भगवद् तत्व के विषय में संतों एवं महापुरूषों के उदगार

भगवद् तत्व के विषय में संतों एवं महापुरूषों के उदगार  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 7825 | फ़रवरी 2011

भगवद् तत्व के विषय में संतों एवं महापुरुषों के उद्गार नैतिकता का आधार खिसकने के साथ ही हम धाार्मिक नहीं रहते। नैतिकता का लंघन करके आगे जाने वाली कोई भी बात धर्म नहीं है। उदाहरण के लिये असत्य, निर्दयता या असंयम वाला व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि ईश्वर उसके साथ है।

- महात्मा गांधी प्रत्येक आत्मा ही अव्यक्त ब्रह्म है। बाह्य और अंतः प्रकृति का नियमन कर इस अंतर्निहित ब्रह्म स्वरूप को अभिव्यक्त करना ही जीवन का ध्येय है।

-विवेकानंद रहस्यमी प्रकृति प्रच्छन्न ईश्वर हैं।

-महर्षि अरविंद विशाल मन ही ईश्वर है और आपका मन उस विशालता का अंश है।

यदि आप वासनामय हैं तो उस सर्वोच्च सर्वाधिक अद्भुत एवं सबसे सुंदर ईश्वर के प्रति वासनामय बन जाओ। आपकी वह वासना इस संपूर्ण सृष्टि के प्रति हो जिसमें प्रत्येक वस्तु इतनी ज्यादा सुंदर है। (श्री श्री रविशंकर जी) किसी से प्रेम करना, मन की प्रकृति है, अब अपने मन को प्यार से केवल ईश्वर से जोड़ लो। भक्ति में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भक्ति केवल देह की इन्द्रियों से नहीं बल्कि मन से की जाये। केवल निष्काम भक्ति से ईश्वर को पूरी तरह समझा जा सकता है और उसकी दृष्टि प्राप्त की जा सकती है क्योंकि दिव्य प्रेम (भक्ति) ईश्वर की आंतरिक शक्ति है। अंतः शक्ति सर्वोपरि है। राधाकृष्ण (ईश्वर) के अनुग्रह की प्रतीक्षा करते रहो और वह आपको आवश्य प्राप्त होगा।

जो भी प्राप्त करने में कठिन है, अप्राप्य है और मानव मन की कल्पना से परे हैं, वह सब भक्ति से प्राप्त किया जाता है। कृष्ण भक्ति के अतिरिक्त और कुछ भी करने की जरूरत नहीं है।

-श्री कृपालु जी महाराज ब्रह्म के अलावा कुछ भी नहीं, सब उसी के रूप हैं। निष्काम कर्म और निष्काम उपासना से अंतःकरण शुद्ध होता है।

-आदि शंकराचार्य केवल शांतमना व्यक्ति ही जीवन के आध्यात्मिक अर्थ को समझ सकता है। अपने प्रति ईमानदारी, आध्यात्मिक अखंडता की शर्त है। -डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जब मैं था तब हरि नहीं, जब हरि हैं मैं नाही। प्रेम गली अति सांकरी, ता में दो न समाहिं॥ लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर। चींटी ले शक्कर चली, हाथी के सिर धूर। जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ। हौं बौरी बूडन डरी, रही किनारे बैठ॥

- कबीर ईशावास्यमिंद सर्व यद्किंचित जगत्यां जगत्। तेन त्यक्ते भुंजीथा मा गृध कस्यस्वित् धनम्॥

-ईशावास्योपनिषद् आत्मा त्वं, गिरिजा मति, सहचराः प्राणाः, शरीरं गृहम्, पूजा ते विषयोपभोगरचना, निद्रा समाधि स्थितिः संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधि, स्तोत्राणि सर्वागिरोः यद्यद् कर्म करोमि तत्तदखिलं शंभो तवारा धनम्। (शिव मानस पूजा) अव्यक्तम् प्राहुर अव्ययम्। (वह ईश्वर अव्यक्त है) -गीता चौबीसों तत्व वही हुये हैं, वही उनमें समाया है।

-राम कृष्ण परमहंस ईश्वर ने मनुष्य को अपनी प्रतिमूर्ति बनाया।

-बाइबल सिया राम मय सब जग जानी, करहुं प्रणाम जोरी जुग पानी। हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेमते प्रगट होहिं मैं जाना।

-महासंत कवि तुलसी दास हरि अनंत हरि कथा अनंता।

-महा संत कवि तुलसी दास जाकि रही भावना जैसी। हरि मूरति देखी तिन तैसी।

-महा संत कवि तुलसी सब मनुष्यों के लिए तीस लक्षण वाला श्रेष्ठ धर्म कहा गया है। इससे सर्वात्मा भगवान् प्रसन्न होते हैं।

-श्रीमद् भागवत महापुराण में देवर्षि नरद



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.