परिवार के मुखिया का शयन कक्ष दक्षिण में क्यों

परिवार के मुखिया का शयन कक्ष दक्षिण में क्यों  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 3979 | अकतूबर 2006

परिवार के मुखिया का शयन कक्ष दक्षिण में क्यों? रश्मि चतुर्वेदी ब्रह्मांड का संचालन करने वाली प्रकृति अपने उदयकाल से लेकर आज तक एक अनुशासनबद्ध तरीके से गतिमान है। इसी प्रकार की अनुशासित दिनचर्या वैदिक ऋषियों ने मनुष्य के लिए बनाई थी, जिसमें प्रातः काल जगने से लेकर सोने तक का समय निर्धारित किया गया था।

इस अनुशासनबद्ध दिनचर्या में अपने क्रियाकलापों को संपन्न कर समाज साल दर साल प्रगति की तरफ बढ़ा है। परंतु वर्तमान समय में विज्ञान द्व ारा प्रदत्त सुख-सुविधाओं के बावजूद मनुष्य को चैन की नींद नसीब नहीं है। प्रत्येक मनुष्य अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, तनाव इत्यादि बीमारियों से ग्रस्त दिखाई पड़ता है। मनुष्य जाति को सुव्यवस्थित रूप से चलाने के लिए गृह निर्माण की एक व्यवस्था बनाई गई है जिसे वास्तुशास्त्र कहा जाता है।

इस शास्त्र की विशेषता है कि इसमें कार्य की प्रकृति एवं दिशा की प्रकृति के अनुरूप कक्ष व्यवस्था का निर्देश दिया गया है। शयन व्यक्ति की वह अवस्था है जहां उसकी दिनचर्या समाप्त होती है। दिन भर में अपने क्रियाकलापों को संपन्न कर व्यक्ति भरपूर नींद की चाहत रखता है जिससे वह चुस्त एवं स्फूर्तिवान रहे तथा अपने कर्तव्यों का पालन कर सके। वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा में परिवार के मुखिया के शयन कक्ष के निर्माण का निर्देश दिया गया है।

इस दिशा के स्वामी देवता यम हैं तथा ग्रह मंगल है। यम का स्वभाव आलस्य एवं निद्रा को उत्पन्न करना है। सोने से पहले शरीर में आलस्य एवं निद्रा की उत्पत्ति होने से मनुष्य को अच्छी नींद आती है। भरपूर नींद के बाद शरीर फिर से तरोताजा हो जाता है।

इसके विपरीत यदि मनुष्य भरपूर नींद न ले तो उसके शरीर में आलस्य विद्यमान रहता है जिससे उसकी कार्यशक्ति प्रभावित होती है। दक्षिण दिशा में स्थित मंगल परिवार के मुखिया को सेनापति की भांति चुस्त एवं चैकन्ना रखने में सहायता करता है जिससे उसकी निर्णयशक्ति मजबूत बनती है। परिवार का मुखिया यदि सही समय पर सही निर्णय करे तो परिवार उन्नति की ओर अग्रसर होता है।

दक्षिण दिशा में शयनकक्ष बनाने के पीछे एक कारण यह भी है कि दक्षिण में चंुबकीय शक्ति के प्रभाववश मनुष्य को तनावरहित नींद आती है। जैसा कि हम सभी जानते हैं, चुंबक के समान ध्रुवों में विकर्षण तथा विरोधी ध्रुवों में आकर्षण होता है। अतः दक्षिण में स्थित शयनकक्ष में दक्षिण की तरफ सिर रखकर सोने से पृथ्वी एवं शरीर का विपरीत ध्रुव होने के कारण आकर्षण उत्पन्न होता है जिससे मनुष्य पूर्ण विश्राम करता है तथा तन एवं मन दोनों से चुस्त एवं दुरुस्त रहता है और रक्त का प्रवाह सही होने के कारण तनाव मुक्त रहता है।

यदि दक्षिण दिशा में परिवार के मुखिया का शयन कक्ष बनाया जाए, तो उसे अपने दायित्वों का निर्वाह करने में आसानी होगी। वर्तमान समय में सारी सुख सुविधाओं के बावजूद कमी है तो केवल अच्छी नींद की। नींद न आने के कारण लोग अनेक प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हैं जिससे परिवार में हताशा एवं निराशा विद्यमान है। विभिन्न चिंताओं से ग्रस्त अशांत व्यक्ति के लिए वास्तुसम्मत शयनकक्ष सहायक सिद्ध हो सकता है।

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