वास्तु और ज्योतिष एक अध्ययन

वास्तु और ज्योतिष एक अध्ययन  

व्यूस : 7419 | दिसम्बर 2010
वास्तु और ज्योतिष एक अध्ययन शरीर और भवन का साहचर्य है। जिस प्रकार जीवात्मा का निवास शरीर में और हमारा भवन में होता है उसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र में भी भवन का कारक चतुर्थ भाव जो हृदय का भी कारक है इन दोनों के संबंध में घनिष्टता स्पष्ट करता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार पूर्व एवं उत्तर दिशा अगम सदृश और दक्षिण और पश्चिम दिशा अंत सदृश है। ज्योतिष अनुसार पूर्व दिशा में सूर्य एवं उत्तर दिशा में प्रसरणशील बृहस्पति का कारक तत्व है। उसके अनुसार उत्तर एवं पूर्व में अगम दिशा के तौर पर पश्चिम में शनि समान मंगल पाप ग्रह की प्रबलता है। पश्चिम में शनि समान आकुंचन तत्व की महत्ता है। उस गणना से दक्षिण-पश्चिम अंत सदृश दिशाएं हैं। इस आलेख में दी गई चारों कुण्डलियों के अनुसार यह समझाने का प्रयास किया गया है कि वास्तु एवं ज्योतिष एक सिक्के के पहलू हैं। जैसे प्रत्येक ग्रह की अपनी एक प्रवृत्ति होती है। उसी के अनुसार वह फल करता है। यदि शुभ ग्रह शुभ भाव में विराजमान होगा तो वहां सुख समृद्धि देगा। अशुभ ग्रह शुभ स्थान पर अशुभ फल प्रदान करेगा। बृहस्पति- खुली जगह, खिड़की, रोशनदान, द्वार, कलात्मक व धार्मिक वस्तुएं। चंद्रमा- बाहरी वस्तुओं की गणना देगा। शुक्र- कच्ची दीवार, गाय, सुख समृद्धि वस्तुएं। मंगल- खान-पान संबंधित वस्तुएं। बुध- निर्जीव वस्तुएं, शिक्षा संबंधी। शनि- लोहा लकड़ों का सामान। राहु- धूएं का स्थान, नाली का गंदा पानी, कबाड़ा। केतु- कम खुला सामान। उक्तग्रहों के अनुसार, जातक की पत्री अनुसार ज्ञात किया जा सकता है कि उसके भवन में किस प्रकार का निर्माण है। कालपुरुष की कुंडली में जहां पाप ग्रह विद्यमान हैं और वह निर्माण वास्तु सम्मत नहीं है तो उक्त निर्माण उस जातक को कष्ट देगा। 1.लग्नेश लग्न में (शुभ ग्रह) हो तो पूर्व में खिड़कियां। 2. लग्नेश का लग्न में नीच, पीड़ित होना- पूर्व दिशा के दोष को दर्शायेगा। जातक मष्तिक से पीड़ित रहेगा। देह सुख नहीं प्राप्त होगा। 3. लग्नेश का 6, 8, 12वें में पीड़ित होना पूर्व दिशा में दोष करता है। 4. षष्ठेश लग्न में हो तो- पूर्व में खुला मगर आवाज, शोर शराबा आदि । 5. लग्नेश तृतीय भाव में- ई्रशान में टूट-फूट-ईट, का निर्माण आदि। 6. राहु-केतु की युति उस ग्रह संबंधी दिशा में दोष उत्पन्न करती है। 7. एकादश, द्वादश में पाप ग्रह, षष्ठेश, अष्टमेश के होने के कारण ईशान में दोष कहें। 8. क्रम संखया (1) में जहां-जहां शुभ ग्रह होंगे वहां-वहां खुलापन हवा व प्रकाश की उचित व्यवस्था होगी। 9. यदि शुभ ग्रह दशम भाव में होंगे तो वहां पर खुला स्थान होगा। इसी प्रकार शुभाशुभ निर्माण को हम जन्म पत्रिका से जान लेते हैं। अशुभ निर्माण कालपुरुष के अंगों को प्रभावित करके गृहस्वामी को कष्ट देता है। उक्त भाव संबंधी लोगों को कष्ट देगा। 10. तृतीय भाव पीड़ित हो तो- भाई-बहन को कष्ट। 11. चतुर्थ भाव व चतुर्थेश पीड़ित हो तो- मां को कष्ट। 12. सप्तम-नवम् भाव पीड़ित हो तो- पत्नी पिता को कष्ट होगा। इसी प्रकार प्रत्येक का हाल जानें।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.