लाल किताब का परिचय इतिहास एवं उत्पत्ति

लाल किताब का परिचय इतिहास एवं उत्पत्ति  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 10661 | मार्च 2011

ज्योतिष को वेद (ज्ञान) की तीसरी आंख कहते हैं, उसका महत्व आज भी बरकरार है। वर्तमान समय में भी उसके कमोवेश अवशेष विद्यमान हैं। इस सदी के महान वैज्ञानिक न्यूटन ने अपनी स्वयं की कुण्डली लाल किताब के आधार पर स्वयं निर्मित की थी। न्यूटन को अहसास हो गया था कि हस्तरेखा से निर्मित कुण्डली मनुष्य के कारनामों की पोल पलक झपकते ही खोलने में सक्षम है।

जगत की सारी प्राचीन सभ्यताओं में ज्योतिष एवं खगोल शास्त्र की परम्परा रही है। एवं इस ज्ञान का आदान-प्रदान भी होता रहा है। मानव सभ्यता के इतिहास में दो समानान्तर धारायें अविरल चलती रही हैं। प्रथम धारा थी विशुद्ध ग्रहों की गति पर आधारित घटनाओं की जो गणित ज्योतिष की तुलना में फलित ज्योतिष कहलाती है। कालान्तर में गणित ज्योतिष की तुलना में फलित ज्योतिष अर्थात लाल किताब खूब फैली व 12वीं सदी के बाद ज्योतिष के सिद्धांत की मात्र टीकायें लिखी जाने लगीं जबकि गणित ज्योतिष किताबों में सिमट कर रह गयी। फलित ज्योतिष के कई रुप हो गये हैं। जैसे- हस्त रेखा शास्त्र, मुखाकृति विज्ञान, हस्ताक्षर विज्ञान, प्रश्न कुंडली विज्ञान, अंक शास्त्र, होरा शास्त्र आदि न जाने कितनी विधायें पनपी व लोकप्रिय रहीं। कालक्रम में ध्यान देने वाली बात यह है कि आजकल लाल किताब भी प्रचलन में आ गयी है। पुरातन काल में दुर्लभ साहित्यों एवं ज्योतिषियों की भविष्य कथन की प्रक्रिया उलझी हुई व पहेलीनुमा भाषाओं में होती थीं, जैसा कि लाल किताब पर दृष्टि डालने पर प्रतीत होता है। उलझी हुई भविष्यवाणियां होने पर भी वक्त आने पर उनके अर्थ स्वतः स्पष्ट हो जाते थे। जगत की पुरातन सभ्यताओं में कालक्रम के अनुसार मंदिरों में पुजारी एवं पुजारिनें, भविष्य अध्ययन व कथन लाल किताब के ही अनुसार किया करते थे।

सन् 1942 में हिटलर ने अपने निजी ज्योतिषी एवं आध्यात्मिक सलाहकार (श्री क्राफ्ट ) से पूछा था जर्मनी की किस्मत में युद्ध का धुआं कब-तक बदा है। क्राफ्ट ने कहा था कि मई 1945 तक' 'एवं मेरा भविष्य?', क्राफ्ट ने उत्तर दिया- 'सूरज की अग्नि जैसा प्रखर व बंकर जैसा सुरक्षित।' इतिहास साक्षी है कि 29 अप्रैल 1945 को बर्लिन के एक बंकर में हिटलर ने अपनी प्रेमिका (ईवाव्रान) से विवाह किया एवं अगले ही दिन आत्महत्या करने के पूर्व अपने अनुचरों को आदेश दिया कि ईवा व उसकी लाश को पेट्रोल से जला दें। इसका यह अभिप्राय है कि मनुष्य वर्तमान में जो अच्छे कर्म करता है या बुरे कर्म करता है, उसका प्रभाव उसके पूर्वार्जित अदृष्ट पर अवश्य पड़ता है। ज्योतिष के हिसाब से लौकिक पक्ष में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि ग्रह फलाफल में नियामक नहीं हैं, अपितु सूचक हैं। अर्थात ग्रह किसी को सुख -दुःख नहीं देते बल्कि आने वाले सुख-दुःख की सूचना देते हैं। लाल किताब के अनुसार बनी जन्म पत्री में तलाशें कि कौन सा ग्रह कष्ट दे रहा है। उसके अनुसार आप उस ग्रह की शांति का उपाय कर लें।

यदि आपको अपनी जन्म-पत्री का ठीक-ठीक पता नहीं है तो भी आप निम्न प्रयोग एक सप्ताह अवश्य करें, करके देखें। यदि आपको आभास होता है कि अमुक दिन आपके लिये विशेष रुप से कष्टकारी सिद्ध होता है तो उस दिन से सम्बंधित ग्रह का टोटका 40 से 43 दिनों तक नित्य करें। यह प्रयोग आपका आर्थिक पक्ष सबल करेगा।

लाल किताब के टोटकों में (चलते पानी में बहाना) प्रायः प्रयोग कराया जाता है। इसके पीछे भाव यह है कि आपके सारे कष्ट कोई अज्ञात शक्ति पानी में बहाकर आपसे दूर लिये जा रही है।

यूनान में पूर्व सागर तटीय क्षेत्र में एथेंस के पास डेल्फी नामक पर्वतीय अंचल में अपोलो का मन्दिर था जिसके भग्नावशेष आज भी विद्यमान हैं। ईसा पूर्व की चौथी सदी में डेल्फी की पुजारिने विशेष दिनों में लाल किताब के अनुसार भविष्य कथन किया करती थीं, जिन्हें पायथिया कहा जाता है। वे हाथ की रेखाओं के आधार पर निर्मित जन्म कुण्डली से भविष्यवाणी करतीं थीं। उन्हीं दिनों रोम के सम्राट नीरो ने डेल्फी के पायथिया से अपना भविष्य पूछने की कामना की। वह काफी प्रयास के बाद लम्बी यात्रा करके डेल्फी पहुंचा। अपोलो के पवित्र मन्दिर में उसे घुसते ही वहां उपस्थित पायथिया ने चीखते हुये कहा 'जा, भाग जा, माता के हत्यारे, डेल्फी और बचकर रहे। इस अपमान से नीरों आपे से बाहर हो गया। उसने डेल्फी की सारी पुजारिनों को एवं उस पुजारिन का हाथ-पैर काट कर उन्हें जिन्दा ही जमीन में दफनाने का हुक्म दिया एवं उनके अंगरक्षकों ने मन्दिरों को तहस -नहस कर दिया। नीरो ने सोचा कि पुजारिन ने उसकी आयु 73 वर्ष बतायी है परन्तु पुजारिन का आशय कुछ और था। जिसने नीरो की हत्या की थी उसका नाम गलबा था एवं उसका राज्य भी हथिया लिया था। तब उसकी आयु 73 वर्ष की थी उस गलबा ने 73 वर्ष पूर्ण होने के पूर्व ही नीरो की हत्या कर दी। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह सत्य प्रतीत होता है कि दिव्य-दृष्टि से लिखी लाल किताब के पन्ने गूढ़ एवं गहन विधाओं एवं अतीन्द्रिय शक्तियों के स्वामी हैं जो मानव की आत्माओं म झांककर विभिन्न गोपनीय रहस्यों को उजागर करते हैं।

किंवदंती है कि लंकाधिपति रावण ने सूर्य के सारथी अरुण से इस इल्म का सामुद्रिक ज्ञान संस्कृत में ग्रन्थ के रुप में ग्रहण किया था। रावण की तिलस्मी दुनिया समाप्त होने के पश्चात् यह ग्रन्थ किसी प्रकार 'आद' नामक स्थान पर पहुंच गया जहां इसका अनुवाद अरबी-फारसी में किया गया। कुछ लोग आज भी यह मानते हैं कि पुस्तक फारसी में उपलब्ध है जबकि सच्चाई कुछ और है यह ग्रन्थ उर्दू में अनुवादित होने के पश्चात पाकिस्तान के पुस्तकालय में सुरक्षित है। परन्तु कालवश इस ग्रन्थ अरुण संहिता बनाम लाल किताब का कुछ हिस्सा लुप्त हो चुका है।

लाल किताब में कहा गया है 'बीमारी का इलाज दवा है, मगर मौत का इलाज नहीं, दुनियावी हिसाब -किताब है कोई दवा खुदायी नहीं।' इसका तात्पर्य यह है कि लाल किताब कोई जादू नहीं अपितु बचाव एवं रुह (आत्मा )की शान्ति के लिये है मगर दूसरों पर हमला करने के लिये नहीं। अगर भाग्य के राह में कोई ईंट या पत्थर गिरा दे एवं मार्ग का अवरोध करे तो इस विषय की मदद से पत्थर हटाकर उसे प्रवाहमान करने की कोशिश की जा सकती है।

लाल किताब के अनुसार सूर्य के देवता विष्णु जी, चन्द्र के देवता शिव जी, बुध के देवता दुर्गा जी, बृहस्पति के देवता ब्रह्मा जी, शुक्र के देवता लक्ष्मी जी, शनि के देवता शिव जी, राहु के देवता सर्प, केतु के देवता गणेश जी हैं। आपको लगता है कि किसी ग्रह के कारण आप भौतिक कष्ट भोग रहे हैं तो आप उस ग्रह से संबंधित देवता की पूजा-अर्चना करें,प्रभु अवश्य सुख-समृद्धि तथा शांति प्रदान करेंगे।



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