आज हम बात कर रहे हैं
एक ऐसे शख्स की जिसे
चित्रकारी, संगीत, गायन, तकनीकी
ज्ञान, भवन निर्माण, मूर्तिकला आदि
अनेक विधाओं में महारत हासिल थे।
जी हां हम बात कर रहे हैं मशहूर
इतालवी चित्रकार लियोनार्डो दा
विंसी की जिन्हें लोग मोनालिसा की
मशहूर पेंटिंग बनाने वाले चित्रकार
के नाम से जानते हैं।
फ्लोरेंस के एक गांव वंसी में धनी
जागीरदार की अवैध संतान के रूप
में लियोनार्डो का जन्म हुआ था।
लियोनार्डो की कला प्रतिभा ईश्वर
प्रदत्त थी जिसे उनके दादा ने
पहचाना। दादा की सलाह पर
ही लियोनार्डो के पिता ने उनका
दाखिला ऐसे स्कूल में करवाया जहां
अन्य पाठ्यक्रम के साथ ही संगीत
और चित्रकारी की शिक्षा भी दी जाती
थी।
आइये देखते हैं क्या कहते हैं
लियोनार्डो की कुंडली के ग्रह
लियोनार्डो का जन्म वृश्चिक लग्न
में हुआ। लग्नेश मंगल चतुर्थ भाव में
द्वितीयेश व पंचमेश बृहस्पति से युत
होकर स्थित हैं।
मंगल अपने ही नक्षत्र और कर्मेश
सूर्य के उप नक्षत्र में हैं।
नवांश लग्न में धनेश व लाभेश होकर
बृहस्पति बैठे हैं तथा नवांश लग्नेश
शनि अष्टम भाव में राहु से युत
होकर बैठे हैं।
लियोनार्डो के लग्न लग्नेश पर
बृहस्पति का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर
है।
बृहस्पति द्वितीयेश व पंचमेश हैं।
द्वितीय भाव वाणी का तथा पंचम
भाव मनोभाव व ललित कलाओं का
भाव है।
लग्न कुंडली में चतुर्थ भाव में लग्नेश
मंगल व बृहस्पति की युति दशम भाव
पर पूर्ण दृष्टि प्रभाव बनाए हुए है।
मंगल लग्नेश होने के साथ ही षष्ठेश
भी है। षष्ठ भाव दशम भाव का भाग्य
भाव होता है। मंगल व बृहस्पति दोनों
की ही दृष्टि दशम भाव पर है। कला
के कारक ग्रह शुक्र सप्तम भाव में
स्वराशिस्थ होकर लग्न को पूर्ण दृष्टि
से देख रहे हैं और लग्नेश मंगल की
सप्तम भाव पर पूर्ण दृष्टि भी है।
यही कारण है कि बचपन से ही
लियोनार्डो की रूचि कला की ओर
रही। मात्र छः सात वर्ष की उम्र में
ही वे लोगों के चेहरे के स्केच हूबहू
उतार दिया करते थे।
चतुर्थ भाव माता का भाव है। चतुर्थेश
शनि अपने से अष्टम अर्थात एकादश
भाव में और चतुर्थ भाव के कारक
चंद्रमा लग्न से अष्टम भाव में बैठकर
चतुर्थ भाव की हानि कर रहे हैं। यही
कारण था कि उनकी माता ने उन्हें
जन्म तो दिया किंतु उनका पालन
पोषण नहीं किया।
नवम भाव भाग्य का व पिता का भाव
है। नवमेश चंद्रमा अपने से द्वादश
भाव अर्थात अष्टम में है जो नवम
भाव के फलों का व्यय दर्शा रहे
हैं जिसके कारण ही लियोनार्डो को
पिता का भी अपेक्षित प्रेम नहीं मिला।
चूंकि पितृ कारक सूर्य षष्ठ भाव में
अपनी उच्च राशि में स्थित है और
षड्बल में भी सर्वाधिक बली है इसी
कारण नाजायज संतान के रूप में
जन्म लेने के बाद भी लियोनार्डो के
जागीरदार पिता ने उन्हें अनाथालय
में छोड़ने की बजाय अपने पास रख
लिया।
लियोनार्डो को अपने घर में उस
समय की सारी सुख सुविधाएं प्राप्त
थीं किंतु सभी उसे उपेक्षापूर्ण नजरों
से देखते थे। पिता ने शादी भी
कर ली और सौतेली मां व अन्य
रिश्तेदारों से भी उसे रूखा व्यवहार
ही मिलता था।
यही कारण था कि लियोनार्डो
इंसानों की बजाय प्रकृति से अधिक
घुल-मिल गये। वे घंटों जंगल में
घूमते और प्रकृति के नजारों में खो
जाते।
लियोनार्डो के पिता ने उनके जीवन
में धन की कोई कमी नहीं होने दी
लेकिन प्रेम और लगाव कभी नहीं
प्रदान किया।
लियोनार्डो के जीवन में केवल उनके
दादा जी एक मात्र ऐसे शख्स थे
जिन्होंने उसे प्रेम दिया और उसकी
प्रतिभा को समझा।
द्वितीय भाव से राहु की पंचम दृष्टि
षष्ठ भाव में स्थित दशमेश सूर्य पर,
सप्तम दृष्टि नवमेश चंद्रमा पर तथा
नवम दृष्टि दशम भाव पर है।
राहु यद्यपि अपनी नीचस्थ राशि धनु में
स्थित है किंतु राहु नीचभंग राजयोग
भी निर्मित कर रहे हैं। राहु द्वारा
बनने वाले इस नीच भंग राजयोग
का ही प्रभाव था कि लियोनार्डो में
उनके दादा को अनेक खूबियां नजर
आईं।
लियोनार्डो की कुंडली में राहु धनु
राशि में स्थित है। धनु के स्वामी
बृहस्पति लग्न से केंद्र अर्थात चतुर्थ
भाव में हैं और राहु के उच्चनाथ
अर्थात मिथुन के स्वामी बुध चंद्रमा से
दशम भाव में स्थित हैं। इस कारण
प्रबल नीच भंग राजयोग बन रहा है।
लियोनार्डो का जन्म मंगल की
महादशा में हुआ जो जन्म के बाद
लगभग डेढ़ वर्ष चली फिर प्रारंभ हुई
18 वर्ष की राहु की महादशा। इस
राहु की महादशा में लियोनार्डो को
राहु के नीचभंग राजयोग के सभी
शुभ फल प्राप्त हुए।
नवांश लग्न में भी राहु नवांश लग्नेश
शनि के साथ युत होकर बैठे हैं और
पंचम भाव तथा पंचमेश बुध को पूर्ण
दृष्टि प्रदान कर रहे हैं। यही कारण
है कि लियोनार्डो को सभी ललित
कलाओं में महारत हासिल था।
लग्न कुंडली में दशमेश सूर्य हैं,
नवांश लग्न में सूर्य दशमस्थ हैं और
दशमांश लग्न में भी सूर्य दशम भाव
में बैठे हैं।
सूर्य षड्बल में भी सर्वाधिक बली है।
यही कारण है कि लियोनार्डो एक
धनी और सम्मानित जागीरदार के
पुत्र हुए और साथ ही अपने कार्य
क्षेत्र में भी अत्यंत सम्मानित हुए। सूर्य
के प्रभाववश ही ड्यूक आॅफ मीलान
ने उन्हें शाही इंजीनियर नियुक्त
किया था।
राहु की महादशा के बाद प्रारंभ हुई
बृहस्पति की महादशा। बृहस्पति
चतुर्थ भाव में लग्नेश मंगल के साथ
स्थित है। बृहस्पति राहु के ही नक्षत्र
में और शुक्र के उपनक्षत्र में है। शुक्र
सप्तमेश और द्वादशेश है।
बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि अष्टम भाव व
भाग्येश चंद्र पर तथा दशम भाव व
द्वादश भाव पर है।
नवांश कुंडली में बृहस्पति वर्गोत्तमी
होकर लग्न में ही विराजमान है।
दशमांश लग्न में बृहस्पति पंचम
भाव में अपनी उच्च राशि कर्क में
उच्चनाथ चंद्रमा के साथ विराजमान
है और लग्नेश होकर लग्न, पंचम व
नवम पर अपना पूर्ण शुभ प्रभाव दर्शा
रहे हैं।
लियोनार्डो के कार्य क्षेत्र के बाद अब
बात करते हैं सप्तम भाव की। सप्तम
भाव में स्वराशिस्थ व्ययेश शुक्र बैठे
हुए हैं।
पुरुष की कुंडली में सप्तम भाव के
कारक होते हैं शुक्र। भाव के कारक
का भाव में बैठना शुभ नहीं कहा
जाता है
‘‘कारको भाव नाशाय’’
साथ ही शुक्र यहां द्वादश अर्थात
व्यय भाव के स्वामी हैं और सप्तम
से छठा होने के कारण व्यय भाव
सप्तम भाव के लिए अशुभ फल ही
उत्पन्न करता है। यही कारण है कि
लियोनार्डो को सप्तम भाव अर्थात
पत्नी का सुख प्राप्त नहीं हुआ।
लियोनार्डो का सप्तम भाव पापकर्तरी
योग से भी ग्रस्त है। षष्ठ भाव में
सूर्य व अष्टम भाव में केतु चंद्र की
उपस्थिति सप्तम भाव को पीड़ित कर
रही है।
राहु की भी पूर्ण दृष्टि षष्ठ व अष्टम
भाव पर पड़ रही है।
फ्लोरिया नाम की महिला उन्हें बहुत
प्रेम करती थी किंतु उन्होंने उसके
प्रेम को कभी स्वीकार नहीं किया।
लियोनार्डो का प्रथम व अंतिम प्रेम
तो कला थी। उन्होंने अपनी कला
से प्रेम किया और अपनी योग्यता
का सदैव दूसरों की भलाई में प्रयोग
किया।
बृहस्पति के बाद शनि की महादशा
भी अत्यंत शुभ रही। शनि तृतीयेश
व चतुर्थेश होकर लाभ भाव में अपनी
मित्र राशि कन्या में स्थित है। शनि
की राशि कुंभ में लग्नेश मंगल बैठे
हैं और मंगल की पूर्ण दृष्टि शनि पर
है। शनि मंगल के नक्षत्र में स्थित हैं।
इस प्रकार शनि व मंगल का अत्यंत
घनिष्ठ संबंध बना हुआ है।
शनि तृतीयेश होने के साथ ही
चतुर्थेश भी हैं। चतुर्थ भाव सुख भाव,
तृतीय भाव पराक्रम का भाव होने
के साथ ही सुख भाव का व्यय भाव
भी है। शनि लाभ भाव में तृतीय से
तो नवम में हैं किंतु चतुर्थ से अष्टम
भाव में हैं। यही कारण है कि उन
पर यह आरोप लगा कि वे नास्तिक
हैं। इटली में उस
समय एक चर्च में
वे अपनी म्यूरल पूर्ण
करने में व्यस्त थे।
यह इतनी बड़ी और
मुश्किल थी कि दो
साल से वे इसे पूर्ण
करने में लगे थे।
लियोनार्डो को
अपना काम और
घर छोड़ना पड़ा।
चर्च के पादरी ने
उन्हें आरोप से तो
मुक्त कर दिया
किंतु उन्हें वापस
चर्च में न आने की
हिदायत भी दी।
राहु, बृहस्पति व
शनि ने लियोनार्डो
को जहां शुभ फल
प्रदान किये वहीं अष्टम भाव संबंधी
अशुभ फल भी प्रदान किये। तीनों
की ही पूर्ण दृष्टि अष्टम भाव पर
है। अष्टम भाव गहराई का भाव
है। लियोनार्डो की कला में असीम
संभावनाएं थीं। उन्होंने कला को
एक अलग मुकाम तक पहुंचाया।
उसी अष्टम भाव के फलस्वरूप उन्हें
अपना काम छोड़ना पड़ा और प्राण
रक्षा के लिए घर भी छोड़ना पड़ा।
लियोनार्डो जहां भी गए उन्हें उनकी
कला ने सदैव खूब काम और सम्मान
दिलवाया। उनकी कला के सर्वत्र
चर्चे थे।