दीपावली पर्व है सृजन का और पूजन-कब, क्यों और कैस पं. महेश चंद्र भट्ट चातुर्मास के ठहराव और वर्षा काल की उमस के बाद आगमन होता है कार्तिक में आने वाले इस उल्लासमय पर्व का जो विभिन्न प्रकार की ऋतु संबंधी शारीरिक असहजता से मुक्ति दिलाता है और मानव सहित हर प्राणी मात्र को और चारों दिशाओं को भर देता है प्रकाश पुंज से। लक्ष्मी का विशिष्ट और विस्तृत आराधन भी होता है इसी पर्व पर लेकिन यदि सही समय और विधि-विधान से यह आराधन हो तो चामत्कारिक प्रभाव उत्पन्न होते हैं। भारत की अनेक विशेषताओं में एक विशेषता है आनंद और उल्लास के क्षणों मंे ईश्वर की आराधना तथा कष्ट के काल में कृतज्ञता का भाव बनाये रखना। इसी परंपरा के अधीन सनातन धर्म का पालन करने वाले भारतीय लगभग हर पर्व पर धार्मिक पूजन करते हैं। शास्त्रों में भी पूजन-विधान निश्चित है। दीपावली मुख्य रूप से धनधान्य की अधिष्ठात्री महालक्ष्मी जी, ऋद्धि-सिद्धि प्रदाता गणेश जी और विद्या एवं पूर्ण ज्ञान की दाता सरस्वती देवी की पूजा-आराधना का त्यौहार है। धन, सम्पŸिा, वैभव, विद्या और ज्ञान प्रदायक इन देवों की पूजा दीपावली की रात्रि को प्रत्येक परिवार में की जाती है। दीवाली सृजन का पर्व है, क्यों कि सारी रोशनी के मूल में सृजन ही है। साहित्य के पाठ के अलावा इमरती, हरी मिर्च, चावल और धनिया के बीच भी सृजन है। इसमें खट्टा और मीठा सब कुछ है। रोशनी इन सबका संघनन है, दीवाली इसी का हेतु है।