कैंसर एक अभिशाप

कैंसर एक अभिशाप  

व्यूस : 5050 | जनवरी 2009
कैंसर : एक अभिशाप आचार्य अविनाश सिंह, दिल्ली कैंसर एक असाधारण रोग है। रोगी को अगर डॉक्टर-वैद्य यह बता दें कि उसे कैंसर हो गया है, तो उसी पल रोगी को मृत्यु सामने नजर आने लगती है। उसकी भूख-प्यास समाप्त हो जाती है। चिंताएं उसे घेर लेती हैं और हर वक्त मृत्यु के देवता यमराज उसके अपने जीवन रथ के सारथी बने नजर आते हैं। कुल मिला कर व्यक्ति जिंदा लाश की भांति अपनी शेष जिंदगी जीता है। आइए ज्योतिषीय दृष्टि से कैंसर के कारणों को समझने का प्रयास करते हैं। वास्तव में कैंसर एक गंभीर रोग है। कैंसर शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है। शरीर के किसी भी अंग या भाग की कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से विभक्त हो कर उस अंग में गांठ ;ज्नउवनतद्ध बना देती हैं, तो कैंसर रोग होता है। इन गांठ-कोषों में एक विशेष प्रकार के प्रोटीन का निर्माण होता है, जो अन्य स्वस्थ्य कोशिकाओं के लिए विष का कार्य करता है। साथ ही गांठ की कोशिकाएं अपनी प्रमुख कोशिकाओं से लग कर रक्त द्वारा शरीर के अन्य भागों में पहुंच जाती हैं और वहां भी अपने प्रभाव से नयी गांठ पैदा कर देती हैं। इस प्रकार धीरे-ध् ाीरे इन गांठों की संखया शरीर में इतनी अधिक हो जाती है कि शरीर उसे सहन नहीं कर पाता और अंत में रोग के दबाव से व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होता है। कैंसर की इन गांठों को, अपने विकास के लिए, आक्सीजन ;व्2द्ध तथा सभी पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, जो उसे शरीर में मिलते रहते हैं। यदि किसी कारण से यह पोषक तत्व रक्त द्वारा न मिले, तो गांठ काली पड़ जाती है और धीरे-धीरे सिकुड़ कर नष्ट हो जाती हैं, या फिर कैंसर की कोशिकाएं अन्य स्वस्थ कोशिकाओं पर आक्रमण कर के उन्हें नष्ट कर देती हैं और उनमें मौजूद पोषक तत्वों को ग्रहण कर के अपने अस्तित्व को बनाए रखने में जुट जाती हैं। शुरू में कैंसर की गांठों में पीड़ा नहीं होती। पर बाद में वेदना में वृद्धि होती चली जाती है, जो कभी-कभी असहनीय हो जाती है। कैंसर की गांठ फटने से घाव से रक्त तथा मवाद का स्राव शुरू हो जाता है। इसकी पीड़ा और आकार को किसी भी औषध्ि ा से कम नहीं किया जा सकता। यदि रोग शुरू होने के बाद, जितनी जल्दी हो सके, चिकित्सा शुरू कर दी जाए, तो रोग को रोका जा सकता है, इसलिए आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति को कैंसर की शुरुआत होने के कारणों एवं लक्षणों का पता रहे। कैंसर के लक्षण त्र शरीर के मांसल भाग में अचानक गांठ का बन जाना, या मांस का सखत पड़ जाना कैंसर रोग के संकेत हो सकते हैं। इसलिए गांठ के पैदा हो जाने पर चिकित्सकों से सलाह अवश्य लें। त्र शरीर के किसी भी भाग में मस्से या तिल में अचानक वृद्धि होना और दर्द रहना भी कैंसर का संकेत हो सकता है, जिसकी जांच जरूरी है। त्र खाते-पीते वक्त गले में तकलीफ होना गले के कैंसर का संकेत हो सकता है। त्र पाचन क्रिया में अचानक गड़बड़, कब्ज रहना, या दस्त शुरू होना, शौच के वक्त दर्द होना, पेशाब में रुकावट या दर्द होना, ये सब संकेत बड़ी आंत या मूत्राशय आदि में कैंसर का हो सकता है। त्र स्त्रियों के स्तन में गांठ या गिल्टी का होना स्तन कैंसर का संकेत हो सकता है। स्त्रियों को स्वयं अपने हाथों से स्तन दबा कर देख लेना चाहिए। यदि कहीं त्वचा किसी भाग में सखत हो, या गांठ हो, तो चिकित्सक से परामर्श लें। चिकित्सा आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में कैंसर के उपचार हेतु शल्य क्रिया, विकिरण तथा कीमोथेरपी का सहारा लिया जाता है। शल्य चिकित्सा : शल्य चिकित्सा का सहारा उस वक्त लिया जाता है, जब कैंसर बहुत कम फैला हो और डॉक्टरों को यकीन हो कि कैंसर ग्रस्त भाग को काटने से रोगी ठीक हो जाएगा। रक्त कैंसर एवं स्नायु तंत्र के कैंसर में शल्य चिकित्सा का उपयोग नहीं किया जा सकता। शरीर के बाहरी अंग, जैसे स्तन, जनन अंग, त्वचा आदि और भीतरी अंग, जैसे आंतें, मलाशय, गर्भाशय, हड्डी आदि अंगों में हुए कैंसर की चिकित्सा के लिए शल्य चिकित्सा का सहारा लिया जाता है। गर्भाशय, स्तन, स्वर यंत्र आदि अंगों में कैंसर होने पर शल्य चिकित्सा द्वारा इन अंगों को काट कर निकाल दिया जाता है। उपरांत रोगी का जीवन सामान्य जैसा ही रहता है। उसमें विशेष परिवर्तन नहीं आता। विकिरण चिकित्सा : रेडीयोधर्मी किरणों की सहायता से कैंसर ग्रस्त भाग के उपचार को विकिरण चिकित्सा कहते हैं। इनमें मुखय है कोबाल्ट किरणें। इस उपचार में कैंसर ग्रस्त भाग को किरणों द्वारा गर्मी पहुंचायी जाती है, जो उस भाग की कोशिकाओं को प्रभावित करती है, जिससे उनकी विभाजन क्षमता नष्ट होती है। रेडीयोधर्मी किरणों का सामान्य कोशिकाओं की अपेक्षा कैंसर कोशिकाओं पर जल्द प्रभाव पड़ता है। अतः विकिरण की सहायता से कैंसर कोशिकाओं को आसानी से नष्ट किया जा सकता है और कैंसर गांठ का आकार छोटा हो जाता है। विकिरण चिकित्सा पूर्व कैंसरीय गांठ की स्थिति की सही जानकारी आवश्यक है। गांठ की स्थिति, आकार, प्रकृति तथा व्यक्ति की शारीरिक क्षमता के आधार पर विकिरण चिकित्सा की जाती है। कीमोथेरपी : यह एक रासायनिक चिकित्सा है। रसायनों की सहायता से कैंसर ग्रस्त भाग या अंग की (कैंसर) कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। रासायनिक चिकित्सा का प्रभाव व्यक्ति के संपूर्ण शरीर पर पड़ता है। ये सभी रसायन कोशिकाओं पर विष की तरह प्रभाव डालते हैं और कोशिका विभाजन को रोकते हैं, जिससे कैंसर की गांठें सिकुड़ने लगती हैं और ध्ीरे-ध्ीरे नष्ट हो जाती हैं। कैंसर रोगी के लिए आहार कैंसर रोगी को अपना आहार संतुलित रखना चाहिए। आहार में तली व मसालें दार भोजन नहीं करना चाहिए। हरी सब्जी साग, पालक, गाजर और मौसमी सब्जियों का प्रयोग अधिक करें। विटामिन प्रोटीन, सोडियम सल्फर, क्लोरिन, आयोडिन युक्त आहार रोगी को जल्द अच्छा करने में लाभकारी होता है। फलों में पपीता, अंगूर, अमरुद, अनार आदि कैंसर में लाभकारी रहते हैं, क्योंकि इन में विटामिन 'सी' भरपूर मात्रा में होता है और विटामिन 'सी' कैंसर रोग के लाभकारी है। इसके अलावा नींबू पानी दिन में दो-तीन बार पीएं। उबली हुई सब्जी, सूप, सलाद, पतला दलिया अंकुरित गेंहु, मूंग इत्यादि अल्प मात्रा में शुरूकर धीरे-ध् ाीरे सामान्य आहार पर लाएं। सेब का रस, गाजर, पपीता, पत्ता गोभी, अंगूर, किशमिश, मुनक्का, अनार, संतरा, मौसमी, शहद, तुलसी पत्ते, कच्चे फल एवं सब्जियां अत्यंत उपयोगी हैं। इनमें कैंसर अवरोधी तत्व पाए जाते हैं, इसलिए इसका भरपूर सेवन करें। चाय-काफी, तंबाकू-धूम्रपान, नशीले पदार्थ, चीनी-नमक, कोल्ड ड्रिंक्स, पान-मसाला, सुपारी, मिठाइयां, आइस्क्रीम, मांसाहारी भोजन इत्यादि का त्याग करें। इनसे कोसों दूर रहें। याद रखें इन्हीं के सेवन से शरीर में होने वाली प्राकृतिक क्रियों-प्रतिक्रियाओं में रुकावट आती है जिससे कई प्रकार के रोग उत्पन्न होते है, जिनमें कैंसर एक भंयकर रोग है। अतः अपने आहार को अगर प्राकृतिक और संतुलित रखा जाए तो कैंसर जैसे भंयकर रोग से बचा जा सकता है। कैंसर के ज्योतिषीय कारण ज्योतिष में काल पुरुष की कुंडली में सूर्य, चंद्र, छठा, आठवां, बारहवां भाव एवं उनके स्वामी, कर्क, कन्या, तुला, वृश्चिक और मीन राशि के दूषित प्रभाव में रहने से कैंसर रोग होता है। कैंसर रोग धीरे-धीरे शरीर में फैलता है और शनि-राहु पुरानी बीमारी और धीरे-धीरे फैलने वाली बीमारी के कारक होते हैं। इसलिए कैंसर इन्हीं के दूषित प्रभाव से होता है। काल पुरुष की कुंडली में जो भाव उपर्युक्त ग्रहों, राशियों के दुष्प्रभाव में रहता है, उसी भाव के अंग में कैंसर रोग होता है। कैंसर रोग शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है। आइए देखें, कैंसर विभिन्न अंगों में किन ग्रहों, राशियों के प्रभाव से होता है : सिर-दिमाग तथा मस्तिष्क : कुंडली में प्रथम भाव सिर-दिमाग और मस्तिष्क का होता है। सूर्य इस भाव का कारक होता है। मेष राशि भी सिर की कारक राशि है। मेष से छठी, आठवीं, बारहवीं राशियां परस्पर बुध, मंगल और गुरु की होती हैं। इसलिए सूर्य, बुध, मंगल, गुरु के प्रथम भाव में दुष्प्रभाव में रहने के कारण सिर का कैंसर होता है। मंगल लग्न में हो, सूर्य छठे भाव में, गुरु आठवें में, शनि ग्यारहवें में, राहु सूर्य के साथ रहे, चंद्र शनि से पीड़ित हो, तो सिर में गांठ ;ज्नउमतद्ध एवं कैंसर होता है। फेफड़े और श्वास नली : कुंडली में तृतीय भाव श्वास नली का होता है। फेफड़े श्वास नली से जुड़े रहते हैं। व्यक्ति श्वास लेता है, तो वायु श्वास नली द्वारा फेफड़ों में जाती है। यहां पर ऑक्सीजन अलग हो कर हमारे रक्त में चला जाता है। मिथुन राशि एवं बुध ग्रह श्वास नली के कारक हैं। चंद्र फेफड़ों का कारक है, इसलिए तृतीय भाव, मिथुन राशि, बुध एवं चंद्र के दुष्प्रभावों में रहने से फेफड़ों का कैंसर होता है। चंद्र-बुध का तृतीय स्थान पर षष्ठेश, अष्टमेश, शनि या राहु के प्रभाव में रहने से फेफड़ों का रोग होता है। चंद्र का शनि के साथ छठे या आठवें भाव में जाने और तृतीय स्थान के दुष्प्रभाव में रहने से भी फेफड़ों का कैंसर होता है। स्तन : कुंडली में चतुर्थ स्थान स्तन या छाती का होता है। कर्क राशि एवं चंद्र ग्रह चतुर्थ स्थान का कारक है, इसलिए चतुर्थ भाव, चंद्र एवं कर्क राशि के दुष्प्रभाव में रहने के कारण स्तन कैंसर होता है। कर्क राशि में राहु, चंद्र बाधक स्थान पर और बाध् ाक ग्रह का चतुर्थ स्थान में मित्र ग्रह के साथ रहना तथा राहु या केतु से दृष्ट एवं प्रभावित होना और लग्नेश का बाधक ग्रह के साथ होना या त्रिक स्थानों पर रहने से स्तन कैंसर होता है। पेट एवं आंतें : कुंडली में छठा भाव पेट एवं आंतों का होता है। कन्या राशि एवं बुध, चंद्र, सूर्य, शनि आंतों के कारक होते हैं। चतुर्थ, पंचम और अष्टम भाव भी आंतों को प्रभावित करते हैं। इसलिए छठे भाव एवं छठे भाव में पड़े ग्रहों का दुष्प्रभाव में होना आंतों में कैंसर देता है। लग्नेश त्रिक स्थानों पर चतुर्थेश, पंचम एवं अष्टेश के साथ हो, राहु कर्क राशि में रहे और सूर्य, चंद्र को देखे, बुध-चंद्र शनि से युति बनाए और लग्न पर बाधक ग्रह की दृष्टि हो, तो व्यक्ति पेट एवं आंतों के कैंसर से पीड़ित रहता है और लंबी बीमारी के बाद धीरे-धीरे मृत्यु को प्राप्त करता है। गर्भाशय : कुंडली में पांचवां, सातवां और आठवां भाव गर्भाशय का होता है। तुला, वृश्चिक राशि एवं शुक्र, मंगल और चंद्र ग्रह गर्भाशय के कारक होते हैं। स्त्री की कुंडली में इन सभी का दुष्प्रभाव में रहने के कारण गर्भाशय का कैंसर होता है। कुंडली में अगर लग्नेश त्रिक स्थानों में रहे, षष्ठेश एवं अष्टमेश पंचम भाव में अपने मित्र ग्रहों से दृष्ट एवं युक्त हो, चंद्र शनि के प्रभाव में रहे, राहु-मंगल अष्टम स्थान पर होने से गर्भाशय का कैंसर होता है। रक्त : कुंडली में चतुर्थ एवं पंचम भाव क्रमशः हृदय, यकृत (लीवर) तिल्ली के होते हैं। रक्त लीवर में बनता है तथा हृदय उसे सारे शरीर में धमनियां द्वारा, पहुंचाने का काम करता है। इसलिए कर्क, सिंह राशि, चंद्र-सूर्य और मंगल रक्त के कारक माने जाते हैं। मंगल रक्त में लाल कणों को बनाता है और रक्त में होने वाले दूषित प्रभावों को रोकने में सहायक होता है। वैसे मंगल अस्थि मज्जा ;ठवदम डंततवूद्ध का कारक है। कुंडली में लग्नेश की कमजोर स्थिति, पंचम एवं चतुर्थ स्थानों में षष्ठेश या अष्टमेश का होना, सूर्य-चंद्र, राहु के प्रभाव में रहना, मंगल-शनि से बुरी तरह पीड़ित होने से रक्त कैंसर होता है। शनि, मंगल और चंद्र की युति पंचम भाव में दूषित प्रभाव में रहें और लग्नेश छठे, आठवें एवं बारहवें स्थान पर रहे और लग्न में राहु या राहु की दृष्टि रक्त कैंसर से मृत्यु देती है। गला (थायरॉएड) : कुंडली में दूसरा-तीसरा भाव गले का होता है। वृष राशि, शुक्र और सूर्य ग्रह इसके कारक होते हैं, इसलिए दूसरा-तीसरा भाव, वृष राशि, सूर्य और चंद्र जब दुष्प्रभाव में रहते हैं, तो गले का कैंसर होता है। कुंडली में शनि-चंद्र दूसरे भाव में बाधक ग्रह के साथ हों और लग्नेश तीसरे स्थान पर एकादशेश-अष्टमेश के साथ युति बना रहा हो और राहु लग्न में हो, या लग्न पर दृष्टि हो, तो गले का कैंसर होता है। मूत्राशय : कुंडली में सप्तम भाव मूत्राशय का होता है। तुला राशि, शुक्र एवं चंद्र ग्रह इसके कारक होते हैं। कुंडली में तुला राशि में राहु हो, बाध् ाक ग्रह सप्तम भाव में लग्नेश के साथ हो और लग्न में चंद्र-शनि युक्त हो और शुक्र शनि से दृष्ट हो, सप्तमेश अष्टम भाव में मंगल से युक्त हों, तो मूत्राशय के कैंसर को पैदा करता है, जो व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन सकता है। उपर्युक्त सभी योग अपनी दशा-अंतर्दशा में रोग उत्पन्न करते हैं। जब शनि-राहु का गोचर दुष्प्रभाव वाले ग्रहों की दशा पर होता है, तो रोग होता है। अगर अंतर्दशा ठीक हो और दशा रोग कारक हो, तो रोग हो कर ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है। छठे-आठवें स्वामी या जन्म लग्न पर जब शनि-राहु का गोचर होता है, तो रोग की शुरुआत होती है। जब कैंसर रोग का आसानी से पता चले, तो ऐसा वृश्चिक राशि के दुष्प्रभाव में रहने के कारण होता है। किसी स्थान पर कैंसर की गांठ लगातार बढ़ती जाए, तो ऐसा गुरु का उच्च राशि में दुष्प्रभावों में रहने से होता है। शुक्र और योगकारक शनि का अन्य दूसरे ग्रहों के प्रभाव में रहने से भी ऐसा होता है। जल्दी से फैलने वाला कैंसर रोग जल राशियों के प्रभाव में रहने से होता है। दूषित ग्रहों का छठे, आठवें भावों के स्वामी के साथ, बाधक ग्रहों का त्रिक स्थानों में जाना और त्रिक स्वामियों का बाधक भाव में आना, इन ग्रहों की दशा-अंतर्दशा में रोग उत्पन्न होता है। स्वस्थ लग्नेश, चंद्र और सूर्य व्यक्ति को जल्द रोग मुक्त करने में सहायक होते हैं।



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