एक जांबाज का दुःखद अंत

एक जांबाज का दुःखद अंत  

व्यूस : 4751 | सितम्बर 2013
दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के एक जांबाज इन्स्पेक्टर बद्रीश दत्त वास्तव में बड़े होनहार और अपने काम में बहुत होशियार थे। उनकी देख-रेख में पुलिस ने अनेक लक्ष्य में सफलता पूर्वक हासिल किए। कुछ दिन से वे आई.पी.एल. 6 में फिक्सिंग के मामले में भी जांच-पड़ताल कर रहे थे। पुलिस महकमे में उन्होंने अपनी काबिलियत के बल पर एक अलग मुकाम हासिल कर लिया था। अपने तेज दिमाग व बुद्धि के बल पर उन्होंने बड़े से बड़े केस चुटकियों में हल किये थे और अपनी ईमानदारी व योग्यता से वे राष्ट्रपति द्वारा वीरता पुरस्कारों से भी सम्मानित हो चुके थे। पुलिस में नौकरी करने वाले व्यक्तियों की व्यक्तिगत जिन्दगी बहुत ही नीरस हो जाती है क्योंकि यह नौकरी 24 घंटे की होती है और रात-दिन इन्हें पुलिस चैकी में ही बिताने पड़ते हैं। इसका असर व्यक्तिगत जीवन पर भी पड़ता है। यही बद्रीश जी के साथ भी हुआ। उनकी अनुपस्थिति में उनकी पत्नी का मेल-जोल किसी से बढ़ने लगा और वह भी अपना समय बिताने के लिए किसी का साथ तलाशने लगी। बद्रीश को जब इस बात की भनक लगी तो उन्हें यह बरदाश्त न हुआ और चंूकि वे पुलिस में थे तो पत्नी को भी रंगे हाथ पकड़ने के उद्देश्य से एक हाईप्रोफाइल Detective agency की मालिक गीता सक्सेना से मिले। गीता ने उनकी पत्नी के खिलाफ काफी जानकारी जुटाई और उसके आधार पर बद्रीश ने अपनी पत्नी के खिलाफ तलाक का मुकदमा दायर कर दिया। इसी दौरान बद्रीश की मुलाकातें गीता से अक्सर होने लगी और वे उसके काम करने के तरीके से अत्यन्त प्रभावित हुए। गीता अत्यन्त महत्वाकांक्षी महिला थी और उसके बेहद ऊँचे ख्वाब थे और उसे एक उच्चवर्गीय महिला की तरह रहना पसन्द था। उसके व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो उसका विवाह सी.पी.डब्ल्यू.डी के एक क्लर्क से हुआ था जिसके साथ वह बिल्कुल खुश नहीं थी। उसे अपने सारे सपने चकनाचूर होते नजर आने लगे थे। उसने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर खर्चों को पूरा करने की कोशिश भी की। लेकिन बात न बनने पर अपने पति से तलाक ले लिया और अपनी डिटेक्टिव एजेंसी शुरू कर दी। अपने सम्पर्कों के माध्यम से उसने अपना नेटवर्क काफी फैला लिया था। अपने बच्चों को पढ़ने के लिए ंिसंगापुर भेज दिया। पूरे शान-शौकत से गुड़गांव स्थित फ्लैट में रहने लगी। गीता के ताल्लुकात मुम्बई पुलिस के कुछ इन्स्पेक्टरों से भी थे। वे लोग उसे काम दिलाने और उसके जासूसी के कामों में भी उसकी काफी मदद करते थे। इधर बद्रीश अपनी पत्नी पर शक से आहत था तो दूसरी ओर गीता अपनी एकाकी जिन्दगी से आजिज। दोनों को एक-दूसरे के करीब आते देर नहीं लगी। उन्हें एक-दूसरे का साथ अच्छा लगने लगा और बद्रीश गीता के घर पर ही रहने लगे। लेकिन दो तन्हा दिलों का मिलन एक दिन उनकी बर्बादी का सबब बन जाएगा, शायद ही किसी ने सोचा था। इसी बीच अप्रैल में ही गीता का एक धोखा-धड़ी का मामला पुलिस के सामने आया और उसे 21 दिन जेल में बिताने पड़े। हालांकि बद्रीश से भी इसके बारे में बातचीत की गई लेकिन उनका कुछ सहयोग न होने के कारण उन्हें कुछ नहीं कहा गया। बद्रीश ने तन से गीता से दूरी बना ली थी और वे उससे अपने सारे सम्पर्क तोड़ना चाहते थे क्योंकि वे अपने बेदाग करियर पर किसी तरह का धब्बा नहीं चाहते थे। अनेक कुख्यात अपराधियों को अपने बुद्धि-बल पर ही सलाखों के पीछे पहुंचा चुके थे। स्पेशल सेल में तैनात बद्रीश ने अण्डरवल्र्ड के इशारे पर की जा रही स्पाट फिक्सिंग मामले में सर्विलांस के जरिए कई सटोरियों के फोन काल का ब्यौरा जुटाया था और इसी बातचीत के आधार पर ही उन्होंने 9 मई को बिना किसी सटोरिये को नामजद किए मुकदमा दर्ज कराया था। एफ.आई.आर में लिखा गया था कि आई.पी.एल. में महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब व दिल्ली समेत अनेक राज्यों के सटोरिये मैच फिक्स कर रहे हैं। इसी बीच 10 मई को बद्रीश को गीता का फोन आया और उसने बहुत इसरार कर उसे अपने घर खाने पर बुलाया। वैसे बद्रीश ने अब उससे सारे सम्बन्ध तोड़ लिये थे पर फिर भी वह उसकी बात को ठुकरा न सके और गुड़गांव में उसके घर डिनर पर चले गये। इरादा तो था कि शायद खाने के साथ-साथ दोनों के दिलों का गुबार भी हज्म हो जाएगा पर हुआ उल्टा। खाने की मेज पर दोनों के दिलों के गुबार निकलने लगे और स्थिति यह हो गई कि गुस्से में बद्रीश ने अपनी सर्विस पिस्टल निकाल कर गीता को गोली मार दी और फिर खुद को भी गोली मार कर अपनी भी जिन्दगी समाप्त कर दी। एक-दूसरे के गिले-शिकवे दूर करने की नीयत से बैठे दोनों ही मौत की नींद सो गये एक जांबाज पुलिस इन्स्पेक्टर का इस तरह जाना वाकई पुलिस डिपार्टमेण्ट के लिए बहुत बड़ा झटका था। आई.पी.एल. मैच फिक्सिंग केस की तफ्तीश को भी बड़ा झटका लगा। जिस तरह से बद्रीश इसके पीछे लगे थे वे अगर आज होते तो शायद बहुत सी बड़ी मछलियां भी सलाखों के पीछे होतीं।। आइये देखें बद्रीश के ज्योतिषीय सितारे क्या कहते हैं: बद्रीश की कुण्डली में लग्नेश एवं दशमेश गुरु पंचम स्थान में अपनी उच्च राशि में स्थित है जिसके फलस्वरूप ये अत्यन्त तीव्र बुद्धि एवं कुशल कार्यक्षमता के धनी थे। कर्मेश बृहस्पति नवांश में भी स्वराशि मीन में होने से इन्होंने जीवन पर्यन्त अपने कार्य को बड़ी निष्ठा तथा ईमानदारी से पूरा किया और कभी भी अपनी छवि को धूमिल नहीं होने दिया। भाग्येश मंगल अपनी स्वराशि वृश्चिक में स्थित होने से तथा लग्न में शनि स्थित होने से ये पुलिस विभाग में अपना करियर बनाने में सफल रहे। पराक्रम भाव पर मंगल की दृष्टि होने से, छठे भाव में सूर्य के अपनी मूल त्रिकोण राशि में स्थित होने तथा लग्नेश की लग्न पर पूर्ण दृष्टि होने से बद्रीश गम्भीर तथा साहसी प्रकृति के व्यक्ति थे और इसी कारण इन्होंने अपने कार्य क्षेत्र के कठिन से कठिन कार्य को भी सफलता पूर्वक अंजाम दिया। इनकी कुण्डली में भाग्येश भाग्य में होने से भाग्य स्थान काफी बलवान है और भाग्येश और भाग्य भाव दोनों पर दशमेश बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि है इसलिए इन्हें अपने कार्यक्षेत्र में माननीय राष्ट्रपति के द्वारा उत्कृष्ट कार्य के लिए वीरता पुरस्कार प्राप्त हुआ। वैवाहिक जीवन पर दृष्टि डालें तो कुण्डली का सप्तमेश बुध छठे भाव में अष्टमेश शुक्र और षष्ठेश सूर्य के साथ स्थित होने से अत्यन्त अशुभ है जिसके कारण इनको अपनी पत्नी से शिकायत रही और उससे धोखा भी मिला जिसको ये सहन नहीं कर पाए और तलाक की स्थिति आ गई। इनकी कुण्डली के पंचम भाव में कर्क का बृहस्पति स्थित है एवं पंचमेश चन्द्रमा भी शुभ ग्रह की राशि कन्या में स्थित है जिससे यही संकेत मिलता है कि इनके प्रेम सम्बन्ध अच्छे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति से ही रह पायेंगे और गलत कार्यों के लिए ये अपनी प्रेमिका से समझौता नहीं करेंगे और अन्त में यही हुआ कि प्रेमिका के गलत कार्यों की वजह से इन्होंने उसे गोली मार कर खुद को भी गोली मार ली। जैमिनी सूत्र के अनुसार यदि लग्नेश चर राशि में हो तथा अष्टमेश स्थिर राशि में हो तो मध्यम आयु होती है। लग्न और चन्द्रमा दोनों ही द्विस्वभाव राशि का है जिसके कारण इनकी मृत्यु मध्यम आयु में हुई। अष्टमेश और सप्तमेश की छठे भाव में युति होने से अष्टमेश शुक्र में एक स्त्री ही इनकी मृत्यु का कारण बनी। इनकी मृत्यु के समय अष्टम भाव में शनि की साढ़ेसाती में शनि वक्री था तथा गोचर के मंगल, राहु व सूर्य से भी प्रभावित था। व अंतर्दशा अष्टमेश व अष्टम से अष्टमेश परम अकारक व मारक शुक्र की चल रही थी।



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