अद्भुत चमत्कारी है - श्रीयंत्र

अद्भुत चमत्कारी है - श्रीयंत्र  

नवीन राहुजा
व्यूस : 5170 | नवेम्बर 2010

हमारे शास्त्रों में अनेक प्रकार के यंत्रों का उल्लेख है जैसे मंगल यंत्र, विजय यंत्र, चैंतीस यंत्र आदि। परंतु संपूर्ण यंत्र विज्ञान एवं शास्त्र में केवल ‘श्री’ यंत्र को ही सर्वोपरि एवं महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। संपूर्ण यंत्र विज्ञान एवं हमारे शास्त्रों में केवल श्रीयंत्र को ही सर्वसिद्धिदाता, धनदाता तथा ‘श्री’ दाता अर्थात् लक्ष्मी देने वाला कहा गया है। श्री यंत्र लक्ष्मी जी का सर्वाधिक प्रिय यंत्र है। हमारे शास्त्रों में भी श्रीयंत्र को सभी यंत्रों में सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। लक्ष्मी जी स्वयं कहती हैं कि श्रीयंत्र तो मेरा आधार है, इसमें मेरी आत्मा तथा स्वयं मैं वास करती हूं। वास्तविकता में इसके प्रभाव से दरिद्रता व्यक्ति के पास भी नहीं फटकती।

लक्ष्मी जी को यह यंत्र कितना प्रिय है तथा इसकी चमत्कारी महिमा का हम हमारे शास्त्रों में उल्लेख इस सत्य कथा द्वारा भी समझ सकते हैं- एक बार मां लक्ष्मी जी किसी कारण से अप्रसन्न होकर बैकुण्ठ धाम चली गई थी। इससे पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार की समस्याएं प्रकट हो गईं। ब्राह्मण, वैश्य आदि सभी लोग लक्ष्मी के अभाव में दीन-हीन और असहाय होकर इधर-उधर मारे-मारे घूमने लगे। तब ब्राह्मणों में श्रेष्ठ वशिष्ठ ने निश्चय किया कि मैं लक्ष्मी जी को प्रसन्न कर इस पृथ्वी पर लाऊँगा। वशिष्ठ तत्काल जाकर बैकुण्ठ में लक्ष्मी जी से मिले तो उन्हें ज्ञात हुआ कि ममतामयी मां लक्ष्मी अप्रसन्न हैं तथा किसी भी स्थिति में भूतल पर आने को तैयार नहीं हैं। तब वशिष्ठ वहां बैठकर भगवान श्री विष्णु जी की आराधना करने लगे। जब भगवान श्री विष्णु प्रसन्न होकर प्रकट हुए तो वशिष्ठ ने कहा-‘‘हे प्रभो! लक्ष्मी के अभाव में हम सभी पृथ्वी वासी पीड़ित हैं।

आश्रम उजड़ गये हैं। सभी वर्ग के लोग दुखी हैं। सारा व्यवसाय तहस-नहस हो गया, मुख मुरझा गये हैं, आशा-निराशा में बदल चुकी है तथा जीवन के प्रति उत्साह और उमंग समाप्त हो गया है।’’ श्री विष्णु तुरंत वशिष्ठ को साथ लेकर लक्ष्मी के पास गये और उन्हें मनाने लगे, परंतु लक्ष्मी रूठी ही रहीं और अप्रसन्न रूप में दृढ़तापूर्वक कहा- ‘‘मैं किसी भी स्थिति में पृथ्वी पर जाने के लिए तैयार नहीं हूं।’’ उदास मन और खिन्न अवस्था में वशिष्ठ पुनः पृथ्वी लोक में लौट आये और लक्ष्मी जी के निर्णय से सबको अवगत करा दिया। सभी किंकर्तव्यविमूढ़ थे कि अब क्या किया जाए? तब देवताओं के गुरु बृहस्पति जी ने कहा कि अब तो मात्र एक ही उपाय है और वह है ‘‘श्रीयंत्र’’ की साधना।

यदि श्री यंत्र को स्थापित कर प्राण-प्रतिष्ठा कर पूजा की जाए तो लक्ष्मी को अवश्य ही आना पड़ेगा। गुरु बृहस्पति की बात से ऋषि-महर्षियों के मन में आनंद व्याप्त हो गया और उन्होंने बृहस्पति के निर्देशन में श्रीयंत्र का निर्माण किया और उसे मंत्र सिद्ध एवं प्राण-प्रतिष्ठा कर दीपावली से दो दिन पूर्व अर्थात् धन तेरस को स्थापित कर षोडशोपचार से पूजन किया। पूजा समाप्त होते ही लक्ष्मी वहां उपस्थित हो गई और कहा कि मैं किसी भी स्थिति में यहां आने के लिए तैयार नहीं थी परंतु आपने जो प्रयोग किया उससे मुझे आना ही पड़ा। लक्ष्मी जी ने स्वयं कहा- ‘‘श्रीयंत्र ही तो मेरा आधार है और इसमें स्वयं मैं तथा मेरी आत्मा वास करती है।’’ श्रीयंत्र की रचना भी बहुत अनोखी है। पांच त्रिकोण के नीचे के भाग के ऊपर चार त्रिकोण जिनका ऊपरी भाग नीचे की तरफ है, इस संयोजन से 43 त्रिकोण बनते हैं। इन 43 त्रिकोणों को घेरते हुए दो कमल दल हैं।

पहला कमल अष्ट दल का है और दूसरा बाहरी कमल षोडश दल का है। इन दो कमल दल के बाहर तीन वृत हैं और उसके बाहर हैं तीन चैरस जिन्हें भूपुर कहते हैं। संपूर्ण यंत्र विज्ञान एवं हमारे शास्त्रों में केवल श्रीयंत्र को ही सर्वसिद्धिदाता, धनदाता तथा ‘श्री’ दाता अर्थात् लक्ष्मी देने वाला कहा गया है। श्रीयंत्र स्थापित करके लक्ष्मी को अपने जीवन में स्थाई रूप से स्थापित कीजिए।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.