खिलाड़ी बनने के योग

खिलाड़ी बनने के योग  

मिथिलेश कुमार सिेह
व्यूस : 8262 | अप्रैल 2005

कुंडली के भावों एवं ग्रहों की विशिष्ट स्थितियां व्यक्ति में खेलों के प्रति रुझान तथा आवश्यक क्षमता उत्पन्न करती हैं। उसमें सफल खिलाड़ी बनने की क्षमताओं का सही आकलन कर लिया जाए, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रारंभ से ही उचित प्रशिक्षण द्वारा उसे एक सफल खिलाड़ी बनाया जा सकता है। Û लग्न एवं लग्नेश: लग्न व्यक्तित्व का आईना होता है। कुंडली में लग्न एवं लग्नेश की सुदृढ़ स्थिति व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य को प्रदर्शित करती है। अतः कुंडली में लग्न एवं लग्नेश का शुभ प्रभाव में होना, शुभ ग्रहों की दृष्टि में होना एवं अन्य प्रकार से बली होना एक अच्छे खिलाड़ी के लिए आवश्यक है। Û तृतीय भाव: कुंडली का तीसरा भाव पराक्रम का स्थान है। एक खिलाड़ी में पराक्रम होना ही चाहिए। खेल के मैदान में अपने पराक्रम से ही विरोधी पर जीत हासिल की जा सकती है। अतः पराक्रम भाव एवं पराक्रम भाव का स्वामी भी कुंडली में बलवान एवं सुदृढ़ स्थिति में होने चाहिए। Û पंचम भाव: कुंडली में पांचवां भाव खेल का स्थान होता है।


Consult our expert astrologers online to learn more about the festival and their rituals


यह विद्या एवं बुद्धि का स्थान है। परंतु जब खेल का विचार करते हैं, तो कुंडली का यह स्थान जातक में खेल प्रतिभा एवं दक्षता का प्रतिनिधित्व करता है। अतः पंचम भाव पर शुभ प्रभाव, कुंडली में पंचमेश की शुभ एवं बलवान स्थिति, उसका अन्य संबंधित भावों एवं ग्रहों से संबंध आदि व्यक्ति में प्रचुर मात्रा में स्वाभाविक खेल प्रतिभा एवं खेल संबंधी मामलों में दक्षता पैदा करता है। Û षष्ठ भाव: कुंडली का षष्ठ भाव विरोधी पक्ष, प्रतियोगिता, संघर्ष आदि का स्थान है। अतः खेल प्रतिस्पर्धाओं की संघर्षपूर्ण स्थिति में विरोधी पक्ष पर हावी हो कर खेल के मैदान में विजय पताका फहराने में इस भाव की भूमिका अहम होती है। षष्ठ भाव एवं षष्ठेश की कुंडली में उपर्युक्त स्थिति तथा खेल से संबंधित भावों/भाव स्वामियों/ग्रहों से समुचित संबंध खेल प्रतियोगिताओं में विरोधी पक्ष को पराजित कर विजयश्री दिलाने में सहायक होते हैं। Û नवम, दशम एवं एकादश भाव: कुंडली का नवम भाव भाग्य भाव के रूप में जाना जाता है।

इससे ऐश्वर्य की प्राप्ति एवं हर तरह की सफलता का विचार भी किया जाता है। दशम भाव कर्म एवं ख्याति का जबकि एकादश सभी तरह की उपलब्धियों एवं लाभ का स्थान है। अतः कुंडली में इन भावों एवं भाव स्वामियों का, बलवान हो कर, खेल के कारक भावों एवं भावेशों तथा ग्रहों से संबंध खेल के माध्यम से सफलता, ख्याति, उपलब्धि एवं लाभ दिलाता है। Û मंगल ग्रह: मनुष्य के जीवन में मंगल की भूमिका अहम है। मंगल ऊर्जा, शक्ति, पराक्रम, वीरता एवं आक्रामकता देता है। एक खिलाड़ी में इन गुणों का होना परम आवश्यक है। पराक्रम भाव का स्थायी कारक भी मंगल ही है। इन्हीं कारणों से मंगल को खेल का सर्वप्रमुख कारक ग्रह माना गया है। अतः एक अच्छा खिलाड़ी बनने के लिए कुंडली में मंगल की बलवान स्थिति आवश्यक है। जन्मकुंडली में मेष, वृश्चिक या मकर राशिस्थ या नवांश में स्वगृही या वर्गोत्तम मंगल अच्छा स्वास्थ्य, स्वभाव में आक्रामकता एवं अत्यंत विषम परिस्थिति में भी संघर्ष कर जीत हासिल करने की इच्छा पैदा करता है।

बली मंगल का पंचम, षष्ठ, नवम, दशम या लग्न भाव से संबंध खेल प्रतिभा को उत्कृष्टता प्रदान करता है। Û अन्य ग्रह: मंगल खेल का प्रमुख कारक ग्रह माना जाता हैै, तथापि खेल के क्षेत्र में सफलता हेतु बुद्धि और विवेक के ग्रह बुध, देवगुरु वृहस्पति एवं कला के कारक ग्रह शुक्र की अनदेखी नहीं की जा सकती। बुध जहां अपने विवेक का त्वरित उपयोग कर सही क्षणों में सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है, वहीं शुक्र खेल में कलात्मकता का पुट प्रदान करता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि खेलों की कलात्मक शैली तथा कलात्मक विविधताओं एवं खेलों के माध्यम से ऐश्वर्य प्राप्ति में शुक्र की भूमिका अहम है, यही कारण है कि आज कई विद्वान शुक्र को ही खेल का कारक मानते हैं- विशेष रूप से क्रिकेट जैसे खेल का, जिसमें सम्मान, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य एवं वैभव की अपार संभावनाएं हैं। देवगुरु बृहस्पति का आशीर्वाद तो प्रत्येक विद्या की प्राप्ति हेतु आवश्यक है ही। किसी भी क्षेत्र में सतत धैर्य एवं लगनपूर्वक प्रयास के लिए शनि की कृपा भी आवश्यक होती है।

इसकी कृपा से साधना में निरंतरता तो बनती ही है, प्रदर्शन में स्थायित्व भी बना रहता है। खेल के मैदान में लंबे समय तक कीर्तिमान स्थापित करने वाले खिलाड़ियों की कुंडली में शनि की भूमिका अहम रही है। यहां कुछ चुनी हुई कुंडलियों में खेल संबंधी योगों का विस्तृत अध्ययन कर विषय को और भी स्पष्ट किया जा रहा है: कोलकाता में 17 जून, 1973 को जन्मे लियेंडर पेस की कुंडली में लग्नेश बुध, कर्म के स्थान दशम भाव में स्वगृही हो कर, सुंदर बुधादित्य योग का निर्माण कर रहा है। पराक्रम भाव का स्वामी एवं खेलों का प्रमुख कारक मंगल, बृहस्पति की मीन राशि में स्थित हो कर, कर्म भाव एवं लग्न को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। शनि एवं भाग्येश शुक्र भी कर्म भाव में विराजमान हैं तथा शनि एवं पराक्रमेश मंगल आपस में दृष्टि विनिमय संबंध स्थापित कर रहे हैं। लाभेश चंद्र पर भी लग्नेश, कर्मेश, भाग्येश एवं पंचमेश की पूर्ण दृष्टि है। ये स्थितियां लियेंडर पेस को एक सफल खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने तथा टेनिस के माध्यम से उन्हें पर्याप्त लाभ एवं सम्मान दिलाने के लिए जिम्मेवार हैं।

कुंडली के पंचम भाव में बृहस्पति की स्थिति, ‘कारका भावनाशाय’ के सिद्धांतानुसार, अच्छी नहीं है; तथापि इस भाव में स्थित हो कर बृहस्पति विपरीत राजयोग बना रहा है। इसके अतिरिक्त चतुर्थ भाव में नीच के राहु एवं दशम भाव में नीच के केतु का भी नीच भंग हो रहा है। इस प्रकार कुंडली में भावों, भावेशों एवं ग्रहों की उपर्युक्त स्थितियां तथा 3-3 नीच भंग राजयोग लियेंडर पेस को, अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सफल खिलाड़ी के रूप में प्रतिष्ठित कर, यश, धन, मान, सम्मान एवं ख्याति प्रदान करती हंै। शतरंज के विश्व चैंपियन विश्वनाथन आनंद का जन्म 11 दिसंबर, 1969 को चेन्नई में हुआ। इनकी जन्मकुंडली में लग्नेश शनि स्वयं पराक्रम भाव में मंगल की मेष राशि में विराजमान है तथा पराक्रमेश-कर्मेश मंगल शनि के साथ स्थान परिवर्तन योग का निर्माण कर रहा है। लग्नेश शनि की पंचम खेल भाव पर पूर्ण दृष्टि है तथा खेलों का कारक मंगल लग्न में मूल त्रिकोणगत राहु के साथ अवस्थित है। लग्न एवं मंगल पर बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि है। ये स्थितियां उन्हें स्वस्थ, पराक्रमी और मनोबल से परिपूर्ण एक अच्छा खिलाड़ी बनाती हंै।

आनंद की कुंडली में बुद्धि का कारक ग्रह बुध, स्वयं खेल भाव का स्वामी हो कर, लाभ स्थान में षष्ठेश चंद्रमा के साथ बैठा है तथा पांचवें स्थान को पूरी दृष्टि से देख रहा है। लाभेश एवं धनेश बृहस्पति, भाग्य स्थान में बैठ कर, तृतीय भाव, लग्नेश शनि एवं पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि डाल रहा है तथा शुक्र, स्वयं भाग्येश हो कर, दशम भाव में बैठा है। ग्रहों की ये स्थितियां विश्वनाथन आनंद में बुद्धि के खेलों के प्रति सहज रुझान पैदा करती हैं तथा इन खेल प्रतिस्पद्र्धाओं में, अपने बुद्धि कौशल से विरोधी पक्ष पर जीत दर्ज करा कर, लाभ, धन एवं ख्याति प्राप्ति के योग बनाती हैं। मेष राशि का शनि नीच का प्रतीत होता है, परंतु मेष के स्वामी मंगल तथा शनि की उच्च राशि तुला के स्वामी शुक्र की केंद्र में स्थिति नीच भंग राजयोग का निर्माण करती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि उपर्युक्त ग्रह स्थितियों ने विश्वनाथन आनंद को शतरंज के बादशाह के रूप में प्रतिष्ठित किया है। ध्यान चंद की कुंडली में लग्नेश बुध पराक्रमेश सूर्य के साथ पराक्रम भाव में ही बुधादित्य योग का निर्माण कर रहा है।


Know Which Career is Appropriate for you, Get Career Report


लग्नेश बुध एवं स्वगृही सूर्य की राहु के साथ पराक्रम के स्थान तृतीय भाव में उपस्थिति उसे बलवती बना रही है। भाग्येश शनि, नवम भाव में अपनी मूल त्रिकोण राशि में अवस्थित हो कर, अत्यंत सुंदर योगकारी स्थिति में है तथा अपनी पूर्ण दृष्टि से लाभ एवं पराक्रम स्थानों को देखते हुए जातक को घोर पराक्रम, समृद्धि एवं यश प्रदान करता है। छठे भाव में स्थित स्वगृही मंगल एक तरफ जहां विरोधियों को परास्त करने की अद्भुत क्षमता दे रहा है, वहीं लग्न पर उसकी दृष्टि अच्छा स्वास्थ्य एवं जबरदस्त दमखम भी प्रदान कर रही है। इस कुंडली में पंचम खेल भाव का स्वामी स्वयं शुक्र है तथा पांचवें भाव का स्थायी कारक बृहस्पति, कर्म स्थान का स्वामी हो कर, शुक्र की राशि में स्थित है। खेलों के कारक ग्रह मंगल एवं दशमेश बृहस्पति में दृष्टि विनिमय संबंध है। ये ग्रह स्थितियां ध्यान चंद की जादुई कलात्मक खेल प्रतिभा तथा हाॅकी के माध्यम से अपार सम्मान एवं प्रसिद्धि के लिए जिम्मेवार हैं।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.