योजनापूर्वक इच्छित संतान कैसे प्राप्त करें ?

योजनापूर्वक इच्छित संतान कैसे प्राप्त करें ?  

दलीप कुमार
व्यूस : 5241 | जनवरी 2012

प्रत्येक नवविवाहित जोड़े को विवाह के पश्चात एक स्वस्थ, दीर्घायु, बलशाली, विद्यावान, उच्च शिक्षित, बलशाली, ओजस्वी, यशस्वी व वंश वृद्धि करने वाली संतान की इच्छा सदैव रहती है। प्रत्येक व्यक्ति के मन में एक इच्छा रहती है। इस संसार से जाने के बाद भी उसका नाम लेने वाला कोई जरूर हो तथा उसका वंश चलता रहे। कलयुग में व्यक्ति के पास सभी सुख-सुविधायें प्राप्त करने की क्षमता बढ़ती जा रही है। मनुष्य चांद पर पहुंच गया है। हजारों किलोमीटर की यात्रा घंटों में पूरी हो जाती है। एक बटन दबाने से कंप्यूटर द्वारा इंटरनेट के माध्यम से पूरी दुनियां की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

मोबाईल से हजारों मील दूर बैठे मित्रों/संबंधियों से न केवल बातचीत की जा सकती है बल्कि विडियो काल के द्वारा आमने सामने बातचीत कर सकते हैं। इतनी सब सुविधाओं को प्राप्त करने के पश्चात भी इंसान अपनी इच्छानुसार संतान प्राप्त नहीं कर पाता है, क्योंकि संतान उत्पति एक प्राकृतिक क्रिया है जिसमें 36 से 40 सप्ताह का समय लगता है। इसलिए संतान का होना भगवान की इच्छा पर निर्धारित माना जाता है। प्रत्येक नवविवाहित जोड़े को विवाह के पश्चात एक स्वस्थ, दीर्घायु, बलशाली, विद्यावान, उच्च शिक्षित, बलशाली, ओजस्वी, यशस्वी व वंश वृद्धि करने वाली संतान की इच्छा सदैव रहती है। प्रत्येक व्यक्ति के मन में एक इच्छा रहती है।

इस संसार से जाने के बाद भी उसका नाम लेने वाला कोई जरूर हो तथा उसका वंश चलता रहे। संतान होने के बाद यदि संतान की आयु कम हो, पूर्ण शिक्षा का योग न हो, वैवाहिक जीवन अच्छा न हो, संतान सुख या धन सुख न हो तथा भाग्य कमजोर हो तो ऐसी संतान को पाकर भी माता-पिता खुश नहीं होते हैं। अतः व्यक्ति चाहता है कि उसकी संतान सर्वगुण संपन्न हो तथा उसे अपनी इच्छानुसार संतान प्राप्त हो। 21वीं सदी के कंप्यूटर युग में यह संभव है।


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जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो ब्रह्मांड में भ्रमण करते नवग्रहों के आधार पर कुंडली बन जाती है, जिससे बच्चे की आयु, शिक्षा, विवाह, संतान, कर्म, व्यवसाय तथा भाग्य इत्यादि का पता चल जाता है, इसलिए किसी विद्वान ज्योतिष से सलाह लेकर संतान प्राप्ति का शुभ समय ज्ञात किया जा सकता है। ग्रहों के गोचर व शुभ राशियों में स्थित ग्रहों के आधार पर प्रत्येक दिन की 12 विभिन्न लग्नों की कुंडलियां बनाकर, बच्चे का जन्म निर्धारित किया जा सकता है। जिस समय नवग्रहों में से कुछ ग्रह उच्च, मूल त्रिकोण, स्वराशि व मित्र राशियों में स्थित हो उस महीने, दिन व घंटों के आधार पर कुंडली बनाकर शुभ लग्न में संतान प्राप्त की जा सकती है।

जो व्यक्ति किसी लख्य को पाने का संकल्प उठा लेता है और निष्ठा से कार्य करता है, उसकी सफलता निश्चित है क्योंकि जैसा तुम्हारा लक्ष्य होगा, वैसा ही तुम्हारा जीवन होगा। प्रतयेक व्यक्ति के जीवन में एक ऐसा अवसर अवश्य आता है जब भाग्य उसे कुछ करने या कुछ पाने का मौका देता है और वही मौका उसके जीवन में भविष्य का निर्णय कर देता है। हाथ में आए अवसर को कभी खोना नहीं चाहिए। मैंने पिछले 5-7 सालों में अनेक दंपतियों को शुभ समय की कुंडलियां बनाकर संतान प्राप्ति का समय निकाल कर दिया है, जिसमें से लगभग 70 प्रतिशत बच्चों का जन्म सही समय पर हुआ है

लेकिन लगभग 30 प्रतिशत संतान मेरे बताये समय से पहले हो गई या डाॅक्टर ने किसी कारणवश विशेष समय में बच्चे की डिलीवरी में असमर्थता जाहिर की है, जिसे मैं भगवान की इच्छा माना हूं, क्योंकि माता-पिता के पूर्व जन्मों के कर्मों के आधार पर तथा बच्चे के संचति कर्मों के फलस्वरूप ही विशेष दिन तथा विशेष समय में बच्चे का जन्म होता है। मेरा यह मानना है कि ज्योतिष कभी भगवान नहीं बन सकता है। ज्योतिष केवल उचित सलाह देकर मार्ग दर्शन ही दे सकता है।

हजारों साल पहले भी इच्छित संतान प्राप्ति के लिए मंत्र जाप, पूजा, यज्ञ व तपस्या की जाती थी। पांडवों की माता कुंती ने देवताओं के मंत्र जाप से इच्छित संतान प्राप्त की थी। राजा दशरथ ने तपस्या तथा यज्ञ द्वारा चार संतान प्राप्त की थी। इच्छित संतान प्राप्ति के लिए सबसे पहले प्रत्येक दिन की 12 विभिन्न लग्नों की कुंडली बनाकर मंगली योग, गंडमूल नक्षत्र व कालसर्प योग देखने चाहिए। फिर कुंडली में बनने वाले राजयोग, गजकेसरी योग, धन योग, सुनफा योग, अनफा योग, वेशी योग, वाशी योग, महायोग, महाभाग्य योग, चंद्राधियोग, लग्नाधि योग, अमलकीर्ति योग, वीणा योग इत्यादि देखने चाहिए।


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केंद्र में शुभ ग्रह हो, त्रिषडाय भावों में अशुभ ग्रह हो। षष्टम, अष्टम व द्वादश भावों में ग्रह न हो। लाभ भाव पर अधिक ग्रहों का प्रभाव हो। बच्चे को जनम समय व पहले 25 वर्षों में शुभ दशायें प्राप्त हो। क्योंकि बच्चे की शिक्षा व भविष्य का निर्माण पहले 25 वर्षों में ही होता है। बच्चे के जन्म समय का शुभ लग्न निर्धारित करने के पश्चात लग्न के प्रत्येक मिनट की कुंडलियां बना कर नवांश देखें। क्योंकि बच्चे को शुभ लग्न कुंडली, शुभ दशायें और शुभ नवांश ही सुखद भविष्य दे सकते हैं।

यदि शुभ लग्न कुंडली ,शुभ दशायें व शुभ नवांश कुंडली बन जाये तो आप जान सकते हैं कि बच्चे का भविष्य बहुत उज्ज्वल है तथा बच्चा स्वस्थ, दीर्घायु, शिक्षित, बलशाली, ओजस्वी, धनवान व वंश वृद्धि लायक होगा। एक नवविवाहित जोड़े को विवाह के 3-4 साल बाद गर्भ धारण हुआ था तथा डाॅक्टर ने बच्चे के जन्म का समय लगभग 2 फरवरी 2011 बताया था। उस महिला को विभिन्न दिनों की बारह-बारह लग्नों की कुंडलियां बनाकर करीब एक सप्ताह पहले 24 जनवरी 2011 को मीन लग्न में बच्चे के जनम का सुझाव दिया।

फिर मीन लग्न की लगभग 120 कुंडलियां प्रत्येक मिनट की बनायी थी और शुभ नवांश व शुभ दशाओं की गणना करके महीला को 24.1.2011 को सुबह 9.20 बजे से 9.29 का शुभ समय बताया था ताकि कुंडली में अधिक योग बन सके। नवांश भी शुभ हो तथा जीवन में दशाएं भी अच्छी प्राप्त हो।



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