हृदय रोग से संबंधित ज्योतिषीय योग

हृदय रोग से संबंधित ज्योतिषीय योग  

जय इंदर मलिक
व्यूस : 3112 | जुलाई 2017

- यदि षष्ठेश केतु के साथ हो तथा बृहस्पति, सूर्य, बुध व शुक्र अष्टम भाव में, चतुर्थ भाव में केतु हो तो हृदय रोग होता है।

- चतुर्थ व पंचम भाव में पाप ग्रह हो या पाप प्रभाव हो।

- पंचमेश तथा द्वादशेश एक साथ त्रिक भाव (6-8-12 भाव) में हों। - सप्तम या चतुर्थ भाव में मंगल बृहस्पति एवं शनि एक साथ हों।

- पंचमेश तथा सप्तमेश दोनों छठे भाव में हांे तथा पंचम या सप्तम में पाप ग्रह स्थित हों।

- तृतीय, चतुर्थ व पंचम में पाप ग्रह हों। - मंगल, बृहस्पति एवं शनि चतुर्थ में हों।

- जन्म नक्षत्र मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तरफाल्गुनी हो तो हृदय रोग बहुत पीड़ादायक होता है।

- अशुभ चंद्रमा चैथे भाव में हो तथा एक से अधिक पाप ग्रहों की युति एक भाव में हो।

- केतु व मंगल की युति चैथे भाव में हो तो हृदय रोग होता है।

- अशुभ चंद्रमा शत्रु राशि में हो या दो पाप ग्रहों के साथ चतुर्थ भाव में स्थित हो।


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- सिंह लग्न में सूर्य पाप ग्रहांे से पीड़ित हो।

- सूर्य की राहु या केतु के साथ युति हो या दृष्टि हो।

- राहु व मंगल की युति 1-4-7 या दसवें भाव में हो तो हृदय रोग होता है।

- निर्बल बृहस्पति षष्ठेश या मंगल से दृष्ट हो।

- बुध पहले भाव में एवं सूर्य व शनि षष्ठेश या पाप ग्रहों से दृष्ट हो।

- यदि सूर्य, चन्द्रमा व मंगल शत्रुक्षेत्री हों तो हृदय रोग होता है।

- चैथे भाव में राहु या केतु स्थित हो तथा लग्नेश पाप ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो हृदय रोग की पीड़ा होती है।

- शनि या बृहस्पति छठे भाव के स्वामी होकर चैथे भाव में स्थित हों व पाप ग्रहों से युत या दृष्ट हांे तो हृदय कंपन का रोग होता है।

- लग्नेश चैथे हों या नीच राशि में हों या मंगल चैथे भाव में पाप ग्रह से दृष्ट हों या शनि चैथे भाव में पाप ग्रहांे से दृष्ट हो तो हृदय रोग होता है।

- चैथे भाव में मंगल हो और उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो रक्त के थक्कों के कारण हृदय रोग की सम्भावना होती है।

- पंचमेश षष्ठेश, अष्टमेश या द्वादशेश से युत अथवा पंचमेश छठे, आठवें या बारहवें में स्थित हो तो हृदय रोग होता है।

- पंचमेश नीच का होकर शत्रुक्षेत्री हो या अस्त हो तो हृदय रोग होता है

। - मेष या वृष राशि का लग्न हो, दशम भाव में शनि हो या दशम व लग्न भाव पर शनि की दृष्टि हो तो जातक हृदय रोग से पीड़ित होता है।

- लग्न में शनि स्थित हो एवं दशम भाव का कारक सूर्य शनि से दृष्ट हो तो जातक हृदय रोग से पीड़ित होता है।

- चतुर्थेश एकादश भाव में शत्रुक्षेत्री हो, अष्टमेश तृतीय भाव में शत्रुक्षेत्री हो, नवमेश शत्रुक्षेत्री हो, षष्ठेश नवम में हो, चतुर्थ में मंगल एवं सप्तम में शनि हो तो हृदय रोग होता है।

- नीच बुध के साथ निर्बल सूर्य चतुर्थ भाव में युति करे, धनेश शनि लग्न में और 7वें भाव में मंगल हो, अष्टमेश तीसरे भाव में हो तथा लग्नेश गुरु-शुक्र के साथ होकर राहु से पीड़ित हो एवं षष्ठेश राहु के साथ युत हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

- सूर्य चैथे भाव में शयनावस्था में हो तो हृदय में तीव्र पीड़ा होती है। रोग कारक ग्रहों को दूर करने के अनेक उपाय हैं। इनमें से पका हुआ पीला काशीफल लेकर उसके बीज निकाल कर किसी भी मंदिर में रखकर ईश्वर से स्वस्थ होने की कामना करते हुये रख दें। यह उपाय तीन दिन लगातार करें।


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