूर्ण है। कम्प्यूटर तथा बिजनेस मैनेजमेंट में पूर्ण शिक्षा है एकादश भाव से पंचम भाव पर बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि है। शनि नीच है, अतः शिक्षा में बीच-बीच में व्यवधान रहा। चंद्र उच्चाकांक्षी है। पंचम भाव पर नवम भाव से सिंह राशि स्थित केतु की भी दृष्टि है। अतः उच्चशिक्षा है जातक नम्र स्वभाव, सहनशील एवं सेवा भाव से युक्त है। सेवा करना उसकी सनक है। छोटे-बड़े, अपने-पराये, सब की सेवा कर उनकी प्रशंसा पाकर जातक प्रसन्न होता है। यह शायद चंद्र का नीच शनि से युति के कारण है।

6. इस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ। लग्न पर पंचम भाव से मंगल की राशि वृश्चिक से केतु की दृष्टि है। लग्न में नीच परंतु योग कारक के साथ है जो नीच भंग योग बना रहा है। बृहस्पति नवमेश है, अतः धर्म कार्यों में प्रवृŸिा दे रहा है। लग्नेश चंद्र षष्ठ भाव में वक्री शनि के साथ धनु राशि (स्वामी बृहस्पति) में स्थित है। जातक ने नेशनल मूवमेंट में सक्रिय भाग लिया और अलीपुर बमकांड में एक साल कारावास में रहा। उस समय चंद्र की महादशा चल रही थी (1902-1912)। यह कारावास काल जातक के लिए आत्मोन्नति कारक बन गया। 1910 के प्रारंभ में पांडिचेरी में संसार के मोह से अलग रह कर आध्यात्मिक लेखन में जुट गये और 1950 में मृत्यु तक जुटे रहे। 1931 से 1950 तक बृहस्पति की दशा थी, बृहस्पति उच्च का लग्न में है। चंद्र-शनि की युति ने उन्हें ऐसा शुभ उग्र कर्म पागलपन की हद तक करने की प्रेरणा दी। इसके लिए उन्हें संसार में मान-सम्मान मिला। उनकी एक कृति ‘सावित्री’ नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित हुई, पर पुरस्कार नहीं मिल पाया।

7. इस जातक का जन्म शनि की राशि मकर लग्न में हुआ। लग्न पर बृहस्पति, राहु, केतु का केंद्रीय प्रभाव है तथा सप्तम भाव से शनि तथा स्वगृही चंद्र की दृष्टि है। लग्नेश शनि सप्तम भाव में स्वगृही चंद्र के साथ युत होकर अपनी लग्न राशि को देख रहा है। सूर्य तथा बुध से युत मंगल की द्वादश भाव से शनि चंद्र युति पर दृष्टि है। द्वादश भाव में बृहस्पति की धनु राशि है, जहां अष्टमेश सूर्य, षष्ठेश व नवमेश बुध तथा चतुर्थेश व एकादशेश मंगल की युति है। यह योग जातक को विदेश से संबंधित कार्य बता रहा है। शुक्र इस कुंडली में योग कारक है जो पंचमेश तथा दशमेश है और द्वितीय भाव में शनि की कंुभ राशि में स्थित है। पंचमेश, दशमेश का द्वितीय स्थान में बैठना शिक्षा से संबंधित व्यवसाय से धनोपार्जन बताता है। द्वितीय भाव खान-पान से जुड़ा है। जहां शुक्र स्थित है। स्वगृही चंद्र भी खान-पान से जुड़ा है जो सप्तम भाव में स्थित है। सप्तम भाव व्यवसाय से जुड़ा है। जातक ने होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा किया, कुछ वर्ष विदेश में अनुभव लेकर अब भारत में ही प्रसिद्ध होटल के साथ जुड़े हैं। इन्हें अच्छे खाने पीने का जनून की हद तक शौक है। खाने की कोई भी अच्छी सुगंध वाली वस्तु उनके सामने आते ही उनके मुंह में पानी भर आता है।


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8. इस जातक का जन्म लग्न कंुभ है जिसका स्वामी शनि है। लग्न तथा सप्तम भाव 21 के अंश पर है। इस जातक के सच-झूठ के कोई मायने नहीं रहेंगे। लग्न में राहु स्थित है। लग्नेश शनि वक्री है और अष्टम भाव में चंद्र के साथ कन्या राशि में युति बना रहा है। सूर्य उच्च का होकर बृहस्पति तथा शुक्र के साथ युति में तीसरे भाव में है। तृतीय तथा दशम भाव का स्वामी मंगल है जो भाग्य भाव में स्थित है। बुध नीच है, शत्रु राशि में है और अष्टम भाव से शनि से दृष्ट है, अष्टमेश भी बुध है। यह संबंध दर्शाते हैं कि धन की कमाई का साधन सट्टा या शेयर बाजार से है। पंचम-अष्टम भाव का स्वामी बुध नौकरी में परेशानी बताता है। तृतीय तथा नवम भाव में शुक्र-मंगल का परिवर्तन तथा तृतीयेश दशमेश मंगल होना बड़े परिवर्तनों का सूचक है। चंद्र-शनि की युति षष्ठ (षष्ठेश चंद्र), अष्टम (युत इस भाव में), द्वादश तथा लगन (स्वामी शनि) भाव का संबंध नौकरी में खतरा तथा बड़े परिवर्तन को बता रहा है जातक को शनि की दशा में व्यावसायिक परिवर्तन बहुत हुए। आर्किटेक्ट का काम किया, जमीन-जायदाद में दलाली की, नौकरी छूटी, शेयरों की दलाली की। धीरे-धीरे यह हलाली सनक बन गई लेकिन सब कुछ गंवा दिया और दरिद्र बन गया। शनि की अंतिम दशा में पुनः शेयरों का कार्य आरंभ किया और आर्थिक रूप से कुछ स्थायित्व आया।

9. इस जातक का जन्म लग्न वृश्चिक है जिस पर सप्तम भाव से शत्रु राशि में स्थित बृहस्पति की दृष्टि है। लग्नेश मंगल षष्ठेश भी है और पंचम भाव में उच्च शुक्र के साथ स्थित है। दैवज्ञ नेमिचंद्र के अनुसार वायुयान चालक होना चाहिए। यह महिला जातक विमान परिचालिका का कार्य कर रही है। बुध षष्ठ भाव में उच्च के सूर्य तथा केतु से युत है। महिला को बुध/बुध दशा में त्वचा रोग हुआ। चंद्र और शनि की युति नवम भाव में कर्क राशि में है, तो चंद्र स्वगृही हुआ। चंद्र मन है, शनि से युत होने पर मन में कुछ असाधारणता तो होगी ही। इस महिला ने जिद से ही विमान परिचालिका का कार्य किया। घरवालों की सहमति नहीं थी। इसी प्रकार विवाह के लिए विशेष वर की जिद ने इसका विवाह अभी तक नहीं होने दिया। महिला में ऐसी जिद करने का गुण हैं, जो उसके भाग्य पर प्रभाव डालते हैं। नवम् भाव इच्छा शक्ति को भी व्यक्त करता है।


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10. सिंह लग्न में जन्मी इस महिला के लग्न पर बृहस्पति, शनि व चंद्र का केन्द्रीय प्रभाव है शनि मित्र राशि में तथा चंद्र उच्च है। लग्नेश सूर्य मित्र राशि में द्वादश भाव में केतु तथा बुध से युत है बुध लाभेश तथा धनेश होकर व्यय भाव में सूर्य तथा केतु से त्रस्त है द्वादश भाव पर मंगल तथा राहु का षष्ठ भाव से दुष्प्रभाव भी है। अतः महिला को धन संचय और लाभ के अवसर कम मिलेंगे, परंतु कर्म भाव मे ंउच्च चंद्र तथा शनि और इस पर नौकरी में उन्नति अवश्य देंगे। जातिका के सप्तम भाव पर शनि की दृष्टि है, षष्ठ भाव में मंगल-राहु की युति है और अष्टम भाव पर बृहस्पति, केतु की दृष्टि है। अतः विवाह में देरी है, महिला अभी तक अविवाहित है। चतुर्थ भाव में बृहस्पति, पंचमेश बृहस्पति तथा पंचम भाव पर शुक्र की दृष्टि (बुध की राशि मिथुन व एकादश भाव से) है। महिला एम.ए. (मैथ्स), बी.एड है। लेकिन इसे अवसर का लाभ उठाना नहीं आता। आलस्यवश कार्य को टालने की आदत है। शनि आलस्य का द्योतक है। इसलिए कर्म को देरी से करना स्वभाव बन गया है। इसी स्वभाव के कारण अच्छी नौकरी के अवसर, विवाह होने के अवसर हाथ से निकल गये।

11. इस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ जिस पर सूर्य, बुध व शुक्र का केंद्रीय प्रभाव है। शनि (व) तथा केतु की युति मंगल की तुला राशि, षष्ठ भाव से दृष्टि है। लग्नेश शुक्र शत्रु राशि सिंह में स्वगृही सूर्य और बुध के साथ युति में है। वक्री शुक्र पर द्वादश भाव से राहु की दृष्टि है। शु/श की दशा में जातक का चयन भारतीय विदेश सेवा (प्ण्थ्ण्ै) में हो गया। शुक्र लग्नेश है तथा षष्ठ भाव का भी स्वामी है। षष्ठ भाव पर उच्च बृहस्पति का केंद्रीय प्रभाव है जो प्रतियोगिता में सफलता का द्योतक है। शुक्र सूर्य के साथ चतुर्थ भाव में है, इसलिए उन्हें घर से मिलने वाली खुशियां प्राप्त हुईं। शु/सू में विवाह, शु/चं में पहला कार्य मिला, कार खरीदी, बच्ची हुई। परंतु शु/श की दशा में अध्यात्म की ओर रुझान हुआ और यह झुकाव दिन प्रतिदिन बढ़ता ही गया। चंद्र मन है, शनि वैराग्य का भी सूचक है; दोनों की युति बृहस्पति की मीन राशि में है और इस युति पर तृतीय भाव से उच्च बृहस्पति की दृष्टि भी है।

12. यह जातक सिंह लग्न में जन्मा, जिस पर शुक्र, राहु केतु का केंद्रीय प्रभाव है। लग्नेश सूर्य पंचम भाव में बृहस्पति की धनु राशि में, बुध तथा मंगल के युति में है। यह युति जातक को प्रसिद्धि देती है। बुध लाभेश तथा धनेश है और पंचम भाव में सूर्य के साथ है तो तीव्र बुद्धि, लेखन चातुर्य, सरकार से मान-सम्मान तथा धन प्राप्ति का योग दिया। तुला राशि से बृहस्पति की दृष्टि है और धन भाव पर स्वराशि चंद्र से युत शनि की व्यय भाव से दृष्टि है। चंद्र-शनि युति द्वादश भाव में मंगल तथा केतु से दृष्ट है।


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मंगल केंद्र-त्रिकोण अधिपति होकर त्रिकोण में स्थित है जो अच्छा योग कारक है। जातक एक प्रसिद्ध लेखक है। शिक्षा पूर्ण तथा शोधकार्य से युक्त है। धन पूर्ण है, परिवार सुखी है। चंद्र द्वादश भाव में आंख का प्रतिनिधि है, शनि से युत होने के कारण चश्मा पहनते हैं। चंद्र भावनामय मन है जो द्वादश स्थान में स्थित होकर जातक को अतिभावुक बना देता है और वह बिना किसी कारण पे्रम, श्रद्धा आदि कोमल भावनाओं कीे अपने अंदर रचना कर लेता है। इस अध्ययन के कुछ निष्कर्ष हैं-

1. सभी जातक शिक्षित हैं।

2. सभी जातक आर्थिक दृष्टि से संपन्न हैं।

3. सभी जातकोें की कोई न कोई विशेष मानसिकता है, जो चंद्र-शनि युति की भाव तथा राशि स्थिति पर निर्भर करता है।

4. यदि चंद्र शनि युति चंद्र अथवा शनि की राशि अथवा उच्च राशि में है तो युति अति शुभ फलदायी है।

5. लगभग 80ः जातक साधारण तथा शीलवान हैं।

6. शनि का प्रभाव चंद्र पर अधिक है, परंतु चंद्र का शनि पर कम है, अतः मानसिकता में परिवर्तन अधिक पाया गया है। साधारण मस्तिष्क का अनुशासन, अधिक ध्यान देना, अच्छी शिक्षा और अच्छा व्यवहार आदि कारण यह युति दे रही है।

इस धरती पर जन्म लेने वाले हर प्राणी के लिए उसका जन्म-क्षण बहुत महत्वपूर्ण होता है, ऐसी ज्योतिष ज्ञान की मान्यता है। इस क्षण को आधार मानकर ज्योतिष गणना द्वारा उसके सम्पूर्ण जीवन का लेखा-जोखा जन्मकुंडली से तैयार किया जा सकता है। इस बनाई गई कुंडली से इस जातक के जीवन में होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। जन्म कुंडली के बारह भावों में नौ ग्रह स्थित होकर शुभ तथा अशुभ योगों की रचना करते हैं। भारतीय ज्योतिष की मान्यतानुसार योगों की रचना कुछ आधारों पर की गई है जिनमें से एक है ग्रहों का परस्पर संबंध। इन संबंधों में से एक है ग्रहों की परस्पर युति अर्थात् एक ही भाव में दो या अधिक ग्रहों का एक साथ होना। किसी भी कुंडली का शुभत्व या अशुभत्व उस कुंडली के भिन्न-भिन्न भावों तथा राशियों में स्थित ग्रहों तथा उनसे बनने वाले योगों के मिश्रित फल से जाना जा सकता है।

जब योग भंग होते हैं तो उनका फल भी प्रभावहीन हो जाता है। इस प्रबंध में शनि तथा चंद्र की भिन्न-भिन्न भावों में, भिन्न-भिन्न राशियों में युति के फलों का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। चंद्र का एक नाम अमृत है और शनि का एक कारकत्व विष है। अतः चंद्र-शनि की युति अमृत-विष का योग बनाती है। चंद्रमा मन है और शनि विष अर्थात् अशुभ कर्ता। इन दोनों की युति का जातक के जीवन पर कैसा प्रभाव होगा, यह आकलन महत्वपूर्ण है। पुरातन ज्योतिष साहित्य में सभी प्रबुद्ध दैवज्ञों ने इस अमृत-विष युति के फल को अशुभ ही कहा है। इसके कुछ उदाहरण हैं- जातकभरणम्- दुराचारी, परजात, धनहीन; चमत्कार निंदक, धनहीन; बृहद्जातक व फलदीपिका - दूसरे पतिवाली स्त्री का पुत्र आदि। उपरोक्त फलों की पुष्टि के लिए चालीस जन्मपत्रिकाओं का अध्ययन किया गया। चंद्र-शनि युति किस भाव में है और किस राशि में, कौन से अन्य ग्रहों का इस युति पर क्या प्रभाव है- इन सब बातों को ध्यान में रखकर जन्म कुंडलियों का विश्लेषण किया गया, परंतु उपर्युक्त फलों और चंद्र-शनि युति में कोई सामंजस्य नहीं मिल पाया।


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अतः इस अध्ययन की आवश्यकता की अनुभूति हुई। यह सत्य है और सर्वमान्य है कि शनि पापग्रह व अशुभ ग्रह है, परंतु ऐसा भी माना गया है कि शनि अंत में शुभफल देने वाला ही होता है। चंद्र की शुभता-अशुभता उसके पूर्ण और क्षीण होने से मानी गई है। चंद्र मन है और शनि विष, तो इनकी युति को मन की विचित्रता को व्यक्त करना चाहिए। हमारे मत से सनकीपन का संबंध इस युति से होना चाहिए। किस प्रकार की मंथन मन की होगी, यह इस युति के भाव विशेष में स्थिति, उस भाव की राशि, इस युति पर अन्य ग्रहों की दृष्टि, अन्य योगों की उपस्थिति आदि पर निर्भर करेगी।

प्रत्येक भाव में इस युति का इस प्रकार होगा -

1. स्त्री जातक के लग्न में चंद्र व शनि की युति है और कुंभ राशि है। लग्न पर सप्तम भाव से बुध, षष्ठ भाव से मंगल तथा पंचम भाव से राहु की दृष्टि है। यह महिला पूर्ण शिक्षित है। पी॰एच॰डी॰ में व्यवधान हुआ, अतः नहीं कर सकी। शायद पंचम भाव में राहु के कारण ऐसा हुआ, अन्यथा केंद्र में चतुर्थ भाव में बृहस्पति, सप्तम में बुध और लग्न में चंद्र बुद्धिमता दर्शाते हैं। महिला का विवाह संपन्न एवं संस्कार युक्त परिवार में अधिक अवस्था में हुआ। सप्तम भाव पाप मध्य में है और इस पर शनि की दृष्टि है। महिला विवाह के कुछ समय उपरांत ही घर से अलग हो गई। महिला दो पुत्रों की माता है। जीवन में बहुत कुछ ठीक ही मिला है, परंतुु सदैव असंतुष्ट रहती है। स्वयं को बहुत योग्य समझती है और चाहती है कि सभी कार्य उसके मतानुसार हों। पति को कुछ नहीं समझती, बच्चों को बहुत डांटती व मारती है। धन की कमी नहीं है, व्यवसाय भी ठीक चल रहा है, परिवार भी है, परंतु उसके स्वभाव की कमी के कारण सारा परिवार दुःखी है। स्वभाव का यह वैषम्य मन की, अंतःकरण की विचित्रता के कारण है। बुद्धिमŸाा के कारण अहं की अधिकता है और चंद्र-शनि युति पर दुष्प्रभावों के कारण ही सनक जैसी स्थिति है।

2. जातक का लग्न वृष है जिस पर भाग्य भाव से शनि राशि स्थित केतु की दृष्टि है और मंगल तथा बृहस्पति का केंद्रीय प्रभाव है। इस कारण इन्हें पर्याप्त जमीन जायदाद व धन सब संबंधों से प्राप्त हुआ है। लग्नेश शुक्र तृतीय भाव में चंद्र की कर्क राशि में है और सूर्य और बुध से युत है जो क्रमशः चतुर्थ और द्वितीय तथा पंचम भाव के स्वामी हैं। अतः पूर्व जन्म के कर्मों का लाभ इन्हें धन-संपŸिा के रूप में प्राप्त हुआ है। इनकी शिक्षा साधारण है, क्योंकि पंचमेश बुध तथा बृहस्पति (अष्टमेश) दोनों पीड़ित हैं तथा बृहस्पति पंचम से द्वादश भाव में है। इनके दो पुत्र हैं और दोनोें ही अयोग्य तथा धन को व्यर्थ व्यय करने वाले हैं। पंचम भाव पर केतु की दृष्टि है शनि की मकर राशि से। पंचमेश बुध तृतीय भाव में कर्क राशि में सूर्य तथा राहु से पीड़ित है। पंचम भाव तथा पंचमेश शनि (मकर) तथा चंद्र (कर्क) के प्रभाव में हैं। शनि चंद्र की युति में हैं। शनि की चंद्र की युति द्वितीय भाव में बुध की मिथुन राशि में हैं, अर्थात् युति बुध के प्रभाव में है और धनभाव में है। संतान कारक तथा धनकारक बृहस्पति पंचम से द्वादश भाव-चतुर्थ भाव में मंगल (द्वादशेश) से पीड़ित है। अतः संतान धन बर्बाद करेगी। चंद्र-शनि की युति द्वितीय भाव में जो वाणी का भी कारक है। चंद्र क्षीण है और शनि से युत है तो मन दुर्बल है, अतः वाणी भी दुर्बल है। ये सज्जन दूसरों के द्वारा अपने विचारों को अभिव्यक्त करते हैं। संतान के कारण मन पीड़ित है।


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3. यह महिला तुला लग्न में जन्मी है जिस पर पंचम भाव से शनि राशि मकर स्थित केतु की दृष्टि है। वक्री बृहस्पति का केंद्रीय प्रभाव भी है। लग्नेश शुक्र राहु-केतु अक्षर पर सूर्य की राशि सिंह में स्थित है। शुक्र की दूसरी राशि वृष-अष्टम भाव में है, अतः शुक्र कम बली है, परंतु लग्नेश होकर सप्तमेश मंगल द्वादश भाव में सूर्य (लाभेश) तथा बुध (भाग्येश व द्वादशेश) के साथ द्वादश भाव में स्थित है। ग्रहों और भावों के दो संबंध महिला का विदेश में धन संपŸिा संग्रह बता रहा है। महिला अमेरिका में बसे एक समृद्ध भारतीय परिवार की वधू है और एक पुत्र तथा एक पुत्री की माता है। चंद्र-शनि की तृतीय भाव पर द्वादश भाव से धनेश मंगल की तथा लाभ भाव से राहु की दृष्टि है। इस संबंध ने महिला को प्रबल तर्क शक्ति दी है और यही उसकी सबक भी बन गई है। वह सब कार्यों को व्यवस्थित रूप से करना चाहती है और दूसरों से भी ऐसा करने की आशा करती है। इनकी कुंडली में विशेषता है वक्री शनि तथा वक्री बृहस्पति का स्थान परिवर्तन योग।

4. इस जातक का लग्न कंुभ है जिस पर उच्च चंद्र, शनि सूर्य, बुध व शुक्र का केंद्रीय प्रभाव है और पंचम भाव से उच्चाभिलाषी परंतु वक्री बृहस्पति की दृष्टि है। अतः लग्न बली है। लग्नेश शनि वक्री होकर चंद्र से युत होकर केंद्र में चतुर्थ भाव में स्थित है और इस पर दशम भाव से सप्तमेश सूर्य, नवमेश व चतुर्थेश शुक्र तथा अष्टमेश व पंचमेश बुध की दृष्टि है। यह बालक जन्म से ही बहुत कमजोर दृष्टि वाला था, परंतु दो वर्ष की आयु में इसके नेत्रों की शल्य-चिकित्सा की गई। इसके बाद इसकी दृष्टि में बहुत सुधार हुआ। जातक के षष्ठ भाव पर मंगल तथा शनि (व) की दृष्टि है और षष्ठेश चंद्र चतुर्थ भाव में शनि के साथ है। चंद्र और सूर्य नेत्रकारक हैं। सूर्य दशम भाव में शनि से दृष्ट है तथा अष्टमेश बुध के साथ युत है। कालपुरुष के नेत्र वृष राशि व मीन राशि द्वारा व्यक्त होते हैं। वृष राशि में शनि स्थित है और मीन राशि का स्वामी बृहस्पति अष्टमेश बुध की राशि में राहु से युत है कंुडली के तृतीय भाव में मीन राशि है और द्वादश भाव में मंगल शनि की राशि में है। अतः नेत्रों को व्यक्त करने वाले सभी कारक शनि से प्रभावित हैं, परंतु साथ में शुभत्व भी है। चंद्र उच्च है, सूर्य पर दृष्टि है, चंद्र पूर्णिमा का है। अतः शल्य-चिकित्सा के पश्चात् दृष्टि में बहुत सुधार होने के पश्चात् पढ़ने की इच्छा सनक के रूप में जागृत हुई। कोई भी कागज या वस्तु देखते ही कह उठता है मैं इसे पढ़ रहा हूं। पढ़ सके या न पढ़ सके-पुस्तकों को खोलकर उनके पन्ने पलटता है। चतुर्थ भाव विद्या का कारक है, शायद यही उसकी इस सनक का कारण है।

5. इस जातक का जन्म धनु लग्न में हुआ है। लग्न पर नवम भाव से सिंह राशि स्थित केतु की दृष्टि है। लग्न में वक्री बुध (सप्तमेश, दशमेश) व शुक्र (षष्ठेश व एकादशेश) स्थित हैं। लग्नेश बृहस्पति तुला राशि में एकादश भाव में स्थित है जिस पर पंचम भाव से मेष राशि स्थित चंद्र तथा शनि की दृष्टि है सप्तम भाव पाप दृष्टि मध्य (सूर्य, मंगल) में स्थित है। इस जातक का विवाह अभी तक नहीं हो पाया है। बृहस्पति-शुक्र का परिवर्तन योग है। जातक की शिक्षा पूर्ण है। कम्प्यूटर तथा बिजनेस मैनेजमेंट में पूर्ण शिक्षा है एकादश भाव से पंचम भाव पर बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि है। शनि नीच है, अतः शिक्षा में बीच-बीच में व्यवधान रहा। चंद्र उच्चाकांक्षी है। पंचम भाव पर नवम भाव से सिंह राशि स्थित केतु की भी दृष्टि है। अतः उच्चशिक्षा है जातक नम्र स्वभाव, सहनशील एवं सेवा भाव से युक्त है। सेवा करना उसकी सनक है। छोटे-बड़े, अपने-पराये, सब की सेवा कर उनकी प्रशंसा पाकर जातक प्रसन्न होता है। यह शायद चंद्र का नीच शनि से युति के कारण है।


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6. इस जातक का जन्म कर्क लग्न में हुआ। लग्न पर पंचम भाव से मंगल की राशि वृश्चिक से केतु की दृष्टि है। लग्न में नीच परंतु योग कारक के साथ है जो नीच भंग योग बना रहा है। बृहस्पति नवमेश है, अतः धर्म कार्यों में प्रवृŸिा दे रहा है। लग्नेश चंद्र षष्ठ भाव में वक्री शनि के साथ धनु राशि (स्वामी बृहस्पति) में स्थित है। जातक ने नेशनल मूवमेंट में सक्रिय भाग लिया और अलीपुर बमकांड में एक साल कारावास में रहा। उस समय चंद्र की महादशा चल रही थी (1902-1912)। यह कारावास काल जातक के लिए आत्मोन्नति कारक बन गया। 1910 के प्रारंभ में पांडिचेरी में संसार के मोह से अलग रह कर आध्यात्मिक लेखन में जुट गये और 1950 में मृत्यु तक जुटे रहे। 1931 से 1950 तक बृहस्पति की दशा थी, बृहस्पति उच्च का लग्न में है। चंद्र-शनि की युति ने उन्हें ऐसा शुभ उग्र कर्म पागलपन की हद तक करने की प्रेरणा दी। इसके लिए उन्हें संसार में मान-सम्मान मिला। उनकी एक कृति ‘सावित्री’ नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित हुई, पर पुरस्कार नहीं मिल पाया।

7. इस जातक का जन्म शनि की राशि मकर लग्न में हुआ। लग्न पर बृहस्पति, राहु, केतु का केंद्रीय प्रभाव है तथा सप्तम भाव से शनि तथा स्वगृही चंद्र की दृष्टि है। लग्नेश शनि सप्तम भाव में स्वगृही चंद्र के साथ युत होकर अपनी लग्न राशि को देख रहा है। सूर्य तथा बुध से युत मंगल की द्वादश भाव से शनि चंद्र युति पर दृष्टि है। द्वादश भाव में बृहस्पति की धनु राशि है, जहां अष्टमेश सूर्य, षष्ठेश व नवमेश बुध तथा चतुर्थेश व एकादशेश मंगल की युति है। यह योग जातक को विदेश से संबंधित कार्य बता रहा है। शुक्र इस कुंडली में योग कारक है जो पंचमेश तथा दशमेश है और द्वितीय भाव में शनि की कंुभ राशि में स्थित है। पंचमेश, दशमेश का द्वितीय स्थान में बैठना शिक्षा से संबंधित व्यवसाय से धनोपार्जन बताता है। द्वितीय भाव खान-पान से जुड़ा है। जहां शुक्र स्थित है। स्वगृही चंद्र भी खान-पान से जुड़ा है जो सप्तम भाव में स्थित है। सप्तम भाव व्यवसाय से जुड़ा है। जातक ने होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा किया, कुछ वर्ष विदेश में अनुभव लेकर अब भारत में ही प्रसिद्ध होटल के साथ जुड़े हैं। इन्हें अच्छे खाने पीने का जनून की हद तक शौक है। खाने की कोई भी अच्छी सुगंध वाली वस्तु उनके सामने आते ही उनके मुंह में पानी भर आता है।

8. इस जातक का जन्म लग्न कंुभ है जिसका स्वामी शनि है। लग्न तथा सप्तम भाव 21 के अंश पर है। इस जातक के सच-झूठ के कोई मायने नहीं रहेंगे। लग्न में राहु स्थित है। लग्नेश शनि वक्री है और अष्टम भाव में चंद्र के साथ कन्या राशि में युति बना रहा है। सूर्य उच्च का होकर बृहस्पति तथा शुक्र के साथ युति में तीसरे भाव में है। तृतीय तथा दशम भाव का स्वामी मंगल है जो भाग्य भाव में स्थित है। बुध नीच है, शत्रु राशि में है और अष्टम भाव से शनि से दृष्ट है, अष्टमेश भी बुध है। यह संबंध दर्शाते हैं कि धन की कमाई का साधन सट्टा या शेयर बाजार से है। पंचम-अष्टम भाव का स्वामी बुध नौकरी में परेशानी बताता है। तृतीय तथा नवम भाव में शुक्र-मंगल का परिवर्तन तथा तृतीयेश दशमेश मंगल होना बड़े परिवर्तनों का सूचक है। चंद्र-शनि की युति षष्ठ (षष्ठेश चंद्र), अष्टम (युत इस भाव में), द्वादश तथा लगन (स्वामी शनि) भाव का संबंध नौकरी में खतरा तथा बड़े परिवर्तन को बता रहा है जातक को शनि की दशा में व्यावसायिक परिवर्तन बहुत हुए। आर्किटेक्ट का काम किया, जमीन-जायदाद में दलाली की, नौकरी छूटी, शेयरों की दलाली की। धीरे-धीरे यह हलाली सनक बन गई लेकिन सब कुछ गंवा दिया और दरिद्र बन गया। शनि की अंतिम दशा में पुनः शेयरों का कार्य आरंभ किया और आर्थिक रूप से कुछ स्थायित्व आया।


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9. इस जातक का जन्म लग्न वृश्चिक है जिस पर सप्तम भाव से शत्रु राशि में स्थित बृहस्पति की दृष्टि है। लग्नेश मंगल षष्ठेश भी है और पंचम भाव में उच्च शुक्र के साथ स्थित है। दैवज्ञ नेमिचंद्र के अनुसार वायुयान चालक होना चाहिए। यह महिला जातक विमान परिचालिका का कार्य कर रही है। बुध षष्ठ भाव में उच्च के सूर्य तथा केतु से युत है। महिला को बुध/बुध दशा में त्वचा रोग हुआ। चंद्र और शनि की युति नवम भाव में कर्क राशि में है, तो चंद्र स्वगृही हुआ। चंद्र मन है, शनि से युत होने पर मन में कुछ असाधारणता तो होगी ही। इस महिला ने जिद से ही विमान परिचालिका का कार्य किया। घरवालों की सहमति नहीं थी। इसी प्रकार विवाह के लिए विशेष वर की जिद ने इसका विवाह अभी तक नहीं होने दिया। महिला में ऐसी जिद करने का गुण हैं, जो उसके भाग्य पर प्रभाव डालते हैं। नवम् भाव इच्छा शक्ति को भी व्यक्त करता है।

10. सिंह लग्न में जन्मी इस महिला के लग्न पर बृहस्पति, शनि व चंद्र का केन्द्रीय प्रभाव है शनि मित्र राशि में तथा चंद्र उच्च है। लग्नेश सूर्य मित्र राशि में द्वादश भाव में केतु तथा बुध से युत है बुध लाभेश तथा धनेश होकर व्यय भाव में सूर्य तथा केतु से त्रस्त है द्वादश भाव पर मंगल तथा राहु का षष्ठ भाव से दुष्प्रभाव भी है। अतः महिला को धन संचय और लाभ के अवसर कम मिलेंगे, परंतु कर्म भाव मे ंउच्च चंद्र तथा शनि और इस पर नौकरी में उन्नति अवश्य देंगे। जातिका के सप्तम भाव पर शनि की दृष्टि है, षष्ठ भाव में मंगल-राहु की युति है और अष्टम भाव पर बृहस्पति, केतु की दृष्टि है। अतः विवाह में देरी है, महिला अभी तक अविवाहित है। चतुर्थ भाव में बृहस्पति, पंचमेश बृहस्पति तथा पंचम भाव पर शुक्र की दृष्टि (बुध की राशि मिथुन व एकादश भाव से) है। महिला एम.ए. (मैथ्स), बी.एड है। लेकिन इसे अवसर का लाभ उठाना नहीं आता। आलस्यवश कार्य को टालने की आदत है। शनि आलस्य का द्योतक है। इसलिए कर्म को देरी से करना स्वभाव बन गया है। इसी स्वभाव के कारण अच्छी नौकरी के अवसर, विवाह होने के अवसर हाथ से निकल गये।

11. इस जातक का जन्म वृष लग्न में हुआ जिस पर सूर्य, बुध व शुक्र का केंद्रीय प्रभाव है। शनि (व) तथा केतु की युति मंगल की तुला राशि, षष्ठ भाव से दृष्टि है। लग्नेश शुक्र शत्रु राशि सिंह में स्वगृही सूर्य और बुध के साथ युति में है। वक्री शुक्र पर द्वादश भाव से राहु की दृष्टि है। शु/श की दशा में जातक का चयन भारतीय विदेश सेवा (प्ण्थ्ण्ै) में हो गया। शुक्र लग्नेश है तथा षष्ठ भाव का भी स्वामी है। षष्ठ भाव पर उच्च बृहस्पति का केंद्रीय प्रभाव है जो प्रतियोगिता में सफलता का द्योतक है। शुक्र सूर्य के साथ चतुर्थ भाव में है, इसलिए उन्हें घर से मिलने वाली खुशियां प्राप्त हुईं। शु/सू में विवाह, शु/चं में पहला कार्य मिला, कार खरीदी, बच्ची हुई। परंतु शु/श की दशा में अध्यात्म की ओर रुझान हुआ और यह झुकाव दिन प्रतिदिन बढ़ता ही गया। चंद्र मन है, शनि वैराग्य का भी सूचक है; दोनों की युति बृहस्पति की मीन राशि में है और इस युति पर तृतीय भाव से उच्च बृहस्पति की दृष्टि भी है।


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12. यह जातक सिंह लग्न में जन्मा, जिस पर शुक्र, राहु केतु का केंद्रीय प्रभाव है। लग्नेश सूर्य पंचम भाव में बृहस्पति की धनु राशि में, बुध तथा मंगल के युति में है। यह युति जातक को प्रसिद्धि देती है। बुध लाभेश तथा धनेश है और पंचम भाव में सूर्य के साथ है तो तीव्र बुद्धि, लेखन चातुर्य, सरकार से मान-सम्मान तथा धन प्राप्ति का योग दिया। तुला राशि से बृहस्पति की दृष्टि है और धन भाव पर स्वराशि चंद्र से युत शनि की व्यय भाव से दृष्टि है। चंद्र-शनि युति द्वादश भाव में मंगल तथा केतु से दृष्ट है।

मंगल केंद्र-त्रिकोण अधिपति होकर त्रिकोण में स्थित है जो अच्छा योग कारक है। जातक एक प्रसिद्ध लेखक है। शिक्षा पूर्ण तथा शोधकार्य से युक्त है। धन पूर्ण है, परिवार सुखी है। चंद्र द्वादश भाव में आंख का प्रतिनिधि है, शनि से युत होने के कारण चश्मा पहनते हैं। चंद्र भावनामय मन है जो द्वादश स्थान में स्थित होकर जातक को अतिभावुक बना देता है और वह बिना किसी कारण पे्रम, श्रद्धा आदि कोमल भावनाओं कीे अपने अंदर रचना कर लेता है। इस अध्ययन के कुछ निष्कर्ष हैं-

1. सभी जातक शिक्षित हैं।

2. सभी जातक आर्थिक दृष्टि से संपन्न हैं।

3. सभी जातकोें की कोई न कोई विशेष मानसिकता है, जो चंद्र-शनि युति की भाव तथा राशि स्थिति पर निर्भर करता है।

4. यदि चंद्र शनि युति चंद्र अथवा शनि की राशि अथवा उच्च राशि में है तो युति अति शुभ फलदायी है।

5. लगभग 80ः जातक साधारण तथा शीलवान हैं।

6. शनि का प्रभाव चंद्र पर अधिक है, परंतु चंद्र का शनि पर कम है, अतः मानसिकता में परिवर्तन अधिक पाया गया है। साधारण मस्तिष्क का अनुशासन, अधिक ध्यान देना, अच्छी शिक्षा और अच्छा व्यवहार आदि कारण यह युति दे रही है।



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