ज्योतिष और मृत्यु काल

ज्योतिष और मृत्यु काल  

सेवाराम जयपुरिया
व्यूस : 11270 | अप्रैल 2008

भारतीय परंपरा में अनेक विशेषताएं हैं और प्रत्येक के पीछे एक ही उद्देश्य रहा है कि मानव जीवन को अधिकतम सुविधा व सुरक्षा प्रदान की जाय। वेदशास्त्र ज्ञान विज्ञान का महाभंडार हैं। इसी परंपरा में ज्योतिष शास्त्र वेदों का विशेष छठा अंग है। ज्योतिष शास्त्र मानव जीवन में प्राचीनकाल से ही अति महत्वपूर्ण रहा है और रहेगा, क्योंकि प्रत्येक मानव अपने साथ अनुकुल एवं प्रतिकुल भविष्य की कल्पना को साथ लेकर चलता है। महर्षि पाराशरजी, जैमिनीजी, वराहमिहिरजी आदि अनेक महापुरूषों ने फलित ज्योतिष, गणित ज्योतिष आदि ज्ञान को, शास्त्र को खूब प्रचारित किया। भारतीय ज्योतिष में ग्रहों, भावों, राशियों एवं नक्षत्रों की गणना द्वारा उनकी ऊर्जा तरंगों के जगत पर पड़नेवाले प्रभाव को भविष्य कथन में प्रयोग किया।

वैदिक दर्शन शास्त्रानुसार मनुष्य के कर्म तीन प्रकार के हैं संचित, प्रारब्ध और द्रियामाण कर्म। इन तीनांें के माध्यम से जन्म, जन्मांतर में किए गए कर्मों के कारण हमें सुख, दुख की अनुभूति होती है। कर्मों का फल प्रत्येक प्राणी को अनिवार्य व अपरिहार्य रूप में भोगना पड़ता है। हमारे ऋषियों ने जीवन के प्रत्येक पहलू को अनेक दृष्टिकोणों से देखा कि आयु क्या है - जन्म से मृत्यु तक का समय आयु कहलाता है। इस आयु को भी उन्होंने सृष्टि, अरिष्टायु, अल्पायु, मध्यायु, दीर्घायु, परमायु इत्यादि में बांटा है। यद्यपि हत्या करना सभी धर्मों में मानव जाति के प्रति महापाप माना जाता है मगर पूर्व जन्मों के कर्मों के बंधन के कारण कभी-कभी मनुष्य हत्या जैसा जघन्य अपराध काल के वशीभूत होकर कर बैठता है और पछताता है और प्रायश्चित करता है।

इसी विषय में हम विचार करें कि क्या किसी जातक को उसके अपने सगे-संबंधी जान से मार सकते हैं - यह विचार ही शरीर में सिहरन पैदा करता है और घबराहट पैदा करता है, परंतु हमारे ज्योतिषशास्त्र के महर्षियों ने इस विषय पर हजारों वर्ष पूर्व ज्योतिष की परंपरा के ग्रंथों में ऐसे अनेक सिद्धांतों को लिपीबद्ध किया है। हम यहां पर अल्पायु योग के ऐसे ही एक जातक की जन्मकुंडली दे रहे हैं जिसे युवावस्था में उसके अपने सगे दादा और दो चाचाओं ने मिलकर मार दिया। ज्योतिषशास्त्र ग्रंथों में दिए सिद्धांतों को इस कुंडली पर लागू करते हैं। जन्म नक्षत्र स्वाति चरणांक, जन्म समय शेष भोग्य दशा, राहु 00 वर्ष, 01 माह एवं 16 दिन, जन्म मंगल की होरा में।

हत्या वाले दिन का गोचर दिनांक मंगलवार 22.10.2002 पुलिस विभाग की पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार जातक की हत्या 22.30 से 23.30 के बीच हुई हैै। इसलिए हमने गोचर समय 23 बजे का लिया है। महर्षि जैमिनी के मतानुसार 1. यदि आत्मकारक नवमांश से अष्टम राशीश (3$79,80,81) सूर्य के साथ चंद्र से युत, दृष्ट हो अथवा अकेला चंद्र ही योग करता हो तो मनुष्य निश्चय ही अपने बहुत ही निकटवर्ती व्यक्ति द्वारा मारा जाता है। 2. यदि उक्त अष्टम राशीश के साथ मंगल हो या वहां दृष्टि रखता हो तो अपने मित्र वर्ग से ही मृत्यु को प्राप्त होता है। इस उदाहरण कुंडली में आत्मकारक शनि है और नवमांश कुंडली में आत्मकारक से अष्टम नवमांश का स्वामी मंगल ग्रह चंद्र से योग कर रहा है और यह भी कि दोनों ही अर्थात चंद्र एवं मंगल आत्मकारक से दृष्ट है। जातक का नौकर जो कि उसका ही हम उम्र और मित्रवत था और दादा, चाचा के साथ हत्या के समय मजबूरीवश था। जातक को उसके सगे दादा एवं चाचाओं ने मार दिया। आत्मकारक शनि वर्गोतमी हैं।

जन्म, लग्न में भी आत्मकारक शनि से अष्टमेश मंगल, जो कि ज्ञातिकारक है संबंध कर रहा है, कर्म स्थान में अर्थात आत्मकारक एवं ज्ञातिकारक दोनों ग्रहों का संबंध जन्म कुंडली और नवमांश कुंडली में हैं। जन्म के समय चर दशा धनु राशि की थी। जो कि जन्म लग्न की राशि थी। मृत्युवाले दिन कन्या राशि की चर दशा में कर्क का अंतर 23.6.2003 तक था। कर्क राशि जन्म लग्न से अष्टम राशि है। जन्म धनु लग्न है और कन्या राशि सप्तम में हैं। जन्म के समय शनि आत्मकारक था और हत्या के दाराकारक था। यहां पर जैमिनी महर्षि का पूरा सूत्र लागू होता है जो कि जातक निकट संबंधी द्वारा मार दिया गया है।

इस अकेले एक सूत्र में हमारे ज्योतिषशास्त्र की परंपरा के महर्षियों के गूढ़ ज्ञान की गहनता का ज्ञान होता है कि हमारी संस्कृति ज्ञान, विज्ञान के क्षेत्र में कितनी समृद्धिशाली थी। जैमिनी मत से आयु के काल का निर्धारण: इसमें आयु का प्रमुख विभाजन तीन प्रकार से किया गया है:

1. दीर्घायु,

2. मध्यायु और,

3. अल्पायु इसमें जन्म लग्नेश, अष्टमेश, शनि एवं चंद्र तथा जन्म, लग्न और होरा, लग्न यह होरा, लग्न अर्थात षोडशवर्ग से अलग है।

यहां पर लग्नेश गुरु चर राशि में, अष्टमेश चंद्र चर राशि में दीर्घायु, शनि द्विस्वभाव राशि में, चंद्र चर राशि में अल्पायु, जन्म लग्न धनु द्विस्वभाव, होरा लग्न मकर चर राशि अल्पायु। इन तीनों के आधार पर दो सिद्धांतों का मेल अल्पायु दिखाता है और जातक की मृत्यु भी अल्पायु में ही हुई। अल्पायु लगभग 33 वर्ष लगभग मानी गई है और जातक की मृत्यु के समय उसकी आयु बीस वर्ष दस महीने की थी। इसी जन्मपत्रिका को हम महर्षि पाराशर जी के सिद्धांत से यदि देखें तो

: Û जातक का जन्म लग्न धनु है, लग्नेश गुरु अष्टमेश चंद्र के साथ एकादश भाव में हैं।

Û शनि द्वितीयेश व तृतीयेश है: पहला त्रिषडायाधीश भी है और मारक भी है। जन्म के समय सबसे ज्यादा अंशों का था और मृत्यु के समय सबसे कम अंशों में था।

Û शनि नैसर्गिक पापी और इस लग्न के लिए मारक एवं त्रिषडायाधीश भी है।

Û जन्म के समय और मृत्यु के समय भी शनि बुध की राशि में ही था अर्थात जन्म के समय कन्या में और मृत्यु के समय मिथुन में।

Û धनु लग्न में पाप ग्रह, बुध और शुक्र है। शुद्रषष्ठेश. एकादशेश होने के कारण प्रबलतम त्रिषडायाधीश होकर पापी है और बुध मारक है।

Û बुध सप्तमेश एवं दशमेश है। इस लग्न के लिए बुध सप्तमेश होने से मारक व केंद्राधिपति दोषकारक और बाधक भाव का स्वामी है।

Û महर्षि पाराशरजी मारकेश ग्रह की दशा$अंतर्दशा निश्चित करने के लिए जो नियम बताते हैं उनमें से एक नियम है कि द्वितीयेश की महादशा में सप्तमेश की अंर्तदशा हो तो जातक को हानि हो सकती है।

Û इस जन्मपत्रिका में शनि द्वितीयेश एवं तृतीयेश हैं जो पापी ग्रह है और बुध सप्तमेश होकर मारक ग्रह है अर्थात, शनि व बुध दोनों ही मारक ग्रह है।

Û जातक की हत्या के समय शनि की महादशा और बुध की अंतर्दशा चल रही थी अर्थात, महादशानाथ व अंतर्दशानाथ दोनों ही इस लग्न के लिए मारक हैं।

Û हत्या वाले दिन प्रत्यंतरी दशा “राहु“ की थी राहु स्वयं मारक भाव सप्तम में है और राहु बुध का मारक फल देगा।

Û इस प्रकार महादशा, अंतर्दशा प्रत्यांतरी दशा शनि$बुध$राहु 7.9.2003 तक मारक की थी।

Û अर्थात, दो मारक ग्रहों की दशा$अंतर्दशा में मारक भाव में बैठे राहु प्रत्यंतरी दशा में जातक की हानि हुई।

Û जातक का जन्म राहु की महादशा में हुआ था और मृत्यु के समय राहु की ही प्रत्यंतरी दशा थी।

Û हत्या वाले दिन गोचर देखें तो जन्म लग्न का मारक सप्तम भाव जातक का गोचर का लग्न बना, अर्थात जन्म के समय मिथुन राशि सप्तम भाव में थी और मृत्यु के समय यही सप्तम भाव लग्न बना।

Û जातक के जन्म की तारीख 22 दिसंबर थी और मृत्यु की तारीख 22 अक्तूबर थी। दोनों का दिन मंगलवार था और मंगल की ही होरा में उसका जन्म हुआ था।

Û हत्या के समय मिथुन लग्न और मिथुन नवमांश था और बुध ग्रह उच्च था, जो मारकेश एवं अंतर्दशानाथ भी था।

Û आयु को क्षीण करने वाले अन्य सिद्धांतों में से एक सिद्धांत है। मृत्यु भाग में जन्म लग्न हो या चंद्र मृत्यु भाग राशि में हो।

Û धनु लग्न 18°अंशों पर मृत्यु भाग में होता है।

Û यहां जातक का जन्म लग्न धनु 17°°59श्28ष् का है। इस प्रकार जातक का धनु लग्न बिल्कुल 18° अंशों के पास में हैं अर्थात/ यह जन्म लग्न मृत्यु भाग में अरिष्टकारी था।

Û जन्मकुंडली एवं नवमांश कुंडली में आत्मकारक ग्रह शनि से अष्टमेश ग्रह मंगल ही है और मंगल दोनों ही जगह आत्माकारक शनि से संबंध कर रहा है।

Û हत्या वाले दिन भी मंगल ग्रह आत्मकारक से केंद्र में है और दोनों ग्रह मारकेश बुध की राशि में है। उल्लेखनीय है कि जन्म का समय 08 बजकर 18 मिनट है। यदि हम मान भी लें कि जन्म के समय में एक-दो मिनट का अंतर भी होगा तो भी 17°°का जन्म लग्न बनेगा जो कि मृत्यु भाग में ही है। इस प्रकार हम देखते हैं कि जन्म जन्मांतर में किए गए कर्मों को हमारी जन्म पत्रिका योग के ईप में दर्शाती है और योग घटित होते हैं दशा $ अंतर्दशा इत्यादि में भारतीय ज्योतिष का रहस्य यही है कि हमारे जीवन से संबंधित सत्य का विश्लेषण करना, उसकी जानकारी देना, सत्य से काल का या समय के साथ इसका सामंजस्य करना यही हमारे महर्षियों की महान व वैभवशाली परंपरा रही है। इसके लिए हम उनके सदैव ऋणी रहेंगे। उनके आदर में हमारा मस्तक सदैव झुका रहेगा।



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