अहोई अष्टमी व्रत

अहोई अष्टमी व्रत  

व्यूस : 8017 | नवेम्बर 2012
अहोई अष्टमी व्रत पं. ब्रजकिशोर शर्मा ब्रजवासी अहोई अष्टमी व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को करने का विधान है। किंतु लोकरीति के अनुसार दीपावली पूजन के दिन जो वार हो उसके ठीक आठ दिन पहले उसी वार को भी करने का उल्लेख प्राप्त होता है। परंतु सर्वमान्यता तो अष्टमी को ही अहोई अष्टमी का व्रत पूर्ण करने का है। दीर्घायु प्राप्ति तथा मृत पुत्रों के पुनर्जीवन हेतु इस व्रत को मातायें निर्जला रखती हैं। इस व्रत के प्रभाव से संतान के जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है। अहोई अष्टमी को अहोई सप्तमी नाम से भी ख्याति प्राप्त है। प्रातःकाल स्नानादि क्रियाओं से निवृŸा होकर यह संकल्प करें कि आज मैं संपूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल को अहोई माता का विधि-विधान से पूजन करुंगी, मातेश्वरी इस व्रत की सफलता का मुझे मंगलमय आशीर्वाद प्रदान करें, जिससे कि व्रत को सहजता से पूर्ण किया जा सके। सायंकाल को तारे निकलने के बाद दीवाल को चूना आदि से पोतकर सुंदर तरीके से चित्र नवचित्र रंगों, गेरु व हल्दी आदि से अहोई माता का चित्र बनाकर पूजन की संपूर्ण सामग्रियां तैयार कर लें, स्वर्णकार से एक चांदी की अहोई माता की मूर्ति बनवाएं और जिस प्रकार हार में पेन्डेन्ट लगा होता है उसकी जगह अहोई को स्थान दें तथा उसी डोरे में चांदी के दाने डलवा दें, फिर दीवाल पर व डोरे में स्थित अहोई की विभिन्न सामग्रियों पकवान व दूध, भात-सीरा आदि से गणेशादि देवताओं के साथ षोडशोपचार पूजन करें। जल के लोटा पर स्वास्तिक बनाकर एक पात्र में सीरा (हलवा) या वायना तथा रुपया निकालकर तथा हाथ में सात दाने गेहूं के लेकर कहानी सुनें, फिर अहोई को गले में धारण कर लें। जो वायना निकाला था उसे सासू मां के पैर लगकर सासू मां को अर्पण कर दें, इस दिन राधा-कुंड स्नान भी करें। दीपावली के बाद किसी अच्छे (शुभ) दिन में अहोई गले में से उतारकर जितने बेटे हों उतनी बार और जितने बेटों का विवाह संस्कार हुआ हो उतनी बार दो चांदी के दाने उस अहोई की माला में पिरोती जायें। जब अहोई उतारें तो जल से छींटे देकर गुड़ का भोग अवश्य लगायंे। इस दिन भगवान् चंद्र देव को अघ्र्य अवश्य ही दें तथा ब्राह्मणों को पेठा दान तो अवश्य ही करें और इसके अलावा श्रद्धानुसार जो भी बन पडे़ दक्षिणा सहित देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इतना करने के बाद पारिवारिक सदस्यों के साथ स्वयं भी अहोई मां का प्रसाद ग्रहण करें। यह व्रत छोटे-छोटे बच्चों के कल्याण के लिए किया जाता है अतः अहोई माता की प्रतिमा के साथ ही बच्चों का चित्र बनाकर उनकी भी विधि-विधान से षोडशोपचार पूजन अवश्य करें।



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