ग्रह योग कराते हैं विदेश यात्रा

ग्रह योग कराते हैं विदेश यात्रा  

मिथिलेश कुमार सिेह
व्यूस : 16060 | जनवरी 2005

वर्तमान युग में यातायात एवं संचार के आधुनिक साधनों के फलस्वरूप पूरा विश्व सिमट कर एक वैश्विक ग्राम यानी ग्लोबल विलेज का रूप ले चुका है। निःसंदेह विदेश-यात्राएं भी पहले से आसान हुई हैं तथा इसी लिए लोगों में विदेश गमन की लालसा भी बढ़ी है। 

परंतु सभी लोगों की विदेश जाने की यह चाह पूरी नहीं होती। जहां कुछ लोगों को बिना किसी विशेष प्रयत्न के ही विदेश भ्रमण के अवसर प्राप्त हो जाते हैं, वहीं कुछ लोग घोर प्रयास के बावजूद इससे वंचित रह जाते हैं। कुछ लोग तो स्थायी रूप से ही विदेश में बस कर खूब धनार्जन एवं यश प्राप्त करने में सफल होते हैं। 

अनेक लोग ऐसे भी होते हैं जो विदेश जाते तो हैं पर विदेश की धरती पर उन्हें अपमान, निरादर, तिरस्कार एवं दुःख के सिवा कुछ भी प्राप्त नहीं होता। जन्म कुंडली में मौजूद विविध ग्रह-योग इन सभी स्थितियों के लिये जिम्मेवार होते हैं।

विदेश भ्रमण की संभावनाओं के निर्धारण हेतु जन्म कुंडली में निम्न स्थितियों एवं ग्रह-योगों का अध्ययन आवश्यक है:

1. लग्न एवं लग्नेश: कुंडली का प्रथम भाव शारीरिक स्वास्थ्य के अतिरिक्त व्यक्ति की मानसिक स्थिति को भी व्यक्त करता है। लग्न एवं नवांश लग्न में चर राशि का होना तथा लग्नेश की चर राशि में उपस्थिति व्यक्ति की यात्रा के प्रति तीव्र उत्कंठा प्रदर्शित करती है। ऐसे में लग्न एवं लग्नेश का यात्रा कारक ग्रहों और तृतीय भाव से संबंध जातक को उसके जन्म स्थान तथा स्थायी निवास से दूर जाने को प्रेरित कर विदेश यात्राएं कराता है।


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2. तृतीय एवं चतुर्थ भाव: जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव जन्म स्थान एवं स्थायी निवास का द्योतक है। पाप प्रभाव या अन्य किसी भी प्रकार से इस भाव या इसके स्वामी की हानि जातक को उसके जन्म स्थान या स्थायी निवास से दूर ले जाती है तथा विदेश यात्रा का मार्ग प्रशस्त करती है। कुंडली का तीसरा भाव चतुर्थ से बारहवां होने के कारण चतुर्थ का व्यय स्थान है। अतः तृतीय भाव बली हो कर चतुर्थ भाव की हानि करता है और जातक को स्थायी निवास से दूर करता है।

इस प्रकार तृतीय भाव, तृतीयेश तथा इसके कारक ग्रह मंगल की कुंडली में बलवान स्थिति और तृतीय भाव में चर राशि की उपस्थिति विदेश यात्रा के योग बनाती है। इसके विपरीत कुंडली में चतुर्थ भाव की बलवान स्थिति तथा इस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि जातक में यात्राओं से परहेज करने की प्रवृत्ति पैदा कर उसके लिए घर में ही सुखपूर्वक रहने की स्थितियां उत्पन्न करती है।

3. सप्तम भाव: कुंडली के सप्तम भाव से व्यावसायिक तथा आनंद प्राप्ति हेतु पर्यटन संबंधी की गयी यात्राओं का विचार किया जाता है।

यदि सप्तमेश का नवमेश, द्वादशेश या तृतीयेश से संबंध हो तो व्यवसाय के लिए विदेश यात्राएं होती हैं। सप्तमेश एवं शुक्र की युति तृतीय, नवम और दशम भावों में होने पर विवाहोपरांत आनंद प्राप्ति हेतु विदेश यात्राओं के योग बनते हैं।

4. अष्टम भाव: अष्टम भाव समुद्र का द्योतक है। अतः अष्टम भाव से समुद्री यात्राओं का अध्ययन किया जाता है। वर्तमान समय में समुद्र से यात्रा बहुत कम ही होती है; अतः काल एवं परिस्थिति के अनुसार वर्तमान में ऐसी यात्राओं को विदेश यात्राओं के रूप में ही देखा जाता है। अष्टम भाव तथा अष्टमेश पर पाप ग्रहों और जलीय राशियों के प्रभाव से विदेश यात्राएं होती हैं। अष्टम में सूर्य भी विदेश यात्रा कराता है।


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आम तौर पर अष्टम भाव के प्रभाव में की गयी यात्राएं कष्टप्रद होती हंै। कभी-कभी इस प्रकार की यात्राएं स्वास्थ्य लाभ या बीमारियों के इलाज हेतु भी की जाती हैं, विशेषकर उन परिस्थितियों में जब अष्टम भाव षष्ठम या षष्ठेश से संबंध स्थापित करता है।

5. नवम भाव: नवम भाव विदेश यात्रा की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। इससे लंबी यात्राओं की स्थितियों का अध्ययन किया जाता है। यदि नवम भाव में चर राशि हो, नवमेश चर राशिस्थ हो, नवम भाव में चर राशियों के स्वामी ग्रह स्थित हों तथा नवम भाव एवं नवमेश चर ग्रहों या यात्राकारक ग्रहों से दृष्ट हों तो विदेश यात्राएं होती हंै। नवमेश की तृतीय, नवम या द्वादश भाव में स्थिति भी विदेश यात्रा कराती है। यदि नवम भाव में बुधादित्य योग हो तथा उस पर बृहस्पति की शुभ दृष्टि हो तो निश्चय ही विदेश यात्रा होती है।

6. द्वादश भाव: द्वादश भाव विदेश यात्रा का विशिष्ट स्थान है। नवम से चतुर्थ होने के कारण यह भाव विदेश की भूमि या विदेश के आवास को व्यक्त करता है। इस भाव से विदेश गमन तथा विदेश में रहने का निर्णय किया जाता है।

7. विदेश यात्रा के कारक ग्रह: विदेश यात्रा के मुख्य कारक ग्रह चंद्रमा, बृहस्पति, शनि एवं राहु हैं। चंद्रमा से मुख्यतः छोटी एवं सामुद्रिक यात्राओं का विचार किया जाता है जबकि बृहस्पति एवं शनि बड़ी विदेश यात्राओं के कारक हंै। राहु से राजनीतिक, कूटनीतिक एवं गोपनीय यात्राओं का विचार किया जाता है। कुछ विद्वान शुक्र को विदेश यात्रा का विशेष कारक मानते हैं। मंगल के प्रभाव में मुख्यतः सड़क मार्ग से यात्राएं होती हैं। उपर्युक्त सभी भावों, भाव स्वामियों एवं यात्रा के कारक ग्रहों के आपसी संबंधों का अध्ययन कर विदेश यात्रा की संभावनाओं का सही सही आकलन किया जा सकता है।

इन भावों, भाव स्वामियों एवं यात्रा कारक ग्रहों के परस्पर संबंधों के आधार पर विदेश यात्रा के कुछ प्रमुख ग्रह योगों का विश्लेषण इस प्रकार है: लग्न चर राशि का हो तथा लग्नेश भी कुंडली में चर राशि में स्थित हो और लग्न तथा लग्नेश पर चर राशि में स्थित किसी ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो तो विदेश यात्रा होती है। तृतीय, नवम एवं द्वादश भावों में चर राशियां हों, इनके स्वामी चर नवांश में स्थित हों तथा इन राशियों में चर राशियों के स्वामी स्थित हों तो विदेश यात्रा के योग बनते हैं।  


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नवम, द्वादश एवं तृतीय भावों के बीच संबंध विदेश यात्रा कराता है। सूर्य अष्टम में हो तो विदेश यात्रा होती है। षष्ठम का बृहस्पति भी विदेश यात्रा कराता है। लग्न, दशम या द्वादश भाव में राहु हो तो विदेश यात्राएं होती हैं। लग्नेश नवम में हो तथा नवमेश लग्न में हो तो विदेश यात्रा के सुयोग प्राप्त होते हैं।

लग्नेश एवं नवमेश अपने अपने घरों में हों तो विदेश यात्रा होती है। दशमेश द्वादश भाव में हो तो विदेश में कार्य करने के योग बनते हैं। लग्नेश व्यय भाव में हो तथा व्ययेश लग्न में हो तो विदेश यात्रा होती है। ऐसा देखा गया है कि द्वादशेश एवं लग्नेश के संबंध से होने वाली विदेश यात्राओं में जातक को अक्सर विदेश में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। द्वादशस्थ लग्नेश भी विदेश यात्रा का योग बनाता है।

द्वादश भाव एवं द्वादशेश यदि पाप प्रभाव में हों तो विदेश यात्रा होती है। द्वादशेश उच्च या बली हो या द्वादश भाव में उच्चस्थ ग्रह विद्यमान हों तो जातक विदेश की यात्रा करता है। नवमेश के द्वादश भाव में उच्च के होने की स्थिति में जातक को विदेश में प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। द्वादशेश यदि पंचम भाव में हो तो विदेश में शिक्षा प्राप्ति के अवसर प्राप्त होते हैं।

चतुर्थेश यदि द्वादश भाव में अवस्थित हो तो विदेश प्रवास का योग बनता है। लग्नेश से बारहवें भाव का स्वामी यदि लग्नेश का शत्रु या नीचस्थ हो तो विदेश की यात्रा होती है। अष्टम, नवम या द्वादश भाव में उच्च का चंद्रमा हो या लग्न में स्वगृही चंद्र हो तो विदेश की यात्राएं होती हैं। उदाहरण के लिए निम्न कुंडली में विदेश यात्रा संबंधी योगों का अवलोकन करते हैं:

नाम: कुमार परितोष, जन्म तिथि: 16.08.1967, समय ः 4.20 अपराह्न, स्थान ः शेखपुरा, बिहार, देशांतर: 85054’ पूर्व, अक्षांश: 25007’ उत्तर उदाहरण कुंडली में लग्न में द्विस्वभाव राशि धनु अवस्थित है, जो जातक को सतत भ्रमणशील बनाती है। चतुर्थ भाव में शनि की उपस्थिति एवं चतुर्थेश की अष्टम भाव में मौजूदगी जातक को उसके स्थायी निवास से दूर रहने का संकेत देती है।

अष्टम भाव में जलीय राशि एवं नवमेश सूर्य की उपस्थिति विदेश यात्रा का प्रबल योग बना रही है। दशमेश बुध स्वयं अष्टम भाव में बैठकर बुधादित्य योग का निर्माण कर रहा है। चूंकि अष्टम भाव समुद्री यात्राओं का प्रतिनिधित्व करता है, अतः कुंडली के योगों के अनुसार जातक लगातार समुद्री यात्राएं कर विदेश भ्रमण करता रहेगा।


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जातक मर्चेन्ट नेवी में एक उच्चस्थ पदाधिकारी है तथा लगातार समुद्री यात्राओं के माध्यम से विदेश भ्रमण करता रहता है। इस प्रकार कुंडली में मौजूद ग्रह योगों का अध्ययन कर विदेश यात्रा की संभावनाओं का सही पता किया जा सकता है।



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